किसानों को हर सवाल का मिलेगा जवाब

सबौर : बिहार सरकार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने पिछले दिनों बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किसानों को समर्पित एक कार्यक्रम ‘सवालजवाब’ का उद्घाटन किया.

इस कार्यक्रम में पूरे राज्य के किसान विश्वविद्यालय के यूट्यूब और चैनल और वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े. यह कार्यक्रम हर माह के प्रथम शनिवार को किसानों के सवालों के जवाब को ले कर आता रहेगा. फसल अवशेष प्रबंधन की थीम पर कार्यक्रम में किसानों के जवाब देते हुए कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि फसल उपजने के उपरांत अवशेष को जलाना नहीं है, बल्कि गलाना है. मजबूरी में हमें ऐसे किसान भाइयों पर दंडात्मक कार्यवाही करनी पड़ती है, जो पराली को जलाते हैं.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि हमारा प्रयास रहा है प्रयोगशाला से खेत तक एक बेहतर समन्वय हो और यह कार्यक्रम उसी लक्ष्य के साथ एक कड़ी के रूप में कार्य करेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि किसान समस्या में विश्वविद्यालय की ओर देखता है. हम से उम्मीद करता है कि हम उन्हें सही रास्ता दिखाएं. विश्वविद्यालय के प्रसार कार्यक्रम का यही लक्ष्य है कि अंतिम छोर पर खड़े किसानों तक हम सही समय पर तकनीक और वैज्ञानिक सलाह पहुंचा सकें.

इस अवसर पर भागलपुर के सांसद अजय मंडल और सुल्तानगंज के विधायक ललित नारायण मंडल ने भी हिस्सा लिया. कार्यक्रम का संचालन अन्नू ने किया.

मंत्री ने वैज्ञानिकों को किया सम्मानित

इस के उपरांत विश्वविद्यालय के मिनी औडिटोरियम में विश्वविद्यालय का ईमैनुअल तैयार करने वाले 17 वैज्ञानिकों को मंत्री द्वारा प्रमाणपत्र दे कर समान्नित किया गया. वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि यहां 17 युवा वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है. देश और दुनिया में विकसित देश के वैज्ञानिक उन्नत हथियार बना रहे हैं, जिस से बड़ी संख्या में इनसानों को खत्म किया जा सके. लेकिन हमें आप पर गर्व है कि आप सभी युवा वैज्ञनिक उन्नत खेती के लिए दिनरात एक कर के शोध कर रहे हैं, ताकि कोई भूखा न सोए.

गौरतलब है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश में प्रतिभाओं को आकर्षित करने एवं उच्च कृषि शिक्षा को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (नाहेप) की शुरुआत की गई थी. इस परियोजना को विश्व बैंक और भारत सरकार द्वारा 50:50 यानी फिफ्टीफिफ्टी के आधार पर वित्तपोषित है. इस परियोजना के अंतर्गत स्नात्तक एवं स्नातकोतर विषयों के सभी पाठ्यक्रम को बनने के लिए देशभर के कृषि वैज्ञानिकों से आवेदन मांगे गए थे और इसी क्रम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के 17 वैज्ञानिकों का चयन 31 पाठ्यक्रम बनाने के लिए आईसीएआर व नाहेप द्वारा किया गया था. इन्हीं वैज्ञानिकों ने इस मैनुअल को तैयार किया है. कुलपति ने मैनुअल तैयार करने वाले वैज्ञानिकों की तारीफ की.

इन वैज्ञानिकों को किया गया सम्मानित

Sawal Jawab

कार्यक्रम में डा. अंशुमान कोहली, डा. रूबी रानी, डा. श्वेता शांभवी, डा. राजीव रक्षित, डा. एच. मीर, डा. शशांक शेखर सोलंकी, डा. मृणालिनी कुमारी, डा. मैनाक घोष, डा. वसीम सिद्दीकी, डा. अनुपम दास, डा. तमोघना साहा, ई. विकास चंद्र वर्मा, डा. मनोज कुंडू, डा. प्रीतम गांगुली, डा. तुषार रंजन, डा. चंदन पांडा एवं डा. कल्मेश मंगवी को सम्मानित किया गया.

बिहार कृषि महाविद्यालय के सौ वर्षों के सफर पर वृत्तचित्र का हुआ लोकार्पण

मंत्री कुमार सर्वजीत ने बीएयू के मीडिया सेंटर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक फिल्म का लोकार्पण किया. इस फिल्म में एक ब्रिटिश राज में सबौर में कृषि महाविद्यालय खोलने से ले कर विश्वविद्यालय बनाने तक के सफर को दिखाया गया.

लोकगीत पर आधारित जागरूकता कार्यक्रम का लोकार्पण

सामुदायिक रेडियो एफएम ग्रीन पर एक जागरूकता कार्यक्रम “फसल अवशेष मत जलाना, यह है खेती का गहना” का लोकार्पण मंत्री कुमार सर्वजीत ने किया. यह कार्यक्रम लोकगीत और नाटक के जरीए लोगों से फसल अवशेष और पुआल नहीं जलाने का संदेश देता है. मंत्री कुमार सर्वजीत के लोकार्पण के साथ ही रेडियो पर एक लोकगीत का प्रसारण हुआ, जिस के बोल थे “खेत में अगर जलाया पुआल, मिट्टी हो जाएगी बेहाल…” यह लोकगीत स्थानीय कलाकार ताराकांत ठाकुर ने गया है.

इस मौके पर मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि कृषि गीत आजकल लुप्त हो रहे हैं. अतः बीएयू का एक कृषि गीत संकलन करने का एक अच्छा प्रयास है.

गुड प्रैक्टिस एंड एक्स्टेंशन मौडल’ पुस्तक का हुआ विमोचन

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विश्वविद्यालय में किसानों के हितों में किए गए शोध और चलाए गए कार्यक्रमों का संकलन एक पुस्तक में किया गया है, जिस का नाम है, “गुड प्रैक्टिस एंड एक्स्टेंशन मौडल’. मंत्री एवं सभी गणमान्य व्यक्तियों ने पुस्तक का विमोचन किया.

 

इन कार्यक्रमों का स्वागत भाषण प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने ने किया, संचालन डा. स्वेता संभावी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन अधिष्ठाता कृषि डा. एके साह ने किया. इस आशय की सूचना विश्वविद्यालय के पीआरओ डा. राजेश कुमार ने दी.

भारत की विकास गाथा के स्तंभ छोटे किसान, छोटे उद्योग और महिलाएं

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में मेगा फूड इवेंट ‘वर्ल्ड फूड इंडिया 2023’ के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया. उन्होंने स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए एक लाख से अधिक एसएचजी सदस्यों को बीज के लिए आर्थिक सहायता का भी वितरण किया. इस अवसर पर नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को ‘दुनिया के खाद्य केंद्र’ के रूप में प्रदर्शित करना और साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है.

इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शित प्रौद्योगिकी और स्टार्टअप मंडप और फूड स्ट्रीट की सराहना करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी और स्वाद का मिश्रण भविष्य की अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज के बदलते परिप्रेक्ष्‍य में खाद्य सुरक्षा की प्रमुख चुनौतियों में से एक का उल्‍लेख करते हुए विश्व खाद्य भारत 2023 के महत्व को रेखांकित किया.

एग्री इंफ्रा फंड के तहत लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वर्ल्ड फूड इंडिया के परिणाम भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को ‘सूर्योदय क्षेत्र’ के रूप में पहचाने जाने का एक बड़ा उदाहरण हैं. पिछले 9 वर्षों में सरकार की उद्योग समर्थक और किसान समर्थक नीतियों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र ने 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है.

