बढ़ती जनसंख्या व मौसम की मार से सब्जियों की उपलब्धता व मूल्य पर अकसर प्रभाव देखा जाता है, जिस से छोटे और मध्यम किसान कम भूमि उपलब्धता व तकनीकी जानकारी के अभाव में परिवार का पोषण बाजार की क्रय सब्जियों से करते हैं. किसानों की आय में वृद्धि उन्नत विधियों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक उत्पादन एवं लाभ बढ़ा कर प्राप्त की जा सकती है.

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के प्रसार केंद्रों के द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से इस समस्या के समाधान के लिए संबंधित सूचना का प्रसार, उन्नतशील किस्मों के बीज का वितरण एवं विक्रय किया जा रहा है, जिस के माध्यम से शहरी, ग्रामीण व माली रूप से कमजोर किसान अपने घर के पास की भूमि या परती भूमि में सब्जी की खेती कर के अपने परिवार को स्वास्थवर्धक व पौष्टिक सब्जियों की उपलब्धता पूरी कर सकते हैं.

सब्जी की बेहतर पैदावार व गुणवत्ता वाली प्रजातियों का प्रसारण जनपद स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्र, भदोही की ओर से काफी गंभीरतापूर्वक निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं. केंद्र के माध्यम से किसानों को वैज्ञानिकी प्रशिक्षण दे कर उन्हें परंपरागत फसलों के बदले नकदी फसलों व व्यावसायिक फसलों की ओर आकर्षित कर उन की आय में वृद्धि भी की गई.

भदोही जनपद के किसानों को प्राकृतिक व जैविक उत्पाद उगाने पर जोर दिया गया. किसानों को सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों से अवगत करा कर खेतों में ड्रिप सिंचाई पद्धति का समायोजन किया गया, जिस के माध्यम से सिंचाई को आसान और पानी की बचत व पोषक तत्त्व प्रबंधन का काम आसान हुआ.

खरपतवारों का संक्रमण भी सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों में कम देखा गया और कीटनाशक, खरपतवारनाशी का प्रयोग भी इन यंत्रों के माध्यम से करने से श्रम व पैसों की बचत होने लगी.

किसानों ने विगत वर्षों में परंपरागत रूप से बैगन, टमाटर, फूलगोभी, तरबूज, खरबूजा इत्यादि सब्जियों को उगाते थे. वैज्ञानिक तकनीकी और प्रजातियों की जागरूकता के अभाव के कारण लागत से 5 से 10 फीसदी आमदनी ही कमा पाते थे, तत्पश्चात उन्हें विभिन्न प्रशिक्षण व गोष्ठी के माध्यम से कृषि वैज्ञानिक विधाओं से मार्गदर्शित किया गया, जिस में नकदी फसलों, व्यावसायिक फसलों की उन्नतशील क्षेत्रवार किस्मों के चुनाव और संबंधित किस्मों के बीजों की उपलब्धता का स्रोत, मौसम की जानकारी से अवगत कराया गया.

कुछ किसानों का भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी व कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां, भदोही के लिए अपना भरोसा जाहिर किया है.

विराट सिंह, भरतपुर गांव, औराई ब्लौक, भदोही जिला, उत्तर प्रदेश के एक किसान हैं, जिन्होंने बाजार से सब्जियां खरीदने से ले कर उन्हें खुद उगाने तक का लंबा सफर तय किया है. खेती के लिए सिर्फ 2 हेक्टेयर जमीन और उन के परिवार में 6 पुरुषों, 5 महिलाओं और 6 बच्चों सहित 17 सदस्यों के साथ गुजारा करना उन के लिए एक कठिन काम था.

हालांकि, विराट सिंह के लिए सबकुछ बदल गया, जब उन्हें भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां, भदोही के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला. उन्होंने सब्जी की खेती में नवीनतम तकनीकों के बारे में सीखा और बेहतर पैदावार के लिए अपनी भूमि का अनुकूलन कैसे करें, इस पर मार्गदर्शन लिया.

विराट सिंह ने इस सलाह को संजीदगी से लिया और इसे अपने खेत पर प्रारंभ कर दिया. उन्होंने आधुनिक सिंचाई तकनीकों, जैविक खादों और कीट प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करना शुरू किया. परिणाम आश्चर्यजनक थे और वे आज अपने खेत पर टमाटर, मिर्च, भिंडी, बैगन और कद्दूवर्गीय सहित विभिन्न प्रकार की सब्जियां उगाने में सक्षम हैं.

अतिरिक्त उत्पादन से विराट सिंह न केवल अपने परिवार की सब्जियों की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम हैं, बल्कि उन्हें अपने पड़ोसियों को भी मुफ्त में देते हैं. उन का खेत क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए एक मौडल बन गया और उन्होंने अन्य किसानों को सब्जी की खेती में नवीनतम तकनीकों का प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया.

पंकज बरनवाल, ग्राम खम्हरिया, प्रखंड औराई, जिला भदोही के किसान  पिछले पांच वर्षों से भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की किस्मों का उपयोग अपने 4 सदस्यों के परिवार के लिए सब्जियों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपने घर के बगीचे में कर रहे हैं.

