Training : किसानों ने लिया बीज उत्पादन प्रशिक्षण

Training |  मधेपुरा, बिहार से आए 40 किसानों ने भाकृअनुप-राष्ट्रीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुशमौर, मऊ में आयोजित 18 मार्च से 22 मार्च, 2025 तक चलने वाले 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया. डा. संजय कुमार, निदेशक के मार्गदर्शन में ‘खेतीय फसलों और सब्जियों में गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन’ विषय पर आधारित इस कार्यक्रम की शुरुआत 18 मार्च, 2025 को हुई.

इस कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुआ. कार्यक्रम में भाग ले रहे किसानों ने अपना परिचय देते हुए बताया कि मधेपुरा, बिहार में विभिन्न खाद्यान्न फसलों के साथ मक्का, केला, पपीता और सब्जियों की खेती भी की जाती है.

प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह ने  मधेपुरा से आए किसानों से कहा कि किसानों को फसलों की नई किस्मों की खेती करनी चाहिए, न कि पुराने किस्मों पर ही निर्भर रहना चाहिए. बीज बाजार में बीजों की अत्यधिक मांग के अनुपात में अपेक्षाकृत कम आपूर्ति को देखते हुए यह जरूरी है कि  किसान को स्वयं बीज उत्पादित करना चाहिए.

उन्होंने संस्थान की उपलब्धियों के बारे में जानकारी देते हुए किसानों को प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए शुभकामनाएं दीं. इस  कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. कल्याणी कुमारी  ने बीज प्रमाणीकरण में शामिल प्रक्रियाएं, महत्वपूर्ण फसलों के प्रक्षेत्र और बीज मानक से संबंधित जानकारी किसानों को दी. साथ ही, बीज प्रयोगशाला में उस विषय पर व्यावहारिक सत्र भी आयोजित किया.

वैज्ञानिक डा. विनेश बनोथ ने किसानों को प्रमुख फसलों में संकर बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी के बारे में बताया. प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयन डा. अंजनी कुमार सिंह, डा. आलोक कुमार, डा. पवित्रा वी. एवं पी. शिवम्मा कर रहे थे.

Mobile App : मत्स्यपालन मोबाइल ऐप शुरू, मत्स्यपालकों को होगा फायदा

Mobile App|  मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने मत्स्यपालन क्षेत्र में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिए हैदराबाद, तेलंगाना में बीते दिनों 8 मार्च, 2025 को मत्स्यपालन स्टार्टअप कौन्क्लेव 2.0 का आयोजन किया.

इस कार्यक्रम में राजीव रंजन सिंह, केंद्रीय मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज मंत्रालय, प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल, राज्य मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज मंत्रालय भी शामिल हुए.

कार्यक्रम में भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी के साथसाथ प्रो. रमेश चंद, सदस्य, नीति आयोग, भारत सरकार और श्याम सिंह राणा, मत्स्यपालन मंत्री, हरियाणा भी शामिल हुए.

कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राष्ट्रीय मत्स्यपालन डिजिटल प्लेटफौर्म मोबाइल ऐप्लीकेशन लौंच किया. गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध यह ऐप स्टार्टअप्स को विभिन्न मौड्यूल और योजना के लाभों तक पहुंचने के लिए एक सहज इंटरफेस प्रदान करेगा.

इस के अलावा केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन और संबद्ध क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के लिए 1 करोड़ रुपए की निर्धारित निधि के साथ मत्स्यपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज 2.0 का भी अनावरण किया. 10 विजेता स्टार्टअप को मत्स्यपालन और जलीय कृषि में उत्पादन दक्षता और स्थिरता बढ़ाने के लिए अभिनव समाधान विकसित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन सहायता प्राप्त होगी.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए स्टार्टअप की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. स्टार्टअप विशेष रूप से युवाओं के लिए रोजगार में मददगार होते हैं, इसलिए भारत सरकार हर संभव तरीके से स्टार्टअप का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है.

इस अवसर पर उन्होंने स्टार्टअप से आगे बढ़ कर निर्यात बढ़ाने के लिए मूल्य संवर्धन, उन्नत प्रौद्योगिकी समाधान, टूना क्षमता का उपयोग करने के लिए अंडमान एवं निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीप विकास, औनबोर्ड प्रसंस्करण इकाइयों के साथ उच्च समुद्र और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जहाजों के उन्नयन आदि के क्षेत्रों में योगदान देने का आग्रह किया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने स्टार्टअप्स को मत्स्यपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज 2.0 में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जिस का उद्देश्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देना है.

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उन्होंने स्टार्टअप्स से मत्स्यपालन अवसंरचना विकास कोष और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने का भी आग्रह किया, ताकि उन की वृद्धि और विकास को समर्थन मिल सके.

इस कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने जलीय कृषि, मूल्य श्रृंखला आधुनिकीकरण और टिकाऊ मत्स्यपालन में उन की परियोजनाओं को मान्यता देने के लिए 33.46 करोड़ रुपए की कुल परियोजना लागत के साथ 8 चयनित मत्स्यपालन स्टार्टअप/ उद्यमी/ एफएफपीओ को पीएमएमएसवाई के तहत उद्यमी मौडल स्वीकृति मिली.

