दलहनी फसलों में अरहर किसानों की पसंदीदा फसल है. दाल के रूप में यह भारतीय भोजन में खास स्थान रखती है. अरहर में 20-21 फीसदी तक प्रोटीन पाया जाता है. अरहर में पाई जाने वाली मजबूत जड़ें सीमित नमी की दशा में भी फसल की बढ़वार को बनाए रखने के साथसाथ मिट्टी की रासायनिक और जैविक दशाओं में सुधार ला कर उस की पैदावार कूवत सुधारने में सहायक होती है. इस की पत्तियां झड़ कर मिट्टी में मिलने के बाद कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में बढ़ोतरी करती हैं और अरहर के पौधे की लकड़ी भी गांवदेहात में अनेक कामों में लाई जाती है. जैसे, भूस की बोगी बनाना और इस की लकड़ी को जलावन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता?है.

खेत का चुनाव :

अरहर की खेती के लिए ज्यादा पानी ठीक नहीं रहता इसलिए जमीन का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि खेत ऊंचा और समतल हो. खेत में बरसाती पानी के निकलने का अच्छा बंदोबस्त हो यानी अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी अरहर के लिए मुफीद रहती है.

बोआई का समय :

जून माह में अरहर की अगेती प्रजातियों की बोआई कर देनी चाहिए जिस से कि गेहूं की बोआई समय से की जा सके और देरी से पकने वाली प्रजातियों की बोआई जुलाई माह तक कर देनी चाहिए.

बीज का उपचार:

मिट्टी में पनपने वाले रोग (उकठा और जड़ गलन) से बचाव के लिए फफूंदीनाशक दवा कार्बंडाजिम 2.5 ग्राम या ट्बूकोनाजोल 1 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. इस के बाद 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम राइजोबियम जीवाणु टीका से उपचारित कर बोआई करनी चाहिए. उपचारित बीजों को छाया में सुखाना चाहिए. ध्यान रहे कि राइजोबियम जीवाणु टीका से उपचारित करने के बाद बीज को किसी भी रसायन से बीज शोधन न करें.

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