Multi-Cut Fodder : बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर, ने मल्टी-कट चारा मक्का विकसित करने के लिए टियोसिन्टे (Teosinte), मक्का का जंगली पूर्वज, को प्रजनन कार्यक्रमों में शामिल करने की पहल की है. इस शोध का उद्देश्य हरा चारा उपलब्धता, बायोमास उत्पादन और पोषण गुणवत्ता में सुधार करना है, जिस से बिहार के पशुपालक किसानों को लाभ पहुंचे.
यह घोषणा आईसीएआर–भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR), लुधियाना की एक उच्च स्तरीय मौनिटरिंग टीम के बीएयू सबौर दौरे के दौरान की गई, जो अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP on Maize) के तहत चल रहे प्रयोगों का मूल्यांकन करने के लिए आई थी.
टीम में प्रमुख वैज्ञानिक शामिल थे : डा. एन.के सिंह, मक्का प्रजनक, GBPUAT, पंतनगर (अध्यक्ष); डा. महेश कुमार, कृषि वैज्ञानिक, PAU लुधियाना; डा. सौजन्या पीएल, कीट वैज्ञानिक, IIMR लुधियाना; और डा. श्राबणी देबनाथ, पादप रोग वैज्ञानिक, BCKV मोहानपुर.
टीम ने प्रायोगिक मक्का प्लौट, प्रयोगशालाओं और मैदानी परीक्षणों का निरीक्षण किया और फसल उत्पादकता, रोग एवं कीट प्रबंधन और प्रजनन रणनीतियों पर विस्तृत चर्चा की.
टियोसिन्टे आधारित चारा मक्का अनुसंधान
दौरे का मुख्य आकर्षण चारा मक्का प्रजनन में टियोसिन्टे का उपयोग था. टियोसिन्टे, मक्का का जंगली पूर्वज, अपनी मजबूत वृद्धि, उच्च बायोमास और पुनर्जनन क्षमता के लिए जाना जाता है. इसे प्रजनन कार्यक्रमों में शामिल करने से मल्टी-कट मक्का किस्में विकसित की जा सकती हैं, जिन्हें पूरे मौसम में कई बार काटा जा सकता है और लगातार हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है.
डा. एनके सिंह ने इस शोध के महत्त्व पर जोर देते हुए टियोसिन्टे जर्मप्लाज्म साझा करने का आश्वासन दिया, ताकि बीएयू सबौर में इस नवाचारी प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत हो सके.
अन्य अनुसंधान और नवाचार
रोग प्रबंधन : डा. श्राबणी देबनाथ ने बैक्टीरियल लीफ और शीथ ब्लाइट रोग पर अनुसंधान तेज करने की आवश्यकता बताई, जो खरीफ मक्का में प्रमुख समस्या है.
कृषि तकनीक : डा. महेश कुमार ने रेज्ड-बेड प्लांटिंग प्रणाली की सराहना की, जिस से पौधों की स्थापन क्षमता और समान वृद्धि सुनिश्चित होती है.
कीट प्रबंधन : डा. सौजन्या पीएल ने सुझाव दिया कि बीएयू सबौर कीट निगरानी और स्क्रीनिंग का क्षेत्रीय केंद्र बने, विशेष रूप से फाल आर्मी वार्म के लिए, जो मक्का उत्पादकता के लिए बड़ा खतरा है
डा. ए.के सिंह, निदेशक अनुसंधान, बीएयू सबौर, ने कहा कि चारा मक्का प्रजनन बीएयू सबौर का मुख्य लक्ष्य है. हम टियोसिन्टे का उपयोग कर के मल्टी-कट, उच्च बायोमास और पोषक तत्त्वों से भरपूर मक्का किस्में विकसित कर रहे हैं. यह शोध हरा चारा उपलब्धता बढ़ाएगा, पशुपालन को मजबूत करेगा और बिहार के किसानों की आजीविका में सुधार लाएगा.
डा. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर, ने कहा कि AICRP on Maize के तहत आनुवंशिक सुधार, कृषि तकनीक और रोग–कीट प्रबंधन का समेकित दृष्टिकोण स्थायी मक्का उत्पादकता और चारा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है.
डा. शैलबाला देई, उपनिदेशक अनुसंधान (DDR), बीएयू सबौर, ने कार्यक्रम का समापन करते हुए कहा कि हम आईसीएआर–आईआईएमआर मौनिटरिंग टीम, मक्का शोधकर्ताओं और सभी प्रतिभागियों का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं. हमारे सामूहिक प्रयास बिहार के किसानों के लिए मक्का अनुसंधान को और मजबूत करेंगे.