पुरस्कार विजेताओं में मध्य प्रदेश के संतोख सिंह व अवतार सिंह को मीठे पानी की मछली की खेती के लिए, नए ग्रोआउट तालाब और बायोफ्लोक टैंक बनाने के लिए, ओडिशा के एमआर एक्वाटैक को एफआरपी कार्प हैचरी, पानी की टंकी, नाव और मछलीघर टैंकों के बनाने के लिए, उत्तर प्रदेश की पीवीआर एक्वा प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड को कार्प मछली की खेती और जीवित मछली की बिक्री के लिए, गुजरात के कृष्ण नरेशभाई धिम्मर को एकीकृत मत्स्य प्रवाह के लिए, छत्तीसगढ़ के मैसर्स मंडल मनीत एक्वा जेनेटिक्स टैक्नोलौजी रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड को तिलापिया (ओरियोक्रोमिस निलोटिकस) के लिए आनुवंशिक सुधार केंद्र की स्थापना के लिए, गुजरात के मेसर्स औस्को इंडिया मरीन प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को पारंपरिक झींगापालन को एक टिकाऊ सुपर गहन परिशुद्धता खेती मौडल में बदलने के लिए, आंध्र प्रदेश की विनीशा वलसराज को रोगजनक मुक्त रेत के कीड़ों के उत्पादन के लिए और महाराष्ट्र के मैसर्स संजीवनी मत्स्य विकास सोसाइटी शामिल हैं.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने सभी महिला उद्यमियों को आगे आने और 300 से अधिक मत्स्यपालन स्टार्टअप इकोसिस्टम का एक अभिन्न अंग बनने के लिए प्रोत्साहित किया.

इस कार्यक्रम में नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने स्टार्टअप को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि आने वाला भविष्य विचारों और प्रौद्योगिकी व्यवधानों से प्रेरित होगा. उन्होंने स्टार्टअप से प्रसंस्कृत मछली के निर्यात को बढ़ावा देने, आपूर्ति श्रृंखला को सही करने, उपभोक्ताओं के लिए लागत कम करने और उत्पादक राजस्व बढ़ाने के लिए मूल्य संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया.

मत्स्य विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने मत्स्यपालन स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयासों पर जोर दिया. उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकियों के बारे में जागरूकता लाने के लिए मत्स्य मंथन श्रृंखला में स्टार्टअप की भागीदारी की तारीफ की.

उन्होंने शोध संस्थानों से आग्रह किया कि वे नवाचारों का व्यवसायीकरण करें और सभी स्टार्टअप्स को बढ़ावा दें, जिन में प्रारंभिक चरण में या अप्रमाणित स्टार्टअप्स भी शामिल हैं. आईसीएआर सीआईएफटी के निदेशक जौर्ज निनान ने अपने 8 शोध संस्थानों के माध्यम से लाइसैंसिंग, इनक्यूबेशन, प्रोटोटाइपिंग और व्यावसायीकरण में स्टार्टअप के लिए आईसीएआर के समर्थन पर प्रकाश डाला.

मुख्य केंद्र बिंदु वाले क्षेत्रों में मछली प्रसंस्करण उपकरण, सौर ऊर्जा से चलने वाली नावें, मूल्य संवर्धन, मछली पकड़ने का सामान, जलवायु स्मार्ट जलीय कृषि, पोषक तत्वों से भरपूर फीड और नैनो प्रौद्योगिकी उपयोग शामिल हैं.

Water Productivity : खेती में पानी की उत्पादकता बढ़ाने पर प्रशिक्षण

Water Productivity| पानी की कमी को ले कर बीते 3 मार्च, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा संचालित अखिल भारतीय समन्वित सिंचाई जल प्रबंधन अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत कृषि अनुसंधान उपकेंद्र, वल्लभनगर पर खेती में पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए 2 दिवसीय किसान प्रशिक्षण का शुभारंभ केंद्र के प्रभारी अधिकारी एवं परियोजना अधिकारी प्रोफैसर केके यादव ने किया.

प्रोफैसर केके यादव ने ‘फव्वारा पद्वति से सिंचाई’ विषय पर किसानों को सिंचाई जल की बचत करते हुए फसलों की पैदावर बढ़ाने के तरीकों पर विस्तृत जानकारी दी. कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के उद्यानिकी प्रोफैसर श्रीधर सिंह लखावत ने ‘फलदार पौधों में ड्रिप पद्यति से सिंचाई’ विषय पर किसानों को जानकारी दी एवं गरमी के मौसम में फलदार पौधो में सिंचाई जल की आवश्यकता एवं उन के रखरखाव पर प्रकाश डाला.

प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर के तकनीकी सहायक दामिनी आर्य ने सिंचाई जल की प्रयोगशाला जांच करवाने पर अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम के अंत में केंद्र के फार्म मैनेजर धनपाल कोठारी, मनीश उज्ज्वल, सेवानिवृत्त कृषि अधिकारी नाथुलाल कुम्हार ने भी सिंचाई जल प्रबंधन पर अपने विचार रखे.

