एक कहावत तो हम सब ने सुनी ही है कि आम के आम और गुठलियों के दाम. यह बात अरहर की फसल पर भी लागू होती है, क्योंकि इस की फसल से भी आप दूसरे कई फायदे ले सकते हैं. जैसे कि आप चाहें तो इस की हरी पत्तियों से टोकरी बना सकते हैं. इस के अलावा इस की हरी फलियां सब्जी के लिए, खली चूरी पशुओं के लिए रातब, हरी पत्ती चारा और तना ईंधन, झोपड़ी बनाने के काम में लाया जाता है. इस के पौधों पर लाख के कीट का पालन कर के लाख भी बनाई जाती है. इस में मांस की तुलना में प्रोटीन भी ज्यादा 21-26 फीसदी पाया जाता है.

अरहर की दाल खाने से कैल्शियम और फोलिक एसिड भी भरपूर मिलता है, जो हमारे शरीर की हड्डियों को मजबूत तो बनाता ही है, साथ ही साथ दिमाग की हड्डियों को मजबूत और सेहतमंद बनाता है. इस का इस्तेमाल बच्चों को जरूर करना चाहिए, क्योंकि दाल में वे सभी पोषक तत्त्व होते हैं, जिन की हमारे शरीर को जरूरत होती है.

उपयुक्त जलवायु

अरहर नम व शुष्क जलवायु का पौधा है. इस की वानस्पतिक वृद्धि व बढ़वार के लिए नम जलवायु की जरूरत होती है.

अरहर के पौधे में फूल, कली व दाने बनते समय शुष्क जलवायु की जरूरत होती है. 75 से 100 सैंटीमीटर वर्षा वाले स्थानों में अरहर की खेती कामयाबी के साथ की जा सकती है. किसान अरहर की खेती भारी वर्षा वाले स्थानों में बिलकुल न करें.

भूमि का चुनाव

खेती करने से पहले आप अपनी मिट्टी की जांच करा लें. मिट्टी की जांच करने के बाद आप को पता चल जाएगा कि मिट्टी खेती के लिए सही है या नहीं. इस से आप को आगे होने वाली समस्या का सामना करने से बचाव मिल जाएगा.

वैसे तो यह कई तरह की मिट्टी में भी उपज दे देती है, फिर भी जानकारों के मुताबिक अरहर की फसल के लिए बलुई दोमट व दोमट मिट्टी अच्छी होती है. उचित जल निकास व हलके ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं. लवणीय व क्षारीय भूमि में इस की खेती अच्छी तरह से नहीं की जा सकती है.

अरहर की खेती काली मिट्टी में भी अच्छी तरह से की जा सकती है. अच्छी जल धारण व चूने की पर्याप्त उपलब्धता वाली भूमि में अरहर की खेती से अधिकतम उत्पादन लिया जा सकता है.

खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताइयां देशी हल से करनी चाहिए. जुताई के बाद पाटा लगा कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए.

बीज का चुनाव

सब से पहले एक किलोग्राम बीज को 2 ग्राम और एक ग्राम कार्बंडाजिम के मिश्रण या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा + 1 ग्राम कारबाक्सिन या कार्बंडाजिम से उपचारित करें.

बोने से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें. एक पैकेट 10 किलोग्राम बीज के ऊपर छिड़क कर हलके हाथ से मिलाएं, जिस से बीज के ऊपर एक हलकी परत बन जाए. इस बीज की बोआई तुरंत करें.

तेज धूप से कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है. ऐसे खेतों में जहां अरहर पहली बार काफी समय बाद बोई जा रही हो, कल्चर का इस्तेमाल जरूर करें.

बीज खरीदने के लिए आप अपने राज्य के बीज भंडारण केंद्र में जा कर उस की क्वालिटी के आधार पर खरीद सकते हैं. आप किसी सरकारी मान्यताप्राप्त संस्थान से भी बीज खरीद सकते हैं.

अरहर की उन्नतशील प्रजातियां

Arhar

भूमि का प्रकार, बोने का समय, जलवायु आदि के आधार पर अरहर की प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए.

