धरती की कोख से फसलों का सोना निकालने वाला किसान मन में अगर कुछ ठान ले तो वह कुछ भी करगुजर सकता है. मध्य प्रदेश में कई किसानों ने खेती में नए तौरतरीकों से अपनी आमदनी को बढ़ाने के साथ ही एक मुकाम हासिल किया है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा तहसील के पास एक छोटे से गांव नरवारा के किसान इस की जीतीजागती मिसाल हैं.

मनीष और मुकेश कौरव 2 भाइयों ने अपने बेटे शरद की खेतीकिसानी से संबंधित जानकारी का उपयोग करते हुए खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसल सोयाबीन को रबी सीजन में उगा कर असंभव काम को संभव बनाने की ठानी है.

फसल चक्र में यह बदलाव किसानों ने अपने बूते पर किया है. बेमौसम बारिश ने किसानों को प्रयोगधर्मी बना दिया है. जिले के किसान ज्यादा जोखिम ले रहे हैं और नए प्रयोग कर उस में कामयाब भी हो रहे हैं.

खरीफ व रबी की फसलों में काफी नुकसान के बाद भी किसान मौसम की हर चुनौती का सामना कर रहे हैं. जिले में ऐसे किसानों की कमी नहीं है, जो प्रतिकूल मौसम में भी वे फसलें उगा रहे हैं, जिसे पहले असंभव माना जाता था.

जिले के कई किसानों ने पानी की उपलब्धता पर जायद की फसल की बोवनी की. जोखिम का फल अब सब के सामने है. गरमी के इस सीजन में भी सोयाबीन लहलहा रही है.

नरवारा गांव के किसान शरद पटेल ने कृषि विषय में बीएससी, एमएससी तक की तालीम हासिल कर के नौकरी खोजने के बजाय अपने पिता की खेती में हाथ बंटाना पसंद किया है.

शरद बताते हैं, ‘‘कोरोना के समय में जब हमारे कालेज बंद हो गए, तो हम ने घर पर रहते हुए पढ़ाई करने के साथसाथ अपने पिता के साथ खेतीकिसानी के कामों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया. यह काम हमारे लिए प्रैक्टिकली अच्छा साबित हुआ, क्योंकि अब हम जो पढ़ रहे थे, उसे ही अपने खेतों में देख रहे थे.

‘‘जब मैं ने देखा कि वातावरण में भारी परिवर्तन आ रहा है, लेकिन उस के अनुरूप हमारी फसलें अच्छा उत्पादन नहीं दे रही हैं. उसी समय मेरे मन में ऋतुओं के प्रतिपक्ष खेती करने का विचार आया.

Farming‘‘अकसर किसान का सोचना यह होता है कि उस के खेत में जो फसल होती थी वही होगी और उसी समय होगी. अकसर किसान यही गलती कर देता है, क्योंकि उस ने ठान लिया है कि उसे समय का आकलन करना है वातावरण का नहीं. यही वजह है कि सोयाबीन की खेती में अव्वल मध्य प्रदेश में अब किसानों की रुचि इसे ले कर नहीं है.’’

शरद आगे बताते हैं, ‘‘मैं ने और मेरे परिवार ने रिस्क ले कर ठंड के मौसम में एक दिसंबर को दोपहर में सोयाबीन की बोआई की. हम ने सोयाबीन को मिश्रित फसल के रूप में चुना, जिस में मुख्य फसल एक गहरी जड़ वाली बहुवर्षीय फसल गन्ना थी. गन्ने की कतार से कतार की दूरी 3 फुट थी और इसी के बीच में ब्लैक बोल्ड नाम की किस्म सोयाबीन बीज को वीटावैक्श की सहायता से उपचारित कर नारी विधि की सहायता से बोआई की गई. ठंड की वजह से तापमान में गिरावट के कारण अंकुरण में 8 दिन का फर्क देखने को मिला.

‘‘एक माह तक हम ने किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया. अंकुरण के बाद वृद्धि उचित हुई और कोई भी बीमारी देखने नहीं मिली.

‘‘हम ने भूजल का उपयोग किया और पाला से भी बचाव निर्धारित किया, फसल ने पूरी सहनशीलता दिखाई और एक भी पौधा अंकुरण के बाद नष्ट नहीं हुआ.

‘‘जनवरी के महीने में हम ने 19-19 का पहला स्प्रे किया. बीच में पर्ण छिद्र की समस्या देखने को मिली, पर मात्र 5 दिन में यह खुद ही समाप्त हो गई, जिस से पता चला कि सोयाबीन की इस किस्म ने वातावरण के अनुरूप अपनेआप को ढाल लिया.

‘‘कहने का मतलब यह है कि सोयाबीन पर हमारे प्रयोग से हमें यह सीखने को मिला है कि ऋतु परिवर्तन के आधार पर अब हमें फसलों को परिवर्तित करने की आवश्यकता है और तकनीकी जानकारी के साथ तकनीकी खेती की ओर बढ़ने की भी जरूरत है. यदि ठंड में हम सोयाबीन का अच्छा उत्पादन ले पाते हैं, तो ये हमारी खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा.

‘‘प्रयोग अभी जारी है और आगे भी हम ऋतुओं के प्रतिपक्ष खेती करने की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं. वर्तमान में सरकारी बीज केंद्रों पर अच्छी किस्म के बीज पर्याप्त मात्रा में किसान को न मिल पाने के कारण भी वे अब सोयाबीन फसल उगाने से परहेज करने लगा है, क्योंकि निजी बीज केंद्र भारी कीमत पर बीज उपलब्ध करा रहे हैं.

‘‘किसान का विश्वास सरकारी बीजों पर है. यदि कृषि स्नातक छात्रों को सरकार बीज फार्म से बीज दे कर उन्नत प्रयोग कराए, तो समय पर अच्छी मात्रा में उन्नत किस्म के बीज तैयार किए जा सकते हैं.’’

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