42.4 करोड़ रुपए की लागत से बनेगा जल पार्क, मत्स्यपालकों को होगा फायदा

अगरतला: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह ने पिछले दिनों 18 मई, 2025 को अगरतला, त्रिपुरा में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत कैलाशहर, त्रिपुरा में 42.4 करोड़ रुपए की लागत से एक एकीकृत जल पार्क की शुरुआत की.

इस के अलावा, इस कार्यक्रम में राज्य की समृद्ध संस्कृति की प्रदर्शनी और विविध मछलियों पर एक मछली महोत्सव का उद्घाटन भी किया गया. इस कार्यक्रम में जौर्ज कुरियन, राज्य मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के साथसाथ सुधांशु दास, मत्स्यपालन मंत्री, त्रिपुरा सरकार और टिंकू राय, खेल और युवा मामलों के मंत्री, त्रिपुरा सरकार भी शामिल हुए.

केंद्रीय मंत्री, राजीव रंजन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताते हुए कहा कि मत्स्यपालन क्षेत्र ने 2014-15 से 9.08 फीसदी  की वृद्धि हो रही है जो भारत में कृषि से संबंधित क्षेत्रों में सबसे अधिक है. मत्स्यपालन क्षेत्र में त्रिपुरा की विशाल संभावना को पहचानते हुए, उन्होंने आधुनिक तकनीक, एकीकृत खेती और नवाचार के उपयोग के माध्यम से मांग और आपूर्ति के बीच की कमी को पूरा करने की आवश्यकता पर बल दिया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन ने कहा कि देश के 11 एकीकृत जल पार्कों में से 4 पूर्वोत्तर क्षेत्र में बनाए जा रहे हैं. इन में से एक त्रिपुरा में बनाया जा रहा है. केंद्रीय मंत्री ने हितधारकों से त्रिपुरा को एक ‘‘मछली आधिक्‍य राज्य’’ में बदलने और त्रिपुरा की 1.5 लाख टन की मांग से अधिक 2 लाख टन मछली उत्‍पादन के लक्ष्‍य की दिशा में लगन से काम करने का आग्रह किया ताकि यह मछली का निर्यात करने में सक्षम हो सके.

उन्‍होंने आगे कहा कि शीघ्र ही त्रिपुरा में भी सिक्किम की तरह ही जैविक मछली क्लस्‍टर विकसित किया जाएगा. एकीकृत जल पार्क को समयबद्ध तरीके से पूरा करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, केंद्रीय मंत्री ने मछली पालकों को संस्थागत प्रशिक्षण प्रदान करने के महत्व पर भी जोर दिया. मछुआरों को मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि और पीएमएमएसवाई जैसी सरकारी योजनाओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, उन्होंने एनएफडीबी के माध्यम से प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में सहयोग की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने झींगा उत्पादन को बढ़ावा देने, सजावटी मत्स्यपालन को विकसित करने, बुनियादी ढांचे में सुधार करने, आसान बाजार पहुंच सुनिश्चित करने और क्षेत्र में नवाचार और स्थिरता को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों के बारे में भी बात की. इस अवसर पर, केंद्रीय मंत्री ने विभिन्न लाभार्थियों को प्रमाण पत्र और स्वीकृति आदेश वितरित किए.

मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी और अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने त्रिपुरा में मछली उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि राज्य की लगभग 98 फीसदी आबादी मछली खाती है. उन्होंने राज्य की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया.

त्रिपुरा सरकार के मत्स्यपालन, एआरडीडी और एससी कल्याण मंत्री सुधांशु दास ने लक्षित उपायों के माध्यम से मछुआरों और मछली किसानों के उत्थान के लिए राज्य की प्रतिबद्धता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि मत्स्य सहायता योजना के तहत पहचाने गए मछुआरों और मछली किसानों को उन की आजीविका में सहयोग करने के लिए 6,000 रुपए की सालाना आर्थिक सहायता मिल रही है.

इस के साथ ही, रोजगार के एक साधन के रूप में मत्स्यपालन को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा कि त्रिपुरा में इस क्षेत्र में अत्‍यधिक संभावनाएं हैं जिन का अभी तक उपयोग नहीं किया गया है. जबकि त्रिपुरा सरकार के खेल और युवा मामलों के मंत्री टिंकू राय ने मत्स्यपालन क्षेत्र के उत्थान और त्रिपुरा में मछुआरों की आजीविका को बढ़ाने के लिए निरंतर सहयोग और सामूहिक प्रयास को प्रोत्साहित किया.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने विभाग की प्रमुख योजनाओं और पहलों – प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, कृषि अवसंरचना विकास निधि और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना के बारे में बताया. इन का संयुक्त निवेश परिव्यय लगभग 38,000 करोड़ रुपए है. यह उल्‍लेखनीय है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 2,114 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है जिस में विशेष रूप से त्रिपुरा के लिए 319 करोड़ रुपए शामिल हैं.

डा. अभिलक्ष लिखी ने आगे मछुआरों और मत्स्य किसानों से अनुसंधान और विकास में प्रगति का पूरा लाभ उठाते हुए रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, बायोफ्लोक और ड्रोन आधारित अनुप्रयोगों जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने का अनुरोध किया. आजीविका सुरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने मछुआरों के लिए बीमा कवरेज प्रदान करने के लाभों के बारे में भी बताया. इस के अलावा, विविध किस्‍मों की प्रजातियों विशेष रूप से उच्‍च मूल्‍य की देशी प्रजातियों जैसे पाबदा और सिंघी का उत्‍पादन बढ़ाने पर भी विशेष जोर दिया गया.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के संयुक्त सचिव सागर मेहरा, एनएफडीबी के मुख्य कार्यकारी डा. बिजय कुमार बेहरा के साथसाथ केंद्र और राज्य मत्स्य विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

Aqua Insurance : मछुआरों को पहली बार मिलेगा एक्वा बीमा

मुंबई : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय एवं पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह की अध्यक्षता में पिछले दिनों 28 अप्रैल, 2025 को मुंबई में “तटीय राज्य मत्स्यपालन बैठक: 2025” का आयोजन किया गया.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन के साथसाथ कई तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्यपालों और मत्स्यपालन मंत्रियों की भी उपस्थिति रही.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 255 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ 7 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रमुख परियोजनाओं का उद्घाटन किया. तटीय राज्य मत्स्य सम्मेलन में 5वीं समुद्री मत्स्यपालन गणना अभियान, कछुआ बहिष्करण डिवाइस पर पीएमएमएसवाई दिशानिर्देश और पोत संचार एवं सहायता प्रणाली के लिए मानक संचालन प्रक्रिया लागू किए जाने जैसी प्रमुख पहलों का भी शुभारंभ किया गया.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने डिजिटल एप्लीकेशन व्यास-एनएवी युक्त टैबलेट भी बांटे और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत लाभार्थियों को पहली बार एक्वा बीमा (एकमुश्त प्रोत्साहन स्वीकृति-सह-रिलीज आदेश) प्रदान किया. साथ ही, 5वीं समुद्री जनगणना अभियान की भी शुरुआत हुई. इस में पर्यवेक्षकों का प्रशिक्षण गांव स्तर पर डेटा गणनाकर्ताओं की भरती और प्रशिक्षण भी शामिल है. इस के पूरा होने के बाद 3 महीने तक चलने वाली वास्तविक गणना गतिविधि होगी. यह अभियान दिसंबर 2025 तक पूरा हो जाएगा.

5वीं समुद्री मत्स्यपालन जनगणना डिजिटल हुई: व्यास-एनएवी एप

भारत की 5वीं समुद्री मत्स्य गणना (एमएफसी 2025) की तैयारी के एक बड़े कदम के रूप में, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजिटल रूप से डेटा संग्रह के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन व्यास-एनएवी लौंच किया गया है. पारंपरिक पद्धति से भूसंदर्भित, एप आधारित डिजिटल प्रणाली को प्रयोग में लाते हुए एमएफसी 2025 देशभर में 12 लाख मछुआरों के परिवारों को कवर करेगा और वास्तविक समय में जांच संभव हो सकेगी.

यह बड़ा अभियान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग (डीओएफ) द्वारा समन्वित किया जाता है. व्यास-एनएवी को आईसीएआर केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया था.

यह गणना फ्रेम की बड़े स्तर पर कवरेज और सटीकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. इस एप में प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों के आधार पर गांवों की सारांश तसवीर रिकौर्ड करने की सुविधा है. यह पर्यवेक्षक केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान भारतीय मत्स्य सर्वे और तटीय राज्यों के मत्स्य विभागों के कर्मचारी हैं.

समुद्री मत्स्यपालन गणना – 2025 के बारे में

समुद्री मत्स्य गणना (एमएफसी)-2025 का ध्यान समुद्र में मछली पकड़ने वाले मछुआरों के प्रत्येक परिवार, उन के गांव, मछली पकड़ने के कौशल और साजोसामान के साथसाथ देशभर में मछली पकड़ने के बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं के संपूर्ण, सटीक और समय पर दस्तावेजीकरण पर है.

व्यवसाय को नया रूप देते हुए केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा बनाए गए अनुकूलित मोबाइल और टैबलेट आधारित एप्लिकेशन का उपयोग डेटा संग्रह के लिए किया जाएगा, ताकि हाथ से किए जाने वाले काम में होने वाली गलतियों को कम किया जा सके और नीति स्तरीय उपयोग के लिए डेटा संकलन में तेजी लाई जा सके.