जल्दी पकने वाली प्रजातियां : उपास 120, पूसा 855, पूसा 33, पूसा अगेती, आजाद (के 91-25) जाग्रति (आईसीपीएल 151), दुर्गा (आईसीपीएल-84031), प्रगति.

मध्यम समय में पकने वाली प्रजातियां : टाइप 21, जवाहर अरहर 4, आईसीपीएल 87119, आशा, वीएसीएमआर 583.

देर से पकने वाली प्रजातियां : बहार, बीएमएएल 13, पूसा 9.

हाईब्रिड प्रजातियां : पीपीएच 4, आईसीपीएच 8.

बोआई करने की विधि

खेत में हल के पीछे कूंड़ों में बोआई करनी चाहिए. प्रजाति व मौसम के अनुसार बीज की मात्रा और बोआई की उचित दूरी रखनी चाहिए :

बोआई के 20-25 दिन बाद पौधे की दूरी, सघन पौधे को निकाल कर निश्चित कर देनी चाहिए. अगर बोआई रिज विधि से की जाए, तो पैदावार ज्यादा मिलती है.

बीजशोधन

मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम या 3 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम की दर से शोधित कर के बोआई करें. बीजशोधन बीजोपचार से 2-3 दिन पहले करें.

बीजोपचार

10 किलोग्राम अरहर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट सही रहता है. 50 ग्राम गुड़ या चीनी को आधा लिटर पानी में घोल कर उबाल लें. घोल के ठंडा होने पर उस में राइजोबियम कल्चर मिला दें. इस कल्चर में 10 किलोग्राम बीज डाल कर अच्छी तरह मिला लें, ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जाए.

उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर दूसरे दिन बोया जा सकता है. उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखाएं व बीजोपचार दोपहर के बाद करें.

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सैंटीमीटर (जल्दी पकने वाली) व 60-75 सैंटीमीटर (मध्यम व देर से पकने वाली).

पौध से पौध की दूरी

10-15 सैंटीमीटर (जल्दी पकने वाली) व 15-20 सैंटीमीटर (मध्यम व देर से पकने वाली).

बीज की दर 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.

सिंचाई करने का तरीका

सिंचाई की जरूरत तो होती ही है, इसलिए बोआई करने के बाद इस की हलकीहलकी सिंचाई शुरू कर दें. इस से फसल को सही मात्रा में पानी मिलता रहेगा.

ध्यान दें कि जब भी आप इस की सिंचाई करें, तो पानी की निकासी भी उतनी ही जरूरी है, जितनी सिंचाई की, वरना फसल खराब भी हो सकती है.

कटाई का सही समय

फसल की कटाई करते समय आप को ध्यान देना होगा कि पत्तियों का रंग किस तरह का है और कटाई करने से पहले आप इस की कुछ फलियों को तोड़ कर देखें कि क्या उस में ठीक से दाना आ गया है या नहीं. अगर आप को दाना ठीक नहीं लगता, तो आप उस समय उस की कटाई न करें. उसे और कुछ दिन के बाद काटें. सब को एक जगह पर एकत्रित कर लें, उस के बाद फलियों में से दानों को किसी साफ जगह पर ले जा कर रख दें.

माल कहां बेचें

अरहर की खेती में फायदे की पूरी ही उम्मीद होती है, क्योंकि यह एक दलहन फसल होने के साथसाथ नकदी फसल भी है. आप अपने निकट के व्यापारियों से संपर्क कर के भी इसे अपनी इच्छा के अनुसार बेच सकते हैं या आप चाहें तो अपनी खुद की पैकिंग दे कर भी इस को बेच सकते हैं.

आप औनलाइन के माध्यम से भी सीधे इसे रिटेल या होलसेल के माध्यम से बेच सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

औनलाइन के माध्यम से आप इसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, बिगबास्केट, इंडिया मार्ट जैसी कंपनी में अपना माल सीधेतौर पर भी बेच सकते हैं या अगर आप चाहें तो पुरानी दिल्ली की मशहूर खारी बावली, जो कि पूरे एशिया, महाद्वीप की सब से बड़ी अनाज मंडी है, वहां जा कर किसी भी व्यापारी से बातचीत कर के भी अपना माल बेच सकते हैं.

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