आजादी से पहले कैमिकल खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था या बहुत कम मात्रा में होता था. उस समय कैमिकल उर्वरकों के स्थान पर कार्बनिक और हरी खादों पर निर्भरता ज्यादा थी. आज हालात इस के ठीक उलट हैं. अब कैमिकल खादों पर निर्भरता ज्यादा है और कार्बनिक व हरी खादों पर न के बराबर. इस में कोई शक नहीं कि इस से फसलों की पैदावार बढ़ी है, मगर बदले में जल, जमीन और भोजन सब जहरीला हो गया है.

कैमिकल खादों व उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से समूचे जीवजगत के वजूद पर संकट मंडराने लगा है. एक सर्वे के मुताबिक, देश में 1960-61 में कैमिकल उर्वरकों का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर 2 किग्रा होता था, जो 2008-09 में बढ़ कर 128.6 किलोग्राम हो गया था.

मौजूदा समय में आंकड़ा इस से बहुत ऊपर है, जिस से मांग के बराबर आपूर्ति नहीं हो पाती है. नतीजतन, मिलावटखोर नकली उर्वरक बेच कर अपनी जेब तो भरते हैं, मगर किसानों को आएदिन चपत लगाते रहते हैं.

नकली उर्वरकों के इस्तेमाल से फसलों पर उम्मीद के मुताबिक नतीजा देखने को नहीं मिल पाता है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ जाता है. इस बारे में जब किसान विक्रेता से शिकायत करता है तो विक्रेता पल्ला झाड़ लेता है. ऐसे में जरूरी यह है कि किसान मिलावटी, नकली या असली उर्वरक का भेद आसानी से समझ सकें इसलिए कुछ ऐसे कैमिकल उर्वरकों की जांच के तरीके बताए गए हैं, जिन को अपना कर आप असली या नकली उर्वरक की पहचान कर ठगी के शिकार होने से बच सकते हैं:

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