Jiji Bai : बाड़मेर की ‘जीजी बाई’ ने बनाई ग्लोबल पहचान

Jiji Bai| : थार रेगिस्तान को दुनिया के औयल मैप पर लाने वाले बाड़मेर के तेल क्षेत्रों के नाम अब एक और उपलब्धि जुड़ गई है. यहां के औयल फील्ड्स के सुदूर गांवों में बसी महिलाएं अपने कौशल से देशविदेश में जानी जा रही हैं. इसी कड़ी में अब जीजी बाई स्वयं सहायता समूह का नाम जुड़ गया है. उन के द्वारा बाड़मेर में तैयार मिलेट कुकीज यानी बाजरे के बिसकुट्स अब लंदन तक प्रसिद्ध हो चुके हैं.

‘विश्व महिला दिवस’ की पूर्व संध्या पर जीजी बाई कुकीज को ग्लोबल मार्केट से जोड़ने के लिए क्यूआर कोड मार्केटिंग की शुरुआत मंगला प्रोसैसिंग टर्मिनल के ली कैफे से की गई.

जीजी बाई के उत्पादों की सफलता को देखते हुए उन्हें हाल में दिल्ली में आयोजित इंडिया एनर्जी वीक में केयर्न, वेदांता के प्रदर्शनी स्थल में शामिल किया गया था. वहां उन के कौशल की तारीफ हुई और लोगों ने उन के बनाए उत्पादों को खूब पसंद किया. उन की सफलता की कहानियां अब देश के दूसरे क्षेत्रों में लोगों के लिए प्रेरणा बन रही हैं.

भारत की डायरेक्टर जनरल हाइड्रोकार्बन डा. पल्लवी जैन गोविल ने जीजी बाई के कार्यों की तारीफ करते हुए उन्हें दिल्ली भ्रमण का न्योता दिया.

इस से पूर्व जयपुर में हुए जयगढ़ फैस्टिवल और जयपुर लिटरेचर फैस्टिवल में भी जीजी बाई स्वयं समूह ने विदेशी मेहमानों की भरपूर प्रशंसा बटोरी. उन्हें अब लंदन स्थित प्रशंसकों से और्डर मिलने शुरू हो गए हैं.

बाड़मेर की इन महिलाओं का कौशल सिर्फ मिलेट कुकीज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि डेयरी और कृषि क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी अलग जगह बनाई है. ब्रह्माणी सेल्फ हेल्प ग्रुप के अंतर्गत बनी डेयरी प्रोडक्ट्स और हस्तशिल्प वस्तुएं लोगों को खूब पसंद आ रही हैं. केयर्न एंटरप्राइज सैंटर से बैंकिंग, ब्यूटीशियन, ग्रूमिंग आदि स्किल्स निखार कर वे आत्मनिर्भर बनी हैं और अपने कौशल से गांव का नाम रोशन कर रही हैं.

International Women’s Day : कृषि महिला सशक्तीकरण के लिए प्रशिक्षण

International Women’s Day| भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI), नई दिल्ली ने उन्नत भारत अभियान और नई विस्तार पद्धतियों और दृष्टिकोण परियोजनाओं के तहत बीते 8 मार्च, 2025 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने और कृषि महिला सशक्तीकरण में तेजी लाने के लिए कृषि महिलाओं के लिए प्रशिक्षण सहप्रायोगिक खेत में क्षेत्र भ्रमण आयोजित किया.

इस कार्यक्रम में कृषि में महिलाओं के योगदान और टिकाऊ खेती के तरीकों में उन की भागीदारी बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और हितधारक एकसाथ आए.

इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले और उत्तराखंड के रुद्रपयाग जिले की महिला किसानों के साथसाथ आईएआरआई के वैज्ञानिकों और छात्रों सहित 75 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व के साथसाथ नेमा, उन्नत भारत अभियान, फार्मर्स फर्स्ट, मौडल विलेज और आईएआरआई स्वैच्छिक संगठन आधारित साझेदारी कार्यक्रम जैसी विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से महिला सशक्तीकरण की दिशा में आईएआरआई के प्रयासों पर प्रकाश डाला गया.

वाणिज्यिक फूलों की खेती, एकीकृत फार्मिंग प्रणाली, संरक्षित खेती, पोषण और महिला सशक्तीकरण, पोषण हस्तक्षेप के साथसाथ फसल विविधीकरण के माध्यम से आय और रोजगार सृजन के प्रमुख मुद्दों पर भी चर्चा की गई. महिला किसानों और प्रतिनिधियों ने कृषि क्षेत्र में अपने अनुभव और योगदान साझा किए.

संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पडारिया ने प्रौद्योगिकी और संस्थागत नवाचारों के माध्यम से महिला सशक्तीकरण पर विचार रखे और कृषि में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए क्षमता निर्माण, नैटवर्किंग, नवाचारों के अनुप्रयोग और बालिका शिक्षा पर जोर दिया.

