Crop diversification: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा फसल विविधीकरण (Crop diversification) परियोजना के तहत आयोजित 2 दिवसीय अधिकारियों का प्रशिक्षण हुआ. इस कार्यक्रम में 30 सहायक कृषि अधिकारियों व कृषि पर्यवेक्षकों ने भाग लिया.

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य कृषि अधिकारियों को क्षेत्र की कृषि व्यवस्था को बदलने के लिए नवीन रणनीतियों से सशक्त बनाना था ताकि, फसल विविधीकरण में प्रमुख चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा की जा सके, जो शुष्क दक्षिण राजस्थान में सतत कृषि और ग्रामीण रोजगार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

इस परियोजना के प्रभारी डा. हरि सिंह ने कहा कि यह कार्यक्रम कृषि अधिकारियों और हितधारकों के लिए डिजाइन किया गया है, जो पारंपरिक एकफसली खेती से इंटरक्रौपिंग   प्रणालियों की ओर बदलाव पर आधारित है, जो मिट्टी की सेहत में सुधार, जलवायु परिवर्तनशीलता से जोखिम कम करने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकता है.

राजस्थान के दक्षिणी जिलों जैसे उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा में जल की कमी और अनियमित मानसून जैसी समस्याओं का सामना करते हुए, फसल विविधीकरण दालों, तिलहन और बागबानी फसलों को मक्का और गेहूं जैसे मुख्य फसलों के साथ शामिल करना, उत्पादकता और रोजगार सृजन के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव साबित हो रहा है.

अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने विविधीकृत फसलों के लिए खरपतवार प्रबंधन में उन्नत अभ्यास पर चर्चा की, जिस में उपज हानि को कम करने पर जोर दिया गया. डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि फसल विविधीकरण में मोनोकल्चर के बजाए रोटेशन या इंटरक्रौपिंग सिस्टम में विभिन्न फसलों को उगाना शामिल है. यह खरपतवार जीवन चक्र को रोक कर और रासायनिक खरपतवारनाशियों पर निर्भरता कम कर के सतत खरपतवार प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

डा. पोखर रावल, प्रोफैसर के द्वारा विविधीकृत फसल प्रणालियों के तहत उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नत कृषि अभ्यास पर जानकारी दी गई. उन्होंने फसलों में लगने वाले रोगों और उन के निदान पर गहन जानकारी दी. साथ ही, फसलों की देखभाल और उत्पादन बढ़ाने की आधुनिक विधियों की भी जानकारी दी.

इस कार्यक्रम में डा. बैरवा ने बागबानी और कृषि फसलों की लागत और लाभ का तुलनात्मक विश्लेषण कर के बताया. उन्होंने कहा कि बागबानी फसलों जैसे सब्जियां, फल और मसालों में निवेश थोड़ा अधिक होता है, लेकिन इन से मिलने वाला लाभ सामान्य फसलों की तुलना में बहुत अधिक होता है.

इस कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने यही कहा कि फसल विविधीकरण से किसानों को न केवल अधिक लाभ होगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और कृषि प्रणाली लंबे समय तक स्थायी बनी रहेगी.

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