Aromatic Oil : हमारे देश में खेती तो बहुत होती है, लेकिन ज्यादातर किसान गेहूं, गन्ना, चावल, दाल, फल, सब्जी, मसाले व तिलहन आदि फसलें ही उगाते हैं. यह चलन शुरू से चला आ रहा है. लगातार प्रति हेक्टेयर लागत बढ़ने व उपज की सही कीमत न मिलने से ज्यादातर किसानों की माली हालत दिन पर दिन खराब हो रही है.
लिहाजा अमीर होने के लिए बदलते दौर में खेती से जुड़े नए व ऐसे कामधंधे करने बहुत जरूरी हैं, जो खेती से होने वाली आमदनी व गांवों में रोजगार बढ़ा सकें. उदाहरण के तौर पर किसान सुगंध वाले पौधे उगाएं या जिस इलाके में जो उपज ज्यादा होती हो, उसे देखें कि उस के किस हिस्से से सुगंधित तेल निकाला जा सकता है. उस की ट्रेनिंग लें. उपज की प्रोसेसिंग करें. कटाई बाद की वैल्यू एडीशन तकनीक सीखें. कीमती इत्र व तेल आदि बनाएं व उन्हें बाजार में बेचें तो खेती से ज्यादा कमा सकते हैं.
बड़ा दायरा
तेल व परफ्यूम यानी इत्र कई तरह के होते हैं. मच्छर भगाने को यूकेलिप्टस का तेल, दांत के दर्द में लौंग का तेल, ताकत के लिए बादाम का तेल व उल्टियां रोकने के लिए इलायची का तेल इस्तेमाल होता है. खस, केवड़ा व गुलाबजल का इस्तेमाल मुगल काल से शरबतों में हो रहा है. खानेपीने की बहुत सी चीजों में जायके के लिए वनीला जैसे एसेंस इस्तेमाल किए जाते हैं. इन के अलावा बहुत सी दवाओं व सिंगार सामग्री में भी इत्र, एसेंस व अर्क आदि का इस्तेमाल होता है.
केरल से मशहूर हुई देशी इलाज की एरोमा पद्धति अब देशविदेश में तेजी से अपनाई जा रही है. लिहाजा देशविदेश में अब भारतीय सुगंध व इत्र आदि की मांग लगातार बढ़ रही है. इस मांग को पूरा करने के लिए सगंध पौधों की खेती भी तेजी बढ़ रही है. इसे अपना कर किसान मौके का भरपूर फायदा उठा सकते हैं.
खेती के माहिरों ने सुगंधित पौधों की नई किस्में व खेती के खास व बेहतर तरीके निकाले हैं. इसलिए कम समय में अच्छी क्वालिटी की भरपूर पैदावार मिलने लगी है. सरकार व कारोबार के जानकारों ने सुगंधित पौधों, फूलों व मसालों आदि से अलग तरह के उत्पाद बनाने पर अब खास ध्यान देना शुरू किया है. आसवन से एशेंशियल आयल, ओलियोरेजिन व सत आदि निकालने की मशीनें अपने देश में ही मिलने लगी हैं.
सहूलियत मौजूद है
सुगंधित पौधों में किसान मैंथा मिंट, जावा घास, नीबू घास, पामा रोजा, खस, तुलसी, पचौली, कैमोमिल, सिट्रोनिला व जिरेनियम आदि की खेती व उपज की प्रोसेसिंग आसानी से कर सकते हैं. यह बात अलग है कि बहुत से किसान सुगंधित पौधों की अहमियत नहीं समझते. इसलिए किसानों को जागरूक करने व खुशबू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान सीमैप, लखनऊ में चल रहा है. सीमैप के 4 में से 2 सेंटर उत्तराखंड के पुराड़ा बागेशवर व पंतनगर में हैं. 1 सेंटर बेंगलूरू व 1 हैदराबाद में भी चल रहा है.
