यदि हम आजादी के बाद कृषि इतिहास की ओर नजर घुमाएं तो इस हकीकत को मानना पड़ेगा कि नेहरू युग के अंतिम साल में खाद्यान्न को ले कर देश में संकट इसलिए बढ़ा, क्योंकि केंद्र की पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया था. इस वजह से राज्यों में दंगे शुरू हो गए थे. अमेरिकी नीति ‘फूड ऐंड पीस’ के हिस्से के तौर पर उस समय भारत में पीएल 480 अनाज का सहारा लिया गया था.
देश को खाद्यान्न संकट से उबारने के लिए जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दे कर किसानों के साथ जवानों को भी हरित क्रांति के लिए तैयार किया.
60 के दशक का यह दौर उत्पादकता को बढ़ाने के मद्देनजर गेहूं (बाद में धान पर भी) उत्पादन पर खास जोर दिया गया और 80 के दशक तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं हो गया, बल्कि निर्यात भी करने लगा.
इन में वैज्ञानिक डा. एमएस स्वामीनाथन के प्रयासों का भी हाथ था. इसे देश की पहली हरित क्रांति के रूप में जाना जाता है. यह (हरित क्रांति) 60 के दशक से ले कर 80 के दशक के मध्य तक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर भारत के दक्षिणी राज्यों तक फैल गई. लेकिन वक्त के साथ हरित क्रांति के व्यावसायीकरण करने की बात भी सामने आई. कृषि से जुड़े परंपरागत मूल्य एवं संस्कृति विलुप्त हुए. धरती से जल दोहन और रासायनिक जहरीले उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से धरती और खाद्यान्न दोनों जहरीले हुए.