उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले के जिला कृषि रक्षा अधिकारी शशांक ने बताया है कि संचारी रोग नियंत्रण अभियान के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत में कृषि विभाग की तरफ से चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि चूहे न सिर्फ हमारे घरों में रखे सामान, अनाज इत्यादि नष्ट करते हैं, वरन प्लेग जैसे रोग के वाहक का काम करते हैं. स्तनपाइयों में रोडेंट और्डर सर्वाधिक विविधता का है, जिस में 2200 से अधिक प्रजातियां हैं. ये सामाजिक जीव हैं, जिन की संतानोत्पत्ति की क्षमता अत्यधिक होती है. एक जोड़ी चूहे की सालभर में 1,000 से अधिक संख्या उत्पन्न होती है. चूहे का नियंत्रण सामूहिक रूप से 30 से 40 व्यक्तियों या किसान समूहों द्वारा साप्ताहिक रूप से कार्यक्रम चला कर ही संभव है.

ऐसे करें रोकथाम

चूहों की रोकथाम के लिए सब से पहले खेतों का मुआयना कर जिंदा बिलों की पहचान आवश्यक है, जिन्हें चिन्हित कर एवं बंद करते हुए झंडा लगा दें. दूसरे दिन निरीक्षण में जो बिल बंद हो, वहां से झंडा हटा दें और जहां बिल खुले पाए गए, वहां झंडा लगा रहने दें. खुले बिल में बिना जहर का चारा (एक भाग सरसों का तेल एवं 48 भाग चना/बेसन रखें. अगले दिन पुनः बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा रखें. उस के अगले दिन जिंक फास्फाइड 80 फीसदी की एक ग्राम मात्रा, एक ग्राम सरसों का तेल व 48 ग्राम भुना चना आदि से बने चारे को बिल में रखें. अगले दिन बिलों का निरीक्षण करें और मरे चूहों को एकत्र कर जमीन में दबा दें और अगले दिन बिलों को बंद कर दें. उस के अगले दिन यदि बिल खुले पाए जाएं तो कार्यक्रम पुनः प्रारंभ कर दें.

घरों में इस तरह से करें चूहा रोकथाम

घरों में चूहा रोकथाम के लिए जिंक फास्फाइड के अलावा ब्रोमोडाईलोन 0.0055 फीसदी की टिकिया का प्रयोग किया जा सकता है, जिसे चूहा 3 से 4 बार खाने के बाद मरता है. चूहों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए अन्न भंडारण धातु की बखारियों, पक्के कंक्रीट पात्रों का प्रयोग करें, जिस से उन को भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो. चूहों की बिल झाड़ियां, मेड़ों, कूड़ों आदि स्थाई रूप से होती हैं, जिन की नियमित साफसफाई करने से इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है.

चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं यथा बिल्ली, उल्लू, बाज, चमगादड़, नेवला आदि का संरक्षण किसान अपने खेतों में करने के साथसाथ खेतों में बर्ड प्रचर लगाएं, जिस पर पक्षी बैठ कर चूहों का शिकार कर सकें.

चूहों से फैलती हैं ये बीमारियां

चूहों के मलमूत्र, बाल, लार आदि में रोगों के कीटाणु होते हैं, जिन से प्लेग, लेपिडोस्पोरोसिस आदि बीमारियां फैलती हैं. स्क्रब टाइफाइस बीमारी एक विशेष प्रकार की माईट/चीगर्स द्वारा फैलती है, जो मुख्य रूप से झाड़झंखाड़ में बहुतायत पाए जाते हैं एवं चूहों के शरीर पर चिपक कर घरों में आ जाते हैं, जिन से जीवाणुजनित टायफस बुखार होता है.

उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रकार चूहा नियंत्रण जनस्वास्थ्य, फसल सुरक्षा आदि में अत्यावश्यक होता है. जेई रोग एवं अन्य संक्रामक रोगों के विषाणुओं के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष प्रकार के पौधों को लगा कर नियंत्रण किया जा सकता है. जैसे गेंदा, गुलदाउदी, साइट्रोनिला, रोजमैरी, तुलसी लैवेंडर, जिरैनियम, मिंट/पिपरमेंट आदि. ये पौधे तीव्र गंध वाले एसेंशियल औयल अवमुक्त करते हैं, जिन से मच्छर दूर भाग जाते हैं. इसलिए इस प्रकार के फूलपौधों को आसपास लगाने से वातावरण तो सुगंधित होता ही है, साथ ही साथ खतरनाक मच्छरों से भी नजात मिलता है. इन में से कुछ पौधों की प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किए जाते हैं, जो मच्छरों की घाण क्षमता को ही समाप्त कर देते हैं. इस प्रकार इन पौधों के रोपण द्वारा मच्छरों को भी दूर कर जेई जैसे खतरनाक रोग के प्रकोप से बचाव किया जा सकता है

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