डा. मनजीत सिंह नैन, डा. मार्कंडेय सिंह, डा. सुभाश्री साहू, डा. सुकन्या बरुआ, डा. नफीस अहमद, डा. हेमलता, डा. अलका जोशी, डा. एनवी कुंभारे, डा. पुनीता, डा. मीशा माधवन ने महिला उद्यमियों की सफलता की कहानियों के माध्यम से प्रतिभागियों को शिक्षित किया. बाद में महिलाओं को वाटिका बागबानी और पोषण सुरक्षा के लिए पूसा सब्जी बीज किट प्रदान की गई. मथुरा के परियोजना गांवों की महिला किसानों को सीधी बीजाई और श्रीविधि द्वारा धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए धान की गुणवत्ता वाले बीज दिए गए.

Spice Crops : खेती और प्रोसैसिंग से मिलेगी अधिक आमदनी

Spice Crops| प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा पांचदिवसीय किसान प्रशिक्षण “मसाला फसलों की खेती एवं प्रसंस्करण” विषय पर बीते 3 मार्च से 7 मार्च, 2025 को आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के समापन समारोह के मुख्य अतिथि डा. आरएल सोनी, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में प्रशिक्षणार्थियों को मसाला फसलों की खेती एवं प्रसंस्करण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मसाला फसलों की खेती की लोकप्रियता के पीछे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इन के उत्पादन में कई अन्य कृषि फसलों की तुलना में कम सिंचाई जल एवं पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. साथ ही, यह किसानों के लिए अधिक आय अर्जित करने का एक अच्छा विकल्प है. मसाला फसलों के साथसाथ फल एवं सब्जियों का उत्पादन कर अतिरिक्त आमदनी भी ले सकते हैं.

समारोह के विशिष्ट अतिथि डा. एसके इंटोदिया, प्राध्यापक ने किसानों से आह्वान किया कि वे प्रशिक्षण के बाद एफपीओ का गठन करे और इस के माध्यम से अधिक आय प्राप्त करें. फसल को कटाई के बाद बेचने के मुकाबले ग्रेडिंग, क्लीनिंग, पैकेजिंग एवं प्रोसैसिंग से ज्यादा मुनाफा ले पाएंगे.

डा. लतिका व्यास, प्रशिक्षण प्रभारी ने बताया कि उक्त प्रशिक्षण कृषि विभाग आत्मा, मंदसौर (मध्य प्रदेश) द्वारा प्रायोजित था, जिस में मंदसौर जिले के विभिन्न गांवों से 60 किसानों ने भाग लिया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा कृषि विषयों पर तकनीकी जानकारी दी गई.

प्रशिक्षणार्थियों को विश्वविद्यालय की विभिन्न सजीव इकाइयों जैसे जैविक इकाई, पौलीहाउस, मुरगीपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन आदि के साथसाथ संग्रहालय भ्रमण एवं फिल्म शो कराया गया और तकनीकी जानकारी दी गई.

प्रशिक्षण समापन के दौरान प्रशिक्षणार्थियों से प्रश्नोत्तरी की गई, जिस में प्रथम, द्वितीय व तृतीय को पुरस्कार एवं सभी प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार एवं प्रमाणपत्र मुख्य अतिथि द्वारा दिए गए.

International Women’s Day : जल प्रौद्योगिकी केंद्र द्वारा कार्यशाला

International Women’s Day| कृषि क्षेत्र की महिलाओं को अधिक कार्यभार (घरेलू और कृषि कार्य दोनों), कुपोषण, निर्णय लेने के अवसर की कमी, दूरदराज के स्थानों से पानी इकट्ठा करने में कठिनाई, मैनुअल फील्ड औपरेशन जैसे निराई, इंटरकल्चरल औपरेशन, कटाई आदि में भाग लेने के दौरान लंबे समय तक काम करने में बहुमुखी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन से ये चुनौतियां और अधिक बढ़ रही हैं.

बीते 8 मार्च, 2025 को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ (International Women’s Day) के अवसर पर भारत में ग्रामीण महिलाओं की वर्तमान स्थिति और सामान्य रूप से कृषि क्षेत्र और विशेष रूप से जल प्रबंधन में उन के सामने आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना प्रासंगिक है. इस के अलावा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2025 पर केंद्रीय विषय के दर्शन को समझते हुए कार्यवाही में तेजी लाने के लिए हमें सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और नीतियों के माध्यम से महिलाओं के सशक्तीकरण को तेज करने के अपने प्रयासों को मजबूत करना चाहिए.

जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भाकृअनुप- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (आरपीसीएयू), बिहार द्वारा जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन पर विकसित विश्वसनीय प्रौद्योगिकियां इस संदर्भ में कृषि महिलाओं को लाभान्वित करने में अधिक सहायक होगी.

8 मार्च 2025 को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भाकृअनुप- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार द्वारा संयुक्त रूप से जल प्रौद्योगिकी केंद्र के सभागार में “सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और नीतियों के माध्यम से महिलाओं का त्वरित सशक्तीकरण” पर विचारमंथन कार्यशाला का आयोजन किया गया था.

कार्यशाला के मुख्य उद्देश्य (क) जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में कृषि जल प्रबंधन में ग्रामीण महिलाओं के सामने आने वाली वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण करना, (ख) सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और नीतियों के एकीकरण के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण में तेजी लाना था.