यह समुद्री मत्स्य गणना एक प्रक्रिया है, जो फील्ड औपरेशन के सिग्नलिंग से शुरू होती है और रिपोर्टिंग के साथ खत्म होती है. जहां घरेलू गणना होती है, वहां संदर्भ अवधि मुख्य गतिविधि है. इस मामले में यह संदर्भ अवधि नवंबरदिसंबर, 2025 है.

इस प्रक्रिया के विभिन्न घटकों को गणना संचालन कहा जाता है. अब तक प्री कोर गणना चरण में ऐसी कई गतिविधियों की योजना बनाई गई है. मोटेतौर पर 3,500 गांवों और 12 लाख परिवारों को इस अभ्यास में अलगअलग समय पर कवर किया जाएगा. गांव की गणना को मईजून तक अंतिम रूप दिया जाएगा, जबकि परिवार स्तर के डेटा और अन्य सुविधाओं को नवंबरदिसंबर माह के दौरान कवर किया जाएगा, जो कि गांव और मछली पकड़ने वाले समुदाय के गणनाकारों द्वारा किया जाएगा.

यह औपरेशन अप्रैल से दिसंबर तक चलेगा. गांव की सूची को अंतिम रूप देने और लैंडिंग केंद्रों के डेटा को केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान, भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग के कर्मचारियों द्वारा कवर किया जाएगा.

नवंबरदिसंबर 2025 के लिए निर्धारित मुख्य गतिविधि में स्थानीय समुदाय से प्रशिक्षित गणनाकार शामिल हैं, जो स्मार्ट उपकरणों के साथ प्रत्येक समुद्री मछुआरे के घर का दौरा करेंगे. इस से पहले इस के लिए अच्छे से तैयारी की जाती है. मछुआरों की जनसांख्यिकीय और सामाजिकआर्थिक स्थिति, वैकल्पिक आजीविका के विकल्प और कैसे और कहां सरकारी योजनाएं उन की स्थिति को बेहतर करती हैं, इन पहलुओं की बारीकियां रिकौर्ड करने पर जोर दिया जाएगा. इस के लिए अधिकारी डिजिटल डेटा संग्रहण में काम कर रहे लोगों को प्रशिक्षित करेंगे और व्यास-एनएवी का उपयोग कर के गांव और बुनियादी ढांचे के डाटा की जांच करेंगे.

Mobile App : मत्स्यपालन मोबाइल ऐप शुरू, मत्स्यपालकों को होगा फायदा

Mobile App|  मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने मत्स्यपालन क्षेत्र में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिए हैदराबाद, तेलंगाना में बीते दिनों 8 मार्च, 2025 को मत्स्यपालन स्टार्टअप कौन्क्लेव 2.0 का आयोजन किया.

इस कार्यक्रम में राजीव रंजन सिंह, केंद्रीय मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज मंत्रालय, प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल, राज्य मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज मंत्रालय भी शामिल हुए.

कार्यक्रम में भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी के साथसाथ प्रो. रमेश चंद, सदस्य, नीति आयोग, भारत सरकार और श्याम सिंह राणा, मत्स्यपालन मंत्री, हरियाणा भी शामिल हुए.

कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राष्ट्रीय मत्स्यपालन डिजिटल प्लेटफौर्म मोबाइल ऐप्लीकेशन लौंच किया. गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध यह ऐप स्टार्टअप्स को विभिन्न मौड्यूल और योजना के लाभों तक पहुंचने के लिए एक सहज इंटरफेस प्रदान करेगा.

इस के अलावा केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन और संबद्ध क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के लिए 1 करोड़ रुपए की निर्धारित निधि के साथ मत्स्यपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज 2.0 का भी अनावरण किया. 10 विजेता स्टार्टअप को मत्स्यपालन और जलीय कृषि में उत्पादन दक्षता और स्थिरता बढ़ाने के लिए अभिनव समाधान विकसित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन सहायता प्राप्त होगी.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए स्टार्टअप की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. स्टार्टअप विशेष रूप से युवाओं के लिए रोजगार में मददगार होते हैं, इसलिए भारत सरकार हर संभव तरीके से स्टार्टअप का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है.

इस अवसर पर उन्होंने स्टार्टअप से आगे बढ़ कर निर्यात बढ़ाने के लिए मूल्य संवर्धन, उन्नत प्रौद्योगिकी समाधान, टूना क्षमता का उपयोग करने के लिए अंडमान एवं निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीप विकास, औनबोर्ड प्रसंस्करण इकाइयों के साथ उच्च समुद्र और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जहाजों के उन्नयन आदि के क्षेत्रों में योगदान देने का आग्रह किया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने स्टार्टअप्स को मत्स्यपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज 2.0 में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जिस का उद्देश्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देना है.

Mobile App

उन्होंने स्टार्टअप्स से मत्स्यपालन अवसंरचना विकास कोष और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने का भी आग्रह किया, ताकि उन की वृद्धि और विकास को समर्थन मिल सके.

इस कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने जलीय कृषि, मूल्य श्रृंखला आधुनिकीकरण और टिकाऊ मत्स्यपालन में उन की परियोजनाओं को मान्यता देने के लिए 33.46 करोड़ रुपए की कुल परियोजना लागत के साथ 8 चयनित मत्स्यपालन स्टार्टअप/ उद्यमी/ एफएफपीओ को पीएमएमएसवाई के तहत उद्यमी मौडल स्वीकृति मिली.

पुरस्कार विजेताओं में मध्य प्रदेश के संतोख सिंह व अवतार सिंह को मीठे पानी की मछली की खेती के लिए, नए ग्रोआउट तालाब और बायोफ्लोक टैंक बनाने के लिए, ओडिशा के एमआर एक्वाटैक को एफआरपी कार्प हैचरी, पानी की टंकी, नाव और मछलीघर टैंकों के बनाने के लिए, उत्तर प्रदेश की पीवीआर एक्वा प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड को कार्प मछली की खेती और जीवित मछली की बिक्री के लिए, गुजरात के कृष्ण नरेशभाई धिम्मर को एकीकृत मत्स्य प्रवाह के लिए, छत्तीसगढ़ के मैसर्स मंडल मनीत एक्वा जेनेटिक्स टैक्नोलौजी रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड को तिलापिया (ओरियोक्रोमिस निलोटिकस) के लिए आनुवंशिक सुधार केंद्र की स्थापना के लिए, गुजरात के मेसर्स औस्को इंडिया मरीन प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को पारंपरिक झींगापालन को एक टिकाऊ सुपर गहन परिशुद्धता खेती मौडल में बदलने के लिए, आंध्र प्रदेश की विनीशा वलसराज को रोगजनक मुक्त रेत के कीड़ों के उत्पादन के लिए और महाराष्ट्र के मैसर्स संजीवनी मत्स्य विकास सोसाइटी शामिल हैं.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने सभी महिला उद्यमियों को आगे आने और 300 से अधिक मत्स्यपालन स्टार्टअप इकोसिस्टम का एक अभिन्न अंग बनने के लिए प्रोत्साहित किया.

इस कार्यक्रम में नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने स्टार्टअप को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि आने वाला भविष्य विचारों और प्रौद्योगिकी व्यवधानों से प्रेरित होगा. उन्होंने स्टार्टअप से प्रसंस्कृत मछली के निर्यात को बढ़ावा देने, आपूर्ति श्रृंखला को सही करने, उपभोक्ताओं के लिए लागत कम करने और उत्पादक राजस्व बढ़ाने के लिए मूल्य संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया.

मत्स्य विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने मत्स्यपालन स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयासों पर जोर दिया. उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकियों के बारे में जागरूकता लाने के लिए मत्स्य मंथन श्रृंखला में स्टार्टअप की भागीदारी की तारीफ की.

उन्होंने शोध संस्थानों से आग्रह किया कि वे नवाचारों का व्यवसायीकरण करें और सभी स्टार्टअप्स को बढ़ावा दें, जिन में प्रारंभिक चरण में या अप्रमाणित स्टार्टअप्स भी शामिल हैं. आईसीएआर सीआईएफटी के निदेशक जौर्ज निनान ने अपने 8 शोध संस्थानों के माध्यम से लाइसैंसिंग, इनक्यूबेशन, प्रोटोटाइपिंग और व्यावसायीकरण में स्टार्टअप के लिए आईसीएआर के समर्थन पर प्रकाश डाला.

मुख्य केंद्र बिंदु वाले क्षेत्रों में मछली प्रसंस्करण उपकरण, सौर ऊर्जा से चलने वाली नावें, मूल्य संवर्धन, मछली पकड़ने का सामान, जलवायु स्मार्ट जलीय कृषि, पोषक तत्वों से भरपूर फीड और नैनो प्रौद्योगिकी उपयोग शामिल हैं.

