27.50 रुपए प्रति किलोग्राम पर ‘भारत’ आटा

नई दिल्ली : केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, वस्त्र और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कर्तव्य पथ, नई दिल्ली से पिछले दिनों ‘भारत’ ब्रांड के अंतर्गत गेहूं के आटे की बिक्री के लिए 100 मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई. यह आटा 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम की एमआरपी पर उपलब्ध होगा.

यह भारत सरकार द्वारा आम उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों की श्रृंखला में नवीनतम है. ‘भारत’ ब्रांड आटा की खुदरा बिक्री से बाजार में किफायती दरों पर आपूर्ति बढ़ेगी और इस महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ की कीमतों में निरंतर कमी लाने में सहायता मिलेगी.

‘भारत’ आटा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के सभी फिजिकल और मोबाइल आउटलेट पर उपलब्ध होगा और इस का विस्तार अन्य सहकारी/खुदरा दुकानों तक किया जाएगा.

ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस (डी)) के अंतर्गत 2.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं 21.50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अर्धसरकारी और सहकारी संगठनों यानी केंद्रीय भंडार, एनसीसीएफ और नेफेड को आटा में परिवर्तित करने और इसे जनता को बेचने के लिए आवंटित किया गया है. ‘भारत आटा’ ब्रांड के अंतर्गत एमआरपी 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं होगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने इस अवसर पर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. पिछले दिनों टमाटर और प्याज की कीमतें कम करने के लिए अनेक कदम उठाए गए थे. इस के अतिरिक्त उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र द्वारा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से 60 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर ‘भारत दाल’ को भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि इन सभी प्रयासों से किसानों को भी काफी फायदा हुआ है. किसानों की उपज केंद्र द्वारा खरीदी जा रही है और उस के बाद उपभोक्ताओं को रियायती दर पर उपलब्ध कराई जा रही है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से विभिन्न वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. प्रधानमंत्रीमोदी का विजन उपभोक्ताओं के साथसाथ किसानों की भी मदद करने का है.

भारत सरकार ने आवश्यक खाद्यान्नों की कीमतों को स्थिर करने के साथसाथ किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं.

भारत दाल (चना दाल) पहले से ही इन 3 एजेंसियों द्वारा अपने फिजीकल और/या खुदरा दुकानों से एक किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा रही है. प्याज भी 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचा जा रहा है.

अब, ‘भारत’ आटे की बिक्री प्रारंभ होने से उपभोक्ता इन दुकानों से आटा, दाल के साथसाथ प्याज भी उचित और किफायती मूल्यों पर प्राप्त कर सकते हैं.

भारत सरकार के नीतिगत हस्तक्षेपों का उद्देश्य किसानों के साथसाथ उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुंचाना है. भारत सरकार किसानों के लिए खाद्यान्न, दालों के साथसाथ मोटे अनाज और बाजरा का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करती है. पीएसएस (मूल्य समर्थन योजना) को लागू करने के लिए राष्ट्रव्यापी खरीद अभियान चलाया जाता है. यह किसानों को एमएसपी का लाभ सुनिश्चित करता है. आरएमएस 23-24 में 21.29 लाख किसानों से 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदा गया. खरीदे गए गेहूं का कुल मूल्य 55679.73 करोड़ रुपए था. केएमएस 22-23 में 124.95 लाख किसानों से ग्रेड ‘ए’ धान के लिए घोषित एमएसपी 2060 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर 569 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदा गया. खरीदे गए चावल का कुल मूल्य 1,74,376.66 करोड़ रुपये था.

खरीदा गया गेहूं और चावल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश में लगभग 5 लाख एफपीएस के नेटवर्क के माध्यम से लगभग 80 करोड़ पीडीएस लाभार्थियों को पूरी तरह से निशुल्क प्रदान किया जाता है. इस के अलावा तकरीबन 7 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाज/बाजरा भी एमएसपी पर खरीदा गया और 22-23 में टीपीडीएस/अन्य कल्याण योजनाओं के अंतर्गत वितरित किया गया.

टीपीडीएस के दायरे में नहीं आने वाले आम उपभोक्ताओं के लाभ के लिए अनेक उपाय किए गए हैं. किफायती और उचित मूल्य पर ‘भारत आटा’, ‘भारत दाल’ और टमाटर, प्याज की बिक्री एक ऐसा उपाय है. अब तक 59,183 मीट्रिक टन दाल की बिक्री हो चुकी है, जिस से आम उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है.

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत गेहूं की बिक्री के लिए राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक ई-नीलामी चला रहा है. इन साप्ताहिक ई-नीलामी में केवल गेहूं प्रोसैसर (आटा चक्की/रोलर आटा मिल) ही भाग ले सकते हैं.

एफसीआई सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य के अनुसार, एफएक्यू और यूआरएस गेहूं क्रमशः 2,150 रुपए और 2125 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिक्री के लिए पेशकश कर रहा है. व्यापारियों को ई-नीलामी में भाग लेने की अनुमति नहीं है, क्योंकि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि खरीदे गए गेहूं को सीधे संसाधित किया जाए और आम उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर जारी किया जाए. साप्ताहिक ई-नीलामी में प्रत्येक बोलीदाता 200 मीट्रिक टन तक ले सकता है.

एफसीआई ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 3 लाख मीट्रिक टन गेहूं दे रहा है. सरकारी निर्देशों के अनुसार, एफसीआई अब तक 65.22 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले बाजार में जारी कर चुका है.

भारत सरकार ने गेहूं की कीमतों को कम करने के लिए उठाए गए उपायों की श्रृंखला के हिस्से के रूप में ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत बिक्री के लिए पेश किए जाने वाले गेहूं की कुल मात्रा को दिसंबर, 2023 तक 57 लाख मीट्रिक टन के बजाय मार्च 2024 तक 101.5 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया है.

यदि आवश्यक हुआ, तो 31 मार्च, 2024 तक बफर स्टाक से 25 लाख मीट्रिक टन (101.5 लाख मीट्रिक टन से अधिक) तक गेहूं की अतिरिक्त मात्रा उतारने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है.

जमाखोरी पर लगाम

पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया है. सरकार ने जमाखोरी को रोकने के लिए थोक विक्रेताओं/व्यापारियों, प्रोसैसरों, खुदरा विक्रेताओं और बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं जैसी विभिन्न श्रेणियों की संस्थाओं द्वारा गेहूं के स्टाक रखने पर भी सीमाएं लगा दी हैं. गेहूं के स्टाक होल्डिंग की नियमित आधार पर निगरानी की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यापारियों, प्रोसैसरों और खुदरा विक्रेताओं द्वारा नियमित तौर पर गेहूं/आटा बाजार में जारी किया जाता है और कोई भंडारण/जमाखोरी नहीं होती है. यह कदम गेहूं की आपूर्ति बढ़ा कर उस की बाजार कीमतों में बढ़ोतरी रोकने के लिए उठाए गए हैं.

गैरबासमती चावल के निर्यात पर रोक

सरकार ने गैरबासमती चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है और बासमती चावल के निर्यात के लिए 950 डालर का न्यूनतम मूल्य लगाया है. एफसीआई ओएमएसएस (डी) के तहत घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 4 लाख मीट्रिक टन चावल की पेशकश कर रहा है. सरकार द्वारा निर्धारित कीमतों के अनुसार एफसीआई 29.00-29.73 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल बिक्री के लिए प्रस्तुत कर रहा है.

गन्ना किसानों पर फोकस

सरकार ने गन्ना किसानों के साथसाथ घरेलू उपभोक्ताओं के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दिखाई है. एक ओर किसानों को 1.09 लाख करोड़ रुपए से अधिक के भुगतान के साथ पिछले चीनी सीजन का 96 फीसदी से अधिक गन्ने के बकाए का पहले ही भुगतान किया जा चुका है, जिस से चीनी क्षेत्र के इतिहास में सब से कम गन्ना बकाया लंबित है. वहीं दूसरी ओर विश्व में सब से सस्ती चीनी भारतीय उपभोक्ताओं को मिल रही है. जहां वैश्विक चीनी मूल्य एक वर्ष में लगभग 40 फीसदी बढ़कर 13 साल के उच्चतम स्तर को छू रहा है, वहीं भारत में पिछले 10 वर्षों में चीनी के खुदरा मूल्यों में सिर्फ 2 फीसदी की वृद्धि हुई है और पिछले एक वर्ष में 5 फीसदी से कम वृद्धि हुई है.

