Herbicide : इन दिनों सब्जियों, फल, फूल, खाद्यान्न इत्यादि फसलों में अंधाधुंध रासायनिक खादों और खतरनाक कीटनाशकों का उपयोग बहस का विषय बना हुआ है. सेहत से जुड़े माहिरों और वैज्ञानिकों का यह मानना है कि फसल में एक हद तक रासायनिक उर्वरक का प्रयोग तो ठीक है, लेकिन फसलों में जो कीटनाशक रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं, वे मानव स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो रहें हैं. भारत में ऐसे कई रसायनों पर बैन भी लगाया जा चुका है, जो फसल में लगने वाली कीट बीमारियों की रोकथाम के लिए इस्तेमाल किए जाते रहे हैं.
भारत में कई कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीवजंतुओं के लिए नुकसान पहुंचाने वाले माने जा रहे थे. ऐसे खतरनाक कीटनाशकों की पहचान होने के बाद भारत सरकार द्वारा खतरनाक कैमिकल्स से बने तकरीबन 200 से भी अधिक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है.
अगर हम बैन लगाए गए कुछ कीटनाशकों की बात करें तो एल्डीकार्ब, एल्ड्रिन, बेनोमाइल, बेंजीन हेक्साक्लोराइड, कैल्शियम साइनाइड, कार्बेरिल, क्लोरबेंजिलेट, क्लोरडेन, क्लोरोफेनविनफोस, कौपर एसीटोआर्सेनाइट, डीडीटी, डायजिनौन, डिब्रोमोक्लोरोप्रोपेन (डीबीसीबी), एथिलीन डाइब्रोमाइड, फेनारिमोल, फेंथियन, हेप्टएक्लोर, टोक्साफीन ट्राई क्लोरोएसिटिक एसिड जैसे तमाम कीटनाशक शामिल हैं. कुछ ऐसे कीटनाशक भी हैं, जिन्हें कुछ विशेष फसलों में उपयोग के लिए प्रतिबंधित किया गया है.
कीटनाशकों पर बैन क्यों?
विशेषज्ञों के एक वर्ग का कहना है कि अगर किसान फसलों की सुरक्षा में उपयोग किए जाने वाले रसायनों को पूरी तरह उपयोग में लाना बंद कर दें, तो एकाएक उत्पादन घट जाएगा और दुनिया के सामने भुखमरी जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं.
लेकिन विशेषज्ञों के बड़े वर्ग का कहना है कि जिन कीटनाशकों का उपयोग फसलों की सुरक्षा के लिए किया जा रहा है, वे मिट्टी की उत्पादकता घटाने के साथसाथ पानी में घुल कर जलाशयों और भूजल को प्रदूषित कर सकते हैं, जिस से पीने योग्य पानी दूषित हो रहा है और यह मानव जीवन के लिए नुकसानदायक है.
विशेषज्ञों का कहना है कि कीटनाशकों का उपयोग पूरी जैव विविधता के लिए खतरा बन कर उभरा है. इस की वजह से कई प्रजाति के पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं. फसलों के परागण और उत्पादन में महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली मधुमक्खियां कीटनाशकों का सब से ज्यादा शिकार बन रही हैं.
फसलों की कीटबीमारियों की रोकथाम करने वाले कीटनाशक मानव में बीमारियों का कारण बन कर उभरे हैं. अगर कोई व्यक्ति कीटनाशकों के संपर्क में आता है, तो उसे त्वचा में जलन, आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, उलटी, दस्त और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. लेकिन कीटनाशकों से कैंसर जैसी घातक और जानलेवा बीमारी होने की संभवना सब से ज्यादा होती है. इस के अलावा ये जन्म दोष, प्रजनन संबंधी समस्याएं और तंत्रिका तंत्र को नुकसान तक पहुंचाती है.
खरपतवारनाशी है घातक
कीट और बीमारियों की रोकथाम में उपयोग होने वाले रसायनों से इतर खेतीबारी से जुड़ा एक ऐसा रसायन जो मानव में कैंसर का सब से बड़ा कारक माना जा रहा है, वो है ग्लाइफोसेट. ग्लाइफोसेट नाम से चर्चित रसायन का उपयोग हर्बिसाइड यानी खरपतवारनाशी के रूप में किया जाता है. वैसे तो यह रसायन का नाम है जबकि इसे बनाने वाली कंपनियां इसे अलगअलग ब्रांड नामों से बेचती हैं.
ग्लाइफोसेट एक खतरनाक कृषि रसायन है जिस का बड़े स्तर पर खरपतवारनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है. ग्लाइफोसेट खुद में बहुत जहरीला होता है, जिस से मनुष्यों और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है.
