वर्टिकल फार्मिंग एक मल्टीलैवल प्रणाली है. इस के तहत कमरों में बहुसतही ढांचा खड़ा किया जाता है, जो कमरों की ऊंचाई के बराबर भी हो सकता है. वर्टिकल ढांचे के सब से निचले खाने में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है. टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटेछोटे गमले रखे जाते हैं. पंप के जरीए इन तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है. इस पानी में पोषक तत्त्व पहले ही मिला दिए जाते हैं. इस से पौधे जल्दीजल्दी बढ़ते हैं. एलईडी बल्बों से कमरे में बनावटी प्रकाश किया जाता है.

इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती. इस तरह उगाई गई सब्जियां और फल खेतों की तुलना में ज्यादा पोषक और ताजा होते हैं. अगर यह खेती छत पर की जाती है, तो इस के लिए तापमान को नियंत्रित करना होगा. वर्टिकल तकनीक में मृदा के बजाय एरोपोनिक, एक्वापोनिक या हाइड्रोपोनिक माध्यमों का उपयोग किया जाता है.

वर्टिकल खेती में 95 फीसदी कम पानी का उपयोग होता है. छतों, बालकनी और शहरों में बहुमंजिला इमारतों के कुछ हिस्सों में फसली पौधे उगाने को भी वर्टिकल कृषि के रूप में देखा जाता है.

हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

हाइड्रोपोनिक खेती तकनीकी में पौधों को पानी में उगाया जाता है. इस पानी में आवश्यक पादप पोषक तत्त्व मिले होते हैं. केवल पानी या बालू अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीकी को हाइड्रोपोनिक कहते हैं.

हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति 2 ग्रीक शब्दों हाइड्रो और पोनोस से मिल कर हुई है. हाइड्रो का मतलब पानी, जबकि पोनोस का मतलब कार्य है. हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिगरी सैल्सियस तापमान पर लगभग 80 से 85 फीसदी आर्द्रता में उगाया जाता है.

वर्टिकल खेती से छोटी या बेल वाली फसलों को लाभ

वर्टिकल खेती में मुख्य रूप से बेल या छोटे पौधे वाली फसलें ही ज्यादा उगाई जा सकती हैं. इन में घीया, लौकी, टमाटर, मिर्च, धनिया, खीरा, पत्तेदार सब्जियां शामिल हैं.

परंपरागत खेती में जहां बेल वाली फसलों का उत्पादन कम होता है और बारिश के समय फसल खराब होने का भी अंदेशा बना रहता है, वहीं वर्टिकल खेती में फसल आसमान की दिशा में बांस के सहारे रस्सी की सहायता से बढ़ती है. इस कारण खेत में पानी देते समय पौध व फसल खराब नहीं होती हैं, जबकि परंपरागत तरीके से खेत में पानी देते समय बेल पर लगे फल और पौधे कई बार खराब हो जाते हैं.

इस की खास बात यह है कि इस में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता है. यह उत्पादन पूरी तरह से और्गैनिक (जैविक) होता है.

वर्टिकल खेती का भविष्य

वर्टिकल खेती या खड़ी खेती का विचार भारत में अभी नया है. कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में इस पर शोध चल रहा है. इस समय वर्टिकल कृषि मुख्य रूप से मेट्रो सिटी बैंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में होती है. यहां उद्यमियों ने शौकिया तौर पर वर्टिकल खेती की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में इसे व्यावसायिक उद्यम का रूप दे दिया. इन शहरों में बहुत से उद्यमी हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स जैसी प्रणालियों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस तरह की खेती करने के लिए वर्टिकल खेती की तकनीकी जानकारी होना जरूरी है.

अमेरिका, चीन, सिंगापुर और मलयेशिया जैसे कई देशों में वर्टिकल फार्मिंग पहले से हो रही है. इस में एक बहुमंजिला इमारत में नियंत्रित परिस्थितियों में फल और सब्जियां उगाई जाती हैं.

वर्टिकल फार्मिंग के कम लोकप्रिय होने की मुख्य वजहों में से एक शोध एवं विकास का अभाव है. वर्टिकल खेती की तकनीक को बेहतर बनाने और लागत कम करने के लिए मुश्किल से ही कोई संस्थागत शोध कार्यों की तत्काल जरूरत है.

सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों को शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करने के बारे में विचार करना चाहिए, ताकि वर्टिकल खेती को प्रोत्साहित किया जा सके. सरकार को वर्टिकल कृषि को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लानी चाहिए.

वर्टिकल खेती के लाभ

  • यह बढ़ती जनसंख्या और कम होती कृषि योग्य भूमि की समस्या के लिए भविष्य का श्रेष्ठ विकल्प है.
  • वर्टिकल खेती से किसानों की आय कई गुना तक बढ़ जाएगी. इस से उन के जीवन स्तर में सुधार होगा.
  • वर्टिकल खेती में श्रमिकों की आवश्यकता कम होती है. यह आटोमेटेड तकनीक पर आधारित होती है.
  • वर्टिकल खेती के माध्यम से कम जमीन में अधिक उत्पादन किया जा सकता है.
  • वर्टिकल खेती में कृत्रिम प्रकाश और पर्यावरण का निर्माण किया जाता है, जिस के कारण मौसम का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है और फसल खराब होने का खतरा नहीं होता है.
  • परंपरागत खेती में कई तरह की रासायनिक खाद और खतरनाक कीटनाशक दवाओं का उपयोग किया जाता है, जिस से तरहतरह के रोग फैलते हैं. वर्टिकल खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं होता है.
  • वर्टिकल खेती में पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है.
  •  जहां इस की खपत हो, उसी के पास फसल उगाई जा सकती है. इस से लंबी दूरी के परिवहन की आवश्यकता नहीं होगी.
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