बजट में मत्स्यपालन के लिए बड़ा ऐलान,50 लाख लोगों को होगा फायदा

साल 2025-2026 के लिए लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में इस बार मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए अब तक की सब से अधिक कुल 2,703.67 करोड़ रुपए की सालाना राशि आवंटित की गई. वित्तीय वर्ष 2025-2026 के लिए यह आवंटित राशि पिछले साल 2024-25 के दौरान 2,616.44 करोड़ की तुलना में 3.3 फीसदी अधिक है. इस में साल 2025-26 के दौरान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए 2,465 करोड़ रुपए का आवंटन  शामिल है, जो पिछले वर्ष 2024-25 के दौरान योजना के लिए किए गए आवंटन (2,352 करोड़ रुपए) की तुलना में 4.8 फीसदी अधिक है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में जलीय कृषि और समुद्री भोजन निर्यात में अग्रणी के रूप में भारत की उपलब्धि पर जोर दिया. यह बजट रणनीतिक रूप से वित्तीय समावेशन को बढ़ाने, सीमा शुल्क को कम कर के किसानों पर वित्तीय बोझ कम करने और समुद्री मत्स्यपालन के विकास को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है.

बजट 2025-26 में लक्षद्वीप और अंडमाननिकोबार द्वीप समूहों पर विशेष ध्यान देने के साथ विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और खुले समुद्र से मत्स्यपालन के स्थायी उपयोग के लिए रूपरेखा को सक्षम करने पर जोर दिया गया है. चूंकि भारत में 20 लाख वर्ग किलोमीटर का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और 8,118 किलोमीटर की लंबी तटरेखा है, जिस की अनुमानित समुद्री क्षमता 53 लाख टन है और 50 लाख लोगों की आजीविका समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र पर निर्भर है.

यह भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विशेष रूप से अंडमाननिकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास उच्च मूल्यवान ट्यूना और ट्यूना मछली जैसी प्रजातियों के उपयोग के लिए विशाल गुंजाइश और क्षमता प्रदान करता है. सरकार क्षमता विकास के साथ गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा देगी और संसाधन विशिष्ट मछली पकड़ने वाले जहाजों के अधिग्रहण का समर्थन करेगी.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मत्स्यपालन के विकास का लक्ष्य 6.60 लाख वर्ग किलोमीटर आर्थिक क्षेत्र का उपयोग करना होगा, जिस में 1.48 लाख टन की समुद्री मत्स्यपालन क्षमता होगी, जिस में ट्यूना मत्स्यपालन के लिए 60,000 टन की क्षमता भी शामिल है.

इस उद्देश्य के लिए ट्यूना क्लस्टर के विकास को अधिसूचित किया गया है. ट्यूना मछली पकड़ने वाले जहाजों में औनबोर्ड प्रसंस्करण और फ्रीजिंग सुविधाओं की स्थापना, गहरे समुद्र में ट्यूना मछली पकड़ने वाले जहाजों के लिए लाइसैंस व अंडमाननिकोबार प्रशासन द्वारा एकल खिड़की मंजूरी जैसी गतिविधियों के अवसरों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है.

समुद्री पिंजरा संस्कृति में समुद्री शैवाल, सजावटी और मोती की खेती पर भी जोर दिया गया है. लक्षद्वीप द्वीप समूह में मत्स्यपालन के विकास का लक्ष्य इस के 4 लाख वर्ग किलोमीटर के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र  और 4200 वर्ग किलोमीटर के लैगून क्षेत्र का उपयोग होगा, जिस में 1 लाख टन की क्षमता होगी, जिस में ट्यूना मछलीपालन के लिए 4,200 टन की क्षमता भी शामिल है.

इस उद्देश्य के लिए समुद्री शैवाल क्लस्टर के विकास को अधिसूचित किया गया है और लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा शुरू से अंत तक मूल्य श्रृंखला के साथ द्वीपवार क्षेत्र आवंटन और पट्टे की नीति, महिला स्वयं सहायता समूह का गठन और आईसीएआर संस्थान के माध्यम से क्षमता निर्माण जैसी गतिविधियां की गई हैं. निजी उद्यमियों और लक्षद्वीप प्रशासन के सहयोग से ट्यूना मछली पकड़ने और सजावटी मछलीपालन में अवसरों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है.

इस बार केंद्रीय बजट 2025 में भारत सरकार ने मछुआरों, किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और अन्य मत्स्यपालन हितधारकों के लिए ऋण पहुंच बढ़ाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की ऋण सीमा को 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दिया है.

इस कदम का उद्देश्य वित्तीय संसाधनों के प्रवाह को सुव्यवस्थित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्षेत्र की कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक धन आसानी से उपलब्ध हो. बढ़ी हुई ऋण उपलब्धता आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में सहायता करेगी और ग्रामीण विकास और आर्थिक स्थिरता को मजबूत करेगी.

वैश्विक समुद्री भोजन बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और हमारी निर्यात टोकरी में मूल्यवर्धित उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विनिर्माण के लिए जमे हुए मछली पेस्ट (सुरीमी) और नकली केंकड़ा मांस की छड़ें, सुरीमी केंकड़ा पंजा उत्पाद, झींगा एनालौग, लौबस्टर एनालौग और अन्य सुरीमी एनालौग या नकली उत्पाद आदि जैसे मूल्यवर्धित समुद्री खाद्य उत्पादों का निर्यात पर मूल सीमा शुल्क को 30 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है.

इस के अलावा भारतीय झींगापालन उद्योग को विश्व स्तर पर मजबूत करने के लिए एक्वाफीड के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण इनपुट मछली हाइड्रोलाइजेट पर आयात शुल्क 15 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी  करने की घोषणा की गई है. इस से उत्पादन लागत कम होने और किसानों के लिए राजस्व और लाभ मार्जिन बढ़ने की उम्मीद है, जिस से निर्यात में सुधार और वृद्धि होगी.

भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख ‘सूर्योदय क्षेत्रों’ में से एक कहे जाने वाले भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र ने अपनी छाप छोड़ी है. कृषि के अंतर्गत संबद्ध क्षेत्रों में उत्पादन के मूल्य वित्त वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक में 9.0 फीसदी की उच्चतम औसत वार्षिक दशकीय वृद्धि दर्ज करते हुए बहुत स्वस्थ गति से बढ़ रहा है. इस विकास की कहानी को वैश्विक मछली उत्पादन में 8 फीसदी  हिस्सेदारी और 184.02 लाख टन (2023-24) के रिकौर्ड उच्च मछली उत्पादन के साथ दूसरे सब से बड़े मछली उत्पादक देश के रूप में भारत की वैश्विक रैंकिंग द्वारा चिन्हित किया गया है.

भारत साल 2023-24 में 139.07 लाख टन के साथ जलीय कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और 60,524 करोड़ रुपए के कुल निर्यात मूल्य के साथ दुनिया में शीर्ष झींगा उत्पादक और समुद्री खाद्य निर्यातक देशों में से एक है. यह क्षेत्र हाशिए पर मौजूद और कमजोर समुदायों के 30 मिलियन से अधिक लोगों को स्थायी आजीविका प्रदान करता है. ‘सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वास, सब का प्रयास’ के आदर्श वाक्य के साथ भारत सरकार साल 2047 तक विकसित भारत की दिशा में प्रमुख चालक के रूप में मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दे रही है.

‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ हाथों में सम्मान चेहरे पर मुसकान

पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ दिल्ली प्रैस के गौरवशाली प्रकाशनों में शुमार देश के किसानों को न केवल खेतीकिसानी से जुड़ी जानकारियां उपलब्ध कराती है, बल्कि यह आम बोलचाल की भाषा में कृषि की नई तकनीकी जानकारी, बागबानी, मत्स्यपालन, डेरी व डेरी उत्पाद, फूड प्रोसेसिंग, खेतीबारी से जुड़ी मशीनों, खेतखलिहान से बाजार तक का सफर समेत ग्रामीण विकास और किसानों की सफलता की कहानियों और अनुभवों को किसानों तक अपने लेखों और खबरों के जरीए पहुंचाने का काम करती रही है. यही वजह है कि इस पत्रिका का प्रसार देश में तेजी से बढ़ रहा है और खेतीबारी में दिलचस्पी रखने वाले पाठकों की तादाद में इजाफा भी हो रहा है.

पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ न केवल लेखों के जरीए किसानों की मददगार बनी हुई है, बल्कि समयसमय पर उन का सम्मान कर किसानों के प्रयासों और अनुभवों को लोगों की नजर में लाने का काम करती रही है. इसी कड़ी में किसानों के सम्मान के लिए पिछले 3 सालों से ‘फार्म एन फूड अवार्ड’ का आयोजन पूर्वी उत्तर प्रदेश में किया जाता रहा है.

इस वर्ष यह आयोजन उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के पिंक स्मार्ट विलेज, हसुड़ी, औसानपुर में ‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ के नाम से किया गया, जिस के आयोजन में सिद्धार्थनगर जिले के एसपी आटोमोबाइल्स व हसुड़ी ग्राम पंचायत ने मुख्य प्रायोजक के रूप में सहयोगी भूमिका निभाई.

कार्यक्रम का ये हिस्सा बने

17 जनवरी, 2018 को हसुड़ी ग्राम पंचायत तकरीबन 1200 किसानों के जमावड़े की गवाह बनी, जब खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले किसानों को सम्मानित किया गया.

अवार्डइस कार्यक्रम का उद्घाटन उत्तर प्रदेश सरकार में आबकारी व मद्यनिषेध विभाग के कैबिनेट मंत्री राजा जय प्रताप सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में फीता काट कर किया. इस दौरान डुमरियागंज विधानसभा के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह, बस्ती मंडल के कमिश्नर दिनेश कुमार सिंह, जिलाधिकारी कुणाल सिल्कू, पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह ने शिरकत की.

