मक्का गरीबों को भोजन मुहैया कराने के साथ ही पशुओं के चारे के लिए भी खास उपयोगी है. भारत में 6.2 मिलियन हेक्टेयर से अधिक रकबे पर मक्का उगाया जाता है और इस का कुल 8.7 मिलियन टन उत्पादन होता है.
मक्के के दाने से बना कार्नफ्लेक्स भारत ही नहीं विदेशों में भी शहरी लोगों का खास नाश्ता है. मक्के से स्टार्च, ग्लूकोज, अल्कोहल, एसीटिक व लैक्टिक अम्ल, रेयान, कागज, गोंद, कृत्रिम रबड़, जूते की पालिश, रंग और पैकिंग पदार्थ बनाए जाते हैं. मक्के की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर के उत्पादन में इजाफा किया जा सकता है.
जमीन का चुनाव : मक्के की खेती के लिए उपजाऊ, गहरी, अच्छे जलनिकास वाली जीवांश पदार्थ से भरपूर जमीन मुफीद होती है. मक्के की खेती हलकी बलुवर दोमट मिट्टी से ले कर मध्यम मटियार दोमट मिट्टी तक में की जाती है.
आबोहवा : मक्के की खेती तमाम देशों में कई तरह की जलवायु में की जाती है. वैसे यह गरम जलवायु की फसल है. इस के साथ ही आजकल विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाने योग्य मक्के की अनेक किस्में भी विकसित की जा चुकी हैं. इसे शीत और उष्ण कटिबंध दोनों ही तरह की जलवायु के स्थानों पर उगाया जा रहा है.
मक्के की प्रजातियों का चुनाव रकबे व पकने की अवधि के अनुसार करना चाहिए. उत्तराखंड के लिए मक्के की मुफीद प्रजातियां निम्न प्रकार से हैं:
मैदानी इलाकों के लिए संकर प्रजातियां
लंबी अवधि : एचक्यूपीएम 1, एचक्यूपीएम 4, एचक्यूपीएम 5, एचएम 11.
मध्यम अवधि : एचएम 10, एचएम 4.
जल्दी पकने वाली : डीएचएम 107, प्रकाश.
अतिशीघ्र अवधि : विवेक संकर मक्का 17, विवेक संकर मक्का 21, विवेक संकर मक्का 25, विवेक संकर मक्का 33, विवेक संकर मक्का 39, विवेक क्यूपीएम 9.