Okra fibre: आज लगभग पूरे भारत में बड़े स्तर पर भिंडी उगाई जाती है. आमतौर पर सब्जी के रूप में उपयोग के बाद भिंडी के पौधे के शेष हिस्से को खेतों में ही फेंक दिया जाता है या खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन भिंडी का रेशा एक नवाचारपूर्ण, बायोडिग्रेडेबल और सस्ता स्रोत है, जिस का उपयोग कपड़े, लुगदी और अन्य वस्त्र सामग्री बनाने में किया जा सकता है.
भिंडी का रेशा (Okra Fibre) उत्पादन एक टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल विकल्प है, जो किसानों के लिए आय का एक नया जरीया बन सकता है. कृषि विज्ञान केंद्र की यह पहल ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का एक उदाहरण है. भिंडी के रेशे के उत्पादों के निर्माण से ग्रामीण समुदायों में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं और उन के जीवनस्तर में सुधार हो सकता है.
देहरादून के कृषि विज्ञान केंद्र की पहल
कृषि विज्ञान केंद्र देहरादून द्वारा भिंडी के तने का उपयोग रेशा उत्पादन और विभिन्न उत्पादों के निर्माण के लिए किया गया है, जो ग्रामीण समुदायों के लिए आय के नए साधनों की खोज में एक नई उम्मीद की किरण है. भिंडी को संभावित व्यावसायिक रेशों की सूची में जोड़ा जा सकता है और इस की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इसे 100 फीसदी सतत और किसानों के खेतों में उगाया जा सकता है.
भिंडी के तने का रेशा मूल्य संवर्धन, बाजार की मांग और सतत कृषि प्रथाओं के मेल से किसानों के लिए एक लाभकारी उत्पाद बन सकता है. भिंडी के पौधे को रेटिंग, धोने, कंघी करने, रेशा निर्माण और आखिर में कपड़े की बुनाई की प्रक्रिया से गुजारने के बाद इस का उपयोग वस्त्र उद्योग में भी किया जा सकता है.
उत्तराखंड के शिल्पकार इन रेशों से कुशलता से विभिन्न उत्पाद बनाते हैं, जिन में जटिल डिजाइन वाले शाल, टिकाऊ गलीचे और मजबूत टोकरी शामिल हैं. प्रत्येक उत्पाद न केवल हिमालयी क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाता है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं और सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है.
प्राकृतिक रेशों के उपयोग को बढ़ावा दे कर, उत्तराखंड का हस्तशिल्प उद्योग न केवल आजीविका का समर्थन करता है, बल्कि सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक प्रयासों में भी योगदान देता है. हस्तशिल्प के महत्त्व और उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में भिंडी के बड़े पैमाने पर उत्पादन को ध्यान में रखते हुए, हस्तशिल्प उत्पाद बनाने के लिए भिंडी के रेशे और पारंपरिक तकनीकों का संयोजन किया गया और इस से सुंदर उत्पाद बनाए गए.
कृषि विज्ञान केंद्र देहरादून ने भिंडी के रेशों का उपयोग हस्तशिल्प और वस्त्र निर्माण में बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं. केंद्र ने ग्रामीण महिलाओं को रेशे से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त किया है. भिंडी के पौधे के तनों को पानी में सड़ा कर (रेटिंग प्रक्रिया) रेशों को अलग किया जाता है. इस के बाद इन्हें धो कर, सुखा कर और कंघी कर के उपयोगी रूप दिया जाता है. यह पारंपरिक विधि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रचलित है.
कच्चे माल की खरीद व कटाई प्रक्रिया
भिंडी के पौधों को तब काटा गया जब उन के तने इतने परिपक्व हो गए थे कि उन में मजबूत रेशे मौजूद हो सकें. भिंडी के पौधे खेत से हरे अवस्था में प्राप्त किए गए और उन के तनों को पौधे से अलग किया गया. इस के बाद इन तनों को 30-35 पौधों के गट्ठर बना कर रेटिंग प्रक्रिया के लिए तैयार किया गया.