इस के अलावा परियोजना निदेशक संत कुमार, जिला विकास अधिकारी सुदामा प्रसाद, सीएमओ डाक्टर वेद प्रकाश शर्मा, बेशिक शिक्षा अधिकारी मनीराम सिंह, एसडीएम जुबेर बेग सहित जिले के तमाम आला अधिकारी मौजूद रहे, जिन्होंने किसानों द्वारा लगाए गए स्टालों पर जा कर उन की सफलता की न केवल कहानी जानी, बल्कि सरकार द्वारा खेतीबारी से जुड़ी योजनाओं से उन किसानों को जोड़ने का भरोसा भी दिया.

इस दौरान वहां मौजूद किसानों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि राजा जय प्रताप सिंह ने कहा कि सिद्धार्थनगर प्रदेश के पिछड़े जिलों में भले ही गिना जाता रहा हो, लेकिन खेती के नजरिए से यह बहुत धनी जिला है. काला नमक और बासमती के लिए इस जिले की पहचान पूरी दुनिया में है. ऐसे में दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ ने देश के किसानों के सम्मान के लिए अवार्ड का आयोजन कर सिद्धार्थनगर जैसे जिले में एक नई अभिनव पहल की है.

उन्होंने हसुड़ी, औसानपुर गांव में हुए विकास के कामों की तारीफ की और कहा कि देश की दूसरी ग्राम पंचायतों को ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी के कामों से सीख लेनी चाहिए.

विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘फार्म एन फूड’ में लगाए गए नवाचारी किसानों के स्टाल पर जा कर यह पता चला कि अगर किसान उन्नत तकनीकी का उपयोग करें तो वे कभी भी घाटे में नहीं रहें.

बस्ती मंडल के कमिश्नर दिनेश प्रताप सिंह ने इस तरह के आयोजन को बेहद सराहनीय कदम बताया और कहा कि इस से किसानों का मनोबल बढ़ता है.

सीनियर डाक्टर वीके वर्मा ने कहा कि वे पिछले 30 सालों से भी ज्यादा समय से दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं के नियमित पाठक रहे हैं. जिस तरह दिल्ली प्रैस ने देश के हर वर्ग को ध्यान में रख कर पत्रिकाएं निकाली हैं, उस ने समाज को एक नई दिशा देने का काम किया है. उन्होंने कहा कि वे चिकित्सा के क्षेत्र में होने के बावजूद साल 2009 से ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के नियमित पाठक हैं.

जिला अधिकारी कुणाल सिल्कू ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान तभी प्रगति कर सकते हैं, जब वे आधुनिक तकनीक और उन्नत कृषि प्रणाली का उपयोग करें. इस के लिए सरकार भी तमाम योजनाएं चला रही है. किसान इन योजनाओं का लाभ ले कर घाटे की खेती से उबर सकते हैं. किसानों के लिए इतने बड़े स्तर का आयोजन अपनेआप में अनूठी बात है.

स्टाल रहे आकर्षण का केंद्र

अवार्ड

‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ में प्रगतिशील किसानों द्वारा लगाए गए कृषि उत्पाद और नवाचारों के बारे में यहां आए किसानों ने तमाम जानकारी ली.

एक तरफ किसानों ने युवा किसान प्रेम प्रकाश सिंह द्वारा की जा रही बड़े स्तर पर खस की खेती, उस की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग की जानकारी ली, तो वहीं दूसरी तरफ किसान राममूर्ति मिश्र द्वारा इंटीग्रेटेड खेती के तहत की जा रही राजमा, सुगंधित धान व चीकू की खेती की जानकारी ली.

किसानों द्वारा लगाए गए स्टालों पर युवा किसानों का जमावड़ा रहा. किसान अरविंद पाल द्वारा किए जा रहे मछलियों की विभिन्न प्रजातियों के पालन व उस की तकनीकी जानकारी, किसान राजेंद्र सिंह सिंह द्वारा की जा रही जैविक खेती, बिजेंद्र पाल द्वारा विकसित विशेष प्रजाति के धान, किसान अरविंद सिंह के आलू बीज उत्पादन की तकनीकों समेत दूसरे स्टालों से खूब जानकारियां बटोरीं.

ग्राम प्रधान हुए सम्मानित

अवार्ड‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ के आयोजन के प्रमुख सहयोगी व स्मार्ट ग्राम, हसुड़ी के ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी को ‘फार्म एन फूड’ द्वारा विशेष रूप से सम्मानित किया गया.

इस दौरान कार्यक्रम में आए किसानों और अतिथियों ने गांव में किए गए विकास के कामों का जायजा भी लिया, जिन में पिंक विलेज के रूपम  गांव के रंगरोगन, औरतों की सुरक्षा और खुले में शौच की रोकथाम के लिए लगाए गए सीसीटीवी कैमरे, फ्री वाईफाई, गांव के स्कूल और शिक्षा व्यवस्था, कूड़ा प्रबंधन व साफसफाई, हर घर में एलईडी व बिजली खंभों पर लगे एलईडी की स्ट्रीट लाइट, पूर्वांचल की संस्कृति को बचाने के लिए पूर्वांचल संस्कृति संग्रहालय, गांव की लड़कियों व औरतों के लिए मुफ्त कंप्यूटर व सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग समेत करए गए विकास के दूसरे कामों की जम कर सराहना की गई.

साझा किए अपने अनुभव

राजस्थान से आए युवा किसान पवन के. टाक ने कार्यक्रम में आए किसानों को जैविक खेती की जानकारी दी और बताया कि किसान जैविक विधि से खेती कर के न केवल अपनी लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि डेढ़ से दोगुना आमदनी भी ले सकते हैं.

राजस्थान के ही किसान राकेश चौधरी ने किसानों को औषधीय खेती से आमदनी बढ़ाने के टिप्स दिए और बताया कि उन्होंने किस तरह से राजस्थान में औषधीय खेती करने वाले किसानों को बिचौलियों के चंगुल से छुटकारा दिला कर उन की आमदनी को दोगुना किया है.

महराजगंज जिले के वर्मी कंपोस्ट के बड़े उत्पादक किसान नागेंद्र पांडेय ने अपनी सफलता के राज बताए, वहीं सिद्धार्थनगर जिले के किसान राम उजागिर, जुगानी मौर्य, सिविल सर्जन हरदेव मिश्र, नुरुल हक जैसे किसानों ने अपनी कामयाबी के राज बताए.

बांटे गए गिफ्ट

अवार्डकार्यक्रम में सहयोगी रही जौन डियर ट्रैक्टर की स्थानीय एजेंसी एसपी आटोमोबाइल्स द्वारा किसानों को जौन डियर की तरफ से डायरी, पैन, बैग, पर्स वगैरह गिफ्ट भी बांटे गए.

इस मौके पर एसपी आटोमोबाइल्स के मालिक आशीष दुबे ने कहा कि किसानों के सम्मान के इतने बड़े आयोजन का हिस्सा बन कर उन्हें बेहद खुशी हो रही है.

खिले किसानों के चेहरे

पिंक स्मार्ट विलेज, हसुड़ी, औसानपुर के पंचायत भवन का प्रांगण देश के अन्नदाता किसानों के सम्मान का द्योतक बना, जब इन्हें अतिथियों के हाथों ‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ से नवाजा गया.

सम्मानित किसानों में सिद्धार्थनगर जिले से मोरध्वज सिंह को गन्ना उत्पादन के लिए, जटाशंकर पांडेय और जगदंबा प्रसाद को कृषि यंत्रीकरण, जुगानी मौर्य को चने की खेती, रामदास मौर्य को सब्जी की खेती, राम उजागिर को कृषि विविधीकरण, सिविल सर्जन साधन संरक्षण तकनीकी द्वारा धानगेहूं की खेती, हरदेव मिश्र को सब्जी की खेती, प्रेमशंकर चौधरी को बीज उत्पादन, नुरुल हक को मुरगीपालन, हम्माद हसन को मछलीपालन, प्रदीप मौर्य को कृषि यंत्रीकरण, चंद्रभान मौर्य और ज्ञानचंद्र गुप्ता को सब्जी उत्पादन, रामलखन मौर्य को करेले की खेती, परशुराम यादव को काला नमक धान उत्पादन, भगौती प्रसाद को तिलहन उत्पादन, श्रीराम यादव को फसल उत्पादन, अकबर अली को तिलहन उत्पादन और श्रीधर पांडेय को कृषक उन्नयन के लिए अवार्ड मिला.

बस्ती जिले से सम्मानित होने वाले किसानों में अरविंद पाल को इंट्रीग्रेटेड फार्मिंग, प्रेम प्रकाश सिंह को औषधीय व सुगंधित खेती, राममूर्ति मिश्रा को फसलोत्पादन, राजेंद्र सिंह को दलहनतिलहन, बिजेंद्र पाल को बीज उत्पादन, जिला महराजगंज से नागेंद्र पांडेय को केंचुआ खाद, राजस्थान से पवन के. टाक को जैविक खेती के क्षेत्र में नवाजा गया.

