धान की फसल में पाए जाने वाले प्रमुख खरपतवार घास, सावां, टोडी बट्टा या गुरही, रागीया, मोथा, जंगली धान या करघा, केबघास, बंदराबंदरी, दूब (एकदलीय घास कुल के), गारखमुडी, विलजा, अगिया, जलकुंभी, कैना, कनकी, हजार दाना और जंगली जूट हैं. इन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं :

* जहां खेत में मिट्टी का लेव बना कर और पानी भर कर धान को रोपा या बोया जाता है, वहां जो खरपतवार भूमि तैयार करने से पहले उग आते हैं, वे लेव बनाते समय जड़ से उखाड़ कर कीचड़ में दबसड़ जाते हैं. इस के बाद मिट्टी को 5 सैंटीमीटर या अधिक पानी से भरा रखने पर नए व पुराने खरपतवार कम पनप पाते हैं.

* बीज छिटकवां धान, जिस में बियासी नहीं की जाती हो, वहां बोआई के तुरंत बाद या नई जमीन में या सूखी भूमि में बोनी के बाद, पानी बरसने के फौरन बाद ब्यूटाक्लोर 2.5 लिटर प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व का छिड़काव 500 लिटर पानी में घोल कर करने से तकरीबन 20 से 25 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं. खड़ी फसल में 2 बार 20-25 दिनों और 40-45 दिनों की अवस्था पर निराई करें.

* बीज छिटकवां धान, जहां बोया जाता हो, वहां बोने करने के बाद 7 दिनों के भीतर निराई और गुड़ाई किया जाना चाहिए. दूसरी निराई 25-30 दिनों पर करनी चाहिए. बोने के समय पर पानी उपलब्ध होने पर निराई करनी चाहिए. बोआई के 40-45 दिन बाद बोना नहीं चाहिए.

* धान के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधियां ज्यादा कारगर साबित हुई हैं.

* धान के खेत में नोमिनो गोल्ड खरपतवारनाशक छिड़कें. इस के सिर्फ एक ही छिड़काव में सभी प्रमुख खरपतवारों (डिला मोथा, छतरी वाला मोथा, फिम्बीस्टाइलिस), घुई (मोथा के विभिन्न प्रकार का पान पत्ता), पानी घास, पीले फूल वाली बूंटी मिर्च, बूंटी चार पत्ती, सफेद फूस वाली बूंटी (चौड़ी पत्ती) और घास (स्वांकी, स्वांक और कनकी) को नियंत्रित करता है.

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