मसलन वनीला की खुशबू का इस्तेमाल आइसक्रीम वगैरह में जायके के लिए किया जाता है, लेकिन वनीला को भारत सरकार के मसाला बोर्ड ने हमारे देश के 60 मसालों की सूची में शामिल कर रखा है और मसालों से तेल निकालने की जानकारी सचिव, भारतीय मसाला बोर्ड, पल्लारीवट्टम, एनएच बाईपास, कोच्चि, केरल से हासिल की जा सकती है.
गुलाबजल बनाने का सुधरा उपकरण नेशनल बाटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, एनबीआरआई, सिकंदरबाग, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है. लिहाजा उस की जानकारी एनबीआरआई से मिल सकती है. चंदन का तेल महंगा होता है, लेकिन चंदन की लकड़ी जंगल के महकमे के तहत आती है. चंदन के पेड़ों से जुड़ी जानकारी भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, एफआरआई, देहरादून से हासिल की जा सकती है.
सरकारी सेंटर
भारत सरकार के लघु उद्योग मंत्रालय ने साल 1991 में एक खास सेंटर सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र, एफएफडीसी खोला था. हालांकि यह हमारे देश में सब से बड़ा सेंटर है, लेकिन सच यह है कि प्रचारप्रसार की भारी कमी से बीते 25 सालों में ज्यादातर किसान कन्नौज, उत्तर प्रदेश के मकरंदनगर इलाके में चल रहे एफएफडीसी से वाकिफ नहीं हैं. लिहाजा किसानों को जागरूक होने की जरूरत है, ताकि सेंटर से फायदा उठाया जा सके.
एफएफडीसी की एक इकाई फैजलगंज, कानपुर में व दूसरी इकाई केवड़े को बढ़ावा देने के लिए जिला गंजम, उड़ीसा के बरहामपुर में चल रही है. यह केंद्र किसानों को सुगंधित पौधों के बीज, रोपण सामग्री व रायमशविरा आदि मुहैया कराता है. साथ ही सगंध खेती व प्रोसेसिंग इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने, इकाई लगाने व चलाने आदि में भी पूरी मदद करता है. इस केंद्र का मकसद किसानों व कारोबारियों को नई जानकारी दे कर नई तकनीक सिखाना व उस की बिक्री आदि से जुड़ी सभी जरूरी सहूलियतें देना है. लिहाजा किसान इस के माहिरों से तालमेल बना कर भरपूर फायदा उठा सकते हैं.
उत्तर प्रदेश के कन्नौज इलाके में खुशबूदार तेल व इत्र वगैरह उत्पाद बनाने की बहुत सी छोटीबड़ी इकाइयां चल रही हैं. सारे कारखाने कारोबारियों के हैं. किसान अगर अपनी इकाई लगाएं तो उन्हें कच्चा माल बाजार से नहीं खरीदना पड़ेगा. लिहाजा इच्छुक किसान अपनी यूनिट लगाने से पहले वहां काम सीख कर के भी तजरबा हासिल कर सकते हैं.
ऐसा करें किसान
सगंध पौधों की खेती करने, उपज की कीमत बढ़ाने व उस की प्रोसेसिंग करने वगैरह के इच्छुक किसान एफएफडीसी से ट्रेनिंग ले कर अगरबत्ती, धूपबत्ती बनाने व खुशबूदार उत्पादों की बिक्री व उन का निर्यात वगैरह करने का काम आसानी से सीख सकते हैं. कुदरती सौगात से सुगंध व सुरस बनाने के लिए इस केंद्र पर बेहतरीन लैब व सारा साजोसामान है. इसलिए यह केंद्र खुशबू उद्योग व किसानों बीच की कड़ी साबित हुआ है. इस केंद्र पर कच्चे व तैयार माल की जांचपरख व आसवन वगैरह होता है.
खास सगंध पौधे
लेमनग्रास : करीब 120 दिनों में इस की पहली कटिंग होती है. तकरीबन 50-60 हजार रुपए लागत से प्रति हेक्टेयर सालाना 250 क्विंटल तक की पैदावार मिल जाती है, जिस से 150 किलोग्राम तक तेल मिल जाता है. दूसरे व तीसरे साल तेल ज्यादा मिलता है. आसवन विधि से तेल निकाला जाता है और तेल का भाव बाजार दरों के हिसाब से तय होता है, लेकिन फिर भी इस का औसत भाव लगभग 1000 रुपए प्रति किलोग्राम रहता है. नतीजतन पैसा अच्छा मिल जाता है.