Vikas Gathaप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में पीएलआई योजना का उल्‍लेख करते हुए कहा कि यह उद्योग में नए उद्यमियों को बड़ी सहायता प्रदान कर रही है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे के लिए एग्री इंफ्रा फंड के तहत हजारों परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिस में लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश है, जबकि मत्स्यपालन और पशुपालन क्षेत्र में प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे को भी हजारों करोड़ रुपए के निवेश के साथ प्रोत्साहित किया जा रहा है.

कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ कर 23 फीसदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार की निवेशक अनुकूल नीतियां खाद्य क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जा रही हैं. पिछले 9 वर्षों में भारत के कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ कर 23 फीसदी हो गई है, जिस से निर्यातित प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में कुल मिला कर 150 फीसदी की वृद्धि हुई है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आज भारत कृषि उपज में 50,000 मिलियन अमरीकी डालर से अधिक के कुल निर्यात मूल्य के साथ 7वें स्थान पर है. साथ ही, उन्होंने आगे कहा कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां भारत ने अभूतपूर्व वृद्धि नहीं की हो.

उन्‍होंने आगे कहा कि यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़ी हर कंपनी और स्टार्टअप के लिए यह एक स्‍वर्णिम अवसर है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देते हुए कहा कि भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में तीव्र वृद्धि का कारण सरकार के निरंतर और समर्पित प्रयास रहे हैं. भारत में पहली बार कृषि निर्यात नीति के निर्माण, राष्ट्रव्यापी लौजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे के विकास, जिले को वैश्विक बाजारों से जोड़ने वाले 100 से अधिक जिला स्तरीय केंद्रों के निर्माण, मेगा फूड पार्कों की संख्या में 2 से बढ़ कर 20 से अधिक और भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 12 लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर 200 लाख मीट्रिक टन से अधिक हो गई है, जो पिछले 9 वर्षों में 15 गुना वृद्धि को दर्शाती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत से पहली बार निर्यात किए जा रहे उन कृषि उत्पादों का उदाहरण दिया, जिन में हिमाचल प्रदेश से काला लहसुन, जम्मू और कश्मीर से ड्रैगन फ्रूट, मध्य प्रदेश से सोया दूध पाउडर, लद्दाख से कार्किचू सेब, पंजाब से कैवेंडिश केले, जम्मू से गुच्ची मशरूम और कर्नाटक से कच्चा शहद शामिल हैं.

भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों, स्टार्टअप और छोटे उद्यमियों के लिए अनछुए अवसरों के सृजन का जिक्र करते हुए पैकेज्ड फूड की बढ़ती मांग की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने इन संभावनाओं का पूरा उपयोग करने के लिए महत्वाकांक्षी योजना की आवश्यकता पर बल दिया.

‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी जैसी योजनाएं छोटे किसानों को दे रही नई पहचान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत की विकास गाथा के तीन मुख्य स्तंभों छोटे किसान, छोटे उद्योग और महिलाओं का उल्‍लेख किया. उन्होंने छोटे किसानों की भागीदारी और मुनाफा बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में किसान उत्पादन संगठनों या एफपीओ के प्रभावी उपयोग की भी जानकारी दी.

उन्होंने आगे कहा कि हम भारत में 10 हजार नए एफपीओ बना रहे हैं, जिन में से 7 हजार पहले ही बन चुके हैं. उन्होंने किसानों के लिए बढ़ती बाजार पहुंच और प्रसंस्करण सुविधाओं की उपलब्धता का उल्‍लेख करते हुए कहा कि लघु उद्योगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में लगभग 2 लाख सूक्ष्म उद्यमों का संगठित किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी जैसी योजनाएं भी छोटे किसानों और छोटे उद्योगों को नई पहचान दे रही हैं.

Vikas Gathaभारत में 9 करोड़ से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं

भारत में महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास मार्ग का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में महिलाओं के बढ़ते योगदान पर प्रकाश डाला, जिस से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को लाभ हुआ है.

उन्होंने कहा कि आज भारत में 9 करोड़ से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं. हजारों वर्षों से भारत में खाद्य विज्ञान में महिलाओं के नेतृत्व का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में भोजन की विविधता और खाद्य विविधता भारतीय महिलाओं के कौशल और ज्ञान का परिणाम है.

उन्होंने कहा कि महिलाएं अचार, पापड़, चिप्स, मुरब्बा आदि कई उत्पादों का बाजार अपने घर से ही चला रही हैं. भारतीय महिलाओं में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का नेतृत्व करने की नैसर्गिक क्षमता है. महिलाओं के लिए हर स्तर पर कुटीर उद्योगों और स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर एक लाख से ज्यादा महिलाओं को करोड़ों रुपये की प्रारंभिक वित्तीय सहायता प्रदान करने का उल्‍लेख किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में जितनी सांस्कृतिक विविधता है, उतनी ही खानपान विविधता भी है.

भारत की खाद्य विविधता दुनिया के हर निवेशक के लिए एक लाभांश है. भारत के प्रति बढ़ती जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि दुनियाभर के खाद्य उद्योग को भारत की खाद्य परंपराओं से बहुतकुछ सीखना है.

उन्होंने कहा कि भारत की दीर्घकालिक खाद्य संस्कृति उस की हजारों वर्षों की विकास यात्रा का परिणाम है. हजारों वर्षों में भारत की स्थायी खाद्य संस्कृति के विकास का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के पूर्वजों ने भोजन की आदतों को आयुर्वेद से जोड़ा था. आयुर्वेद में कहा गया है कि ‘ऋत-भुक’ यानी मौसम के अनुसार भोजन, ‘मित भुक’ यानी संतुलित आहार, और ‘हित भुक’ यानी स्वस्थ भोजन जैसी परंपराएं भारत की वैज्ञानिक समझ को दर्शाती हैं.

उन्होंने दुनिया पर भारत से खाद्यान्न, विशेषकर मसालों के व्यापार के निरंतर प्रभाव का भी उल्लेख किया. वैश्विक खाद्य सुरक्षा के बारे में विचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को दीर्घकालिक और स्वस्थ भोजन आदतों के प्राचीन ज्ञान को समझने और लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि दुनिया साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मना रही है.

बाजरा भारत के ‘सुपरफूड बकेट’ का हिस्सा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बाजरा भारत के ‘सुपरफूड बकेट’ का हिस्सा है और सरकार ने इस की पहचान श्रीअन्न के रूप में की है. भले ही सदियों से अधिकांश सभ्यताओं में बाजरा को बहुत प्राथमिकता दी गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह पिछले कुछ दशकों में भारत सहित कई देशों में इसे भोजन से बाहर कर दिया गया, जिस से वैश्विक स्वास्थ्य, दीर्घकालिक खेती के साथ ही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है.

Vikas Gathaप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रभाव की तरह ही दुनिया के कोनेकोने में श्रीअन्‍न के पहुंचने का भरोसा जताते हुए कहा कि भारत की पहल पर दुनिया में श्रीअन्‍न को ले कर जागरुकता अभियान शुरू किया गया है.

उन्होंने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत आने वाले गणमान्य व्यक्तियों के लिए बाजरा से बने व्यंजनों का उल्लेख किया और साथ ही, बाजार में बाजरा से बने प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की उपलब्धता का भी उल्लेख किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों से श्रीअन्न की हिस्सेदारी बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करने और उद्योग एवं किसानों के लाभ के लिए एक सामूहिक प्रारूप तैयार करने का आग्रह किया.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि जी-20 समूह ने दिल्ली घोषणापत्र में दीर्घकालिक कृषि, खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा पर जोर दिया है और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े सभी भागीदारों की भूमिका का उल्‍लेख किया गया है.

