हाथ से आलू बोआई करने पर काफी समय और मजदूर लगते हैं. कई बार समय पर मजदूर भी नहीं मिल पाते. इस के चलते आलू बोआई के काम में देरी हो जाती है. इसी काम को अगर आलू बोआई यंत्र द्वारा यानी पोटैटो प्लांटर द्वारा किया जाए तो यह काम बहुत जल्दी और अच्छे तरीके से होता है.

यंत्र से बोआई करने पर खेत में आलू बीज एक तय दूरी और सही गहराई पर बोया जाता है. इस से फसल की पैदावार भी अच्छी मिलती है.

आलू बोने के 2 तरह के यंत्र आजकल चलन में हैं, एक सैमीआटोमैटिक आलू प्लांटर और दूसरा आटोमैटिक प्लांटर. दोनों ही तरह के यंत्र ट्रैक्टर में जोड़ कर चलाए जाते हैं.

सैमीआटोमैटिक प्लांटर

सैमीआटोमैटिक प्लांटर में आलू बीज भरने के लिए बड़ा बौक्स लगा होता है, जिस में आलू बीज भर दिया जाता है और उसी के साथ नीचे की ओर घूमने वाली डिस्क लगी होती है. इन डिस्कों के पीछे आदमियों के बैठने की जगह भी होती है.

बोआई के समय जब डिस्क घूमती है तो छेदों में से आलू बीज नीचे गिरते जाते हैं और उस के साथ ही यंत्र द्वारा मिट्टी से आलू दबते चले जाते हैं. इस यंत्र से आलू बोआई के साथसाथ मेंड़/कूंड़ भी बनते जाते हैं. जितनी आलू के लिए डिस्क लगी होंगी, उतनी लाइन में ही आलू की बोआई होगी.

आलू बोआई करने के लिए हर डिस्क के पीछे बैठने के लिए सीट लगी होती है. इस पर आलू डालने वाला व्यक्ति बैठा होता है. जितनी डिस्क होंगी उतने ही आदमियों की जरूरत होगी क्योंकि जब ऊपर हौपर में से आलू नीचे आता है तो डिस्क में डालने का काम वहां बैठे आदमी द्वारा किया जाता है.

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