Employment Opportunities : विश्व में सब से बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत चौथा देश होने के साथ ही 140 करोड़ आबादी वाला देश भी हो चुका है. ऐसे में बेरोजगारी का रास्ता भी इस जमीन से ही निकलेगा यानी कृषि क्षेत्र और इस में अपार संभावनाएं भी हैं आवश्यकता बस नजरिया बदलने की है. खेती के साथ चलने वाले व्यवसाय को पहचानने की जरूरत है वरना इतने बड़े मैनपावर को हम कहां खपाएंगे? यह बात पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने कही.
पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया राजस्थान कृषि महाविद्यालय परिसर में नवनिर्मित परीक्षा सभागार के उद्घाटन के बाद नूतन सभागार में समारोह को संबोधित कर रहे थे. कीट विज्ञान विभाग में बने इस परीक्षा सभागार के लिए उन्होंने खुद अपने विधायक फंड से 20 लाख रुपए दिए थे.
गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि भारत को अन्न की दृष्टि से हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने ही आत्मनिर्भर बनाया वरना हम अमेरिका से आयातित पीएन 48 गेहूं पर आश्रित थे. यह लाल गेहूं भी कंट्रोल की दुकानों से लाना पड़ता था. हमारे कृषि वैज्ञानिकों की क्षमताएं अपार हैं. उपज को बढ़ातेबढ़ाते आज हम अपना पेट ही नहीं भर रहे हैं, बल्कि कई देशों की भूख को भी शांत कर रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा कि उदयपुर आदिवासी बहुल इलाका है. यहां किसानों के पास छोटीछोटी जोत है. आदिवासी बारिश होने के बाद खेत में मक्का बीज डालकर मजदूरी के लिए गुजरात चला जाता है. फिर बाद में फसल पशु चट कर जाते हैं या हरे भुट्टे लोग तोड़ ले जाते हैं. छोटी जोत वाले किसानों की मानसिकता को बदलना होगा. एमपीयूएटी वैज्ञानिकों को ऐसा मौडल तैयार करना होगा जिसे अपनाकर छोटी जोत के किसान परिवार अपना भरण पोषण कर सकें. वो चाहे नीबू, आम, आंवले का बगीचा हो या फूल की खेती. खेती का पेटर्न बदलने की जरूरत है.
आज दुख इस बात का है कि हमने खेती करने वाले को हमेशा अपमानित किया है. विश्वविद्यालय अभियान चलाकर एक गांव एक किसान का चयन कर बगीचा लगाएं, ताकि आसपास के किसान भी देख कर आत्मनिर्भर बन सकें. आज कीटनाशकों के दुष्प्रभाव सामने है. हर तीसरे घर में कैंसर मरीज है. प्रयास यह हो कि आदमी की सेहत भी ठीक रहे और अच्छी आमदनी भी हो.
गुलाब चंद कटारिया ने समारोह में मौजूद कृषि विद्यार्थियों से आह्वान किया कि देश तुम्हें देख रहा है. तीसरी अर्थव्यवस्था से भारत को प्रथम पायदान पर लाने की क्षमता आप सभी में है और पूरे मनोयोग से डटे रहे तो यह उपलब्धि भी जल्दी हासिल कर लेंगे.
इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि नई शिक्षा नीति के आलोक में 2 साल पहले ही राजस्थान कृषि महाविद्यालय में 60 सीटें बढ़ाई गईं. वर्तमान में एक ही परीक्षा हाल होने से 192 छात्रों की तीन पारियों में परीक्षाएं लेनी पड़ती थी. अब नया परीक्षा सभागार बनने से विद्यार्थियों को बेहतर सुविधाएं मिलेगी.
डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस क्षेत्र का पहला कृषि महाविद्यालय की स्थापना 1960 में हुई. जबकि उदयपुर का कृषि महाविद्यालय 5 साल पहले यानी 1955 में ही शुरू हो चूका था.