उन्होंने खाद्य वितरण कार्यक्रम को विविध खाद्य केंद्र के रूप में स्‍थापित करने और अंततः फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने पर जोर दिया.

साथ ही, उन्होंने प्रौद्योगिकी का उपयोग कर के बरबादी को कम करने पर भी बल दिया. उन्होंने बर्बादी को कम करने के लिए उत्पादों के प्रसंस्करण को बढ़ाने का आग्रह किया, जिस से किसानों को लाभ हो और कीमतों में उतारचढ़ाव को रोका जा सके.

अपने संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हितों और उपभोक्ताओं की संतुष्टि के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यहां निकाले गए निष्कर्ष दुनिया के लिए एक स्‍थायी और खाद्य सुरक्षित भविष्य की नींव रखेंगे.

इस अवसर पर केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल, केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय पशुपालन, डेरी और मत्स्यपालन राज्य मंत्री परशोत्तम रूपाला और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के साथसाथ अन्‍य गणमान्‍य उपस्थित थे.

इस मौके पर स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लाख से अधिक एसएचजी सदस्यों के लिए प्रारंभिक पूंजी सहायता वितरित की. इस समर्थन से एसएचजी को बेहतर पैकेजिंग और गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण के माध्यम से बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 के हिस्से के रूप में फूड स्ट्रीट का भी उद्घाटन किया. इस में क्षेत्रीय व्यंजन और शाही पाक विरासत को दिखाया जाएगा, जिस में 200 से अधिक शेफ भाग लेंगे और पारंपरिक भारतीय व्यंजन पेश करेंगे, जिस से यहां एक अनूठा पाक अनुभव हासिल करने का अवसर मिलेगा.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को ‘दुनिया के खाद्य केंद्र’ के रूप में प्रदर्शित करना और साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है. यह सरकारी निकायों, उद्योग के पेशेवरों, किसानों, उद्यमियों और अन्य हितधारकों को चर्चा में शामिल होने, साझेदारी स्थापित करने और कृषि खाद्य क्षेत्र में निवेश के अवसरों का पता लगाने के लिए एक नेटवर्किंग और व्यापार मंच प्रदान करेगा. सीईओ गोलमेज सम्मेलन निवेश और कारोबार में आसानी पर केंद्रित होगा.

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के नवाचार और क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न मंडप स्थापित किए जाएंगे. यह कार्यक्रम खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए 48 सत्रों की मेजबानी करेगा, जिस में वित्तीय सशक्तीकरण, गुणवत्ता आश्वासन और मशीनरी और प्रौद्योगिकी में नवाचारों पर जोर दिया जाएगा.

यह आयोजन प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारियों सहित 80 से अधिक देशों के प्रतिभागियों की मेजबानी करने के लिए तैयार है. इस में 80 से अधिक देशों के 1200 से अधिक विदेशी खरीदारों के साथ एक रिवर्स बायरसेलर मीट की भी सुविधा होगी. नीदरलैंड भागीदार देश के रूप में कार्य करेगा, जबकि जापान इस आयोजन का मुख्‍य देश होगा.

25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से प्याज

नई दिल्ली : सरकार ने उपभोक्ताओं को खरीफ फसल की आवक में देरी के चलते प्याज की कीमतों में हाल में आई वृद्धि से बचाने के लिए 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर बफर से प्याज की उत्साहवर्धक खुदरा बिक्री आरंभ की है.

यह घरेलू उपभोक्ताओं के लिए प्याज की उपलब्धता और निम्न लागत सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों के अतिरिक्त एक और उपाय है, जैसे 29 अक्तूबर, 2023 से 800 डालर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाना, पहले से ही खरीदे गए 5.06 लाख टन के अतिरिक्त बफर खरीद में 2 लाख टन की वृद्धि और अगस्त के दूसरे सप्ताह से खुदरा बिक्री, ई- नीलामी और थोक बाजारों में थोक बिक्री के माध्यम से प्याज का निरंतर निबटान.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने एनसीसीएफ, नाफेड, केंद्रीय भंडार और अन्य राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों द्वारा प्रचालित खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर प्याज का उत्साहवर्धक निबटान आरंभ कर दिया है.

2 नवंबर तक नाफेड ने 21 राज्यों के 55 शहरों में स्टेशनरी आउटलेट और मोबाइल वैन सहित 329 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं. इसी तरह एनसीसीएफ ने 20 राज्यों के 54 शहरों में 457 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं.

केंद्रीय भंडार ने भी 3 नवंबर, 2023 से दिल्ली व एनसीआर में अपने खुदरा दुकानों के माध्यम से प्याज की खुदरा आपूर्ति शुरू कर दी है और सफल मदर डेयरी इस सप्ताहांत से आरंभ करेगी. तेलंगाना और अन्य दक्षिणी राज्यों में उपभोक्ताओं को प्याज की खुदरा बिक्री हैदराबाद कृषि सहकारी संघ (एचएसीए) द्वारा की जा रही है.

रबी और खरीफ फसलों के बीच मौसमी मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए, सरकार बाद में निर्धारित और लक्षित रिलीज के लिए रबी प्याज की खरीद कर के प्याज बफर बनाए रखती है.

इस वर्ष साल 2022-23 में बफर आकार को 2.5 एलएमटी से बढ़ा कर 7 एलएमटी कर दिया गया है. अब तक 5.06 एलएमटी प्याज की खरीद की जा चुकी है और शेष 2 एलएमटी की खरीद जारी है.

सरकार द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों ने परिणाम प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है, क्योंकि बेंचमार्क लासलगांव बाजार में प्याज की कीमतें 28 अक्तूबर, 2023 को 4,800 रुपए प्रति क्विंटल से घट कर 3 नवंबर, 2023 को 3,650 रुपए प्रति क्विंटल हो गई, जो 24 फीसदी की गिरावट है. आगामी सप्ताह में खुदरा कीमतों में इसी तरह की गिरावट की उम्मीद है.

स्मरणीय है कि जब मानसून की बारिश और सफेद मक्खी के संक्रमण से आपूर्ति में व्यवधान के कारण जून, 2023 के आखिरी सप्ताह से टमाटर की कीमतें बढ़ गईं, तो सरकार ने कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्पादक राज्यों से एनसीसीएफ और एनएएफईडी के माध्यम से टमाटर खरीद कर युक्तिसंगत कदम उठाए और महाराष्ट्र व प्रमुख उपभोग केंद्रों में उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर आपूर्ति की.

खरीदे गए टमाटर खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर बेचे गए. शुरुआत 90 रुपए प्रति किलोग्राम से हुई और धीरेधीरे कम हो कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई. खुदरा युक्तियों के माध्यम से टमाटर की खुदरा कीमतों को अगस्त के पहले सप्ताह के शीर्ष, अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 140 रुपए प्रति किलोग्राम से घटा कर सितंबर, 2023 के पहले सप्ताह तक लगभग 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक ला दिया गया.

अधिकांश भारतीय परिवारों के लिए दलहन पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं. आम घरों में दाल की उपलब्धता और रियायती कीमत सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 1 किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमतों पर भारत दाल लौंच की है. भारत दाल उपभोक्ताओं को खुदरा बिक्री के लिए और नाफेड, एनसीसीएफ, केंद्रीय भंडार, सफल और तेलंगाना और महाराष्ट्र में राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों के माध्यम से सेना, सीएपीएफ और कल्याणकारी योजनाओं के लिए आपूर्ति के लिए कृषि उपलब्ध कराया जाता है.