खाद्य तेलों पर भी नजर

भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर बारीकी से नजर रख रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले. सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:

– कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 2.5 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया. इस के अलावा इन तेलों पर कृषि उपकर 20 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया. यह शुल्क संरचना 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दी गई है.

– 21 दिसंबर, 2021 को रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 32.5 फीसदी से घटा कर 17.5 फीसदी कर दिया गया और रिफाइंड पाम तेल पर बेसिक शुल्क 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया. इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है.

– सरकार ने उपलब्धता बनाए रखने के लिए रिफाइंड पाम तेल के खुले आयात को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है.

– सरकार द्वारा की गई नवीनतम पहल में रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क 15 जून, 2023 से 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया है.

– कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल, कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में पिछले वर्ष से गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का असर घरेलू बाजार में पूरी तरह से हो. रिफाइंड सूरजमुखी तेल, रिफाइंड सोयाबीन तेल और आरबीडी पामोलीन की खुदरा कीमतों में 2 नवंबर, 2023 तक एक वर्ष में क्रमशः 26.24 फीसदी, 18.28 फीसदी और 15.14 फीसदी की कमी आई है.

Bharat Attaउपभोक्ता मामले विभाग 34 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में स्थापित 545 मूल्य निगरानी केंद्रों के जरीए 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दैनिक खुदरा और थोक मूल्यों की निगरानी करता है. मूल्यों को कम करने के लिए बफर स्टाक जारी करने, जमाखोरी रोकने के लिए स्टाक सीमा लागू करने, आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाने, आयात कोटे में परिवर्तन, वस्तु के निर्यात पर प्रतिबंध आदि जैसे व्यापार नीति उपायों में परिवर्तन करने के लिए उचित निर्णय लेने के लिए मूल्यों की दैनिक रिपोर्ट और सांकेतिक मूल्य प्रवृत्तियों का विधिवत विश्लेषण किया जाता है.

उपभोक्ताओं को होने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए कृषिबागबानी वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता की जांच करने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना की गई है. पीएसएफ के उद्देश्य हैं (i) फार्म गेट/मंडी पर किसानों/किसान संघों से सीधी खरीद को बढ़ावा देना; (ii) जमाखोरी और अनैतिक सट्टेबाजी को हतोत्साहित करने के लिए एक रणनीतिक बफर स्टाक बनाए रखना और (iii) स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज के माध्यम से उचित कीमतों पर ऐसी वस्तुओं की आपूर्ति कर के उपभोक्ताओं की रक्षा करना. उपभोक्ता और किसान पीएसएफ के लाभार्थी हैं.

वर्ष 2014-15 में मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना के बाद से आज तक सरकार ने कृषिबागबानी वस्तुओं की खरीद और वितरण के लिए कार्यशील पूंजी और अन्य आकस्मिक खर्च प्रदान करने के लिए 27,489.15 करोड़ रुपए की बजटीय सहायता प्रदान की है.

दालों का बफर स्टाक

वर्तमान में पीएसएफ के तहत दालों (तूर, उड़द, मूंग, मसूर और चना) और प्याज का गतिशील बफर स्टाक बनाए रखा जा रहा है. दालों और प्याज के बफर से स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज ने उपभोक्ताओं के लिए दालों और प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित की है और ऐसे बफर के लिए खरीद ने इन वस्तुओं के किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने में भी योगदान दिया है.

कम कीमत पर टमाटर

टमाटर की कीमतों में उतारचढ़ाव रोकने और इसे उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण निधि के तहत टमाटर की खरीद की थी और इसे उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर उपलब्ध कराया गया था.

राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र की मंडियों से टमाटर की खरीद की है और दिल्ली व एनसीआर, बिहार, राजस्थान आदि के प्रमुख उपभोक्ता केंद्रों में सब्सिडी देने के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध करा रहे हैं. टमाटरों को शुरुआत में खुदरा मूल्य 90 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा गया था, जिसे उपभोक्ताओं के लाभ के लिए क्रमिक रूप से घटा कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया गया है.

प्याज की कीमतों पर लगाम

प्याज की कीमतों में भी उतारचढ़ाव रोकने के लिए सरकार पीएसएफ के तहत प्याज बफर बनाए रखती है. बफर आकार को वर्ष दर वर्ष 2020-21 में 1.00 लाख मीट्रिक टन से बढ़ा कर वर्ष 2022-23 में 2.50 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है. कीमतों को कम करने के लिए बफर से प्याज सितंबर से दिसंबर तक कम खपत वाले सीजन के दौरान प्रमुख खपत केंद्रों में एक कैलिब्रेटेड और लक्षित तरीके से जारी किया जाता है. वर्ष 2023-24 के लिए प्याज बफर लक्ष्य को और बढ़ा कर 5 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है.

जिन प्रमुख बाजारों में कीमतें बढ़ी हैं, वहां बफर से प्याज का निबटान शुरू हो गया है. 28 अक्तूबर, 2023 तक लगभग 1.88 लाख मीट्रिक टन निबटान के लिए गंतव्य बाजारों में भेजा गया है. इस के अलावा सरकार ने वर्ष 2023-24 के दौरान पीएसएफ बफर के लिए पहले से खरीदे गए 5 लाख मीट्रिक टन से अधिक 2 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का निर्णय लिया है. सरकार ने मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में आपूर्ति में सुधार के लिए 28 अक्तूबर, 2023 को प्याज पर 800 डालर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाया है.

दालों को रखा मुक्त श्रेणी में

दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2024 तक ‘मुक्त श्रेणी’ के तहत रखा गया है और मसूर पर आयात शुल्क शून्य कर दिया गया है. सुचारु और निर्बाध आयात की सुविधा के लिए तुअर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क हटा दिया गया है. वहीं जमाखोरी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत 31 दिसंबर, 2023 तक तुअर और उड़द पर स्टाक सीमा लगाई गई है.

कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से चना और मूंग के स्टाक लगातार बाजार में जारी किए जाते हैं. कल्याणकारी योजनाओं के लिए राज्यों को चने की आपूर्ति 15 रुपए प्रति किलोग्राम की छूट पर भी की जाती है. इस के अलावा सरकार ने चना स्टाक को चना दाल में परिवर्तित कर के उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए 1 किलोग्राम के पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की अत्यधिक रियायती दर पर “भारत दाल” ब्रांड नाम के तहत खुदरा निबटान के लिए चना दाल में बदलने की व्यवस्था शुरू की.

‘भारत’ दाल का वितरण नेफेड, एनसीसीएफ, एचएसीए, केंद्रीय भंडार और सफल के खुदरा बिक्री केंद्रों के माध्यम से किया जा रहा है. इस व्यवस्था के तहत चना दाल राज्य सरकारों को उन की कल्याणकारी योजनाओं के तहत पुलिस, जेलों में आपूर्ति के लिए और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित सहकारी समितियों और निगमों की खुदरा दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है.
भारत सरकार किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, अंत्योदय और प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए पीएमजीकेएवाई के तहत निशुल्क राशन (गेहूं, चावल और मोटे अनाज/बाजरा) और गेहूं, आटा, दाल और प्याज/टमाटर के साथसाथ चीनी और तेल की उचित और सस्ती दरों को सुनिश्चित कर के अपने किसानों, पीडीएस लाभार्थियों के साथसाथ सामान्य उपभोक्ताओं के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

सरकारी नौकरी छोड़  किसानी से कमाए लाखों

जैविक खेती की दौड़ में  नौकरीपेशा भी कूद पड़े हैं. नए तौरतरीकों से इन किसानों ने न केवल खेती शुरू की, बल्कि आमदनी भी अच्छीखासी कर रहे हैं. यह एक ऐसे नौकरीपेशा किसान की कहानी है, जिस ने हिस्से में आए जमीन के छोटे से टुकड़े को ही अपनी आजीविका का साधन बना लिया.