कृषि क्षेत्र में सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन के लिए तकनीकी और नीति विकल्पों के रूप में कार्यशाला के अपेक्षित परिणाम संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 6 (सभी के लिए पानी और स्वच्छता की उपलब्धता और सतत प्रबंधन सुनिश्चित करना) है.

इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो (एनबीएसएस व एलयूपी) के क्षेत्रीय केंद्र, नई दिल्ली की प्रमुख डा. जया एन. सूर्या, भाकृअनुप- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी. विश्वनाथन, नई दिल्ली, जल प्रौद्योगिकी केंद्र के परियोजना निदेशक डा. पीएस ब्रह्मानंद और आरपीसीएयू के अनुसंधान निदेशक डा. एके सिंह ने भाग लिया.

 

उन्होंने ग्रामीण महिला सशक्तीकरण की समृद्धि के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन के लिए अनुसंधान और नीति समर्थन के महत्व पर प्रकाश डाला और सतत जल प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक जल संचयन संरचनाओं के पुनर्निर्माण पर जोर दिया.

तकनीकी सत्र के दौरान डा. पीएस. ब्रह्मानंद, परियोजना निदेशक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र, डा. सुशमा सुधीश्री, प्रधान वैज्ञानिक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र और डा. रत्नेश झा, परियोजना निदेशक, आरपीसीएयू ने जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन और इस की सफलता की कहानियों और महिला सशक्तीकरण के लिए जल निकायों के पुनर्निर्माण पर जानकारी दी.

सत्र की अध्यक्षता डा. सीमा जग्गी, एडीजी (एचआरडी), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और सहअध्यक्षता डा. डीएस गुर्जर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने की. डा. सीमा जग्गी ने जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों के संभावित सकारात्मक प्रभाव की सराहना की और जल संसाधन प्रबंधन में महिलाओं के अनुपात में सुधार के लिए आवश्यक प्रयासों पर बल दिया.

इस के बाद “महिला सशक्तीकरण में तेजी लाने के लिए जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और नीतियों को एकीकृत करने” जैसे विषय पर पैनल चर्चा आयोजित की, जिस का संचालन भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कृषि भौतिकी विभाग के प्रमुख डा. एन. सुभाष ने किया.

भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पदारिया, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एडीजी (प्रोसैसिंग इंजीनियरिंग) डा. के. नरसैया, एनबीएसएस व एलयूपी, नई दिल्ली के क्षेत्रीय केंद्र की प्रमुख डा. जया एन. सूर्या, आरपीसीएयू के बेसिक साइंसेज एंड ह्यूमैनिटीज कालेज के डीन डा. अमरेश चंद्रा, आरपीसीएयू के मत्स्यपालन कालेज के डीन डा. पीपी श्रीवास्तव और आरपीसीएयू के शिक्षा निदेशक डा. यूके बेहरा ने पैनलिस्ट के रूप में भाग लिया.

उन्होंने एकीकृत कार्ययोजना के लिए सुझाव दिया, जिस में जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को तेजी से अपनाने के लिए प्रभावी विस्तार विधियां, महिला किसान अनुकूल उपकरणों का विकास, कम लागत वाली वर्षा जल संचयन तकनीक, एकीकृत कृषि प्रणाली, अमृत सरोवर योजना को मजबूत करना, जल जीवन मिशन आदि शामिल हैं.

कार्यशाला में विचारविमर्श के आधार पर महिला सशक्तीकरण के लिए जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन पर संक्षिप्त नीति तैयार की जाएगी. कुलमिला कर इस कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, एनबीएसएस व एलयूपी, नई दिल्ली, एनबीपीजीआर, नई दिल्ली और आरपीसीएयू, बिहार में स्थित अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, कर्मचारियों और छात्रों सहित लगभग 70 प्रतिनिधियों ने इस में भाग लिया.

Sustain Plus Project : एनडीडीबी सस्टेन प्लस परियोजना हुई शुरू

Sustain Plus Project : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने बीते दिनों 3 मार्च, 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में डेयरी क्षेत्र में स्थिरता पर कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह की उपस्थिति में इस कार्यशाला का उद्घाटन किया.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जौर्ज कुरियन भी इस अवसर पर उपस्थित थे.  डेयरी क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों के साथसाथ पशुपालन और डेयरी विभाग, पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, उर्वरक विभाग, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), इंडियन औयल कौर्पोरेशन लिमिटेड और विभिन्न दूध सहकारी समितियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस कार्यशाला में भाग लिया.

कार्यशाला ने तकनीकी, वित्तीय और कार्यान्वयन सहायता का लाभ उठा कर डेयरी क्षेत्र में सतत और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए एनडीडीबी और नाबार्ड के बीच समझौता हुआ.  देशभर में बायोगैस संयंत्र स्थापित करने के लिए एनडीडीबी ने 15 राज्यों के 26 दुग्ध संघों के साथ समझौता किया.

इस अवसर पर डेयरी क्षेत्र में स्थिरता के उद्देश्य से दिशानिर्देश जारी किए गए, साथ ही, एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) के लघु पैमाने पर बायोगैस, बड़े पैमाने पर बायोगैस/संपीड़ित बायोगैस परियोजनाओं और टिकाऊ डेयरी के आर्थिक सहायता के लिए एनडीडीबी ‘सस्टेन प्लस परियोजना’ के तहत वित्तपोषण पहलों की शुरुआत की गई.