अब तक 3.2 एलएमटी चना स्टाक रूपांतरण के लिए आवंटित किया गया है, जिस में से 75,269 मीट्रिक टन की मिलिंग की गई है और 59,183 मीट्रिक टन का आवंटन 282 शहरों में 3010 खुदरा बिंदुओं (स्टेशनरी आउटलेट मोबाइल वैन) के माध्यम से किया गया है.

देशभर में उपभोक्ताओं को 4 लाख टन से अधिक भारत दाल उपलब्ध कराने के लिए आने वाले दिनों में भारत दाल की आपूर्ति बढ़ाई जा रही है.

‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ पर प्रशिक्षण

बस्ती : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती पर आर्या योजना के अंतर्गत बेरोजगार नवयुवकों/युवतियों को गांव स्तर पर स्वरोजगार सृजन के उद्देश्य से ‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के अंतिम दिन मुख्य अतिथि भूमि संरक्षण अधिकारी डा. राज मंगल चौधरी ने प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा है कि गांव स्तर पर बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को रोजगार उपलब्ध कराए जाएं, जिस से कि उन के शहरों की ओर बढ रहे पलायन को रोका जा सके.

इसी उद्देश्य के तहत आम लोगों को मशरूम उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान किया जा रहा है, क्योंकि यह भूमिहीन व गरीब किसानों की आमदनी का जरीया है, इसे अपना कर वे स्वरोजगार सृजन कर सकते हैं.

इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त 20 प्रशिक्षनार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया.

Mushroomकोर्स के कोआर्डिनेटर एवं पौध सुरक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने अवगत कराया कि इस योजना के अंतर्गत बकरीपालन एवं मधुमक्खीपालन पर भी स्वरोजगार सृजन हेतु बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को प्रशिक्षित किया जाएगा. साथ ही साथ बटन मशरूम की खेती की तकनीक की विस्तार से चर्चा की.

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक, पशुपालन, डा. डीके श्रीवास्तव ने अपने संबोधन के दौरान प्रशिक्षार्थियों को पशुपालन से संबंधित जैसे बकरीपालन, मुरगीपालन, दुग्ध उत्पादन एवं बटन मशरूम की खेती में कंपोस्ट बनाने की तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि बेरोजगार नवयुवक एवं युवतियां मशरूम उत्पादन कर कम लागत एवं कम स्थान में आसानी से दोगुनी आय अर्जित कर सकते हैं. साथ ही, बटन मशरूम, दूधिया मशरूम, ढिंगरी मशरूम पर विस्तृत जानकारी प्रदान की.

इस अवसर पर केंद्र के कर्मचारी निखिल सिंह, जेपी शुक्ल, बनारसी लाल, प्रिंस यादव, सूर्य प्रकाश सिंह, रंजन, राजू प्रजापति, जहीर, जितेंद्र पाल, आदित्य प्रताप सिंह आदि उपस्थित रहे.

रास नहीं आई शहर की जिंदगी, खेती को बनाया रोजगार

हाल के दशक में युवाओं का खेती में रुझान तेजी से बढ़ा है, इसलिए तमाम बड़ी डिगरियों वाले भारीभरकम तनख्वाह को छोड़ खेती की तरफ रुख मोड़ रहे हैं, जिस से ऐसे लोग नौकरियों से कई गुना ज्यादा खेती से आमदनी ले रहे हैं.

ऐसे ही एक शख्स हैं अमित विक्रम त्रिपाठी, जो सेना में 18 साल की नौकरी करने के बाद जब 36 साल की उम्र में रिटायर हुए, तो उन्होंने लखनऊ जैसे महानगर में बसने का फैसला किया और वहां पर घर बनवाने के लिए 2 प्लौट भी खरीदे, लेकिन वहां की भीड़भाड़ और भागमभाग जिंदगी को देख कर उन का मन उचट गया, इसलिए उन्होंने लखनऊ में बसने के बजाय अपने गांव में रह कर ही खेती करने का फैसला किया और आज वे खेती से न केवल लाखों रुपए की आमदनी हासिल कर रहे हैं, बल्कि दर्जनों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

जनपद बस्ती के सल्टौआ गोपालपुर ब्लौक के मनवा गांव के रहने वाले अमित विक्रम त्रिपाठी ने 17 साल की उम्र में सेना की नौकरी जौइन कर 18 वर्षों तक देश के सरहद की रक्षा की और जब उन्हें सेना से रिटायरमैंट मिला, तो उन्होंने शहर में रह कर अपने बच्चों को महानगरीय जीवनशैली में शिक्षा दिलाएंगे. लेकिन उन का मन महानगरों की जीवनशैली में नहीं लगा और अपने गांव लौट कर खेती करने का निर्णय लिया.

केले व सुगंधित धान की आमदनी से बढ़ा हौसला

गांव लौट कर उन्होंने 4 साल पहले खेती की शुरुआत केला और काला नमक धान की फसल से की, जिस में उन के 2 हेक्टेयर केले की फसल में 2 लाख रुपए की लागत आई, जबकि 2 हेक्टेयर काला नमक धान में 60,000 रुपए आई, जिस में उन्होंने लागत छोड़ कर केले की खेती से पहले साल ही लगभग 3 लाख

रुपए का मुनाफा कमाया. इस के अलावा काला नमक धान से भी 2 लाख रुपए की आमदनी हुई.

Village Farmingबढ़ी आमदनी से दूसरों को दे रहे हैं रोजगार

पहली बार में ही खेती से हुई आमदनी से अमित विक्रम त्रिपाठी का हौसला और भी बढ़ गया. इस के बाद उन्होंने काला नमक धान और केले की खेती के रकबे को तो बढ़ाया ही, साथ में शिमला मिर्च, राई सहित सब्जियों की खेती की तरफ भी कदम बढ़ाया.

इस से उन की आय में लगातार इजाफा होने लगा और वर्तमान में वे सालभर में खेती से लगभग 10 लाख रुपए की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं. इस के अलावा वे खेतों में काम करने वाले तकरीबन डेढ़ दर्जन लोगों को रोजगार दे रहे हैं.

अमित विक्रम त्रिपाठी का कहना है कि लोग गांव छोड़ कर रोजगार के लिए शहरों की तरफ भाग रहे हैं. ऐसे में शहरों पर बोझ बढ़ रहा है और गांवों में खेती बंजर होती जा रही है. अगर यही हाल रहा, तो दुनिया के सामने खाद्यान्न संकट पैदा होने में देर नहीं लगेगी.

उन का कहना है कि खेती आज के दौर में घाटे का सौदा नहीं रही है. बस जरूरत है खेती को सही ढंग से करने की. उस में उन्नत तकनीकी का उपयोग हो. साथ ही, मार्केट की भरपूर समझ हो.

उन का यह भी कहना है कि अगर खेती को सही तरीके से किया जाता है, तो नौकरियों से यह कई गुना बेहतर नतीजे दे सकती है.

