इसबगोल एक महत्त्वपूर्ण नकदी व औषधीय फसल है. इसबगोल को स्थानीय भाषा में घोड़ा जीरा भी कहते हैं. विश्व की कुल पैदावार की 80 फीसदी इसबगोल की पैदावार भारत में होती है. इस की खेती मुख्य रूप से राजस्थान व गुजरात में की जाती है. इसबगोल को मुख्यतया दानों के लिए उगाया जाता है, पर इस का कीमती भाग इस के दानों पर पाई जाने वाली भूसी है, जिस की मात्रा बीज के भार की 27-30 फीसदी तक होती है.

इसबगोल के भूसी रहित बीजों का इस्तेमाल पशुओं व मुरगियों के लिए आहार बनाने में किया जाता है.

साथ ही, इसबगोल का इस्तेमाल आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपैथिक इलाजों में किया जाता है. इस के अलावा इस का इस्तेमाल रंगाईछपाई, आइसक्रीम, ब्रेड, चौकलेट, गोंद और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में भी होता है.

उन्नत किस्में

आरआई 89 : यह किस्म राजस्थान की पहली उन्नत किस्म है. इस के पौधों की ऊंचाई 30-40 सैंटीमीटर होती है. यह 110-115 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस की उपज 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरआई 1 : सूखे और कम सूखे इलाकों के लिए मुनासिब इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 29-47 सैंटीमीटर होती है. यह 115-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत उपज 12-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

जलवायु व जमीन

इसबगोल के लिए ठंडी व शुष्क जलवायु अच्छी मानी जाती है. बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 20-25 डिगरी सैल्सियस के बीच का तापमान अच्छा माना जाता है. इस के पकने की अवस्था पर साफ, सूखा व धूप वाला मौसम बहुत अच्छा रहता है. पकाव के समय बारिश होने पर इस के बीज सड़ने लगते हैं और बीजों का छिलका फूल जाता है. इस से इस की पैदावार व गुणवत्ता में कमी आ जाती है. इस की खेती के लिए दोमट, बलुई मिट्टी, जिस में पानी के निकलने की अच्छी व्यवस्था हो, अच्छी रहती है.

खेत की तैयारी

खरीफ फसल की कटाई के बाद खेत की 2-3 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बनाएं और फसल से ज्यादा पैदावार लेने के लिए 5-6 टन सड़ी गोबर की खाद या 3 टन सड़ी देशी खाद व फसल के अवशेष 3 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. जैव उर्वरकों के रूप में 5 किलोग्राम पीएसबी व 5 किलोग्राम एजोटोबेक्टर प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत में डालें.

बीज दर व बोआई

इसबगोल का बीज बहुत छोटा होता है. इसे क्यारियों में छिटक कर मिट्टी में मिलाना चाहिए. इस के फौरन बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. इस प्रकार छिटक कर बोआई करने के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.

बीजोपचार : इसबगोल की जैविक खेती के तहत फसल को तुलासिया रोग से बचाने के लिए बीजों में नीम, धतूरा व आक की सूखी मिश्रित पत्तियों (1:1:1) से बना पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाएं.

Isabgolखरपतवारों की रोकथाम

इसबगोल में 2-3 निराइयों की जरूरत होती है. पहली निराई बोआई के तकरीबन 20 दिनों बाद व दूसरी निराई 40-45 दिनों बाद कर के फसल को खरपतवारों से बचाएं. इस से तुलासिया रोग का हमला भी कम होता है.

सिंचाई

इसबगोल में बोआई के समय, उस के 8 दिनों, 30 दिनों व 65 दिनों बाद सिंचाई करने से अच्छी उपज हासिल होती है.

इसबगोल की फसल में क्यारी विधि के बजाय फव्वारा विधि द्वारा 6 सिंचाइयां (बोआई के समय और 8, 20, 40, 55 व 70 दिनों बाद) करने से अच्छी उपज मिलती है.

कीट व रोग

रोगग्रस्त फसल के अवशेषों को खेत से बाहर कर के नष्ट कर देना चाहिए. गरमी में गहरी जुताई कर के खेत खाली छोड़ें. फसल चक्र अपनाएं यानी बारबार एक ही खेत में इसबगोल की खेती न करें. स्वस्थ, प्रमाणित व रोगरोधी किस्मों का चयन करें.

खेत में इस्तेमाल की जाने वाली गोबर की खाद अच्छी तरह से सड़ी हुई होनी चाहिए. खेत में ट्राइकोडर्मा कल्चर 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम जुताई के समय मिलाएं. इसबगोल की जैविक खेती में नीम, धतूरा, आक की सूखी पत्तियों के पाउडर को 1:1:1 के अनुपात में मिला कर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें.

फसल को रोगों व मोयले से बचाने के लिए 12 पीले चिपचिपे पाश यानी फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं. दीमक से बचाव के लिए जमीन में बेवेरिया बेसियाना या मोटाराइजियम (मित्र फफूंद) 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिलाएं. पर्णीय छिड़काव के रूप में नीम की पत्तियों का अर्क, धतूरा (10 फीसदी) व गौमूत्र (10 फीसदी) का इस्तेमाल मृदरोमिल आसिता और मोयले की रोकथाम के लिए करें. जरूरत के मुताबिक दोबारा छिड़काव करें.

कटाई, मड़ाई व ओसाई

इसबगोल में 25 से 125 तक कल्ले निकलते हैं. पौधों में 60 दिनों बाद बालियां निकलना शुरू होती हैं. तकरीबन 115-130 दिनों में फसल पक कर तैयार हो जाती है.

फसल पकने पर सुनहरी पीली बालियां गुलाबीभूरी हो जाती हैं और बालियों को दबाने पर दाने बाहर आ जाते हैं.

Isabgolफसल के पूरी तरह पकने के 1-2 दिन पहले ही फसल को काट लेना चाहिए. कटाई सुबह के समय करें, जिस से बीजों के बिखरने का डर न रहे. कटी हुई फसल को 2-3 दिन खलिहान में सुखा कर जीरे की तरह झड़का लें व निकले हुए बीजों की सफाई कर के व सुखा कर बोरियों में भर कर सूखी व ठंडी जगह पर भंडारण करें.

उपज व उपयोगी भाग

इसबगोल की औसत उपज 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इस की भूसी की मात्रा बीज के भार की 30 फीसदी होती है, जो सब से कीमती व उपयोगी भाग है. बाकी 65 फीसदी गोली, 3 फीसदी खली और 2 फीसदी खारी होती है. भूसी के अलावा सभी भाग जानवरों को खिलाने के काम आते हैं.

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