साथ ही, यह सम्मान राकेश चौधरी को औषधीय खेती, मोईनुद्दीन चिश्ती को कृषि पर्यावरण पत्रकारिता, गांव कनेक्शन, लखनऊ की नीतू सिंह को कृषि ग्रामीण पत्रकारिता,

डा. वीके वर्मा को चिकित्सा, आलोक शुक्ल को ग्रामीण कला शिक्षा, कृषि विज्ञान केंद्र, सिद्धार्थनगर के वैज्ञानिकों में डा. डीपी सिंह, वैज्ञानिक पशु विज्ञान, वैज्ञानिक ई. अशोक कुमार पांडेय को कृषि अभियंत्रण, वैज्ञानिक डा. अशोक सिंह को सस्य विज्ञान, वैज्ञानिक

डा. प्रदीप कुमार कोफसल सुरक्षा, डाक्टर पीके सिंह को वैज्ञानिक उद्यान, वैज्ञानिक डाक्टर एसके मिश्र को कृषि प्रसार, वैज्ञानिक डा. एम सिंह को फार्म प्रबंधक, वैज्ञानिक नीलम सिंह को गृहविज्ञान में मिला.

अवार्ड

बस्ती जिले से सम्मानित होने वाले कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिकों में डाक्टर एसएन सिंह, कार्यक्रम समन्वयक, वैज्ञानिक राघवेंद्र विक्रम सिंह, कृषि प्रसार, वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर एसएन लाल, पशुविज्ञान शामिल रहे.

इस मौके पर सम्मानित हुए किसानों का कहना था कि वे दिनरात खेतों में मेहनत कर के फसल उगाते हैं, तब कहीं जा कर देश की सवा अरब जनता का पेट भर पाते हैं. उस के बावजूद भी किसानों की अनदेखी की जाती है. ऐसे हालात में किसानों की मददगार पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ ने उन का सम्मान कर उन के हौसले को दोगुना कर दिया.

इस कार्यक्रम के मंच संचालन की जिम्मेदारी युवा पत्रकार भृगुनाथ त्रिपाठी ने कुशलतापूर्वक निभाई. सचिंद्र शुक्ल, विशाल पांडेय व सत्यप्रकाश पांडेय का भी कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा.

पशुओं की वैक्सीन नवाचार (Innovation) पर हुआ सम्मेलन

हैदराबाद : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने इंडियन इम्यूनोलौजिकल्स लिमिटेड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के सहयोग से पिछले दिनों हैदराबाद में “महामारी की तैयारी और वैक्सीन नवाचार पर सम्मेलन” का आयोजन किया.

इस सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में नीति आयोग के सदस्य स्वास्थ्य प्रो. डा. विनोद के. पौल ने किया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भविष्य की महामारियों से अच्छी तरीके से निबटने के लिए हमें पशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस में उभरती बीमारियों का शीघ्र पता लगाने और तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए नैदानिक सुविधाओं को बढ़ाना शामिल है. अगली पीढ़ी के पशु टीकों के विकास और उत्पादन के लिए उन्नत प्लेटफार्मों की स्थापना के महत्व पर भी उन्होंने जोर दिया, जो कि जूनोटिक रोगों के फैलाव को रोकने, पशु और इनसानी सेहत दोनों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.

इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि इन महत्वपूर्ण घटकों को मजबूत करने के पीछे ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण के तहत एक लचीला स्वास्थ्य देखभाल ढांचा बनाने के बड़े लक्ष्य के साथ मिल कर चलना है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने कहा कि सरकार को बेहतर उत्पादकता के लिए पशु स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करने की आवश्यकता है और अंतिम छोर तक डिलीवरी को प्रभावी बनाने के लिए आपूर्ति श्रंखला और कोल्ड चेन प्रणालियों में भी सुधार करने की जरूरत है.

पशुपालन आयुक्त डा. अभिजीत मित्रा ने पशुओं के लिए टीकों की सुरक्षा और पूर्वयोग्यता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया.

इस सम्मलेन का उद्देश्य ‘वन हेल्थ’ के विभिन्न पहलुओं की समझ को बढ़ावा देना था, जिस में टीकाकरण कार्यक्रमों को बढ़ाने, पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार, महामारी की तैयारी के लिए लचीली आपूर्ति श्रंखलाओं को बनाना, महामारी प्रतिक्रियाओं को मजबूत करना, रोग निगरानी को आगे बढ़ाना और टीका परीक्षण को सुव्यवस्थित करना, स्वास्थ्य सेवा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बढ़ावा देना, कोशिका और जीन थेरेपी टीकों और अनुमोदन के लिए नियामक मार्गों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल था.

इस कार्यक्रम में पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संयुक्त सचिव रमाशंकर सिन्हा, इंडियन इम्यूनोलौजिकल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डा. के. आनंद कुमार, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के सदस्य सचिव डा. संजय शुक्ला, निवेदी के निदेशक डा. बीआर गुलाटी सहित स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के विशेषज्ञ, वैक्सीन उद्योग, सीडीएससीओ आदि के सदस्य भी उपस्थित थे.

भारत : वैश्विक वैक्सीन हब

भारत को वैश्विक टीकाकरण केंद्र के रूप में जाना जाता है, जिस में 60 फीसदी  से अधिक टीके भारत में बनते हैं और 50 फीसदी  से अधिक टीका निर्माता हैदराबाद से टीकों का उत्पादन  करते हैं.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग, केंद्र सरकार से सौ फीसदी वित्तीय सहायता के साथ पशुधन में दुनिया का सब से बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम लागू कर रहा है, जिस में खुरपकामुंहपका रोग के 102 करोड़ टीकाकरण किए गए. वहीं ब्रुसेलोसिस के 4.23 करोड़ टीकाकरण किए गए.

दूसरी ओर, पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स यानी पीपीआर के 17.3 करोड़ टीकाकरण किए गए, क्लासिकल स्वाइन फीवर के 0.59 करोड़ टीकाकरण किए गए और लंपी स्किन डिजीज के 26.38 करोड़ टीकाकरण किए गए के लिए साझा पैटर्न शामिल हैं, जिस के तहत प्रत्येक पशु को भारत पशुधन यानी राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन में दर्ज एक विशिष्ट पहचान संख्या प्राप्त होती है, जो टीकाकरण कार्यक्रम पर नजर रखती है और पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करती है. इस तरह के टीकाकरण कार्यक्रमों से देश में प्रमुख पशु रोगों की घटनाओं में काफी कमी आई है.

मत्स्यपालन क्षेत्र में हैं रोजगार की अपार संभावनाएं: राजीव रंजन सिंह

गुवाहाटी : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत मत्स्यपालन विभाग ने असम के गुवाहाटी में ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों की बैठक 2025’ का आयोजन किया. इस की अध्यक्षता मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने की.

पशुपालन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत लगभग 50 करोड़ रुपए की लागत वाली प्रमुख परियोजनाओं की शुरुआत की, जिस के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र में आत्मनिर्भर मत्स्यपालन क्षेत्र बनाने की मंशा जाहिर की.  इन परियोजनाओं से मत्स्यपालन क्षेत्र में लगभग 4,530 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने का अनुमान है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन लाभार्थियों को राष्ट्रीय मातिस्यकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) पंजीकरण प्रमाणपत्र, केसीसी कार्ड, सर्वश्रेष्ठ एफएफपीओ और मत्स्यपालन स्टार्टअप के लिए पुरस्कार सहित प्रमाणपत्र भी  दिए. साथ ही, क्षेत्रीय विकास की गति को जारी रखने और टिकाऊ बनाने के उद्देश्य से मत्स्य विभाग ने सिक्किम राज्य में जैविक मत्स्यपालन और जलीय कृषि के विकास के लिए सिक्किम के सोरेंग जिले में जैविक मत्स्यपालन क्लस्टर को अधिसूचित किया.

केंद्रीय मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्षेत्र की अपार संभावनाओं के बारे में बताते हुए कहा कि प्रजातियों के विविधीकरण, मछली उत्पादन में 20-25 फीसदी की वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने व रोजगार सृजन के लिए उत्पादन खपत के अंतर को कम करने की जरूरत है.

उन्होंने राज्यों को क्षेत्र विशेष की कमियों को दूर करने के लिए राज्य केंद्रित योजनाएं बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया. केंद्र सरकार की  प्रमुख पहलों में मत्स्यपालन और अवसंरचना विकास कोष का लाभ उठाना, एनएफडीबी क्षेत्रीय केंद्रों के जरीए नवाचार को बढ़ावा देना, असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बनाना, ब्रूड बैंक विकसित करना और केंद्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान और केंद्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान में प्रगतिशील किसानों को प्रशिक्षण देना शामिल है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और पंचायती राज, उपराज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने जोर दे कर कहा कि किसानों की आय को दोगुना करना केवल कृषि को संबंधित क्षेत्रों, विशेष रूप से मत्स्यपालन के साथ एकीकृत कर के ही संभव है.

उन्होंने आगे कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना हमारी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक  है, जिस में भूमि और संसाधन सीमाओं को दूर करने के लिए बायोफ्लोक और रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम जैसी नई जलीय कृषि पद्धतियों को अपनाने पर हमें जोर देना है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और अल्पसंख्यक कार्य, उपराज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने पूर्वोत्तर क्षेत्र और केरल में एकीकृत मछलीपालन की पारंपरिक प्रथाओं का जिक्र किया, जिस में टैपिओकासहमछलीपालन और सूअरसहमछलीपालन शामिल है, जिन्हें बेहतर दक्षता के लिए आधुनिक तकनीकों के साथ पुनर्जीवित किया गया है.

राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने मछली उत्पादन को बढ़ाने और क्षेत्र के मत्स्यपालन के क्षेत्र को और अधिक बढ़ावा देने के लिए नई तकनीकों को अपनाने पर भी जोर दिया.