जलवायु परिवर्तन में उन्नत कृषि तकनीकें अपनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी सभागार में “21वीं शताब्दी में कृषि का भविष्य” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिस में मुख्य वक्ता के रूप में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए के चांसलर डा. रोबर्ट जे. जौंस रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

इस व्याख्यान का आयोजन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस ने जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा व सतत कृषि विकास जैसे मुद्दों को चुनौतीपूर्ण बताया.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि विश्व में बढ़ती आबादी के लिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव चिंतनीय हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों से निबटने के लिए न केवल पौलिसी प्लानर, बल्कि किसानों व आम जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत है. कृषि क्षेत्र में उपयुक्त फसल, किस्म का चुनाव, कृषि पद्धतियों का सही इस्तेमाल व नवीनतम तरीके जलवायु परिवर्तन से निबटने में बेहतर भूमिका निभा सकते है. जलवायु परिवर्तन के परिवेश में छोटी जोत वाले किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्न एवं पोषण की सुरक्षा व स्थिरता को बनाए रखना जरूरी है.

Climate Changeउन्होंने आगे बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है. जलवायु परिवर्तन अब ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नही रहा, इस के मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलाव जैसे आंधी, तूफान, सूखापन, बाढ़ इत्यादि शामिल है. असमय तापमान का बढऩा कृषि उत्पादन में प्रभाव डालता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अनुकूल रणनीतियों जैसे कि बढ़ते तापमान व सूखापन के अनुकूल किस्में, मिट्टी की नमी का संरक्षण, पानी की उपलब्धता, रोगरहित किस्में, फसल विविधीकरण, मौसम का भविष्य आकंलन, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है.

आधुनिक तकनीकों से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि तीव्र गति से बढ़ रही जनसंख्या की भोजन और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना 21वीं सदी की एक प्रमुख चुनौती है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरे ने वैज्ञानिकों में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि इस से फसल उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होता है.

उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाता है, क्योंकि यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14.1 फीसदी का योगदान देता है. यह क्षेत्र राज्य की लगभग 51 फीसदी कामकाजी आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है. कृषि क्षेत्र की इस स्थिति में हरियाणा सरकार की किसान हितैषी नीतियों, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तकनीकी सहायता और नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रदेश के किसानों की इच्छा का बहुत बड़ा योगदान है.

उन्होंने कृषि विकास के लिए भविष्य की योजना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा दृष्टिकोण पर्यावरण को संरक्षित करते हुए प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादकता क्षमता को बढ़ाने का है.

उन्होंने आधुनिक तकनीकों एवं नवाचारों का प्रयोग करते हुए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता बताया.

यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के कृषि उपभोक्ता एवं पर्यावरण विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता जर्मन बालेरो ने कृषि से जुड़ी चुनौतियों जैसे फसल विविधीकरण, सतत कृषि विकास, उत्पादन में वृद्धि व पर्यावरण परिवर्तन पर चर्चा करते हुए कहा कि इन समस्याओं को प्राकृतिक खेती, कृषि से जुड़ी उच्च स्तरीय तकनीकें, उन्नत किस्में व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर हल किया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस द्वारा संयुक्त रूप से शोध कार्य कर भविष्य में कृषि के क्षेत्र में बदलाव लाया जा सकता है.

Climate Changeकृषि एवं जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. विजय सिंह ने बताया कि विश्व के सतत विकास के लिए पौष्टिक अनाज व नवीनीकरणीय ऊर्जा पर काम करने की जरूरत है. वहीं स्नाकोत्तर शिक्षा के अधिष्ठाता एवं आईडीपी के प्रमुख अन्वेशक डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मंच संचालन डा. जयंति टोकस ने किया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस के साथ शिष्टमंडल में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के वरिष्ठ कार्यकारी सहकुलपति शोध एवं नवाचार मेलैनी लूट्स, कारपोरेट एवं आर्थिक विकास मामलों के कार्यकारी सहकुलपति प्रदीप खन्ना, वाइस प्रोवोस्ट फौर ग्लोबल अफेयर एंड स्ट्रेटजी रिटूमेटसे, कृषि एवं उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. मधु खन्ना, कंप्यूटर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर
एवं एसोसिएट हेड महेश विश्वनाथन और ग्लोबल रिलेशन, इलिनोईस इंटरनेशनल के निदेशक समर जौंस मौजूद रहे.

कृषि मेले में कृषि योजनाओं की जानकारी

वाराणसी : कृषि सूचना तंत्र सुदृढ़ीकरण एवं कृषक जागरूकता कार्यक्रम के अंतर्गत जनपद वाराणसी में विकासखंड स्तरीय कृषि निवेश मेला/गोष्ठी का आयोजन पिछले दिनों बलदेव इंटर कालेज, बड़ागांव पर किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पिंडरा विधानसभा के विधायक डा. अवधेश सिंह ने किसानों को सरकार के द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

विधायक डा. अवधेश सिंह ने बताया कि पीएम कुसुम योजना बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है, जिस में किसान 10 फीसदी मार्जिन मनी देख कर सोलर पैनल लगवा सकते हैं, जिस से किसानों को फ्री में बिजली प्राप्त होगी.

Krishi Melaविधायक डा. अवधेश सिंह द्वारा किसानों को बताया गया कि खरीफ मौसम की धान की फसल की कटाई चालू हो गई है. किसान अपना धान सरकारी क्रय केंद्र पर ही बेचें, जिस से अधिक लाभ प्राप्त कर सकें. साथ में फसल बीमा करने का आह्वाहन भी किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जिला कृषि अधिकारी संगम सिंह मौर्य के द्वारा किसानों को रबी फसल गेहूं चना, मटर, सरसों की बोआई के बारे में विस्तार से बताया गया.

उन्होंने आगे कहा कि किसान बोआई करने से पहले बीज का उपचार अवश्य करें. उन्होंने 1.5 फीसदी प्रीमियम दे कर फसल बीमा कराने के लिए किसानों से आग्रह भी किया.

सहायक निदेशक मृदा परीक्षण, वाराणसी, राजेश कुमार राय के द्वारा किसानों को मिट्टी में जीवांश बढ़ाने के लिए आग्रह किया गया, जिस से मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें.

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक राहुल सिंह के द्वारा समसामयिक खेती की तकनीकी जानकारी दी गई. इस के साथ ही मत्स्य विभाग, पशुपालन विभाग, उद्यान विभाग, नेडा विभाग, जिला अग्रणी प्रबंधक, मंडी, निर्यात एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी द्वारा अपने विभाग की योजनाओं के बारे में विस्तृत चर्चा किया गया.

Krishi Melaकार्यक्रम के अंत में विधायक द्वारा ड्रोन से नैनो यूरिया के छिड़काव किए जाने की तकनीकी का आरंभ किया गया और लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड एवं सरसों की मिनीकिट वितरित की गई, जिस में किसान कृष्ण कुमार, तूफानी यादव, नंदलाल मिश्रा, सुरेश कुमार सभाजीत, कल्लू वर्मा, लाल बहादुर सिंह इत्यादि किसान उपस्थित रहे.

कार्यक्रम का संचालन सहायक विकास अधिकारी, कृषि, अशोक पाल के द्वारा किया गया, साथ में विभाग के सभी कर्मचारी उपस्थित रहे. गोष्ठी में कृषि विभाग, स्वास्थ्य विभाग, यूनियन बैंक औफ इंडिया, उद्यान विभाग, पशुपालन विभाग, मत्स्य विभाग, मंडी / निर्यात , इफको, कानपुर फर्टिलाइजर, कलश सीड, वीएनआर सीड, सौलिडेरिड, बायोशर्ट इंटरनेशनल एवं अन्य प्रमुख कंपनियों के द्वारा स्टाल का प्रदर्शन भी किया गया था.

क्या लाभकारी है काले गेहूं की खेती?