इन पहलों से डेयरी फार्मिंग में चक्रीय प्रथाओं को अपनाने में तेजी आने, कुशल खाद प्रबंधन, ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की उम्मीद है.  इस राष्ट्रीय कार्यशाला ने नीति बनाने वालों, उद्योग जगत के नेताओं और विशेषज्ञों को स्थिरता बढ़ाने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और छोटे व सीमांत डेयरी किसानों के लिए आर्थिक सहायता सुनिश्चित करने और विकसित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया.

Sustain Plus Project

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज जब हम श्वेत क्रांति 2.0 की ओर बढ़ रहे हैं, तो स्थिरता और चक्रीयता का महत्व और भी बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि पहली श्वेत क्रांति की मदद से हम ने अब तक जो हासिल किया है, उस के अलावा डेयरी क्षेत्र में स्थिरता और चक्रीयता को अभी पूरी तरह हासिल किया जाना बाकी है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि भारत की कृषि व्यवस्था छोटे किसानों पर आधारित है और गांवों से शहरों की ओर उन का पलायन उन की समृद्धि से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण पलायन की समस्या पर काबू पाने के साथसाथ छोटे किसानों को समृद्ध बनाने के लिए डेयरी एक महत्वपूर्ण विकल्प है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि डेयरी क्षेत्र में चक्रीयता और स्थिरता पर ध्यान देने के साथ, ईंधन के उत्पादन के लिए गाय के गोबर का उपयोग किसानों की आय बढ़ाने में काफी मदद करेगा.

उन्होंने आगे कहा कि देश में 53 करोड़ से अधिक के विशाल पशुधन संसाधन में से लगभग 30 करोड़ गाय और भैंसें हैं, इसलिए बड़ी मात्रा में गाय का गोबर उपलब्ध है, जिस का उपयोग जैविक खाद, जैव ईंधन आदि के लिए किया जा सकता है, जिस से उत्पादकता बढ़ेगी और साथ ही किसानों की आय भी बढ़ेगी.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने आगे कहा कि आज सरकार के प्रयासों के कारण डेयरी क्षेत्र काफी हद तक असंगठित से संगठित क्षेत्र में बदल गया है. उन्होंने देश में हरित विकास और किसान कल्याण को बढ़ावा देने के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं, नवीकरणीय ऊर्जा पहलों और सार्वजनिक निजी भागीदारी के महत्व का भी जिक्र किया.

हितधारकों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को नवाचार के साथ एकीकृत करने से न केवल हरित विकास को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि लाखों किसानों का भला भी होगा.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने डेयरी क्षेत्र में टिकाऊ प्रथाओं की आवश्यकता और सर्कुलर अर्थव्यवस्था सिद्धांतों को एक करने के सरकार के दृष्टिकोण पर जोर दिया और कहा कि भारत “विश्व की डेयरी” है और डेयरी क्षेत्र, कृषि जीवीए में 30 फीसदी का योगदान देता है. इन टिकाऊ प्रथाओं को लागू करने के लिए एनडीडीबी ने 1,000 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ एक नई वित्तपोषण योजना शुरू की है, जिस का उद्देश्य छोटे बायोगैस, बड़े पैमाने के बायोगैस संयंत्रों और संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) परियोजनाओं के लिए लोन सहायता के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान करना है, जिस से आने वाले 10 सालों में विभिन्न खाद प्रबंधन मौडलों को बढ़ाने में सुविधा होगी.

कार्यशाला के विचारविमर्श के प्रमुख विषयों में सफल चक्रीय अर्थव्यवस्था मौडल, छोटे डेयरी किसानों के लिए कार्बन क्रैडिट के अवसर और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने में कार्बन ट्रेडिंग की भूमिका शामिल थी. भारत सरकार द्वारा समर्थित और एनडीडीबी के नेतृत्व में डेयरी क्षेत्र ने स्थिरता और चक्रीयता को बढ़ाने के लिए प्रमुख खाद प्रबंधन पहलों की शुरुआत की है.

3 उल्लेखनीय मौडलों में जकारियापुरा मौडल, बनास मौडल और वाराणसी मौडल शामिल हैं, जो दूध के साथसाथ गोबर की एक मूल्यवान वस्तु के रूप में क्षमता को उजागर करते हैं, जो एक अधिक टिकाऊ और चक्रीय डेयरी पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान देता है, साथ ही पशुपालकों की आय में वृद्धि का भी काम करता है.

छत्तीसगढ़ बजट 2025-26 : बस्तर के किसान हितों की अनदेखी

छत्तीसगढ़ सरकार के 2025-26 के बजट को हम एक माने में निश्चित रूप से अनूठा कह सकते हैं कि एआई और डिजिटलाइजेशन के युग में यह बजट हाथ से लिखा गया. कुछ नया कर दिखाने के चक्कर में पूर्व तेजतर्रार आईएएस वित्त मंत्री शायद मोदी के डिजिटलाइजेशन के नारे को भूल गए.

