खरीफ का मौसम तिलहन की खेती के लिए विशेष महत्त्व रखता है. इस में मूंगफली, सोयाबीन व तिल की खेती का खास स्थान है. इस सीजन में बोई जाने वाली तिलहन फसलों का खाने के तेल के अलावा और भी कई तरीकों से प्रयोग किया जाता है. मूंगफली को भून कर खाने के अलावा या उस के दानों का विभिन्न मिठाइयों में प्रयोग किया जाता है. इसी तरह सोयाबीन को सब्जी या आटे के रूप में प्रयोग किया जाता है.

लेकिन इन सभी तिलहन वाली फसलों में तिल की खेती का खास महत्त्व है. तिल से न केवल तेल निकाला जाता है, बल्कि इस से भी कई तरह की मिठाइयां बनाई जाती हैं.

तिल की 2 प्रजातियां होती हैं, काला तिल व सफेद तिल. तिल का प्रयोग विभिन्न त्योहारों में भी किया जाता है. यह खासा महंगा भी होता है.

खरीफ सीजन की सब से खास तिलहनी फसल के रूप में तिल की बोआई बलुई, बलुई दोमट व मैदानी इलाकों की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में तिल की बोआई अकसर सहफसली खेती के रूप में अरहर, ज्वार या बाजरा के साथ भी की जाती है.

तिल की बोआई से पहले खेत की 2 बार जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से कर देनी चाहिए, जिस से खेत के खरपतवार नष्ट हो जाएं. इस के बाद जून के दूसरे सप्ताह में जुताई किए गए खेत में गोबर की खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए. फिर जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के आखिरी हफ्ते के बीच में तिल के 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से 200 ग्राम कार्बंडाजिम या 50 ग्राम थीरम से उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. बोआई के समय यह ध्यान देना चाहिए कि बीज ज्यादा गहराई में न जाने पाए.

उर्वरकों का इस्तेमाल : तिल की खेती में उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले किसानों को मिट्टी जांच जरूर करा लेनी चाहिए. इस से फसल में खादों की संतुलित मात्रा का इस्तेमाल करने में आसानी होती है.

वैसे, तिल की बोआई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस व 12.50 किलोग्राम गंधक का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. निराईगुड़ाई के समय 12.50 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. अगर तिल की खेती राकड (बंजर) जमीन में की गई हो तो 15 किलोग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग भी प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए.

निराईगुड़ाई व सिंचाई : तिल की फसल में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी है, क्योंकि खरपतवार होने से तिल का उत्पादन घट जाता है. बोआई के 20 दिनों के भीतर पहली निराईगुड़ाई करनी चाहिए. इस के बाद 35 दिनों के भीतर दूसरी बार फसल की निराईगुड़ाई करनी चाहिए. फसल में ज्यादा खरपतवार होने पर एलाक्लोर 50 ईसी का 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 3 दिनों के भीतर छिड़काव कर देना चाहिए.

चूंकि तिल बारिश की फसल है इसलिए इसे सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. अगर तिल की फसल में 50 फीसदी तक फली आ गई हों और बारिश न हुई हो तो फसल की 1 सिंचाई कर देनी चाहिए.

फसल सुरक्षा: बरसात में तिल की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट के रूप में पत्ती लपेटक व फलीबेधक का प्रकोप ज्यादा होता है. तिल में सूंडि़यों के रूप में लगने वाले कीट पत्तियों में जाली बना कर पत्तियों व फलियों को खा जाते हैं. ऐसे में क्पिनालफास 25 ईजी का 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर या मिथाइल पैराथियान के 2 फीसदी चूर्ण का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

तिल में लगने वाले रोगों में फाइलोडी रोग खास है. इस रोग से फूल गुच्छेदार हो कर खराब हो जाते हैं. इस रोग का कारण फुदका कीट होता है. तिल की फसल को फाइलोडी रोग से बचाने के लिए बोआई 10 जुलाई से 20 जुलाई के बीच करना ज्यादा सही होता है. फाइलोडी रोग से बचने के लिए फोरेट 10 जी को 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में बोआई के समय ही मिला देना चाहिए. फसल में इस रोग का प्रकोप हो जाने पर मिथाइल ओ डिमेटान 25 ईसी का 1 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

तिल की फसल में फाइटोफ्थेरा रोग लगने से पत्तियां तेजी से झुलस जाती हैं, जिस का सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है. इस रोग की रोकथाम के लिए 3 किलोग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड या 2.5 किलोग्राम मैंकोजेब का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फसल की कटाई व भंडारण : तिल की फसल की कटाई का समय आमतौर पर अक्तूबर से नवंबर माह के बीच होता है. जब पौधों की पत्तियां सूख कर गिर जाएं और फसल की कलियां सूखने लगें, तब फसल की कटाई कर लेनी चाहिए और फलियों को डंडे से पीट कर दानों को साफ कर अलग कर लेना चाहिए. फिर अलग किए गए दानों को 4 घंटे धूप में सुखा कर बोरे में भर कर सूखी जगह पर भंडारण करना चाहिए.

लाभ : तिल का औसत उत्पादन 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाया गया है, जिस में 1 हेक्टेयर खेत में तकरीबन 6,000 से 8,000 रुपए की लागत आती है. इस आधार पर वर्तमान बाजार भाव को देखते हुए 80 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से औसतन 10 क्विंटल से 80,000 रुपए की आमदनी होती है.

अगर लागत को निकाल दिया जाए तो 4 माह की फसल से किसान को 72,000 रुपए का शुद्ध लाभ होता है इसलिए कोई भी किसान तिल की खेती को नकदी फसल के रूप में कर के अच्छा मुनाफा कमा सकता है.

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