Pesticide : बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा ‘कीटनाशी (Pesticide) अवशेष न्यूनीकरण की रणनीतियां’ विषय पर एक उच्च स्तरीय ब्रेनस्ट्रोर्मिंग सत्र आयोजित किया गया. इस सत्र की अध्यक्षता डा. ए.के सिंह, अनुसंधान निदेशक, बीएयू सबौर ने की. कार्यक्रम में विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने कृषि उत्पादों में कीटनाशी (Pesticide) अवशेषों को कम करने के लिए वैज्ञानिक, व्यावहारिक और नीतिगत रणनीतियों पर विचारविमर्श किय. इस का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा, जनस्वास्थ्य एवं निर्यात अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए सतत एवं सुरक्षित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देना था.

इस अवसर पर कुलपति डा. डीआर सिंह ने अपने संदेश में कहा, “अवशेष मुक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन केवल नियामक आवश्यकता नहीं, बल्कि उपभोक्ता स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संतुलन के प्रति हमारी साझा जिम्मेदारी है. बीएयू सबौर सतत और पर्यावरण अनुकूल कीट प्रबंधन तकनीकों के विकास तथा किसानों के बीच वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है.”

सत्र की अध्यक्षता करते हुए डा. एके सिंह, अनुसंधान निदेशक ने कहा,
“खाद्य श्रृंखला में कीटनाशी (Pesticide) अवशेषों की उपस्थिति पारिस्थितिक संतुलन और भारत की ‘अधिकतम अवशेष सीमा (MRL)’ अनुपालन क्षमता दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है. अब समय आ गया है कि हम रासायनिक निर्भर कीट प्रबंधन से हट कर ज्ञान आधारित समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन (IPDM) मौडल अपनाएं, जिस में जैव नियंत्रण, बायोपैस्टीसाइड, फैरोमोन ट्रैप और सटीक सलाह प्रणालियां सम्मिलित हों.”

उन्होंने आगे कहा कि अनुसंधान को गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिस (GAP), कोडैक्स एलिमेंटेरियस दिशानिर्देश तथा एफएओडब्ल्यूएचओ की सिफारिशों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए. साथ ही, कीटनाशी (Pesticide) अवशेष निगरानी एवं जोखिम आकलन मौडल को सुदृढ़ किया जाना आवश्यक है, ताकि मृदा, फसल और पर्यावरण के अंतर्संबंधों में अवशेषों के व्यवहार को वैज्ञानिक रूप से समझा जा सके.

कृषि विज्ञान, कीटविज्ञान, मृदा विज्ञान, पादप रोग विज्ञान, कृषि रसायन तथा खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विषयों के विशेषज्ञों ने तकनीकी प्रस्तुतियां दीं और निम्नलिखित विषयों पर अपने विचार रखे :

-विविध मृदाभौतिकीय एवं जलवायुगत परिस्थितियों में कीटनाशी (Pesticide) अवशेष स्थायित्व का मूल्यांकन.

-फसल एवं क्षेत्र विशेष के लिए अपघटन और डीकंटैमिनेशन मौडल का विकास.

-अवशेष निस्तारण में सूक्ष्मजीव समुदायों और एंजाइमीय क्रियाओं की भूमिका.

-एचपीएलसी और जीसी–एमएस/एमएस तकनीक द्वारा सूक्ष्म स्तर पर अवशेषों का विश्लेषण.

इस सत्र में किसान उन्मुख समाधान, जैसे क्षेत्रीय प्रदर्शन, आईसीटी आधारित निर्णय समर्थन प्रणाली और रीयल टाइम सलाह प्लेटफार्म पर भी जोर दिया गया. विशेषज्ञों ने किसानों, एफपीओ और इनपुट डीलरों के लिए क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आवश्यक बताया, ताकि वे पूर्व फसल अंतराल (PHI) और लेबल अनुशंसाओं का पालन कर सकें.

सत्र से निम्नलिखित प्रमुख संकल्प उभरे :

-क्षेत्रीय कीटनाशी (Pesticide) अवशेष निगरानी प्रयोगशालाओं की स्थापना एवं डाटा नैटवर्क का निर्माण.

-बिहार राज्य की प्रमुख खाद्यान्न फसलों हेतु राज्य स्तरीय अवशेष निगरानी डाटाबेस का निर्माण.

-बायोपैस्टीसाइड और जैविक फसल संरक्षण तकनीकों के प्रसार हेतु सार्वजनिक और निजी भागीदारी को प्रोत्साहन.

-राज्य कृषि रोडमैप में अवशेष जोखिम प्रबंधन को नीति स्तर पर शामिल करना.

एक बहुविषयक कार्यबल (Task Force) का गठन, जो ‘पैस्टीसाइड रेजिड्यू मिटिगेशन ऐक्शन प्लान’ तैयार करेगा.

-सत्र के समापन पर डा. ए.के सिंह ने वैज्ञानिकों की सक्रिय भागीदारी की सराहना की और कहा कि बीएयू सबौर कृषि क्षेत्र में सुरक्षित, सतत और अवशेष मुक्त उत्पादन प्रणाली विकसित करने के लिए विज्ञान आधारित हस्तक्षेपों और नीतिगत पहलों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.

यह सत्र इस सामूहिक संकल्प के साथ संपन्न हुआ कि अवशेष मुक्त, पर्यावरण अनुकूल और वैश्विक मानकों के अनुरूप कृषि ही भविष्य की खाद्य सुरक्षा और कृषि परिस्थितिकी की स्थिरता का आधार बनेगी.

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