इस सत्र में एनएफडीबी के मुख्य कार्यकारी डा. बिजय कुमार बेहरा द्वारा ‘पूर्वोत्तर राज्यों में मत्स्यपालन विकास के लिए पर्यावरणीय और पारिस्थितिक चुनौतियों’ और केंद्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, गुवाहाटी के प्रधान वैज्ञानिक डा. बीके भट्टाचार्य द्वारा ‘पूर्वोत्तर राज्यों में खुले जल मत्स्यपालन संसाधनों का विकास’ पर व्यावहारिक चर्चाएं भी शामिल थीं, जिस ने क्षेत्र में इस सैक्टर के भविष्य पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण साझा किए.

इस सम्मलेन के अवसर पर असम सरकार के मत्स्यपालन मंत्री कृष्णेंदु पौल ने भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में असम के महत्वपूर्ण योगदान पर चर्चा करते हुए बताया कि असम ने 4.75 लाख मीट्रिक टन का उल्लेखनीय मछली उत्पादन और लगभग 20,000 मीट्रिक टन का निर्यात किया, जिस से मछली किसानों और मछुआरों को काफी फायदा हुआ है.

उन्होंने आगे कहा कि राज्य की 90 फीसदी से अधिक आबादी मछली का सेवन करती है, इसलिए मत्स्यपालन असम की अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान रखता है. पहाड़ियों में उत्पादन, उत्पादकता और जल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए पीएमएमएसवाई के तहत परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिस का उद्देश्य संसाधनों का कायाकल्प और क्षेत्रीय विकास है.

इस के अलावा जापान के जेआईसीए द्वारा समर्थित असम मत्स्य विकास और ग्रामीण आजीविका परियोजना, समग्र जलीय कृषि विकास पर ध्यान केंद्रित करती है और यह क्षेत्र के लिए स्थायी आजीविका पैदा कर रही है और जमीनी स्तर पर अच्छी तरह से प्रगति कर रही है.

अरुणाचल प्रदेश सरकार के मत्स्यपालन, कृषि, बागबानी, एएचवीडीडी मंत्री गेब्रियल डेनवांग वांगसू ने मत्स्यपालन विकास में राज्य की अपार संभावनाओं को रेखांकित किया और पीएमएमएसवाई के तहत छोटे और शिल्पकार किसानों को समर्थन देने पर जोर दिया.

मंत्री गेब्रियल डेनवांग वांगसू ने अरुणाचल प्रदेश में एक समर्पित शीत जल मत्स्यपालन संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव रखा और बीज उत्पादन के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए एकमुश्त अनुदान की वकालत की. खुले पानी में मत्स्यपालन और टिकाऊ तौरतरीकों को अपनाने के अवसरों का जिक्र करते हुए उन्होंने हिमालयी राज्यों की अनूठी ताकतों को संबोधित करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई योजना का भी आह्वान किया.

मिजोरम सरकार के मत्स्यपालन मंत्री पु. ललथनसांगा ने राज्य में मत्स्यपालन विकास में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मंजूरी और राशि जारी करने में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया. पीएमएमएसवाई के तहत तालाबों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प को शामिल करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया, क्योंकि ये गतिविधियां मिजोरम के मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं.

इस के अलावा कम उत्पादकता का समाधान निकालने, गुणवत्ता वाले बीज एवं चारे की उपलब्धता में सुधार करना और मछली किसानों के लिए क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने आदि की पहचान उन प्रमुख क्षेत्रों के रूप में की गई, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.

मणिपुर सरकार के मत्स्यपालन, समाज कल्याण, कौशल, श्रम, रोजगार और उद्यमिता मंत्री एच. डिंगो सिंह ने राज्य में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र पर पीएमएमएसवाई की सफलता को स्वीकार किया. हैचरी, बायोफ्लोक सिस्टम, तालाब, केग कल्चर की स्थापना, सजावटी मछलीपालन, मछली कियोस्क, मूल्यवर्धित उद्यम, रोग निदान सुविधाएं और कोल्ड स्टोरेज इकाइयों की स्थापना से मणिपुर में सामूहिक रूप से बुनियादी ढांचे और अवसरों में बढ़ोतरी हुई है.

त्रिपुरा सरकार के मत्स्यपालन मंत्री सुधांशु दास ने बताया कि राज्य में मछली उत्पादन की क्षमता 2 लाख है, जिस में 38,594 हेक्टेयर क्षेत्र मछलीपालन के लिए है. वर्तमान में 85,000 मीट्रिक टन उत्पादन की तुलना में मांग 117,000 मीट्रिक टन है, जिस की कमी पश्चिम बंगाल, असम और आंध्र प्रदेश से आयात कर के पूरी की जाती है.

मंत्री सुधांशु दास ने बताया कि त्रिपुरा में 98 फीसदी आबादी मछली का सेवन करती है. उन्होंने बायोफ्लोक और मोतीपालन से जुड़ी चुनौतियों पर भी चर्चा की, जिस में इस क्षेत्र की मौसमी निर्भरता को एक प्रमुख कारण बताया.

सिक्किम सरकार के कृषि, बागबानी, पशुपालन व पशु चिकित्सा सेवाएं, मंत्री पूरन कुमार गुरुंग ने पीएमएमएसवाई से राज्य को होने वाले महत्वपूर्ण लाभों पर प्रकाश डाला, जिस में ट्राउट रेसवे हैचरी, जलीय कृषि प्रणाली और सजावटी मछलीपालन जैसी गतिविधियां शामिल हैं.

उन्होंने रेसवे और सजावटी मछली इकाइयों के निर्माण जैसे लंबित प्रस्तावों के लिए समर्थन का अनुरोध किया और मत्स्यपालन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की मांग की. सिक्किम की जैविक स्थिति पर जोर देते हुए उन्होंने अतिरिक्त समर्थन का आह्वान किया और राज्य के मत्स्य विकास के लिए आईसीएआर संस्थानों के महत्व पर जोर दिया.

नागालैंड सरकार के मत्स्यपालन और जलीय संसाधन मंत्री ए. पंगजंग जमीर ने राज्य के मत्स्य संसाधनों, खासकर नए तालाबों और टैंकों के विकास की महत्वपूर्ण संभावनाओं पर जोर दिया. उन्होंने उत्पादकता बढ़ाने और मछली किसानों की आय को बढ़ाने के लिए एक प्रमुख रणनीति के रूप में एकीकृत मछलीपालन की शुरुआत पर जोर दिया. इस क्षेत्र की इकोटूरिज्म की आशाजनक संभावनाओं की भी पहचान की गई और पहाड़ी क्षेत्रों में मछली परिवहन में सुधार के अवसरों को भविष्य के विकास के क्षेत्र के रूप में देखा गया है.

मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने अपने मुख्य भाषण में पीएमएमएसवाई के तहत 1,700 करोड़ सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र को आवंटित की गई. साथ ही, 2,000 करोड़ रुपए किनकिन क्षेत्रों को दिए जाएंगे, इस पर भी प्रकाश डाला.

उन्होंने 3 प्रमुख क्षेत्रों पर ज्यादा जोर दिया, जिन में डिजिटलीकरण के माध्यम से मत्स्यपालन को औपचारिक बनाना, राज्य के अधिकारियों से इसे प्राथमिकता देना, ब्याज अनुदान और ऋण गारंटी जैसे वित्तीय साधनों के साथ मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि को बढ़ावा देना और एफएफपीओ और स्वयं सहायता समूह के माध्यम से एकीकृत खेती को आगे बढ़ाना शामिल है. उन्होंने युवा स्टार्टअप का समर्थन करने और मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अंतराल को दूर करने का भी आह्वान किया, जिस का लक्ष्य 12 लाख टन है.

मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार में संयुक्त सचिव सागर मेहरा ने भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र की उपलब्धियों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस में उत्पादन, उत्पादकता, आय और निर्यात जैसे प्रमुख पहलुओं पर जोर दिया गया.

इस रिपोर्ट में पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्रचुर संसाधनों पर भी ध्यान दिया गया. साथ ही, रिपोर्ट में पूर्वोत्तर क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियों और कमियों का भी जिक्र किया गया. भविष्य में इस के विकास के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण और फोकस क्षेत्रों पर भी चर्चा की गई.

 

जिंदा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी

कोलकाता : केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने पिछले दिनों कोलकाता स्थित आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) का मत्स्यपालन प्रबंधन संबंधी ड्रोन अनुप्रयोग के क्षेत्र में इस संस्थान के अनुसंधान एवं विकास की समीक्षा करने के लिए दौरा किया.

इस कार्यक्रम में वैज्ञानिक, राज्य मत्स्यपालन अधिकारी, मछुआरे और मछुआरियां शामिल हुईं. प्रस्तुति के दौरान, राज्यों के मत्स्यपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, नागर विमानन मंत्रालय, नेफेड, एनसीडीसी, एनईआरएमएआरसी, एसएफएसी, खुदरा विक्रेताओं, स्टार्टअप, मत्स्यपालन अधीनस्थ कार्यालयों, राज्य सरकार के अधिकारियों, एफएफपीओ, सहकारी समितियों आदि को वर्चुअल कौंफ्रेंस के माध्यम से शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है.