बात मध्य प्रदेश के सतना जिले के महज 700 की आबादी वाले गांव पोइंधाकला की है. यहां के किसान अभयराज सिंह ने परिवार की चिंता किए बिना 17 साल पहले सहकारी समिति की सरकारी नौकरी छोड़ दी. बंटवारे में आई एक हेक्टेयर जमीन को इस लायक बनाया कि इस में अनाज या फिर फलदार पौधे उग सकें.

वे बताते हैं कि सहकारी समिति में सेल्समैन की नौकरी करते समय उचित मूल्य की 5 दुकानों का जिम्मा था. इस के बाद भी तनख्वाह वही 15,000 रुपए, इस से पत्नी और 2 बच्चों का गुजारा ही चल पा रहा था. उन्हें आगे कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा था. सो, साल 2005 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी. बंटवारे में मिली जमीन में फलों की खेती शुरू की.

पारिवारिक बंटवारे में मिली 0.72 हेक्टेयर की छोटी सी जमीन में पपीते लगाए. साथ ही, सब्जियां भी. पर पपीते ने दूसरे साल ही साथ छोड़ दिया. इस में चुर्रामुर्रा रोग लग गया था. इस रोग के कारण पत्तियां सूख गईं और फल नहीं आए.

50 रुपए में लाए थे पौधे

Lemonअभयराज सिंह बताते हैं कि साल 2008 में उन्होंने नीबू के महज 20 पौधे लगाए थे. आज 300 पेड़ हैं. तब उन के महज 50 रुपए ही खर्च हुए थे. नीबू का पेड़ तैयार होने में तकरीबन 3 साल लग जाते हैं, इसलिए इंटरक्रौपिंग के लिए गन्ना भी लगा दिया था. इस से यह फायदा हुआ कि परिवार के सामने भरणपोषण का संकट नहीं आया. जब नीबू के पेड़ तैयार हो गए, तो इंटरक्रौपिंग बंद कर दी. उन 20 पेड़ों से तब तकरीबन 25,000 से 30,000 रुपए कमाए थे.

बिना ट्रेनिंग तैयार किया 300 पेड़ों का बगीचा

अभयराज सिंह कहते हैं कि नीबू एक ऐसा पेड़ है, जिसे बाहरी जानवरों और पक्षियों से कोई खतरा नहीं है. चिडि़या भी आ कर बैठ जाती हैं, पर कभी चोंच नहीं मारती हैं. गांव के आसपास भी आम के बगीचे हैं, जिन में बंदर भी आते हैं. इस से पपीता, गन्ना और हरी सब्जियों को खतरा रहता है, पर नीबू को छूते तक नहीं हैं, इसलिए खेती करना आसान हुआ.

आज पूरा बाग तैयार है. यहां जितने पेड़ हैं, कलम विधि से तैयार किए गए हैं. यह काम भी उन्होंने खुद किया है. इस के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं ली है.

साल में 2-3 लाख की आमदनी

सालाना उत्पादन के बारे में अभयराज सिंह बताते हैं कि नीबू के एक पेड़ में 3,000 से 4,000  फल आते हैं. इस हिसाब से 300 पेड़ों में तकरीबन एक लाख नीबू आते हैं. उन की अगर एक रुपए भी कीमत लगाई जाए, तो एक लाख रुपए होती है.

वे यह भी बताते हैं कि गांव से तकरीबन 16 किलोमीटर दूर सतना शहर है, जहां वे अपनी उपज बेचते हैं. खुली मंडियों की जगह शहर के 6 होटलों और इतने ही ढाबों में सप्लाई है. यहां पैसा फंसने की गुंजाइश कम है, इसलिए ज्यादातर होटलों और ढाबों को ही नीबू सप्लाई करते हैं. इस के अलावा दुकान वाले भी डिमांड करते हैं. इस से तकरीबन सालभर सप्लाई जारी रहती है.

इंटरक्रौपिंग भी अपनाई

नौकरी छोड़ किसानी से आजीविका चलाने के लिए अभयराज सिंह के पास यही एकमात्र जमीन है, इस के अलावा कुछ नहीं. वे आय बढ़ाने के लिए इंटरक्रौपिंग का सहारा ले रहे हैं. नीबू से बची क्यारियों में केला, अमरूद के पेड़ तैयार कर रहे हैं. केला और अमरूद तैयार भी हैं. इस के अलावा हलदी, शहतूत, बरसीम आदि भी हैं, जिस से रोजमर्रा के खर्चों के लिए कोई दिक्कत नहीं आती.

पोटैटो डिगर से आलू की खुदाई

हमारे देश के कई हिस्सों में आलू की खुदाई शुरू हो चुकी है. लेकिन इस बार भी आलू की बंपर पैदावार के चलते किसानों को आलू की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. यही वजह है कि कुछ किसानों ने तो कुछ दिनों के लिए अपने खेत से आलू की खुदाई रोक दी है. उन्हें इंतजार है कि आलू का बाजार भाव कुछ ठीक हो तो खुदाई करें.

हालांकि आलू की अगेती खेती लेने वाले किसान अपने खेत में आलू की फसल लेने के तुरंत बाद गेहूं की बोआई कर देते हैं. अभी जो बाजार में आलू आ रहा है, वह कच्चा होता है. उस का छिलका भी हलका रहता है, इसलिए इस में टिकाऊपन नहीं होता. इसे स्टोर कर के नहीं रखा जाता.

फरवरी महीने तक आलू पूरी तरह से तैयार होता है. इसे किसान बीज के लिए व आगे बेचने के लिए भी कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं. इस के लिए किसान आलू की अलगअलग साइजों में छंटाई कर ग्रेडिंग कर के रखें, तो अच्छे दाम भी मिलते हैं और आगे के लिए स्टोर करने के लिए सुविधा रहती है.

आलू की फसल आने के बाद उस के रखरखाव की भी खासा जरूरत होती है, क्योंकि आलू को खुला रखने पर उस में हरापन आ जाता है.

आलू की फसल तैयार होने के बाद आलू की खुदाई मजदूरों द्वारा और आलू खुदाई यंत्र (पोटैटो डिगर) से की जाती है. हाथ से खुदाई करने पर काफी आलू कट जाते हैं और मंडी में आलू की सही कीमत नहीं मिलती है.

इसी काम को अगर आलू खोदने वाली मशीन से किया जाए, तो कम समय में आलू की खुदाई कर सकते हैं. मशीन के द्वारा आलू खुदाई करने पर आलू साफसुथरा भी निकलता है. उस के बाद आने वाली फसल की बोआई भी समय पर कर सकते हैं.

आलू की फसल खुदाई करने लायक होने पर आलू के पौधों को ऊपर से काट दें या उस पर खरपतवारनाशी दवा का छिड़काव कर दें, ताकि पौधों के पत्ते सूख जाएं और फसल की खुदाई ठीक से हो सके.

आलू खुदाई यंत्र

केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल द्वारा तैयार आलू खुदाई यंत्र एकसाथ 2 लाइनों की खुदाई करता है. इस यंत्र में 2 तवेदार फाल लगे होते हैं, जो मिट्टी को काटते हैं. इस में नीचे एक जालीदार यंत्र भी लगा होता है, जो मिट्टी में घुस कर आलू को मिट्टी के अंदर से निकाल कर बाहर करता है. साथ ही, इस यंत्र पर एक बैड लगा होता है, जिस पर जाल के घेरे से आलू निकल कर गिरते हैं.

यह बैड लगातार हिलता रहता है. इस बैड के हिलने से मिट्टी के ढेले टूट कर गिरते रहते हैं और साफ आलू खेत में मिट्टी की सतह पर गिरते हुए निकलते हैं. इस के बाद मजदूरों की सहायता से आलुओं को बीन कर खेत में जगहजगह इकट्ठा कर लिया जाता है.

संस्थान द्वारा निर्मित पोटैटो डिगर को 35 हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. एक हेक्टेयर जमीन की आलू खुदाई में 3 घंटे का समय लगता है और 12 लिटर डीजल की खपत होती है.