रेटिंग : रेटिंग फाइबर प्रसंस्करण की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिस में तनों को पानी में भिगो कर रेशों को ढीला किया जाता है. भिंडी के तनों के लिए स्थिर पानी रेटिंग पद्धति का उपयोग किया गया, जिस में तनों की बाहरी परत, चिपचिपा पैक्टिन और हैमिसैल्यूलोज, जो फाइबर बंडलों को आपस में बांधते हैं, को हटा दिया गया. फिर भिंडी के पौधों के 40-50 पौधों का एक गट्ठर बना कर उन्हें नरम पानी वाले कंक्रीट टैंक में 10-14 दिनों तक डुबोया गया. इस के बाद तनों को लकड़ी के हथौड़े से हलके से थपथपा कर नरम गूदा हटाया गया.
रेटिंग के बाद, तनों से रेशों को हाथ से अलग किया गया. इस प्रक्रिया में तनों का कठोर कोर हटा दिया गया, जिस से सिर्फ बाहरी रेशेदार सामग्री बची रही.
धुलाई : अलग किए गए रेशों को धोया गया ताकि उन में मौजूद अशुद्धियां, जैसे पैक्टिन, गंदगी या माइक्रोब्स हटाई जा सकें. साफ पानी और हलके रसायनों का उपयोग कर के सफाई प्रक्रिया को बेहतर बनाया गया.
सुखाना : रेशों को तेज धूप में लगभग 48 घंटों तक सुखाया गया.
रासायनिक उपचार : रेशों में से अतिरिक्त लिग्निन हटाने के लिए रासायनिक उपचार किया गया. यह प्रक्रिया एक बाथ सिस्टम का उपयोग कर के की गई, जिस में सोडियम हाइड्रोऔक्साइड, सोडियम कार्बोनेट और हाइड्रोजन पैरोक्साइड सिक्वेस्टरिंग एजेंट और वेटिंग एजेंट का उपयोग किया गया.
कार्डिंग और स्पिनिंग : सुखाने के बाद, रेशों को कंघी (कार्डिंग) की गई ताकि उन्हें सीधा और अलगअलग रूप से संरेखित किया जा सके. इस के बाद रेशों को धागे (यार्न) में काता गया.
स्थानीय विधि
भिंडी के रेशों को हस्तशिल्प उत्पाद जैसे आभूषण टोकरी, फूलदान, गिलास रखने के कोस्टर, फुटवियर और अन्य घरेलू सामान बनाने के लिए उपयोग किया गया. इस विधि में अकसर कार्डिंग की आवश्यकता नहीं होती थी.
केवीके देहरादून के अथक प्रयास से रेशे की कार्डिंग के बाद वस्त्र निर्माण की दिशा में भी प्रयास किया गया, जो एक सफल प्रयास साबित हुआ. इस से भविष्य में भिंडी के रेशे से वस्त्र निर्माण की दिशा में भी एक संभावना विकसित हो गई है.
भिंडी के रेशे (Okra fibre) से किसानों के लिए लाभ
* आय का विविधीकरण : किसान फली के साथसाथ पौधे के रेशे का भी उपयोग कर सकते हैं, जिस से उन की आय के स्रोत बढ़ेंगे.
* मूल्यवर्धन : रेशों को कपड़ा, रस्सी और अन्य उत्पादों में बदल कर किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है.
* स्थायी कृषि पद्धतियां : जैविक खेती और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से उत्पादन लागत कम की जा सकती है.
* सहकारी खेती : किसानों के बीच सहयोग से सामूहिक उत्पादन और विपणन को बढ़ावा दिया जा सकता है.
* निर्यात अवसर : भिंडी का रेशा उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के रूप में निर्यात कर वैश्विक बाजारों में पहचान बना सकता है.