ड्रोन प्रदर्शन के दौरान, डा. अभिलक्ष लिखी ने मछलीपालकों और मछुआरों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की, उन के अनुभवों, उन की सफलता की कहानियों और उन के दैनिक कार्यों में आने वाली चुनौतियों को सुना. इस बातचीत ने इस बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की कि कैसे ड्रोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी उन की जरूरतों को पूरा कर सकती है, दक्षता में सुधार कर सकती है और मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ा सकती है. साथ ही, उन्हें अपनी आकांक्षाओं और चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच भी प्रदान कर सकती है.

इस मौके पर बोलते हुए सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने कहा कि आईसीएआर-सीआईएफआरआई द्वारा शुरू की गई पायलट परियोजना मछलीपालन के क्षेत्र में नए अवसरों को खोलेगी, जो कम समय और न्यूनतम मानवीय भागीदारी के साथ ताजी मछली के परिवहन के लिए एक प्रभावी और आशाजनक विकल्प प्रदान करेगी और साथ ही मछलियों पर तनाव को कम करेगी.

उन्होंने आगे कहा कि निजी भागीदारी के साथ ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर के मछली परिवहन पर अनुसंधान और विकास भी उपभोक्ताओं और किसानों को आपूर्ति श्रंखला प्रणाली में बेहतर स्वच्छ ताजी मछली उपलब्ध कराने में सक्षम बनाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि फरवरी, 2024 में 6,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) को स्वीकृति दी गई थी, जिस का उद्देश्य साल 2025 तक मत्स्यपालन क्षेत्र के सूक्ष्म उद्यमों और छोटे उद्यमों सहित मछली किसानों, मछली विक्रेताओं को कार्य आधारित पहचान देने के लिए एक राष्ट्रीय मत्स्यपालन डिजिटल प्लेटफार्म (एनएफडीपी) बना कर असंगठित मत्स्यपालन क्षेत्र को औपचारिक रूप देना है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने कहा कि एनएफडीपी के जरीए पीएम-एमकेएसएसवाई संस्थागत ऋण की पहुंच और प्रोत्साहन, जलीय कृषि बीमा की खरीद, सहकारी समितियों को एफएफपीओ बनने के लिए मजबूत करना, ट्रेसबिलिटी को अपनाना, मूल्य श्रंखला दक्षता और सुरक्षा व गुणवत्ता आश्वासन और रोजगार सृजन करने वाली प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रदर्शन अनुदान को सुगम बनाएगा.

उन्होंने आईसीएआर-सीआईएफआरआई और अन्य हितधारकों से ड्रोन आधारित इन अनुप्रयोगों को मछली किसानों तक पहुंचाने के लिए कदम उठाने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि सभी की इन अनुप्रयोगों तक पहुंच हो सके. उन्होंने मत्स्यपालन विभाग से इन सभी मूल्यवान प्रदर्शनों का दस्तावेजीकरण करने और उन को मंत्रालय को भेजने के लिए भी कहा, ताकि उन का इस्तेमाल देशभर के मछली किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए किया जा सके.

इस समीक्षा बैठक में आईसीएआर-सीआईएफआरआई के निदेशक डा. बीके दास ने ड्रोन आधारित प्रौद्योगिकियों में संस्थान की उपलब्धियों और प्रगति को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया. मत्स्यपालन में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग पर एक स्टार्टअप द्वारा प्रस्तुति भी दी गई.

विभिन्न ड्रोन आधारित प्रौद्योगिकियों, जैसे स्प्रेयर ड्रोन, फीड ब्राडकास्ट ड्रोन और कार्गो डिलीवरी ड्रोन का प्रदर्शन आईसीएआर-सीआईएफआरआई और स्टार्टअप कंपनियों द्वारा 100 से अधिक मछुआरों और मछुआरिनों के बीच किया गया.

भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में जलीय संसाधनों की निगरानी और प्रबंधन में कई चुनौतियां हैं, जो जलीय संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रभावी और टिकाऊ योजना बनाने में बाधा डालती हैं. हालांकि आधुनिक प्रौद्योगिकियों के लगातार बढ़ते विकास के साथ तालमेल रखने के लिए कृषि प्रणाली में हर दिन सुधार हो रहा है, लेकिन उतरी हुई मछलियों के किफायती उपयोग के लिए व्यवस्थित मछली परिवहन में उचित वैज्ञानिक पद्धति, समय दक्षता और लागत प्रभावी साधनों का अभाव है, क्योंकि यह हमारे मत्स्यपालन और मछली प्रसंस्करण उद्योगों के समुचित विकास के लिए एक जरूरी शर्त है. दूरदराज के मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों से लंबी दूरी तक परिवहन के लिए आवश्यक लंबा समय और हैंडलिंग और संरक्षण की कमी से मछलियों को अपूरणीय क्षति हो सकती है. यहां तक कि वे मर भी सकती हैं, जिस से बाजार में उन की कीमत कम हो जाती है और किसानों को भारी नुकसान होता है.

हाल ही में ड्रोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी में दूरदराज के स्थानों पर महत्वपूर्ण सामान पहुंचाने, पहुंच बाधाओं को दूर करने और तेजी से डिलीवरी को सक्षम बनाने की जबरदस्त क्षमता है. मत्स्यपालन उद्योग में ड्रोन प्रौद्योगिकी की क्षमता का पता लगाने के लिए, केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग ने आईसीएआर-सीआईएफआरआई को “जिंदा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी विकसित करने” संबंधी एक पायलट परियोजना सौंपी है.

यह परियोजना आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई), कोलकाता द्वारा कार्यान्वित की जाएगी, जिस का उद्देश्य 100 किलोग्राम पेलोड वाला ड्रोन डिजाइन करना और विकसित करना है, जो 10 किलोमीटर तक जिंदा मछली ले जा सकेगा.

मत्स्यपालन विभाग में विशेष अभियान

नई दिल्ली : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्यपालन विभाग प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) की पहल विशेष अभियान 4.0 की तैयारियों में है. 2 अक्तूबर से 31 अक्तूबर, 2024 तक चलाए जाने वाले इस अभियान का उद्देश्य स्वच्छता को संस्थागत बनाना और सरकारी कार्यालयों में लंबित मामलों में कमी लाना है. विशेष अभियान 4.0 को 2 चरणों में चलाया जाएगा, जिन में 16 सितंबर से 30 सितंबर, 2024 तक प्रारंभिक चरण और 2 अक्तूबर से 31 अक्तूबर, 2024 तक कार्यान्वयन चरण शामिल है.

मत्स्यपालन विभाग स्वच्छता को बढ़ावा देने, लंबित संदर्भों के निबटान में तेजी लाने और अभिलेखों के प्रबंधन को सुव्यवस्थित बनाने से संबंधित इस राष्ट्रव्यापी पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह अभियान कार्यालय में जगह के बेहतर प्रबंधन और परिचालन दक्षता के माध्यम से शासन में सुधार लाने के सरकार के व्यापक विजन के अनुरूप है.

विशेष अभियान 4.0 की तैयारी के लिए मत्स्यपालन विभाग के सचिव अभिलक्ष लिखी ने मत्स्यपालन विभाग के संयुक्त सचिव (प्रशासन) सागर मेहरा और विभाग के अन्य अधिकारियों के साथ एक तैयारी बैठक की अध्यक्षता की. इस बैठक में विभागीय स्तर पर और साथ ही सभी फील्ड कार्यालयों/इकाइयों में अभियान के दौरान गतिविधियों और अभियान की योजना और क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया.

इस के अतिरिक्त मत्स्यपालन विभाग के संयुक्त सचिव सागर मेहरा ने भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण (एफएसआई), केंद्रीय मत्स्यपालन तटीय इंजीनियरिंग संस्थान (सीआईसीईएफ), राष्ट्रीय मत्स्यपालन पोस्टहार्वेस्ट प्रौद्योगिकी एवं प्रशिक्षण संस्थान (एनआईपीएचएटीटी), राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी), केंद्रीय मत्स्य नौचालन एवं इंजीनियरी प्रशिक्षण संस्थान (सिफनेट), तटीय जलीय कृषि प्राधिकरण (सीएए) सहित विभाग की क्षेत्रीय इकाइयों के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की. बैठक में इन संस्थानों में विशेष अभियान के लिए चल रही तैयारियों का आकलन किया गया.

Fisheries

कार्यान्वयन चरण के दौरान विभाग लंबित संदर्भों के निबटान के लिए विशेष अभियान चलाएगा, जिस में निम्‍नलिखित पर विशेष ध्यान दिया जाएगा :

-मंत्रियों, संसद सदस्यों, राज्य सरकारों, अंतरमंत्रालयी संचार, पीएमओ संदर्भ, लोक शिकायत और संसदीय आश्वासनों से लंबित संदर्भों का निपटान.

-केंद्रीय सचिवालय कार्यालय प्रक्रिया मैनुअल (सीएसएमओपी) और सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 के अनुपालन में भौतिक फाइलों/अभिलेख की समीक्षा, अभिलेखन और छंटाई.

-कार्यालय में स्थान खाली करने के लिए अनुपयोगी स्टोर और कार्यालय उपकरणों को अलग करना और उन का निबटान करना, कार्यालय आवास और परिसरों में स्वच्छता को बढ़ावा देना, अव्यवस्था में कमी लाना और कामकाज के लिए सुव्‍यवस्थित और उपयोगी वातावरण सुनिश्चित करना.