इस यंत्र की अधिक जानकारी के लिए आप केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नवी बाग, भोपाल से संपर्क कर सकते हैं या आप अपने नजदीकी कृषि विभाग से भी आलू खुदाई यंत्र के बारे में जानकारी ले सकते हैं.

महेश एग्रो का पोटैटो डिगर

महेश एग्रो वर्क्स के पोटैटो डिगर में 56 इंच और 42 इंच के बैड लगे होते हैं. 2 लाइनों में आलुओं की खुदाई होती है. 45 हौर्सपावर के ट्रैक्टर में आलू खुदाई यंत्र को जोड़ कर चलाया जा सकता है.

प्रकाश पोटैटो डिगर

यह मशीन भी सभी प्रकार के आलू खुदाई के लिए उत्तम है. 35 हौर्सपावर या उस से अधिक क्षमता वाले ट्रैक्टर के साथ इसे चलाया जाता है. मशीन में डबल जाल लगा होने के कारण आलू भी साफसुथरा निकलता है.

नवभारत इंडस्ट्रीज के प्रकाश ब्रांड के कृषि यंत्र आज भी खेती के क्षेत्र में अच्छी पकड़ बना रहे हैं.

इस के अलावा अनेक पोटैटो डिगर बाजार में मौजूद हैं. इस के लिए आप कृषि विभाग या अपने नजदीकी कृषि यंत्र निर्माता से पता कर सकते हैं.

मिट्टीपानी की जांच कराएं अधिक मुनाफा पाएं

समयसमय पर किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करानी चाहिए, ताकि मिट्टी जांच से मिलने वाले नमूने के आधार पर अपनी खेती में जरूरी खाद, उर्वरक, बीज आदि की मात्रा तय कर सकें. ऐसा करने से किसानों को अपने खेत में अंधाधुंध खाद, उर्वरक देने से नजात तो मिलेगी ही, बल्कि खेत की मिट्टी को सही पोषक तत्त्व सही मात्रा में मिल सकेंगे.

मिट्टी का नमूना  लेने की विधि

* सब से पहले अपने खेत को उर्वराशक्ति के अनुसार 2 या 2 से ज्यादा भागों में बांट कर रैंडम आधार पर 8-10 स्थानों से मिट्टी का एकएक नमूना लें.

* मिट्टी का नमूना लेने से पहले ऊपर की सतह से घासफूस साफ कर लें और एक लंबी खुरपी से ‘ङ्क’ आकार का गड्ढा खोदने के बाद उस के एक तरफ से एक इंच मोटी मिट्टी की परत निकाल कर किसी बरतन में डालें.

* इस तरह से पूरे खेत के 8-10 स्थानों से मिट्टी ले कर अच्छी तरह से मिला कर उस का एक ढेर बनाएं और उस ढेर पर + का निशान बनाएं.

* अब इस के आमनेसामने के 2 भागों की मिट्टी को हटा दें और बची हुई मिट्टी को दोबारा इकट्ठा कर लें. यह प्रक्रिया तब तक करें, जब तक कि मिट्टी तकरीबन 500 ग्राम न रह जाए.

* इस 500 ग्राम मिट्टी को एक साफ कपड़े की थैली में भरें व कागज पर अपना नाम सहित पूरा पता, विगत में ली गई और भविष्य में ली जाने वाली फसलों के नाम अंकित कर के उस थैली में डाल दें. इसी प्रकार की एक परची थैली के ऊपर बांध कर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजें.

सिंचाईपानी का नमूना लेने की विधि

किसान सिंचाई के लिए अपने खेत में जिस पानी का उपयोग करते हैं, उस पानी का नमूना लेने के लिए यदि नलकूप है, तो पंप को 8-10 मिनट चलाने के बाद व यदि खुला कुआं है, तो बालटी से पानी निकालते समय उसे 8-10 बार डुबो लें और पानी के नमूने को एक साफ बोतल में नलकूप या कुएं के पानी से अच्छी तरह धो कर पूरा भर लें और बोतल के ऊपर किसान अपना पूरा नाम व पता लिख कर प्रयोगशाला को जांच के लिए भिजवाएं.

अधिक जानकारी हासिल करने के लिए अपने निकटतम कृषि कार्यालय में संपर्क करें या फिर किसान काल सैंटर के नि:शुल्क दूरभाष नंबर 18001801551 पर बात कर के अपनी समस्या का समाधान करें.

पालक के पकवान 

पालक में मैग्नीशियम, पोटैशियम, फोलेट, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी2, विटामिन बी और विटामिन ई जैसे विटामिन और मंडल होते हैं, जो एंटीऔक्सीडैंट का काम करते हैं. साथ ही, शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं.

पालक में पाया जाने वाला विटामिन के हैल्दी हार्ट के लिए जरूरी होता है. हाईपोटैशियम इंटेक स्ट्रोक हौट के खतरे को कम कर के ब्लडप्रैशर नौर्मल रखता है. इस में अल्फा लिपाइसी एसिड नाम का एंटीऔक्सीडैंट होता है. इस का सेवन करने से ब्लड शुगर का लैवल कम होता है. साथ ही, यह शरीर में इंसुलिन सेंसिटिविटी को बढ़ाता है.

पालक का सेवन वजन घटाने में मदद करता है, क्योंकि इस में वजन घटाने से संबंधित गुण पाए जाते हैं. वजन घटाने के लिए जरूरी है कि कैलोरी की मात्रा का सेवन कम किया जाए. पालक कम कैलोरी वाला खाद्य पदार्थ है, जिसे आहार में शामिल कर के वजन को नियंत्रित किया जा सकता है.

100 ग्राम पालक में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व

कैलोरी             :  2.3 किलो कैलोरी

पानी               :   91 फीसदी

प्रोटीन             :   2.9 ग्राम

कार्बोहाइड्रेट    :  3.6 ग्राम

शुगर              :  0.4 ग्राम

फाइबर          :  2.2 ग्राम

फैट              :   0.41 ग्राम

कैल्शियम     :   30 मिलीग्राम

आयरन        :   0.81 ग्राम

मैग्नीशियम   :   24 मिलीग्राम

पोटैशियम   :   167 मिलीग्राम

किसान महिलाएं अपने खानपान में पालक से निम्न प्रकार की रैसिपी तैयार कर सकती हैं :

पालक के हरेभरे परांठे

पालक के परांठे एक पौष्टिक और स्वादिष्ठ व्यंजन है, जो पालक में गेहूं का आटा और दूसरे मसालों का उपयोग कर के बनाए जाते हैं. यह सुबह के नाश्ते में चाय के साथ देने के लिए बहुत ही पौष्टिक आहार है, क्योंकि यह झटपट बन जाता है और इसे बनाना बहुत ही आसान है. इस परांठे में पालक के साथ लहसुन व हरी मिर्च, अदरक, धनिया का इस्तेमाल होता है, जो इसे एक बढि़या स्वाद देता है.

पालक का परांठा बनाने के लिए जरूरी सामग्री

2 कप गेहूं का आटा

3/4 कप मोटा कटा हुआ पालक

आधा चम्मच कटा हुआ अदरक

3 लहसुन की कलियां

एक हरी मिर्च कटी हुई

एक चम्मच कटा हुआ हरा धनिया

3 चम्मच तेल

नमक स्वाद के अनुसार

पालक का परांठा बनाने की विधि

पालक और धनिए को पानी से धो कर साफ कर लें. उस के बाद पालक, हरा धनिया, अदरक, लहसुन और हरी मिर्च को मोटे टुकड़ों में काट लें. मिक्सी के जार में पालक, हरी मिर्च, लहसुन, अदरक, हरा धनिया डालें और पीस लें.

आटे में पिसी हुई सामग्री और नमक को मिला कर के आटा गूंद लें. जब तैयार हो जाए, तो गोलगोल परांठे तवे पर धीमी आंच पर सेंकने के बाद इस को लहसुन की चटनी या मट्ठे के साथ सुबह के समय अपने परिवार को दें, जिस से पूरे परिवार को पौष्टिक आयरनयुक्त आहार मिलना शुरू हो जाए.