पहली नजर में बजट में कई लोकलुभावनी बातें नजर में आती हैं, पर जब हम गहराई से बजट की पड़ताल करते हैं, तो हमें प्रदेश के किसानों के उत्थान और बस्तर के समग्र विकास के लिए कोई ठोस दृष्टिकोण नजर नहीं आता. अकसर बजट आंकड़ों की बाजीगरी और खोखली घोषणाओं के पुलिंदे ही होते हैं, यह बजट भी इस से कुछ ज्यादा अलग हट कर नहीं है. इस बजट की सब से बड़ी विडंबना यह रही कि बस्तर, जो प्रदेश व देश के लिए सब से अधिक प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराता है, उसे एक बार फिर नजरअंदाज कर दिया गया है.

हंसें या रोएं- जैविक खेती के लिए 20 करोड़, प्रमाणीकरण के लिए 24 करोड़

सरकार सालभर जैविक खेती के सैमिनार व वर्कशौप करती है. दिनरात जैविक खेती की बातें होती हैं, पर जब बजट में राशि देने की बात आती है, तो जैविक खेती के साथ कैसा मजाक किया जाता है, उस की बानगी देखिए, इस बजट में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए मात्र 20 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है और जैविक प्रमाणन के लिए 24 करोड़ रुपए देंगे.

प्रदेश के 40 लाख किसानों को जैविक खेती के लिए प्रति किसान सालाना केवल 50 रुपए मात्र. ऐसे में जैविक भारत मिशन-2047: मियोनप (MIONP) और सतत विकास के ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के सस्टेनेबल डेवलपमेंट के ‘SDGs’ के संयुक्त वैश्विक लक्ष्यों को भारत कैसे पूरा कर पाएगा. इस बिंदु को हलके में बिलकुल नहीं लिया जाना चाहिए.

इसी से जुड़ी दूसरी गंभीर बात यह कि सरकार को जैविक खेती करवाने से ज्यादा चिंता जैविक प्रमाणीकरण की है. यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे किसी को खेती के लिए 20 रुपए दिए जाएं और उस की फसल की गुणवत्ता जांचने के लिए 24 रुपए.

सचाई यह है कि जैविक प्रमाणीकरण की मौजूदा व्यवस्था किसान हितैषी नहीं, बल्कि पूरी तरह से बिचौलियों और सर्टिफिकेशन एजेंसियों के फायदे के लिए बनी हुई है. किसान जैविक खेती करने में हजारों रुपए लगाता है, लेकिन प्रमाणपत्र हासिल करने में उसे और ज्यादा खर्च करना पड़ता है. फिर भी उसे बाजार में उचित दाम नहीं मिलता. सरकार को यह समझना चाहिए कि जब जैविक खेती को सही तरीके से बढ़ावा ही नहीं दिया गया, तो प्रमाणीकरण करवा कर क्या फायदा?

अगर सरकार वास्तव में जैविक खेती के प्रति गंभीर होती, तो उसे प्रमाणीकरण की तुलना में जैविक खेती के विस्तार और किसानों की सहायता पर ज्यादा फोकस करना चाहिए था. लेकिन यहां फिर वही पुरानी नीति अपनाई गई. किसानों को कम पैसा दो और अफसरों व एजेंसियों को ज्यादा.

ऋण कृत्वा घृतं पिवामि यानी किसानों को कर्ज में डालने की नीति असली समस्या पर ध्यान नहीं

बजट में किसानों के लिए 8,500 करोड़ रुपए के ब्याजमुक्त लोन की घोषणा की गई है. देखने में यह अच्छा लग सकता है, लेकिन असल में यह किसानों की समस्याओं का हल नहीं कर रही,  बल्कि उन्हें एक और कर्ज के जाल में फंसाने की रणनीति है. कर्ज का मकड़जाल किसानों की सब से बड़ी समस्या है.

किसानों की असली समस्या का हल ‘कर्ज’ नहीं, बल्कि उन की उपज का वाजिब दाम न मिलना है. अगर किसान को उस की फसल का सही दाम मिले, तो उसे बारबार कर्ज लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. कर्ज पर ध्यान देने के बजाय सरकार को यह देखना चाहिए कि:
– किसानों को उन की उपज का लाभकारी मूल्य मिले.
– सभी फसलों पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) सुनिश्चित किया जाए.
– खेत में उत्पादन के उपरांत भी फसल का एक बड़ा हिस्सा 25 से 30 फीसदी तक समुचित भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, विपणन की कमी और अन्य विभिन्न कारणों से नष्ट हो जाता है, यह राष्ट्रीय क्षति है. इन पोस्ट हार्वेस्ट हानि को नियंत्रित किया जाए.
– कृषि उत्पादों के लिए कृषकोन्मुखी प्रभावी बाजार व्यवस्था विकसित की जाए.

हम आखिर कब समझेंगे कि ब्याज मुक्त लोन देना सिर्फ तात्कालिक राहत है, लेकिन यह किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं है. इस से किसान लगातार कर्ज के जाल में फंसते जाते हैं और उन की वित्तीय स्वतंत्रता कभी नहीं आती. समस्या कर्ज की नहीं, बल्कि आय बढ़ाने की है और इस पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है.

