धान की सीधी बोआई एक प्राकृतिक संसाधन संरक्षण तकनीक है, जिस में उचित नमी पर यथासंभव खेत की कम जुताई कर के अथवा बिना जोते हुए भी खेतों में जरूरत के मुताबिक खरपतवारनाशी का प्रयोग कर जीरो टिल मशीन से सीधी बोआई की जाती है.

जिन किसानों ने अपने गेहूं की कटाई कंबाइन से की हो, वे बिना फसल अवशेष जलाए धान की सीधी बोआई हैप्पी सीडर या टर्बो सीडर से कर सकते हैं. इस तकनीक से लागत में बचत होती है और फसल समय से तैयार हो जाती है.

उपयुक्त क्षेत्र

* उन क्षेत्रों में, जहां सिंचाई के लिए पानी की कमी हो, जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ वगैरह.

* वे राज्य, जहां जलभराव के हालात हों, उदाहरण के लिए, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम व पश्चिम बंगाल.

* उन राज्य में, जहां वर्षा आधारित खेती होती हो, जैसे ओडिशा, झारखंड, उत्तरपूर्वी राज्य.

सीधी बोआई के लाभ

* श्रमिकों की आवश्यकता में 30-40 प्रतिशत की कमी.

* पानी की 20-30 प्रतिशत बचत.

* उर्वरक उपभोग क्षमता में वृद्धि.

* समय से पहले (दिन 7-10) फसल तैयार, जिस से आगे बोई जाने वाली फसल की समय से बोआई.

* ऊर्जा की बचत (50-60 प्रतिशत डीजल).

* मीथेन उत्सर्जन में कमी, जिस से पर्यावरण सुरक्षा में इजाफा.

* उत्पादन लागत में 3,000-4,000 रुपए/प्रति हेक्टेयर की कमी.

बोआई का समय

सही समय पर फसल की बोआई एक बढि़या काम करती है, इसलिए सीधी बोआई वाले धान की फसल को मानसून आने के 10-15 दिन पहले बो देना चाहिए, जिस से फसल वर्षा शुरू होने तक 3-4 पंक्तियों वाली अवस्था में हो जाए. इस से पौधों की जड़ों की बढ़वार अच्छी होगी तथा ये खरपतवारों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे.

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