ओट्स रवा पालक ढोकला

रवा पालक ढोकला बनाने की सामग्री : 50 ग्राम ओट्स पाउडर. 100 ग्राम रवा. 100 ग्राम दही. हरी मिर्च. नमक स्वाद के अनुसार.

रवा पालक ढोकला बनाने की विधि : आधा कप पानी डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. उस के बाद 15 मिनट के लिए रख दीजिए. उस में पालक और 2 चम्मच पानी डाल कर अच्छी तरह से मिला लीजिए और इतना पानी मिलाइए कि मिश्रण गाढ़ा हो. स्टीम करने से तुरंत पहले बाउल में थोड़ा सा लगभग एक चुटकी ईनो पाउडर डाल दीजिए. जब यह फुल जाए, तो एक कड़ाही में या भगोने में थोड़ा पानी डालिए. उस के ऊपर कोई कटोरी रख कर एक छोटे से कटोरे में या किसी छोटे भगोने में तेल लगा कर इस मिश्रण को डाल दीजिए. 15 मिनट के बाद देखेंगे कि मिश्रण फूल कर डबल हो जाएगा और हमारा ढोकला तैयार हो जाएगा. ढोकले की पहचान करने के लिए उस में चाकू की सहायता से छेद कर के देखेंगे. अगर चाकू चिपकता नहीं है, तो समझें कि ढोकला तैयार हो गया है.

ढोकले को हरी मिर्च की चटनी के साथ सुबह के नाश्ते में सर्व करें. यह तेलरहित पोषक नाश्ता बहुत ही लाभकारी है.

Palakपालक पनीर बनाने के लिए जरूरी सामग्री

350 ग्राम पालक

मध्यम आहार का टमाटर

5 कली लहसुन की

2 लौंग

अदरक थोड़ी सी

हरी मिर्च स्वाद के अनुसार

एक बड़ा चम्मच तेल

प्याज कटा हुआ

गरम मसाला

हलदी पाउडर

मिर्च पाउडर

नमक स्वादानुसार

एक चम्मच मलाई

पालक पनीर

बनाने की विधि

सब से पहले पालक को गरम पानी में नमक डाल कर उबालें. जब पालक उबल जाएगा, तब उस को पानी से निकाल कर मिक्सी में महीन पीस लें. तत्पश्चात टमाटर, लहसुन, अदरक, लौंग, प्याज इत्यादि को पीस कर पेस्ट बना लें. जब पेस्ट तैयार हो जाएगा, तब मध्यम आंच पर पैन को चढ़ा कर गरम कर लें और उस में थोड़ा सा तेल डाल कर पकने दें. जब तेल गरम हो जाएगा तो इस में पिसा हुआ मसाला डाल दें. मसाला भुन जाने पर पालक को डाल दें.

जब पालक और मसाला तेल छोड़ने लगे, तब इस में नमक डाल दें. जब यह एकदम क्रीम टाइप का होने लगे, तब इस में पनीर के आधेआधे इंच के टुकड़े काट कर डाल दें.

5 मिनट तक पनीर के टुकड़ों को पालक के साथ पकने दें. और उस के बाद आंच पर से उतार कर मलाई को फेंट कर मिला दें. गरमागरम बेसन की रोटी, नान या मिक्स आटे की रोटी के साथ इस को खाएं.

पालक का जूस बनाने के लिए जरूरी सामग्री

पालक 100 ग्राम

खीरा एक

पुदीना 8-10 पत्तियां

काली मिर्च पाउडर एक चुटकी

नमक स्वाद के अनुसार

नीबू आधा

पालक का जूस बनाने की विधि

पालक को महीनमहीन काट लें और खीरे को भी महीनमहीन काट कर मिक्सी में पीसने के लिए डाल दें. इस में पुदीना भी मिला दें. जब यह फेस तैयार हो जाए, तो इस को जार से निकाल कर छान लें. इस पदार्थ में 2 गिलास पानी मिलाएं. नमक और काली मिर्च को सर्व करने के पहले मिला दें और ऊपर से नीबू स्वाद के अनुसार मिला लें. यह जूस रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत ही कारगर है.

जाड़े में अधिक वर्षा से खेती को नुकसान या फायदा

रबी की खेती किसानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इसी से उस के सारे काम व विकास निर्धारित होते हैं. इन दिनों अच्छीखासी ठंड होती है और अगर बारिश हो जाए तो कहीं तो ये फायदेमंद होती है, लेकिन कई दफा ओला गिरने आदि से फसल को बहुत ज्यादा नुकसान होता है. किसानों की मेहनत और कीमत दोनों ही जाया हो जाती हैं.

जाड़े की वर्षा को महावट कहा जाता था. फसल के लिए इसे अमृत वर्षा कहा जाता है, परंतु जब ये जाड़े की वर्षा इतनी अधिक हो जाए, जो खेत को नमी देने के बजाय उस में जलभराव हो जाए या ओला पड़ जाए, तो यह किसानों की फसल के लिए नुकसानदेह साबित होती है.

जिस खेत में जितनी अधिक लागत की खेती की गई है, उस में उतने नुकसान की संभावना होती है.

ऐसी बरसात से दलहनी व तिलहनी फसलें पूरी तरह से बाधित हो जाती हैं और अब तो सारी फसलें यहां तक गेहूं को भी नुकसान होने की संभावना हो जाती है.

जब ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है, वास्तव में किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. चना, मटर, मसूर, अरहर, सरसों, आलू आदि में अधिक नुकसान होता है. कई जगहों पर तो सरसों व अरहर की जो फसलें गिर जाती हैं, उन्हें भी खासा नुकसान होता है.

ऐसे समय में ढालू भूमि जैसे यमुना, गंगा व नदियों के किनारे की खेती में जलभराव से नहीं जल बहाव से नुकसान होता है.

फूलों की खेती करने वाले किसानों को भी खासा नुकसान होता है. फूल की अवस्था की समस्त फसलों में फूल गिरने व क्षतिग्रस्त होने से उत्पादन गिर जाता है.

मौसम नम होने व कोहरा होने से रोग व कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है, जिस से फसल को नुकसान होना तय है.

वर्षा के बाद के उपाय

* खेतों में जो पानी भरा है, उसे निकालने की तुरंत कोशिश की जाए.

* खेत की निगरानी नियमित करते हुए रोग व कीट नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव करें.

* झुलसा रोग का उपचार करें.

* माहू कीट का नियंत्रण करें.

* चना, मटर में फली छेदक कीट का निदान करें.

* गन्ना की फसल को विभिन्न तना छेदक कीटों से बचाव के उपाय अपनाएं.

* आलू बीज उत्पादन वाली फसल की बेल को काट दें.

* देरी से बोई जाने वाली गेहूं की प्रजातियों हलना, उन्नत हलना नैना की बोआई कर सकते हैं.

खाली खेतों के लिए फसल योजना

* अधिक वर्षा से फसलें क्षतिग्रस्त होने पर खेत को तैयार कर तुरंत गेहूं की बोआई की जा सकती है.

* टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल और प्याज की रोपाई कर सकते हैं.

* जायद की भिंडी व मिर्च के लिए खेत की तैयारी कर के फरवरी माह में बोआई व रोपाई कर सकते हैं.

* गन्ने की 2 कतारों के बीच मूंग व उड़द की बोआई कर सकते हैं.

* सब्जी की बोआई के लिए खेत को तैयार कर सकते हैं.

* आलू के खेत में गरमी की मूंगफली की बोआई कर क्षति पूर्ति कर सकते हैं.

दिए गए सुझाव के साथ  यदि इस विपरीत परिस्थिति में खेती का प्रबंधन करें तो कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती है.

हरित क्रांति (श्वेत क्रांति) बनाम गुलाबी क्रांति

यदि हम आजादी के बाद कृषि इतिहास की ओर नजर घुमाएं तो इस हकीकत को मानना पड़ेगा कि नेहरू युग के अंतिम साल में खाद्यान्न को ले कर देश में संकट इसलिए बढ़ा, क्योंकि केंद्र की पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया था. इस वजह से राज्यों में दंगे शुरू हो गए थे. अमेरिकी नीति ‘फूड ऐंड पीस’ के हिस्से के तौर पर उस समय भारत में पीएल 480 अनाज का सहारा लिया गया था.