काले गेहूं के उत्पादन को ले कर देश के किसानों में आजकल होड़ लगी हुई है. न जाने कितने किसान काले गेहूं को बोने के लिए आगे आ रहे हैं और इस का बीज औनेपौने दामों में खरीद कर बोना चाहते हैं. कई किसानों ने तो जब फसल पक कर तैयार हुई थी, तभी अपने बीज बुक करा दिए थे. और अब वह बोने की तैयारी कर रहे हैं.

जिन लोगों को काले गेहूं का बीज उपलब्ध नहीं हो पाया है, वह कई गुना दामों में इस का बीज खरीद रहे हैं. कई किसान तो 3 से 4 गुना अधिक ऊंचे दाम चुका कर इस का बीज ले रहे हैं, जबकि सामान्य गेहूं बाजार में 1,600 से 1,800 रुपए प्रति क्विंटल के औसत भाव से बेचा जा रहा है.

लेकिन भेड़चाल के चलते काला गेहूं बाजार में 6,000 से 7,000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से बिकने लगा है. यहां पर ध्यान देने की बात है कि पिछले कुछ 1-2 सालों से काले गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान फूले नहीं समा रहे हैं. वहीं जानकारी के अभाव में काले गेहूं को पौष्टिक बता रहे हैं. साथ ही, किसानों की आय दोगुना करने की बातें भी कही जाने लगी हैं, जबकि गेहूं, जौ अनुसंधान निदेशालय, करनाल के वैज्ञानिकों की मानें, तो देश में काले गेहूं की कोई किस्म ही जारी नहीं हुई है.

Black Wheatजिस काले गेहूं का उत्पादन किसान कर रहे हैं, वह पीली भूरी रोली के साथसाथ कई बीमारियों का वाहक है. काले गेहूं की पौष्टिकता पर तो इस में सामान्य गेहूं की किस्मों की तुलना में न तो अधिक प्रोटीन है और न ही आयरन व जिंक की मात्रा अधिक है. इस की चपाती भी बेस्वाद कही जाती है. काले गेहूं की चपाती देखने में काली होने के कारण भी लोग इस को ज्यादा खाने में पसंद नहीं करते.

यहां पर ध्यान देने की बात यह भी है कि काले गेहूं की सचाई जानने के लिए गेहूं अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने शोध किया है. संस्थान के इस शोध में सामान्य गेहूं किस्म की तुलना में काले गेहूं में कोई अधिक पौष्टिक गुण नहीं मिले हैं.

संस्थान के निदेशक डा. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि काले गेहूं की उत्पादकता और गुणवत्ता सामान्य गेहूं से कमजोर है. उन का यह भी कहना है कि देश के किसी भी कृषि संस्थान के द्वारा काले गेहूं की कोई किस्म जारी नहीं की गई है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि काले गेहूं का बीज किसानों के पास आया तो आया कहां से? कौन इस को बायोफोर्टीफाइड बता कर लगातार बढ़ावा देने में जुटा हुआ है. अब इस बात पर भी ध्यान देना है कि इस गेहूं में अधिक गुणवत्ता न होने के कारण इस को इतना आगे कैसे बढ़ाया जा रहा है.

यहां पर ध्यान देने की बात है कि किसी भी नई किस्म का बीज भारत सरकार से अधिसूचित होने के बाद ही किसानों को उपलब्ध कराया जाता रहा है, जबकि अब तक के इतिहास में काले गेहूं की किसी भी किस्म को भारत सरकार ने अधिसूचित नहीं किया है और न ही सरकारी संस्थानों व मान्यताप्राप्त संस्थानों के द्वारा इस का बीज बेचा जा रहा है, इसलिए किसानों को सतर्क रहने की जरूरत है कि वह जब तक सरकार द्वारा अनुमोदित बीज उपलब्ध न कराया जाए, तब तक ऐसे बीजों और भ्रामक प्रचार से बचा जाना चाहिए.

काले गेहूं की सोशल मीडिया पर खूबियां

गेहूं को ले कर आई मीडिया रिपोर्ट के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक के निर्देश पर गेहूं, जौ अनुसंधान निदेशालय ने वर्ष 2018 और 2019 से 2 साल तक काले गेहूं की किस्मों पर परीक्षण किया गया.

परीक्षण के दौरान काले गेहूं की उत्पादकता सामान्य गेहूं किस्म की तुलना में काफी कम पाई गई. साथ ही, कई रोगों का प्रकोप भी इस किस्म में देखने को मिला है.

काले गेहूं की ट्रायल के मुख्य अन्वेषक डा. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि इस गेहूं पर उन के संस्थान में शोध कार्य किए जा रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो काले गेहूं का विकास पंजाब के मोहाली स्थित राष्ट्रीय कृषि खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, नाबी ने किया है. नाबी के पास इस का पेटेंट भी है.

अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार के अधिसूचित किए बिना इस संस्थान ने काले गेहूं की किस्म का बीज किसानों को कैसे पहुंचा दिया.

छोटे किसानों पर भी पड़ता है माली बोझ

आय बढ़ाने के फेर में लघु व सीमांत किसान काले गेहूं की खेती करने के लिए लालायित हैं, लेकिन किसानों को यह नहीं पता कि कृषि उपज मंडियों में काले गेहूं का कोई खरीदार नहीं है. ऐसे में लघु व सीमांत श्रेणी के किसानों को समझदारी से काम लेने की जरूरत है. हालात कहीं ऐसे न हो जाएं कि वे घर के रहें न घाट के.

गौरतलब है कि प्रदेश के लघु व सीमांत श्रेणी के किसानों के पास 4 से 5 बीघा कृषि जोत है. ऐसे में महंगा बीज खरीद कर किसानों ने काले गेहूं की खेती कर भी ली, लेकिन बाजार में नहीं बिकने के कारण उन को माली नुकसान हो सकता है. किसानों को इस बात पर ध्यान देना है कि वे ऐसे बीजों की ही बोआई करें, जिस की बाजार में मांग अच्छी हो और उचित कीमत मिल रही हो. वे ऐसी फसलों को न बोएं, जिस को बेचने में काफी दिक्कत होती हो.

Black Wheatआखिर कितनी है पौष्टिकता

लैब में चले शोध के उपरांत पाया गया है कि काले गेहूं की पौष्टिकता और गुणवत्ता पर भी गेहूं, जौ अनुसंधान निदेशालय, करनाल में संचालित किया गया है. संस्थान के वैज्ञानिक डाक्टर सेवाराम के अनुसार, काले गेहूं की गुणवत्ता जांच में कुछ ऐसे तत्त्व सामने नहीं आए हैं, जिस से कहा जा सके कि काले गेहूं में पौष्टिक तत्त्वों की भरपूर मात्रा उपलब्ध है. उन का मानना है कि काले गेहूं में प्रोटीन, आयरन व जिंक सहित दूसरे पोषक तत्त्वों की मात्रा सामान्य गेहूं की किस्मों की तुलना में काफी कम पाई गई है.

काले गेहूं को ले कर सोशल मीडिया पर प्रचार

गेहूं को ले कर पिछले साल से तरहतरह के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन यह दावे हकीकत से बहुत दूर हैं. इस से किसानों की लागत में इजाफा हो रहा है. साथ ही, जानकारी की कमी में उपभोक्ताओं को भी माली नुकसान उठाना पड़ रहा है.

ऐसे में प्रदेश के किसानों के साथसाथ मीडिया वालों और वक्ताओं को भी समझदारी से काम लेने की जरूरत है और हकीकत को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए मीडिया वालों को भी काम करना होगा.