अभियान की तैयारी के लिए सचिव (मत्स्यपालन) ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ नई दिल्ली में कृषि भवन और चंद्रलोक भवन में विभाग के कार्यालयों का निरीक्षण किया. निरीक्षण में विभिन्न अनुभागों/इकाइयों में पुरानी फाइल/अभिलेख, अनुपयोगी स्टोर और पुरानी पत्रिकाओं/अख़बारों का ढेर पाया गया. अभिलेख प्रबंधन में सुधार और कार्यालय स्थान के कुशल उपयोग के लिए पुराने अभिलेख /फाइलों और स्टोर को समय पर अलग करने और निबटान सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निर्देश जारी किए गए.

विशेष अभियान 4.0 कार्यालय के बेहतर प्रबंधन, स्वच्छता और लंबित मामलों के त्वरित समाधान के माध्यम से शासन में सुधार के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है. मत्स्यपालन विभाग स्वच्छता को अपनी संगठनात्मक संस्कृति का स्थायी हिस्सा बनाने के लिए है और एक स्वच्छ और अधिक कुशल कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए अभियान में सक्रिय रूप से शामिल होना जारी रखेगा.

युवाओं के लिए एग्री स्टार्टअप का सर्वोत्तम समय : डा. अजीत कुमार कनार्टक, कुलपति

उदयपुर : 30 अगस्त, 2024. आजादी के बाद भारत ने आज न केवल अनाज उत्पादन, बल्कि फल, दूध, मछली और अंडा उत्पादन में नए कीर्तिमान हासिल कर विश्व में शीर्ष स्थान पर नाम दर्ज कराया है. अब सर्वोत्तम समय है कि कृषि शिक्षा से जुड़े युवा वैल्यू एडीशन यानी मूल्य संवर्द्धन कर पैसा कमाने की दिशा में अपना ध्यान लगाएं. युवाओं को नौकरी के पीछे नहीं भागना है, बल्कि नौकरी देने वाला बनना होगा, तभी भारत की अर्थव्यवस्था में आशानुरूप बढ़ोतरी संभव है.

यह आह्वान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों संभाग भर से आए कृषि छात्रछात्राओं और युवा उद्यमियों से किया. वे आरसीए के नूतन सभागार में आयोजित ‘एग्री स्टार्टअप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट’ विषयक कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंध संस्थान (मैनेज) हैदराबाद की ओर से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में उदयुपर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर के विभिन्न महाविद्यालयों में कृषि शिक्षा की पढ़ाई कर रहे 400 छात्रछात्राओं के अलावा शोधकर्ताओं, इनक्यूबेटरों, नीति निर्माताओं, कृषि उद्यमियों, स्टार्टअप, कृषि उद्योगों, हितकारक निवेशकों एवं विस्तार कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की. कार्यशाला का उद्देश्य कृषि व्यवसाय और कृषि उद्यमिता पर अपने नवाचारों, विचारों, विशेषज्ञता और अनुभवों को साझा करना है.

उन्होंने आगे कहा कि एक समय था, जब हम आयातित लाल अनाज खाने को मजबूर थे, लेकिन हरित क्रांति, श्वेत क्रांति के बाद हमारे वैज्ञानिकों ने मुख्य फसलों से हट कर बागबानी, मत्स्य, पशुधन, अंडा उत्पादन के क्षेत्र में विलक्षण परिणाम दिए हैं. आज हमारे देश में अनाज उत्पादन 329.50 मिलीयन टन है, तो फल उत्पादन 355.05 मिलीयन टन पहुंच चुका है. इसी तरह दूध उत्पादन 230 मिलियन टन व मछली का उत्पादन 17.54 मिलियन टन हो चुका है यानी भारत विश्व के अग्रणी देशों में खड़ा है और निर्यात भी कर रहा है.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज एग्री स्टार्टअप का समय है. भारत सरकार ने 300 करोड़ रुपए का फंड बनाया है, ताकि युवा अपना स्टार्टअप के सपने को मूर्त रूप दे सके. नाबार्ड जिला उद्योग केंद्र और अन्य संस्थाओं के माध्यम से 5 से 25 लाख रुपए का ऋण युवाओं को दिया जा रहा है, ताकि वे कृषि के क्षेत्र में नवाचार को मूर्त रूप देते हुए स्टार्टअप शुरू कर सकें.

yuava ke liye

कुलपति डा. अजीत कुमार कनार्टक ने युवाओं को स्टार्टअप के 7 मूल मंत्र लक्ष्य, हितधारकों की समझ, संवाद, सहयोग, तालमेल, प्रशंसा आदि गिनाते हुए बताया कि इन सब से ऊपर लागत और लाभांश को बांटना जरूरी है. आज देश में 730 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहे हैं, जहां कृषि से जुड़ी हर गतिविधि बेहतर मार्गदर्शन में संचालित है.

उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि आज का युवा स्टार्टअप का नाम आते ही शब्दकोष या गूगल में तलाशता है, लेकिन नवाचारों को धरातल पर उतारने का सशक्त माध्यम स्टार्टअप है. स्टार्टअप वही कर सकता है, जिस के पास खोने को कुछ भी नहीं है या सबकुछ खो देने का जज्बा रखता है. आज के युवा में ये दोनों ही गुण निहित है, इसलिए अपनी सोच और विचार को मूर्त रूप दे कर समाज के भले के लिए काम करें.

वर्ष 2014-15 से पूर्व देश में कृषि आधारित 50 से कम स्टार्टअप थे, जो आज बढ़ कर 700 से ज्यादा हो गए हैं. राष्ट्रीय कृषि योजाना के अंतर्गत सर्वाधिक 226 स्टार्टअप महाराष्ट्र में हैं. राजस्थान में फिलहाल 66 स्टार्टअप ही हैं, लेकिन गुंजाइश खूब है.

केले के अपशिष्ट से चमड़ा, कपड़ा व आभूषण निर्माण

कार्यक्रम के अध्यक्ष राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) हैदराबाद के निदेशक डा. एस. राज ने कहा कि ‘मैनेज’ एक स्वायत्त कृषि शिक्षा संस्थान है, जो अनुसंधान के साथसाथ एग्री बिजनेस से जुड़े कई पाठ्यक्रम कराता है. संस्थान का उद्देश्य कृषि अर्थव्यवस्था में विस्तार अधिकारियों, प्रबंधकों, वैज्ञानिकों और प्रशासकों को प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल प्रदान करना है.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि एक ऐसा विषय है, जहां हर कदम पर एग्री स्टार्टअप की विपुल संभावनाएं हैं. दक्षिण में युवा उद्यमियों ने इस काम को समझा और केले के अवशेषों से कपड़े, चमड़ा आदि बनाने का काम कर रहे हैं. यही कृषि के अपशिष्टों व फूलों के बीज आदि से चित्ताकर्षक आभूषण बनाने का काम किया जा रहा है.

विशिष्ट अतिथि, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, बीकानेर में डीन डा. बीएन मेशराम ने कहा कि मौजूदा समय एग्री स्टार्टअप का है. कृषि में पशुपालन को भी साथ में रखें, तो देश की तरक्की को आगे ले जाने से कोई रोक नहीं सकता.

उन्होंने कहा कि युवा सपने देखता है तो साकार भी कर सकता है. मुरगीपालन सहित कृषि के विभिन्न संकायों में स्टार्टअप की विपुल संभावनाएं हैं. कृषि में हर चीज पुनर्चक्रित होती है, जहां स्टार्टअप की असीम संभावनाएं हैं.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. भूरालाल पाटीदार ने कहा कि उन के कार्याधीन, कृषि संभाग के 5 जिले उदयपुर, बांसवाड़ा, डूगंरपुर, प्रतापगढ़, सलूम्बर में खरीफ में लगभग 8 लाख हेक्टेयर में बोआई होती है. सब से ज्यादा 3.82 लाख हेक्टेयर में मक्का बोया जाता है, लेकिन अपेक्षित पैदावार बढ़ाने की खूब गुंजाइश है.

डा. भूरालाल पाटीदार ने कहा कि बांसवाड़ा में तो तीनों ऋतुओं में मक्का की खेती होती है. मक्का के सर्वाधिक उत्पाद बनते हैं.

उन्होंने महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति से मक्का आधारित प्रोसैसिंग इकाई लगाने का अनुरोध किया. इस मौके पर उन्होंने किसानों को राज्य सरकार की ओर से संचालित विभिन्न योजनाओं और उन में मिलने वाले अनुदान की जानकारी दी.

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं बड़गांव कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डा. प्रफुल्ल भटनागर ने कहा कि देश में रोजगार की कमी है. ऐसे मे गांव में उपलब्ध सामग्री व सुविधाओं को समाहित कर नया स्टार्टअप किया जा सकता है. बकरीपालन, मुरगीपालन, सुअरपालन, गौपालन में सरकार की एक से अधिक योजनाएं संचालित हैं, जहां अनुदान के साथसाथ छूट भी मिलती है.

जिला विकास प्रबंधन नाबार्ड के नीरज यादव ने युवा छात्रछात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कृषि में स्टार्टअप में परेशानी है तो संभावनाएं भी भरपूर हैं. यदि आप के पास आइडिया है और उस का हल है तो नाबार्ड 5 लाख से 25 लाख रुपए तक मदद कर सकता है. कृषि तंत्र से जुड़े युवा नेब वेंचर एप के सहयोग से स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं. नाबार्ड न केवल स्टार्टअप, बल्कि कोल्ड स्टोरेज, गोदाम आदि बनाने के लिए भी माली मदद करता है.