देश को खाद्यान्न संकट से उबारने के लिए जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दे कर किसानों के साथ जवानों को भी हरित क्रांति के लिए तैयार किया.

60 के दशक का यह दौर उत्पादकता को बढ़ाने के मद्देनजर गेहूं  (बाद में धान पर भी) उत्पादन पर खास जोर दिया गया और 80 के दशक तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं हो गया, बल्कि निर्यात भी करने लगा.

इन में वैज्ञानिक डा. एमएस स्वामीनाथन के प्रयासों का भी हाथ था. इसे देश की पहली हरित क्रांति के रूप में जाना जाता है. यह (हरित क्रांति) 60 के दशक से ले कर 80 के दशक के मध्य तक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर भारत के दक्षिणी राज्यों तक फैल गई. लेकिन वक्त के साथ हरित क्रांति के व्यावसायीकरण करने की बात भी सामने आई. कृषि से जुड़े परंपरागत मूल्य एवं संस्कृति विलुप्त हुए. धरती से जल दोहन और रासायनिक जहरीले उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से धरती और खाद्यान्न दोनों जहरीले हुए.

यदि उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों के कारण भारत की पिछले 30 सालों में आर्थिक विकास की गति तेजी से बढ़ी है, तो साथ में इस हकीकत को भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि तथाकथित आर्थिक विकास का फायदा भारत के उस अभिजात्य वर्ग को मिला, जो पहले से ही बेहतर जिंदगी जी रहा था.

गौरतलब है जो आर्थिक विकास उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को लागू करने के बाद हुआ, उस में ऐसी भी नीतियां हैं, जो कई तरह के सवाल खड़ा करती हैं. उन में कुछ ऐसे सवाल भी हैं, जो सीधे आम आदमी, पर्यावरण, पशुधन के खात्मे से ताल्लुक रखते हैं.

कृषि से ताल्लुक रखने वाली श्वेत क्रांति और हरित क्रांति को ले कर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. इस के पीछे केंद्र और राज्य सरकारों की गलत नीतियां रही हैं.

भापजा की सरकार ने साल 2014 में सत्ता संभालते ही नई हरित क्रांति की बात कही, वहीं पर मांस निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी रकम बूचड़खानों को भी दी. यह भाजपा की उस नीति से मेल नहीं खाती, जो भारतीय परंपरा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाली है.

Meat Exportयदि आंकड़ों पर जाएं तो साल 2014 में जब राजग सरकार सत्ता में आई उस ने मांस निर्यात और बूचड़खानों के लिए अपने पहले ही बजट में 15 करोड़ की सब्सिडी दी और टैक्स में छूट का विधिवत प्रावधान किया. इस से समझा जा सकता है कि भाजपा की नीतियां मांस निर्यात के मामले में जैसी कांग्रेस की थीं, वैसी ही हैं.

आंकड़ों की तह में जाएं, तो पता चलता है कि साल 2003-04 में भारत से 3.4 लाख टन गायभैंस के मांस का निर्यात हुआ, जो साल 2012-13 में बढ़ कर 18.9 लाख टन हो गया. यह बढ़ोतरी साल 2014-15 में 24 लाख टन पहुंच गई यानी 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. वहीं साल 2019-20 में 1,030.41 मीट्रिक टन मांस का निर्यात किया गया, जिस की कीमत तकरीबन 16.32 करोड़ रुपए थी.

आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में जितना मांस का निर्यात होता है, उस में भारत अकेले ही तकरीबन 58.7 फीसदी निर्यात करता है. गौरतलब है की भारत 65 देशों को मांस का निर्यात करता है. इन में सऊदी अरब, कुवैत, मिस्र, मलयेशिया, फिलीपींस, म्यांमार, नेपाल, लाइबेरिया और वियतनाम प्रमुख हैं. विदेशों में बढ़ते मांस निर्यात की वजह से भारत में जो मांस कभी 30 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता था, वह आज 300 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है.

मांस निर्यात से सब से ज्यादा असर दूध उत्पादन से ताल्लुक रखने वाली श्वेत क्रांति पर पड़ा है. जब 13 जनवरी, 1970 को श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, तब इसे आम आदमी के रोजगार, आर्थिक स्थिति में सुधार और बेहतर स्वास्थ्य से जोड़ कर देखा गया.

पिछले 40 सालों में जिस तरह से मांस निर्यात के जरीए विदेशी पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है, उस ने श्वेत और हरित क्रांति को रोकने या खत्म करने का काम किया है.

गौरतलब है विदेशों में बढ़ते मांस के निर्यात का सीधा असर दूध उत्पादन और घटते पशुधन पर पड़ रहा है.

गौरतलब है कि पशुधन भारतीय कृषि का आधार रहा है. गैरकानूनी बूचड़खानों की वजह से पशुधन पर सीधे असर पड़ा है जिस से पशुपालन बहुत ही खर्चीला काम हो गया है.

घटते दुधारू जानवरों की वजह से पिछले 20 सालों में दूध का दाम तेजी से बढ़ा है. आम आदमी जो कोई दुधारू जानवर नहीं पाल सकता, वह महंगे दूध खरीदने की हालत में नहीं होता है.

Milkगौर करने वाली बात यह है कि बिना किसी सरकारी मदद के देश में दूध का 70 फीसदी कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है. देश में दूध उत्पादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हुई हैं. 14 राज्यों में अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं. लेकिन मांस निर्यात की वजह से पशुधन के खात्मे का असर घटते दूध उत्पादन पर साफ दिखाई पड़ रहा है. इस असंगठित क्षेत्र (दूध उत्पादन) में 7 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं, जिस में अशिक्षित कारोबारी ज्यादा हैं.

यदि मांस निर्यात पर सरकारी रोक न लगी या गैरकानूनी बूचड़खानों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो संभव है कि कुछ सालों में ही इस असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों को किसी और क्षेत्र में कारोबार के लिए मजबूर हो कर आना पड़े.

मांस निर्यात के आईसीएआर के आंकड़े बताते हैं कि हर साल तकरीबन 9.12 लाख जो भैंसें बूचड़खानों में कत्ल कर दी जाती हैं, यदि वे भैंसें कत्लखाने में जाने से बच जाएं, तो 2,95,50,000 टन गोबर की खाद बनाई जा सकती है. इस से 39.40 हेक्टेयर कृषि भूमि को खाद मुहैया कराई जा सकती है. इस से जहां जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा, वहीं महंगी रासायनिक खादों से भी छुटकारा मिल जाएगा.

दूसरी तरफ  यदि देखा जाए तो इनसान और जानवर एकदूसरे के पूरक हैं. इनसान यदि एक जानवर को पालता है, तो वह जानवर उस के पूरे परिवार को पालता है. इतना ही नहीं, बंदर, रीछ, घोड़े, बैल, सांड़, भैंसा और गाय इनसान की जिंदगी के अहम हिस्से हैं.

आज भी लाखों लोगों की आजीविका इन जानवरों पर आधारित है. राजस्थान में एक कहावत है, कहने को तो भेड़ें पालते हैं, दरअसल भेड़ें ही इन को पालती हैं. इन के दूध, घी और ऊन आदि से हजारों परिवारों की जीविका चलती है. भेड़ों के दूध को वैज्ञानिकों ने फेफड़े के रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद बताया है.

‘बांबे ह्यूमैनेटेरियन लीग’ के अनुसार, जानवरों से हर साल दूध, खाद, ऊर्जा और भार ढोने वाली सेवा द्वारा देश को अधिक आय होती है. इस के अलावा मरने के बाद इन की हड्डियों और चमड़े से जो आय होती है, वह भी करोड़ों रुपए में. यांत्रिक कत्लखानों को बंद कर दिया जाए, तो लाखों जानवरों का वध ही नहीं रुकेगा, बल्कि उस में इस्तेमाल होने वाला 70 करोड़ लिटर से अधिक पानी की बचत होगी, जो कत्लखानों की धुलाई में इस्तेमाल होता है.