पामारोजा : 120 दिनों में फूल आने पर पहली कटिंग के बाद साल में इस की 3-4 कटाई हो जाती हैं. प्रति हेक्टेयर सालाना 350 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है. इस की पत्तियों व तनों से हर साल 125 किलोग्राम तक तेल मिल जाता है. आसवन विधि से तेल निकाला जाता है और तेल का भाव लगभग डेढ़ हजार रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास रहता है.
खस : करीब 18 महीने में जड़ें पकने पर इस की मीठी खुशबू आने लगती है. सालाना प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल तक जड़ें मिल जाती हैं, जिन से 20 किलोग्राम तक तेल मिल जाता है. आसवन कर के खस की जड़ों से तेल निकाला जाता है. तेल का औसत भाव करीब 15 से 20 हजार रुपए प्रति किलोग्राम रहता है.
सिट्रोनिला : बोआई के बाद यह 4-5 सालों तक चलती है. पहले साल में प्रति हेक्टेयर सालाना 125 क्विंटल तक की पैदावार मिल जाती है, जिस से 125 किलोग्राम तक तेल मिल जाता है. दूसरे व तीसरे साल 175 किलोग्राम तक भी तेल मिल जाता है. आसवन विधि से ही इस का भी तेल निकाला जाता है. तेल का भाव औसतन 1000 रुपए प्रति किलोग्राम रहता है.
मेंथा : करीब 120 दिनों में इस की पहली व उस के 80 दिनों बाद दूसरी कटिंग होती है. किस्म के मुताबिक प्रति हेक्टेयर हासिल मेंथा की सालाना पैदावार से 200 किलोग्राम तक मेंथा आयल मिल जाता है. मेंथा तेल का भाव बाजार में मांग व आपूर्ति के हिसाब से घटताबढ़ता रहता है, लेकिन औसत भाव 750 रुपए से 1500 रुपए प्रति किलोग्राम तक रहता है. उत्तर प्रदेश के बारबंकी, संभल, चंदौसी, मुरादाबाद व बरेली वगैरह जिलों में मेंथा की खेती बहुतायत से होती है और किसानों ने मेंथा आयल निकालने की यूनिट खेतों में ही लगा रखी है.
तुलसी : इस की फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 60 टन तक उपज मिल जाती है. इस की ताजी पत्तियों से लगभग 90 किलोग्राम तक तेल निकल आता है, जो 200 रुपए प्रति किलोग्राम तक में आसानी से बिक जाता है. तुलसी का तेल निकालने का प्लांट कूवत के मुताबिक 1 से 4 लाख रुपए तक में लग जाता है. लिहाजा किसान मिल कर भी अपनी इकाई लगा सकते हैं.
नई यूनिट लगाने में सब से पहले मशीनों की जरूरत पड़ती है. एफएफडीसी मशीनें डिजायन करने से ले कर उन्हें लगाने तक का काम करता है. लिहाजा किसान चाहें तो वे खेती से जुड़े इस सहायक रोजगार में उतर कर कमाई कर सकते हैं.
सुगंधित पौधों की खेती और सुगंध व सुरस निकालने की तकनीक व ट्रेनिंग वगैरह के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए किसान इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:
प्रधान निदेशक
सुगंध व सुरस विकास केंद्र, एफएफडीसी, मकरंद नगर, कन्नौज 209726, उत्तर प्रदेश. फोन-05694-234465, 234791
मशीनों के लिए संपर्क करें :
मै. बास नेचुरल फ्लावर प्रा.लि.
इंजीनियरिंग डिवीजन, एशियन हाउस, एनएच बाईपास, पुलिचोड़े, एलूवा, कोचिन, केरल
मो. : 9495046114, 9287245999.