उन्होंने आगे कहा कि इस महाविद्यालय से निकले छात्र आज देशदुनिया में ऊंचे पदों पर आसीन है. देशभर में कुल 73 कृषि विश्वविद्यालयों में एमपीयूएटी का नाम शीर्ष में गिना जाता है. अनुसंधान, नवाचारों पर यहां खूब काम हुए हैं. एमपीयूएटी को अब तक 58 पेटेंट मिल चुके हैं, इन में 2 साल 8 माह के उन के कार्यकाल में ही 41 पेटेंट हुए हैं. अनुसंधान का इंडेक्स आज 37 से बढ़कर 81 हो चुका है.
डा. अजित कुमार कर्नाटक ने कहा कि विश्वविद्यालय वैज्ञानिकों ने प्रताप संकर मक्का 6 विकसित की है, जिस की उपज 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि वर्तमान में 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही उपज मिल रही थी. विश्वविद्यालय ने 6 कंपनियों से समझौता कर संकर मक्का 6 का ब्रीडर सीड तैयार करने को कहा है, ताकि किसानों को लाभ मिल सके. इस के अलावा सौर ऊर्जा, ग्रीन एनर्जी, खरपतवार प्रबंधन, जैविक व प्राकृतिक खेती के साथसाथ अनुसंधान, कौशल विकास में भी विश्वविद्यालय ने उल्लेखनीय कार्य किए हैं.
शुरुआत में राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. आरबी दुबे ने कहा कि साल 1987 में उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर चला गया तो जन आंदोलन में गुलाब चंद कटारिया के प्रयासों से ही 1999 में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की नींव रखी गई. राजस्थान कृषि महाविद्यालय देश का सब से पुराना कृषि महाविद्यालय है. अब तक यहां से 4,441 बी.एससी, 3,815 एम.एससी और 2,528 छात्रछात्राएं पी.एच.डी. उपाधि ले चुके हैं.
इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय प्रबंध समिति के सदस्य, डीन डायरेक्टर डा. अरविंद वर्मा, डा आरएल सोनी, डा. सुनील जोशी, डा. आरए कौशिक, डा. कविता जोशी, डा. एस रमेश बाबू सहित बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित थे. इस कार्यक्रम का संचालन डा. कपिल देव आमेटा ने जबकि डा. एसएस लखावत ने धन्यवाद ज्ञापित किया.
जल संरक्षण में उदयपुर की अनोखी मिसाल
राज्यपाल पंजाब एवं प्रशासक चंड़ीगढ़ गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि मैं भी देशदुनिया घूमा हूं लेकिन जल संरक्षण का उदयपुर जैसा उदाहरण कहीं भी देखने को नहीं मिला. तब न तो विज्ञान ने इतनी तरक्की की थी और न ही पढ़ाईलिखाई थी. उस जमाने में महज 200 मीटर पाल बांध कर उदयपुर ने एशिया की सब से बड़ी मीठे पानी की झील बना दी जो सालभर भरी रहती है. यहां के महाराणाओं की पैनी सोच का ही परिणाम यह है कि तालाब के पास तालाब बना कर जल का संरक्षण किया गया.
उन्होंने देवास परियोजना का जिक्र करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया को याद करते हुए कहा कि 1965 में ही सुखाड़िया ने देवास परियोजना के 4 चरणों के खर्च का एक मौडल तैयार कर लिया था. पहला और दूसरा चरण पूरा होने के बाद केवल उदयपुर ऐसा शहर है, जहां अप्रैल में आकोदड़ा बांध से पानी छोड़कर झीलों को भरा जाता है. तीसरा व चौथा चरण पूरा होने पर देवास पूरे मेवाड़ को हराभरा रखने के साथ ही बीसलपुर तक पानी पहुंचाने में सक्षम है.
उन्होंने आगे बताया कि मेवाड़ में सब से अधिक बारिश गोगुंदा में होती है, लेकिन वहां के लोग प्यासे हैं. गोगुंदा का पानी उदयपुर के लोग पी रहे हैं. ऐसे में जल संरक्षण की दिशा में हमें प्रभावी प्रयास करने होंगे.