काले गेहूं को ले कर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है. काले गेहूं की कोई किस्म देश के किसानों के लिए अधिसूचित नहीं हुई है. इस में कोई विशेष प्रकार के पोषक तत्त्व भी नहीं पाए गए हैं.

इतना ही नहीं, काले गेहूं के बारे में आईआईटीडब्ल्यूबीआर, करनाल में रिसर्च हुई है, जिस में तीनों वैरायटी गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतर पाई है. इस पर अभी आगे भी रिसर्च जारी है.

यदि यह वैरायटी पौष्टिकता में अच्छी पाई गई, तो यकीनन किसानों तक इस की जानकारी भविष्य में दी जाएगी, लेकिन अभी तक के अनुसंधान में उसे सामान्य गेहूं की प्रजाति की तुलना में कोई अधिक पौष्टिकता के गुण नहीं पाए गए हैं.

एक्वेरियम में ऐसे रखें रंगीन मछलियां

एक्वेरियम में रंगीन मछलियों को रखना और उस का पालन एक दिलचस्प काम है, जो न केवल घर की खूबसूरती बढ़ाता है, बल्कि मन को भी शांत करता है. रंगीन मछलियां व एक्वेरियम व्यवसाय स्वरोजगार के जरीए पैसे बनाने के मौके भी मुहैया कराता है.

दुनियाभर में 10-15 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर के साथ रंगीन मछलियों व सहायक सामग्री का कारोबार 8 बिलियन डौलर से ज्यादा का है. इस में भारत की निर्यात क्षमता 240 करोड़ रुपए प्रति वर्ष है. दुनियाभर की विभिन्न जलीय पारिस्थितिकी से तकरीबन 600 रंगीन मछलियों की प्रजातियों की जानकारी हासिल है.

भारत सजावटी मछलियों के मामले में 100 से ऊपर देशी प्रजातियों के साथ बहुत ज्यादा संपन्न है. साथ ही, विदेशी प्रजाति की मछलियां भी यहां पैदा की जाती हैं. शहरों व कसबों में रंगीन मछलियों को एक्वेरियम में रखने का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है.

रंगीन मछलियों को शीशे के एक्वेरियम में पालना एक खास शौक है. रंगबिरंगी मछलियां बच्चे व बूढ़े सभी का मन मोह लेती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि रंगीन मछलियों के साथ समय बिताने से ब्लडप्रैशर कंट्रोल में रहता है और दिमागी तनाव कम होता है.

आजकल एक्वेरियम को घर में सजाना लोगों का एक प्रचलित शौक हो गया है. रंगीन मछलियों के पालन व एक्वेरियम बनाने की तकनीकी जानकारी से अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है.

बहुरंगी मछलियों की प्रजातियां

देशी और विदेशी मीठे जल की बहुरंगी मछलियों की प्रजातियों की मांग ज्यादा रहती है. व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उन का प्रजनन और पालन भी आसानी से किया जा सकता है. व्यावसायिक किस्मों के तौर पर आसानी से उत्पादन की जा सकने वाली रंगीन मछलियों की प्रजातियां निम्न हैं :

बच्चे देने वाली मछलियां

गप्पी (पोयसिलिया रेटिकुलेटा), मोली (मोलीनेसिया स्पीशिज) और स्वार्ड टेल (जीफोफोरस स्पीशिज).

अंडे देने वाली मछलियां

गोल्ड फिश (कैरासियस ओराट्स), कोई कौर्प (सिप्रिनस कौर्पियो की एक किस्म), जैब्रा डेनियो (ब्रेकिडेनियो रेरियो), ब्लैक विडो टैट्रा (सिमोक्रो-सिंबस स्पीशिज), नियोन टैट्रा (हीफेसो-ब्रीकोन इनेसी), सर्पी टैट्रा (हाफेसोब्रीकौन कालिसट्स) व एंजिल वगैरह.

एक्वेरियम तैयार करने के लिए जरूरी सामग्री

एक्वेरियम तैयार करने के लिए निम्न सामग्री की जरूरत होती है :

5-12 एमएम की मोटाई का फ्लोट गिलास नाप के मुताबिक कटा हुआ. एक्वेरियम के सही आकार का ढक्कन, जरूरत के मुताबिक और मजबूत तकरीबन 30 इंच ऊंचाई वाला स्टैंड, सिलिकौन सीलेंट, पेस्टिंग गन, छोटेछोटे रंगबिरंगे पत्थर, जलीय पौधे (कृत्रिम या प्राकृतिक), एक्वेरियम के बैकग्राउंड के लिए रंगीन पोस्टर, सजावटी खिलौने व डिफ्यूजर स्टोन, थर्मामीटर व थर्मोस्टेट, फिल्टर उपकरण, एयरेटर व वायु संचरण की नलिकाएं, क्लोरीन फ्री स्वच्छ जल, रंगीन मछलियां पसंद के मुताबिक, मछलियों का भोजन जरूरत के अनुसार, हैंड नैट, बालटी, मग व साइफन नलिका, स्पंज वगैरह.

एक्वेरियम कहां रखें?

एक्वेरियम रखने की जगह समतल होनी चाहिए और धरातल मजबूत होना चाहिए. लोहे या लकड़ी के बने मजबूत स्टैंड या टेबल का इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां एक्वेरियम रखना है, वहां बिजली का इंतजाम भी जरूरी है. ध्यान रहे कि एक्वेरियम पर सूरज की सीधी रोशनी न पड़े, वरना उस में काई जमा हो सकती है.

एक्वेरियम कैसा हो?

एक्वेरियम को खुद बनाने में सावधानी की जरूरत होती है. पौलिश किए हुए शीशे की प्लेट को सीलेंट से जोड़ कर आप एक्वेरियम बना सकते हैं.

बाजार में मुहैया एक्वेरियम विक्रेता से अपनी पसंद का एक्वेरियम भी खरीद सकते हैं. आमतौर पर घरों के लिए एक्वेरियम 60×30×45 सैंटीमीटर लंबाई, चौड़ाई व ऊंचाई की मांग ज्यादा रहती है.  शीशे की मोटाई 5-6 मिलीमीटर होनी चाहिए. इस से बड़े आकार का एक्वेरियम बनाने के लिए मोटे शीशे का इस्तेमाल करना चाहिए.

एक्वेरियम को ढकने के लिए फाइबर या लकड़ी के बने ढक्कन को चुन सकते हैं. ढक्कन के अंदर एक बल्ब व ट्यूबलाइट लगी होनी चाहिए. 40 वाट के बल्ब की रोशनी एक साधारण एक्वेरियम के लिए सही है.

Fishएक्वेरियम को कैसे सजाएं?

एक्वेरियम को खरीदने के बाद उसे सजाने से पहले अच्छी तरह साफ  कर लेना चाहिए. साफ करने के लिए साबुन या तेजाब का इस्तेमाल न करें. एक्वेरियम को रखने की जगह तय कर के उसे एक मजबूत स्टैंड पर रखना चाहिए. एक्वेरियम के नीचे एक थर्मोकौल शीट लगानी चाहिए. इस के बाद पेंदे में साफ बालू की 1-2 इंच की मोटी परत बिछा देते हैं और उस के ऊपर छोटेछोटे पत्थर की एक परत बिछा दी जाती है.

पत्थर बिछाने के साथ ही थर्मोस्टेट, एयरेटर व फिल्टर को भी लगा दिया जाता है. एक्वेरियम में जलीय पौधे लगाने से टैंक खूबसूरत दिखता है.