ऐसे एकदो नहीं, बल्कि तमाम उदाहरण हैं, जिन से मांस निर्यात से होने वाले नुकसान का पता चलता है. आज जरूरत इस बात की है कि दुधारू जानवरों और भार ढोने वाले जानवरों को उन की उपयोगिता के मुताबिक उन का उपयोग किया जाए और उन्हें कत्लखाने भेजने की अपेक्षा उन को परंपरागत कामों में इस्तेमाल किया जाए. इस से जहां दुधारू जानवरों की संख्या बढ़ेगी, वहीं दूध और कंपोस्ट खाद की समस्या से भारत को नजात मिलेगी.

Meatयदि महज भेड़ों को ही बूचड़खानों में भेजने की जगह उन का परंपरागत इस्तेमाल (जब तक वे जीवित रहें) किया जाए, तो 600 करोड़़ रुपए का दूध मिलेगा, 450 करोड़ रुपए की खाद, 50 करोड़ रुपए की ऊन प्राप्त होगी. इसी तरह गाय के वध को रोक देने से सालभर में जो लाभ होगा, वह हैरानी में डालने वाला है.

आंकड़ों के अनुसार, एक गाय के गोबर से सालभर में तकरीबन 17,000 रुपयों की खाद प्राप्त होगी. रोजाना यांत्रिक कत्लखानों में 60,000 गाय कटती हैं जिन के गोबर मात्र से प्रतिवर्ष लगभग एक अरब रुपए की आमदनी हो सकती है. दूध, घी, मक्खन और मूत्र से होने वाले फायदे को जोड़ दिया जाए, तो अरबों रुपए की आय केवल गाय के वध को रोक देने से देश को हो सकती है.

ये आंकड़े और तथ्य यह बताते हैं कि देश की खुशहाली आम आदमी की बेहतरी के साथसाथ पर्यावरण की रक्षा के लिए गुलाबी क्रांति की नहीं, बल्कि निरापद श्वेत और हरित क्रांति की जरूरत है. इस से परंपरागत व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और मांस निर्यात जैसे अहिंसा प्रधान देश में हिंसा वाले व्यवसाय से छुटकारा भी मिल सकेगा.

स्मार्ट सिंचाई के लिए फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट

नेटाफिम इंडिया ने छिड़काव के जरीए फसलों की सिंचाई से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट’ को बाजार में उतारा है. वर्ष 2022 तक इस उपकरण के जरीए 15,000 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के दायरे में शामिल करने का लक्ष्य रखा है.

यह किट सब्जियों और खेतों में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त है. इस में मुख्य रूप से गेहूं, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन, मूंगफली आदि फसलें हैं.

फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट भारत में इस प्रकार का पहला उपकरण है, जो फसलों की पैदावार को अधिकतम करने के लिए पूरे खेत में पानी के एकसमान वितरण को सुनिश्चित करता है. यह उपकरण यूवी किरणों के साथसाथ हर तरह की जलवायु का सामना करने में सक्षम है. इसी वजह से यह उत्पाद बेहद टिकाऊ है और लंबे समय तक बिना किसी परेशानी के इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. कई नलिकाओं वाला यह पोर्टेबल और सुविधाजनक पाइपिंग सिस्टम सिंचाई के लिए बेहद स्मार्ट और टिकाऊ समाधान है.

इस उत्पाद की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह है कि काफी हलके और मजबूत होने के कारण किसानों के लिए इसे इंस्टौल करना और इस्तेमाल में लाना बेहद आसान हो जाता है. इसे खेतों में आसानी से बिछाया जा सकता है और उपयोग के बाद एकदम सुरक्षित तरीके से निकाला जा सकता है.

इस के अलावा इस किट को अपने घर सहित किसी भी स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है और इस्तेमाल के बाद इस के सभी कलपुरजों को खोल कर कहीं भी रखा जा सकता है, क्योंकि इसे रखने के लिए बेहद

कम जगह की जरूरत होती है. इसी वजह से यह किसानों के लिए लंबे समय तक चलने वाला और मेहनत बचाने वाला उत्पाद है.

रणधीर चौहान, मैनेजिंग डायरैक्टर, नेटाफिम इंडिया ने कहा, ‘‘नेटाफिम में हम किसानों को अत्याधुनिक समाधान उपलब्ध कराने की दिशा में लगातार काम करने और पूरी दुनिया में पानी की कमी की समस्या से निबटने के अपने वादे पर कायम हैं. भारतीय किसानों के लिए ‘पोर्टेबल ड्रिप किट’ को सफलतापूर्वक पेश करने के बाद फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट को लौंच करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. अत्याधुनिक तकनीक वाला यह नया उपकरण उन सभी किसानों के लिए बेहद मददगार है, जो आसान तरीके से खेतों में समान रूप से पानी का वितरण करना चाहते हैं.’’

नेटाफिम के डीलर के माध्यम से यह किट पूरे भारत में उपलब्ध है.

पोर्टेबल ड्रिप सिंचाई किट

भारत के छोटे व मझोले किसानों के लिए स्मार्ट सिंचाई की एक पोर्टेबल ड्रिप सिंचाई किट किफायती दाम पर मौजूद है. पोर्टेबल ड्रिप किट की कीमत 21,000-25,000 रुपए है. किट नेटाफिम के डीलर नैटवर्क के माध्यम से देशभर में उपलब्ध हैं. हलके वजन और पोर्टेबल ड्रिप किट को आसानी से लगाया जा सकता है.

पोर्टेबल ड्रिप किट सब्जियों, खीरा, केला और पपीता सहित सभी प्रकार की फसल किस्मों के लिए उपयुक्त है.

 पानी की खपत होगी कम : किट का प्रमुख पार्ट फ्लेक्सनेट है. यह एक लीक प्रूफ फ्लेक्सिबल मेनलाइन और मैनिफोल्ड पाइपिंग सौल्यूशन है, जो सटीक जल वितरण समाधान प्रदान करता है. इस की वजह से पानी की खपत कम होती है. साथ ही, ड्रिप सिंचाई के माध्यम से फसलों को पूरा पानी मिलता है.

पोर्टेबल ड्रिप किट में फील्ड इंस्टौलेशन और संचालन के लिए सभी आवश्यक पार्ट शामिल हैं, जिस में स्क्रीन फिल्टर, फ्लेक्सनेट पाइप, ड्रिपलाइन और कनैक्टर शामिल हैं.

प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण

उदयपुर : 4 नवंबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय में संस्थागत विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ‘‘प्राकृतिक खेती से स्थायित्व कृषि एवं पारिस्थितिकी संतुलन” पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण का समापन हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक कृषि की महत्ता को देखते हुए प्राकृतिक खेती पर स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम पूरे राष्ट्र में आरंभ किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी संतुलन अच्छा रहेगा, जिस से कृषि में स्थायित्व आएगा. इस के लिए सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विषय विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है.

विदित है कि राजस्थान कृषि महाविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आचार्य डा. महेंद्र सिंह पाल ने विद्यार्थियों को प्राकृतिक कृषि में सस्य क्रियाएं एवं प्राकृतिक खेती के उद्देश्य दृष्टि एवं सिद्धांत पर अपना उद्बोधन दिया.

प्राकृतिक खेती के विषय में पूरे विश्व की दृष्टि भारत की ओर है. ऐसे में पूरे विश्व से वैज्ञानिक एवं शिक्षक प्रशिक्षण के लिए भारत आ रहे हैं. ऐसे में हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उत्कृष्ट श्रेणी के प्रशिक्षण आयोजित करें.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. पीके सिंह, परियोजना प्रभारी आईडीपी, नाहेप ने रसायनों के अविवेकपूर्ण उपयोग से होने वाली आर्थिक, पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य को होने वाली हानियों के बारें में बताया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि सभी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना एवं प्रकृति व पारिस्थितिक कारकों को कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ में रूपांतरित किया जा सकता है.

डा. पीके सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने के साथसाथ हमें बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त खाद्य उत्पादन को दृष्टि में रखना चाहिए.

