Millets : भारत में सांवा, कोदो, कुटकी, रागी, मक्का, बाजरा, ज्वार आदि फसलें पुराने समय से ही उगाई जाती रही हैं. आजकल इसे मोटा अनाज, श्रीअन्न या मिलेट्स भी कहते हैं. मोटा अनाज बहुत पोषक और गुणवत्ता के साथ जलवायु के लिए अनुकूल है और कम पानी में पैदा होने वाली प्रमुख फसलें हैं. 20वीं सदी तक अधिकतर क्षेत्रों में इन की खेती अरहर के साथ मिश्रित रूप से की जाती रही है.
हरित क्रांति के दौर में धीरेधीरे मोटे अनाज (Millets) की खेती की ओर लोगों का रुझान कम होने लगा था. ग्रामीण क्षेत्रों में एक कहावत प्रसिद्ध है पूस का रिन्हा, माघ में खाए. अर्थात लाई पूस माह (15 जनवरी) में बनती थी, जो माघ माह (फरवरी) तक खाई जाती थी.
ग्रामीण क्षेत्रों में कहावत है कि जैसा खाओ अन्न, वैसे रहेगा मन. मडुवा मीन, चीना संग दही. कोदो भात दूध संग लही. सब अंनन में मडुवा राजा, जबजब सेंको तबतब ताजा. सब अनन में सांवा जेठ, से बसे धाने के हेठ.
मोटे अनाज (Millets) में सभी तरह के पोषक तत्त्व मिलते हैं. इस के खाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है, क्योंकि इस में ज्यादा उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती, कीटनाशकों का प्रयोग भी नाममात्र का होता है. जब से धान व गेहूं का दौर चला, उर्वरक, पैस्टीसाइड का अंधाधुंध प्रयोग होने लगा. इस कारण तरहतरह की बीमारियां भी मानव और पशुओं में होने लगी हैं. जमीन से केंचुआ और मेंढकों की संख्या कम हो गई, पक्षियों में चील, कौए, गौरैया और गिद्धों की संख्या में कमी आई है. अब हमें श्रीअन्न की खेती पर ध्यान देना होगा. इस की खेती विशेषकर खरीफ मौसम में की जाती है.
जमीन की तैयारी और बोआई
मोटे अनाज (Millets) की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट भूमि सही रहती है. भूमि को अच्छी तरह से जोत कर समतल बनाना चाहिए. स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना चाहिए. बीजों को बोआई से पहले उपचारित करना चाहिए, ताकि रोगों और कीटों से बचाव हो सके.
फसल प्रबंधन
उचित मात्रा में खाद और उर्वरकों का उपयोग, समयसमय पर निराईगुड़ाई और सिंचाई महत्त्वपूर्ण हैं. श्रीअन्न (Millets) की फसलें ज्यादातर कम पानी में भी अच्छी होती हैं, लेकिन सूखे के समय सिंचाई की आवश्यकता होती है. ये पर्यावरण के अनुकूल फसलें हैं जिन्हें कम पानी और कम उर्वरकों में भी उगाया जा सकता है. मोटे अनाज की खेती में उत्पादन लागत कम लगती है और ये किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभकारी फसलें हैं.
हालांकि, आजकल मोटे अनाज की काफी मांग है, फिर भी किसानों को उन की उपज के लिए उचित बाजार उपलब्ध नहीं है और उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जिस से अनेक किसान चाह कर भी इस की खेती बड़े पैमाने पर नहीं कर पा रहे हैं.
प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी
इन अनाजों के प्रसंस्करण के लिए आधुनिक सुविधाओं की कमी है. इस के लिए प्रसंस्करण यंत्रों की जरूरत है, जो किसानों की पहुंच में नहीं हैं. भारत ?सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं और सब्सिडी प्रदान कर रही हैं. किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण दिया जा रहा है और विपणन सुविधाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, फिर भी अभी अनेक किसानों तक इन सब की पहुंच नहीं है.
पशुओं के लिए लाभकारी
मोटे अनाज का सेवन इनसानों के अलावा पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी है, क्योंकि इस में उच्च मात्रा में फाइबर, प्रोटीन और विटामिन होते हैं. आमतौर पर किसानों का रु?ान मुख्य रूप से अपनी दैनिक जरूरतों और पशु चारे के लिए ही मोटे अनाज को उगाने की ओर होता है. इस के विपरीत अगर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर श्रीअन्न की खरीद सुनिश्चित करे, तो इस का रकबा बढ़ सकता है.
बनाए जा रहे हैं विभिन्न व्यंजन
मोटे अनाज से रोटी, चावल, खीर, पूरी, बिसकुट, मिठाई, कौर्नफ्लैक्स, दलिया, नमकीन, टिक्की, मठरी, केक आदि विभिन्न व्यंजन बनाए जा रहे हैं, जो स्वादिष्ठ होने के साथसाथ सेहत के लिए भी लाभदायक हैं.
जो लोग इन की प्रोसैसिंग कर रहे हैं, वे अतिरिक्त कमाई भी कर रहे हैं.