बाजार में आजकल तरहतरह के कृत्रिम पौधे मुहैया हैं. एक्वेरियम को आकर्षक बनाने के लिए तरहतरह के खिलौने अपनी पसंद से लगाए जा सकते हैं.

एक्वेरियम में भरा जाने वाला पानी क्लोरीन से मुक्त होना चाहिए, इसलिए यदि नल का पानी हो तो उसे कम से कम एक दिन संग्रह कर छोड़ देना चाहिए और फिर उस पानी को एक्वेरियम में भरना चाहिए.

एक्वेरियम में कितनी मछलियां रखें?

एक्वेरियम तैयार कर अनुकूलित करने के बाद उस में अलगअलग तरह की रंगबिरंगी मछलियां पाली जाती हैं. रंगीन मछलियों की अनेक प्रजातियां हैं, पर इन्हें एक्वेरियम में एकसाथ रखने के पहले जानना जरूरी है कि यह एकदूसरे को नुकसान न पहुंचाएं. छोटी आकार की मछलियां रखना एक्वेरियम के लिए ज्यादा बेहतर माना जाता है, जिन के नाम निम्नलिखित हैं:

ब्लैक मोली, प्लेटी, गप्पी, गोरामी, फाइटर, एंजल, टैट्रा, बार्ब, औस्कर, गोल्ड फिश.

इन मछलियों के अतिरिक्त कुछ देशी प्रजातियां हैं, जिन को भी एक्वेरियम में रखा जाने लगा है. जैसे लोच, कोलीसा, चंदा, मोरुला वगैरह. आमतौर पर 2-5 सैंटीमीटर औसतन आकार की 5-10 मछलियां प्रति वर्गफुट जल में रखी जा सकती हैं.

एक्वेरियम प्रबंधन के लिए जरूरी बातें

थर्मोस्टेट द्वारा पानी का तापमान 240 सैल्सियस से 280 सैल्सियस के बीच बनाए रखें. 8-10 घंटे तक एयरेटर द्वारा वायु प्रवाह करना चाहिए. पानी साफ रखने के लिए मेकैनिकल व जैविक फिल्टर का इस्तेमाल करना चाहिए.

एक्वेरियम में उपस्थित अनावश्यक आहार, उत्सर्जित पदार्थों को प्रति सप्ताह साइफन द्वारा बाहर निकालते रहना चाहिए. कम हुए पानी के स्थान पर स्वच्छ पानी भरना चाहिए.

यदि कोई मछली मर जाती है, तो उसे तुरंत निकाल दें और यदि कोई मछली बीमार हो, तो उस का उचित उपचार भी करना चाहिए.

एक्वेरियम कारोबार से अनुमानित आमदनी

रंगीन मछलियों के पालन व एक्वेरियम निर्माण से अच्छी आमदनी की जा सकती है. इस के लिए मुख्यत: निम्न आयव्यय का विवरण दिया जा रहा है. समय, जगह व हालात में इस में बदलाव हो सकता है :

स्थायी लागत

शैडनैट (500 वर्गफुट), छायादार जगह (100 वर्गफुट), फाइबर व सीमेंट की टंकियां (10-15), एयर कंप्रैसर और वायु नलिकाएं, औक्सीजन सिलैंडर-1, विद्युत व जल व्यवस्था व अन्य खर्च 1,25,000 रुपए.

कार्यशील पूंजी

शिशु मछलियां (6,000), प्रबंधन खर्च, बिजली, पानी, मत्स्य आहार, एक्वेरियम निर्माण व सहायक सामग्री, स्थायी लागत पर ब्याज व अन्य खर्चे 1,65,000 रुपए.

आय

मछलियां (10,000 × 20 रुपए), एक्वेरियम टैंक व सहायक सामग्री (120 × 2500 रुपए), बेचे गए एक्वेरियम टैंकों की वार्षिक मेंटेनैंस 1200 रुपए टैंक, कुल आय तकरीबन रुपए 5,80,000-6,40,000 रुपए, शुद्ध आय तकरीबन 3,55,000 से 4,15,000 रुपए प्रति वर्ष हासिल की जा सकती.

कृषक समाज के सतत विकास राष्ट्रीय सम्मेलन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी)-आईडीपी प्रोजैक्ट के तहत “कृषक समाज के सतत विकास एवं सामाजिकआर्थिक उत्थान” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन का पिछले दिनों समापन हुआ, जिस में बतौर मुख्यातिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि परिवार समाज का सब से छोटा हिस्सा है, इसलिए उस के सतत विकास के लिए उन्हें नई जानकारियां, नवाचारों व प्रौद्योगिकियों के प्रति प्रोत्साहित करना अनिवार्य है. इसी प्रकार देश के उत्थान में कृषक समाज का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए देश को विकास की पटरी पर लगातार बनाए रखने के लिए इन का उत्थान बहुत जरूरी है, लेकिन नई तकनीकों कों किसानों व समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचाना एक चुनौती भरा काम है. इस प्रक्रिया में समाजशास्त्र से जुड़े विशेषज्ञ महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि यदि नई तकनीकों को ईजाद करने वाले विभाग और समाजशास्त्री एकसाथ मिल कर काम करेंगे, तो इस के बहुत ही सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे.

मुख्यातिथि बीआर कंबोज ने आंकड़ा प्रबंधन व विश्लेषण को भी अहम बताते हुए कहा कि इस से हर जगह से मिल रही जानकारियों को दुरुस्त व त्रुटिरहित समाज तक पहुंचाया जा सकता है. इस के लिए सरकारी व गैरसरकारी शिक्षण शोध संस्थानों को एक मंच पर आ कर एकजुटता के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए. वर्तमान समय में खेती पर जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम बढ़ रहे हैं. इन्हीं चुनौतियों से निबटने के लिए विभिन्न नवीनतम एवं उन्नत सस्य क्रियाएं मदद कर सकती हैं.

इस अवसर पर कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन में प्रस्तुत की गई मौखिक व पोस्टर प्रस्तुतियों के विजेता रहे प्रतिभागियों को पुरस्कृत कर उन का उत्साहवर्धन किया.

समाजशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डा. विनोद कुमारी, सम्मेलन की आयोजक सचिव डा. जतेश काठपालिया व डा. रश्मि त्यागी ने दोदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन की तमाम गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट पेश की.

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता व एनएएचईपी-आईडीपी प्रोजैक्ट के नोडल अधिकारी डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

इस कार्यशाला में मंच का संचालन डा. रिजुल सिहाग ने किया. हकृवि में आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन दौरान हुई पोस्टर व मौखिक प्रस्तुतियों के पोस्टर प्रस्तुतीकरण में प्रथम पुरस्कार अन्नू, निशा, मोनिका, एकता, प्रियंका भाटी, रमेश चंद्र, व विक्रांत हुड्डा ने प्राप्त किया, जबकि द्वितीय पुरस्कार काव्या सहराव, हेमंत कुमार व अन्नू ने प्राप्त किया, वहीं तृतीय पुरस्कार के विजेता प्रीति रानी व प्रियंका रहे, जबकि ज्योति सिहाग, युगुम ढींगड़ा, स्वाति, कीर्ति, प्रियंका ने सांत्वना पुरस्कार जीता.

इसी प्रकार विभिन्न विषयों में आयोजित मौखिक प्रस्तुतियों में मंजु कुमार राठौर, सुनिधि पिलानियां, कोथा सरामाती, आयुशी, रितू छिकारा, इंदु, सीफती, प्रीति, जोन, मोनिका शर्मा, प्रीति नैन, गायत्री पिला व सुभाष ने बेहतरीन प्रदर्शन कर उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किया.