Wheat Seed : गेहूं के बीज में छिपे कई प्रकार के रोग पौधों को उगते ही संक्रमित कर देते हैं, जिससे अंकुरण की क्षमता घटती है, पौधे दुबले-पतले होते हैं, बालियों में दाने कम बनते हैं और आखिरकार पैदावार पर बुरा असर पड़ता है. बीजजनित रोगों की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ये बाहरी रूप से हमेशा स्पष्ट दिखाई नहीं देते, इसलिए किसान अक्सर इन्हें पहचान नहीं पाते और संक्रमित बीज का उपयोग कर देते हैं. बीज के माध्यम से रोगजनकों का फैलाव बहुत तेज होता है, क्योंकि हर संक्रमित बीज एक नए पौधे को रोगग्रस्त कर सकता है. इस कारण बीजजनित रोगों का नियंत्रण फसल सुरक्षा का पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है.
गेहूं के बीज (Wheat Seed) में लगने वाले प्रमुख रोग-
• कर्नाल बंट रोग
• ढीला झुलसा (लूज स्मट) रोग
• झुलसा रोग
• जड़ गलन और अंकुर गलन रोग
• कवकीय धब्बा रोग एवं बीजजनित बैक्टीरियल बीमारियां
बीज में रोग लगने के कारण
बीजजनित रोगों के फैलाव में कई कारण शामिल होते हैं जैसे गंदा खेत, संक्रमित अवशेष, अनियमित सिंचाई, अधिक नमी, अनुचित भंडारण तथा अवैज्ञानिक विधि से रखा गया बीज. कई रोगजनक कटाई के समय बालियों या दानों में प्रवेश कर जाते हैं और भंडारण के दौरान उनमें वृद्धि करते रहते हैं. यदि भंडार में नमी अधिक हो, तापमान नियंत्रित न हो या वेंटिलेशन पर्याप्त न हो तो बीज (Wheat Seed) तेजी से संक्रमित हो जाता है. संक्रमण का दूसरा बड़ा कारण खेत की मिट्टी में रोगजनकों की मौजूदगी है, जो अगले वर्ष बोए गए स्वस्थ बीजों को भी संक्रमित कर देता है.
बीजजनित रोग क्यों बढ़ते हैं
यदि किसान खेत की स्वच्छता पर ध्यान न दे, फसलचक्र न अपनाए, या संक्रमित फसल अवशेषों को नष्ट न करें, तो रोगजनक लगातार सक्रिय बने रहते हैं. इसके अतिरिक्त अनियमित वर्षा, कोहरा, अधिक तापमान या लवणीय मिट्टी जैसी परिस्थितियां भी बीजजनित रोगों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती हैं, इसलिए रोगों के नियंत्रण के लिए खेत से लेकर भंडारण तक सभी स्तरों पर सतर्कता आवश्यक है.
कैसे करें बीजजनित रोगों की पहचान
बीजजनित रोगों की पहचान के लिए वैज्ञानिक परीक्षण आवश्यक होता है क्योंकि बाहरी रूप से सभी रोग स्पष्ट नहीं दिखाई देते. बीज का अंकुरण परीक्षण, बीज को सुखाकर निरीक्षण, बीज को नम वातावरण में उगाकर रोग के लक्षण देखना या प्रयोगशाला में सूक्ष्मदर्शी द्वारा परीक्षण करना, ये सभी विधियां उपयोगी हैं. कई बार बीज को विशेष पोषक माध्यम में रखकर उस पर उगने वाले रोगजनक का प्रकार पहचाना जाता है.
ये हैं कुछ आसान उपाय
किसान भी कुछ सरल तरीकों से रोग की पहचान कर सकते हैं, जैसे काले, भूरे या चूर्णयुक्त दानों को अलग करना, दानों में दुर्गंध की जांच करना, दानों का वजन कम होना, दानों का अत्यधिक सिकुड़ना इत्यादि. खेत में बालियों में झुलसा, काले पाउडर की मौजूदगी, असामान्य बालियां और कमजोर अंकुरण भी रोग के संकेत हो सकते हैं. समय से रोग की पहचान होने पर किसान सही उपचार कर सकते हैं और अधिक हानि से बच सकते हैं.

रोकथाम के लिए क्या करें किसान
बीजजनित रोगों की रोकथाम का सबसे विश्वसनीय उपाय है बीज उपचार. बीज उपचार का उद्देश्य बीज के बाहर या अंदर मौजूद रोगजनकों को निष्क्रिय करना तथा अंकुरण के समय बीज (Wheat Seed) को सुरक्षा प्रदान करना है. बीज को बोआई से पहले रोगनाशी पदार्थों, जैविक कवकनाशकों या प्राकृतिक तत्त्वों से उपचारित किया जाता है. इस प्रक्रिया से रोगजनक अंकुरण के समय सक्रिय नहीं हो पाते और पौधा स्वस्थ निकलता है. बीज उपचार से न केवल बीज सुरक्षित होता है बल्कि बाद में कीटनाशक छिड़काव की आवश्यकता भी कम हो
जाती है.
इन तरीकों से करें बीज उपचार
आधुनिक तकनीकों में जैव-आधारित उपचार, पौधों के अर्क से बने उपचार, तथा नैनो-स्तर पर विकसित प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग अधिक प्रभावी पाया जा रहा है. बीज (Wheat Seed) उपचार का यह लाभ है कि बहुत कम मात्रा में प्रयोग से भी अधिक क्षेत्र की सुरक्षा हो जाती है और किसान को कम लागत में रोग नियंत्रण मिलता है, विशेषकर कर्नाल बंट, ढीला झुलसा और अंकुर गलन जैसे रोगों के लिए बीज उपचार एक अनिवार्य प्रक्रिया है.
स्वच्छ खेत और कृषि प्रबंधन जरूरी
बीजजनित रोगों को रोकने में खेत की सफाई और भंडारण की स्वच्छता भी बराबर महत्त्व रखती है. यदि खेत में पिछले वर्ष के संक्रमित अवशेष पड़े रहें तो रोगजनक मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रहकर नए पौधों को संक्रमित करते हैं, इसलिए कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करना, अवशेष हटाना और फसलचक्र अपनाना आवश्यक है. भंडारण में सावधानी जरूरी हैं. रोगमुक्त भंडारण के लिए बीज को पूर्णत: सूखाकर ही बोरी में भरना चाहिए, क्योंकि नमी रोगों का सबसे बड़ा कारण है.
गेहूं के बीज (Wheat Seed) में लगने वाली बीमारियां किसान की मेहनत और उत्पादन दोनों को प्रभावित करती हैं, परंतु उचित जानकारी, वैज्ञानिक विधियों और समय पर रोकथाम से इनका प्रभाव काफी हद तक कम किया जा सकता है. बीजजनित रोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे शुरुआत में ही फसल को कमजोर बना देते हैं, इसलिए रोकथाम के लिए बीज उपचार, खेत स्वच्छता, प्रमाणित बीज का उपयोग और भंडारण की वैज्ञानिक विधियां अत्यंत आवश्यक हैं.