सब से खास बात यह है कि पंकज बरनवाल अपने खेत में किसी भी तरह के रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं. वे जैविक खेती में विश्वास करते हैं और अपनी भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए खाद और फसलचक्र जैसे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करते हैं.

पंकज बरनवाल यह संदेश फैला रहे हैं कि गृहवाटिका और बाजार दोनों के लिए वैज्ञानिक तरीके से सब्जियों का उत्पादन संभव है और किसानों को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी और कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां से सहयोग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. टिकाऊ और वैज्ञानिक कृषि तकनीकें न केवल उपज की गुणवत्ता में सुधार कर सकती हैं, बल्कि पर्यावरण के संरक्षण में भी मदद कर सकती हैं.

सीमांत मिश्रा, ग्राम कुरौना, ब्लौक औराई, जनपद भदोही के किसान हैं. वे लगभग 8 सालों से भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की किस्मों का उपयोग कर रहे हैं. इन के परिवार के कुल 10 सदस्यों के लिए किचन गार्डन तैयार किया है, इस में वे पूरे वर्ष भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की किस्मों को लगा कर अपने परिवार की सब्जी की आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं.

सीमांत मिश्रा ने बताया कि पहले सब्जी की किस्मों को अपने नजदीकी दुकान से लिया करते थे और उन्हें लगाया करते थे, लेकिन न तो उस में अच्छी फलत होती थी और न ही अच्छा उत्पादन होता था. बाद में उन्हें भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां के बारे में पता चला और यहां से पौध को ले जा कर अपने गृहवटिका में लगाया, तो बहुत ही अच्छा उत्पादन मिला.

यहां की प्रजातियों का स्वाद भी अच्छा होता है और जैविक खेती करने से स्वाद और भी अच्छा हो जाता है. विगत वर्ष 2020-2021 में गृहवाटिका से काशी संदेश बैगन इन्होंने बाजार में बेच कर कुछ पैसा भी कमाया, जिस से इन्हें अत्यंत खुशी हुई.

अवधेश सिंह, हृदयीपुर, औराई ब्लौक, भदोही जिले के किसान हैं. वे लगभग 10 वर्षों से अपनी गृहवाटिका में सब्जी लगा रहे हैं, जो इन के घर के 6 सदस्यों की आवश्यकता को पूरा करती है. वे अपने परिवार के लिए पूरे वर्ष सब्जी की आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं. इन के पास वर्मी कंपोस्ट पिट भी है, जिस की सहायता से वे जैविक विधि से ही केवल सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं.

अवधेश सिंह कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां से सब्जी किस्मों के बीज व पौध ले जाते हैं. उन्होंने बताया कि यहां की उन्नतशील किस्मों के सब्जी के उपयोग की गुणवत्ता से अत्यंत ही प्रसन्न रहते हैं.

सुभाष दुबे, ग्राम भिदिउरा के निवासी ने हमेशा एक सफल किसान बनने का सपना देखा था. हालांकि, उन के पास अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए आवश्यक जानकारी और विशेषज्ञता की कमी थी. साल 2016 में जब वे कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां के संपर्क में आए, तो सब बदल गया.

वैज्ञानिकों और प्रक्षेत्र प्रबंधक की सहायता से सुभाष दुबे ने नवीनतम तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त की. अपनी कड़ी मेहनत और लगन से 1-2 साल में ही पूरे जिले में अपनी पहचान बना ली.

सुभाष दुबे ने फसलों तीनों मौसमों- रबी, खरीफ और जायद में उगाना शुरू किया. उन्होंने अपने घर के बगीचे में विभिन्न सब्जियां भी लगाईं, जो अंतत: उन की और उन के परिवार की आदत बन गई.

केंद्र की मदद से ड्रिप सिंचाई, जैविक खेती और कीट प्रबंधन जैसी आधुनिक तकनीकों के बारे में जाना. उन्होंने इन प्रथाओं को अपने खेत पर लागू किया और जल्द ही उन की उपज की गुणवत्ता और मात्रा में भारी सुधार देखा.

आज सुभाष दुबे का खेत एक संपन्न उद्यम है और वे क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं. उन्होंने बागबानी में नवीनतम तकनीकों पर अन्य किसानों को प्रशिक्षित करना भी शुरू कर दिया है और कई लोग उन की विशेषज्ञता से लाभान्वित हुए हैं.

इस से यह स्पष्ट है कि भदोही के किसान भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित सब्जी किस्मों से लाभ प्राप्त हो रहा है. स्वास्थ्य को बनाए रखने में फलों और सब्जियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है.

भारतीय पोषण संस्थान, हैदराबाद ने शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए प्रतिदिन 350 ग्राम सब्जियों व 150 ग्राम फल खाने के दिशानिर्देश दिए हैं.

प्रकृति से प्राप्त उत्पादों के विभिन्न रंग हमेशा से ध्यान आकर्षित करते रहे हैं. रंग गुणवत्ता का संकेतक तो है ही, फसल की ग्राहता व मूल्य निर्धारण में भी इस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. सब्जियों के पृथक रंगों का समावेश जैसे लाल, पीला, नारंगी, बैगनी, हरा इत्यादि उन की गुणवत्ता और जैव यौगिकों के अच्छे स्रोत होते हैं.

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