Organic Farmingडा. एसएस शर्मा, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्राकृतिक खेती के महत्व को देखते हुए एवं इसे कृषि में स्थापित करने के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है, जिसे पूरे राष्ट्र में प्राकृतिक कृषि का 180 क्रेडिट का पाठ्यक्रम स्नातक विद्यार्थियों को पढ़ाया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती को सफल रूप में प्रचारित व प्रसारित करने के लिए सब से पहले जरूरत है कि इस की गूढ़ जानकारी को स्पष्ट रूप से अर्जित किया जा सके, अन्यथा जानकारी के अभाव में प्राकृतिक खेती को सफल रूप से लागू करना असंभव होगा.

डा. एसएस शर्मा ने बताया कि इस प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रम के द्वारा स्नातक छात्र तैयार होंगे, जो किसानों तक इसे सही रूप में प्रचारित करेंगे.

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर विभिन्न अनुसंधान परियोजनाएं चालू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, वहीं डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया. साथ ही, प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती के बारे में विद्यार्थियों को विस्तृत रूप से बताया.

डा. अरविंद वर्मा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती में प्रक्षेत्र पर उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जाता है, जबकि जैविक खेती में रसायनमुक्त जैविक पदार्थों का बाहर से समावेश किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत एवं बीजामृत के साथ नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मीटिंग में किसानों का हित

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की क्षेत्रीय समिति-6 की 27वीं बैठक 3 नवंबर, 2023 को संस्थान के सभागार में सचिव डेयर (डिपार्टमेंट औफ एग्रीकल्चर एजुकेशन एंड रिसर्च) एवं महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) डा. हिमांशु पाठक की अध्यक्षता में आयोजित किया गया.

क्षेत्रीय समिति-6 की बैठक में विशिष्ट अथिति डा. उमेशचंद गौतम, उपमहानिदेशक प्रसार, डा. धीर सिंह, निदेशक, एनडीआरआई, करनाल, जीपी शर्मा, सयुक्त सचिव, (वित्त) आईसीएआर, डा. अनिल कुमार, एडीजी, डा. पीएस बिरथाल, निदेशक, एनआईएपी नई दिल्ली व परिषद के विभिन्न विषय के एडीजी, राजस्थान, गुजरात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश दमन व दीव, दादर एवं नागर हवेली के सेक्रेटरी व कमिश्नर और कृषि वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति, गवर्निंग बौडी के सदस्यों, अधिकारी और वैज्ञानिक उपस्थिति रहे.

Rabbitकार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा. हिमांशु पाठक अविकानगर में विभिन्न सुविधा जैसे देश के किसानों के लिए फार्मर होस्टल में नवीनीकृत प्रशिक्षण लेक्चर्स हाल, सेक्टर-9 पर नवीनीकृत भेड़ों के शेड, टैक्नोलौजी पार्क में राष्ट्रीय ध्वज उच्च स्तंभ, टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग व टेक्सटाइल कैमिस्ट्री विभाग में मोटी या अनुपयोगी भेड़ की ऊन से केरटिन प्रोटीन का विगलन, फार्म सेक्शन के लिए नया ट्रैक्टर और देश के भेड़बकरीपालकों, किसानों के लिए कृत्रिम गर्भाधान हेतु चलतीफिरती वैन/लैब आदि का उद्घाटन करते हुए मोटे पूंछ की डुंबा भेड़, खरगोश की विभिन्न नस्लें, सिरोही बकरी और संस्थान के पशु आनुवांशिकी व प्रजनन विभाग में स्थित विभिन्न भेड़ की नस्लों (अविशान, अविकालीन, मालपुरा, मगरा, चोकला, मारवाड़ी, गरोल और पाटनवाड़ी) के उन्नत पशुओं की प्रदर्शनी का अवलोकन किया.

डा. हिमांशु पाठक ने अविकानगर संस्थान की गतिविधियों की प्रशंसा की व ज्यादा से ज्यादा किसानों तक संस्थान की सेवा को बढ़ाने के लिए संस्थान निदेशक डा. तोमर से आग्रह किया.

डा. हिमांशु पाठक द्वारा क्षेत्रीय समिति के सभागार से पहले जोन के संस्थानों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कृषि कार्य में ड्रोन की भूमिका प्रदर्शन का भी अवलोकन किया. डा. हिमांशु पाठक को गार्ड औफ ओनर के साथ केंद्रीय विद्यालय, अविकानगर के नन्हेमुन्ने बच्चों द्वारा उन का जोरदार स्वागतसत्कार किया गया.

सभागार में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा महानिदेशक, उपमहानिदेशक, निदेशक और सभी डेलेगेट्स का स्वागतसत्कार राजस्थान परंपरा से किया गया.

Tractorकार्यक्रम में डा. पीएस बिरथाल द्वारा क्षेत्र की उत्पादन, समस्या और आने वाली चुनौती के बारे में विस्तार से लेक्चर्स दिया गया, जिस का पिछली मीटिंग की सिफारिश को पूरा करने की विस्तृत रिपोर्ट डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा प्रस्तुत किया गया. इस के बाद गुजरात, राजस्थान, दमन, दीव, दादर एवं नागर हवेली की कृषि, पशुपालन, पोल्ट्री, फिशरीज, बागबानी, फोरस्ट्री, एजुकेशन, प्रसार गतिविधियों की समस्या, चुनौतियों आदि पर महानिदेशक की अध्यक्षता में एकएक कर के विस्तार से चर्चा की गई.

कार्यक्रम में भौतिक रूप से उपस्थित और औनलाइन माध्यम से जुड़े विषय विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध विकल्प को बताया गया. कुछ मुद्दे पर भविष्य के हिसाब से शोध चुनौती, एग्रीकल्चर उत्पादों के निर्यात की समस्या एवं भविष्य की अपार संभावना के ऊपर चर्चा की गई. पशुपालन, हार्टिकल्चर, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, मार्केटिंग, और्गेनिक खेती, जैविक खाद, पोस्ट हार्वेस्टिंग प्रोसैसिंग, समस्या पर उपलब्ध हल के द्वारा जागरूकता कैंप आदि पर क्षेत्रीय मीटिंग में विस्तार से चर्चा की गई.

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मीटिंग के दौरान महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक एवं अन्य मंच पर विराजमान अतिथि ने अविकानगर संस्थान द्वारा भेड़ की महीन ऊन और ऊंट के फाइबर से निर्मित हलकी ऊनी जैकेट और विभिन्न प्रकाशन का विमोचन भी किया.

 

अंत में महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक द्वारा संबोधन के क्रम में बताया गया कि जिन समस्या का समाधान यहां उपस्थिति किसी भी संस्थान पर उपलब्ध है, उस को 15 दिन के भीतर संबंधित को उपलब्ध करावा दिया जाए और जिस किसी समस्या का समाधान यदि देश की किसी संस्थान के पास हो, उस को भी एक महीने में संबंधित समस्याग्रस्त संस्थान को उपलब्ध करा दिया जाए. जिन समस्याओं का अभी समाधान नहीं है एवं वर्तमान में उबर रही भविष्य की चुनौती के हिसाब से हल करना है. उन का दोबारा परिषद के माध्यम से अलग से मीटिंग कर के संबंधित संस्थान को जिम्मेदारी देते हुए शोध प्रोजैक्ट तैयार करवा कर हल किया जाए.

इस मीटिंग को पूरा करने में डा. सीपी स्वर्णकार, डा. आरसी शर्मा, डा. अजय कुमार, डा. गणेश सोनावने, डा. रणधीर सिंह भट्ट, डा. एसके संख्यान, डा. अजित महला, डा. अरविंद सोनी, डा. लीलाराम गुर्जर, डा. सत्यवीर सिंह डांगी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार, राजकुमार मुख्य वित्त अधिकारी, भीम सिंह, तरुण कुमार जैन, सुनील सैनी, मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना आदि संस्थान के सभी कर्मचारियों द्वारा पूरा सहयोग कार्यक्रम को समापन तक करने में दिया. साथ ही, महानिदेशक ने संस्थान के कर्मचारियों को अच्छा कार्य करने के लिए धन्यवाद देते हुए अपने संबोधन से लाभान्वित किया.