हाल ही में कैलिफोर्निया की 3 अदालतों ने मोनसैंटो को ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल से कैंसर से पीडि़त मरीजो को लाखों डौलर का मुआवजा देने का आदेश दिया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक एजेंसी इंटरनैशनल एजेंसी फौर रिसर्च औन कैंसर के एक शोध ने ग्लाइफोसेट को कैंसर का बड़ा कारक माना है. ग्लाइफोसेट हमारे शरीर में छिड़काव के दौरान खाद्य उत्पादों के जरीए प्रवेश करता है. यह कैंसर के अलावा मानव स्वास्थ्य में त्वचा में जलन, सूजन, खुजली या जलन, एक्जिमा, छाले, चकत्ते, चेहरे में सुन्नता, आंख और पलक, चेहरे और जोड़ों में सूजन, आंखों में दर्द, कौर्नियल चोट, आंखों में जलन, धुंधली दृष्टि, आंखों से पानी आना, मुंह और नाक में असुविधा, अप्रिय स्वाद, गले में जलन, गले में खराश, सांस लेने में कठिनाई, खांसी, खून की खांसी, फेफड़ों में सूजन, मतली, उलटी, सिरदर्द, बुखार, दस्त, जैसी समस्याएं भी पैदा करता है.
बैन का असर बेअसर
पैस्टिसाइड ऐक्शन नैटवर्क (पैन) इंडिया ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल से इनसानों और जानवरों के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान और जोखिम को देखते हुए लगातार इस रसायन पर बैन लगाने की पैरवी करता रहा है. क्योंकि कीटनाशकों और खरपतवारनाशी पर नियमकानून केंद्र द्वारा ही तय किए जाते हैं.
देशभर में ग्लाइफोसेट के जोखिम को ले कर बैन करने के लिए उठ रही मांग को देखते हुए भारत सरकार कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 21 अक्तूबर, 2022 के राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, देश में ग्लाइफोसेट के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए ग्लाइफोसेट आदेश 2022 के उपयोग पर प्रतिबंध नामक एक आदेश जारी किया.
इस आदेश में कहा गया है कि ‘ग्लाइफोसेट का उपयोग प्रतिबंधित है और कीटनियंत्रण संचालकों को छोड़ कर कोई भी व्यक्ति ग्लाइफोसेट का उपयोग नहीं करेगा.’ आदेश के क्रियान्वयन के हिस्से के रूप में, सरकार ने पंजीकरण प्रमाणपत्रधारकों से आगे की प्रक्रिया के लिए प्रमाणपत्र वापस करने को कहा और यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति 3 महीने के भीतर पंजीकरण प्रमाणपत्र वापस करने में विफल रहता है तो कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत उस के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी. आदेश में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक राज्य सरकार को इस पर गौर करना होगा और उक्त अधिनियम के प्रावधानों और इस के तहत बनाए गए नियमों के तहत ऐसे सभी कदम उठाने होंगे.
लेकिन भारत सरकार के इस आदेश का देश में कोई असर नहीं हुआ. ग्लाइफोसेट विभिन्न ब्रांड नामों से न केवल निर्मित किया जा रहा है बल्कि, इस की बिक्री और उपयोग भी धड़ल्ले से हो रही है.
कई देशों में प्रतिबंधित
ग्लाइफोसेट के दुष्प्रभाव को देखते हुए कई देशों में यह रसायन प्रतिबंधित है जिस में श्रीलंका, नीदरलैंड, फ्रांस, कोलंबिया, कनाडा, इजरायल और अर्जेंटीना सहित 35 से अधिक देश शामिल हैं.
भारत में भी इस के बड़े पैमाने पर उपयोग और सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय मुद्दों की आशंका को देखते हुए, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पंजाब, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने अस्थायी रूप से इस के उपयोग को प्रतिबंधित करने की कोशिश की, लेकिन इस का कोई खास असर नहीं हुआ.
पैस्टिसाइड ऐक्शन नैटवर्क (पैन) इंडिया ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से आग्रह किया है कि ग्लाइफोसेट के स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय प्रभावों और व्यापक अवैध उपयोग को ध्यान में रखते हुए भारत में इस पर आयात, उत्पादन, बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए.
इस के अतिरिक्त वह राष्ट्रीय स्वीकृत उपयोग के नियमों का उल्लंघन करते हुए फसलों/खेतों में खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट की अवैध रूप से अनुशंसा करने वाले जिम्मेदार संस्थानों, एजेंसियों और उद्योग के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई शुरू करें. ग्लाइफोसेट के कारण जहर से प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जाना चाहिए.
नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र का कहना है कि खरपतवारनाशी के रूप में किसानों के सामने केवल एक ही उपाय रहता है, वह है रसायन. अगर किसान प्राकृतिक तरीकों, जैविक तरीकों का इस्तेमाल करें तो इस के उपयोग पर रोक लगाई जा सकती है. देश में ऐसी मशीन की जरूरत है जो फसलों, बागबगीचों और सार्वजानिक जगहों से खरपतवार को पूरी तरह नष्ट कर पाए.