हमारे देश में उड़द का उपयोग मुख्य रूप से दाल के लिए किया जाता है. इस की दाल अत्यधिक पोषक होती है. विशेष तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसे लोग अधिक पसंद करते हैं. उड़द की दाल को भारत में भारतीय व्यंजनों को बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है और इस की हरी फलियों से सब्जी भी बनाई जाती है.
उड़द की जड़ों में गांठों के अंदर राइजोबियम जीवाणु पाया जाता है, जो वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधे को नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है, इसलिए उड़द की फसल से हरी खाद भी बनाई जाती है, जिस में तकरीबन 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन प्राप्त होती है.
देश की एक मुख्य दलहनी फसल है उड़द. इस की खेती मुख्य रूप से खरीफ सीजन में की जाती है, लेकिन जायद सीजन में समय से बोआई सघन पद्धतियों को अपना कर भारत के मैदानी भाग, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और राजस्थान में यह मुख्य रूप से इस की खेती की जाती है.
कार्य सांख्यिकी प्रभाग अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय के अनुसार, वर्ष 2004-05 में भारत में कुल उड़द का उत्पादन 1.47 मिलियन टन था, जो वर्ष 2015-16 में बढ़ कर 2.15 मिलियन टन हो गया, वहीं वर्ष 2016-17 की शुरुआत में 2.93 मिलियन टन कुल उड़द का उत्पादन लक्ष्य रखा गया.
उड़द की फसल के लिए जलवायु
उड़द एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है, इसलिए इसे आर्द्र एवं गरम जलवायु की आवश्यकता होती है. उड़द की खेती के लिए फसल पकाते समय शुष्क जलवायु की जरूरत पड़ती है. जहां तक भूमि का सवाल है, समुचित जल निकास वाली बुलई दोमट भूमि इस की खेती के लिए सब से उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में उड़द की खेती में सिंचाई की जरूरत पड़ती है.