बस्तर से हर घंटे खनिज की अनवरत लूट, लेकिन बस्तर को कुछ नहीं?

बस्तर सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए खनिजों का सब से बड़ा भंडार है. यहां से रोजाना 24 ट्रेन भर कर सिर्फ लौह अयस्क निकाला जाता है, जो भारत के कई प्रमुख इस्पात संयंत्रों और उद्योगों के लिए जीवनरेखा है. इस के अलावा बौक्साइट, टिन, सोना, मैग्नीज, कोयला और कई अन्य कीमती खनिज भी यहां से निकाले जाते हैं.

लेकिन क्या बस्तर को इन खनिजों से होने वाली कमाई का उचित हिस्सा मिलता है? अगर सिर्फ लौह अयस्क की रौयल्टी का पूरा हिस्सा बस्तर के लोगों को मिल जाए, तो वे अरब के शेखों की तरह और भी अमीर हो सकते हैं. लेकिन सचाई यह है कि खनिजों की लूट हो रही है और इस का लाभ बस्तर को नहीं मिलता है.

बस्तर के विकास के लिए जो थोड़ीबहुत राशि चिड़िया के चुग्गे की तरह ‘डीएमएफ’ के नाम पर मिलती भी है, तो वह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है. यह पैसा कलक्टरों और नेताओं की पौकेटमनी की तरह खर्च होता है और आम जनता तक कुछ नहीं पहुंचता. यह घोर अन्याय है और वर्तमान वित्त मंत्री इस कड़वी सचाई से अच्छी तरह परिचित हैं, क्योंकि वे खुद बस्तर के कलक्टर रह चुके हैं.

बस्तर की अकूत वन संपदा, वनोपज का दोहन, पर बदले में सिर्फ ठेंगा

बस्तर संभाग में लगभग 70 फीसदी क्षेत्र वनों से आच्छादित माना जाता है. सरकारें यहां की बहुमूल्य लकड़ी और तरहतरह के वनोपजों का लगातार दोहन करती रही हैं. कहा जाता है कि वन विभाग के ठीकठाक रेंज के रेंजर साहब की आमदनी जिले के कलक्टर से भी ज्यादा होती है या थी (डीएमएफ फंड के प्रावधान के पूर्व). और यह विभागीय बंदरबांट तो मात्र खुरचन की है, असल मलाई तो सरकार के खाते में जाती है. किंतु इस के बदले में बस्तर को क्या मिलता है, यह भी अपनेआप में सोचने का विषय है.

बस्तर में पर्यटन और रोजगार के अपार अवसरों की अनदेखी

बस्तर पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं वाला क्षेत्र है, लेकिन बजट में इकोटूरिज्म और फार्मटूरिज्म के लिए सिर्फ 10 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इतने कम बजट में कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन ढांचा विकसित नहीं किया जा सकता.

हवाई कनैक्टिविटी का संकट : बस्तर से रायपुर के लिए साल 1991 में हवाई सेवा शुरू हुई थी. सरकारों द्वारा बस्तर की अनदेखी के कारण यह कभी नियमित नहीं चल पाई. ‌इस सरकारी उदासीनता और पक्षपात के कारण पिछले 4-5 महीनों से यह सेवा एक बार फिर से बंद पड़ी है.

यह हास्यास्पद है कि जहां देशविदेश में नए एयरपोर्ट बन रहे हैं, वहीं बस्तर संभाग जो कि विश्व के कई देशों से क्षेत्रफल में ज्यादा बड़ा है, इसे प्रदेश की राजधानी रायपुर से जोड़ने वाली एकमात्र हवाई सेवा भी बंद कर दी गई है. अगर यह घोर पक्षपात और अपेक्षा नहीं है तो और क्या है?

अन्य राज्य अपने दुर्गम क्षेत्रों को हवाई सेवा से जोड़ने के लिए शुरुआती फ्लाइट्स में घाटा होने पर कैपिंग के आधार पर हवाई कंपनियों को जरूरी अनुदान दे कर भी नियमित हवाई सेवाएं चलवा रहे हैं, तो बस्तर के लिए यह व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती थी?

दरअसल, राजनीतिक इच्छाशक्ति और विजन का घोर संकट है और बस्तर में यह संकट सब से ज्यादा है. सड़क मार्ग से बस्तर के कोंटा से रायपुर तक की यात्रा आज भी कम से कम 12 घंटे की होती है, जो बाहर इलाज के लिए जाने वाले मरीजों, उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने वाले छात्रों और बस्तर में नए उद्यम लगाने में रुचि लेने वाले उद्यमियों के लिए बेहद कष्टदायक है. इन के लिए हवाई सेवा एक लग्जरी या विलासिता नहीं, बल्कि अनिवार्य आवश्यकता है.

आदिवासियों के लिए घोषणाएं, हकीकत में कितनी कारगर?

सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहकों को 5,500 रुपए प्रति बोरा भुगतान की घोषणा की है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि क्या यह राशि वास्तविक संग्राहकों तक पहुंचेगी?

पहले भी ऐसे दावे किए गए थे, लेकिन पैसा बिचौलियों के हाथों में चला जाता था.

‘चरण पादुका योजना’ के लिए 50 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, लेकिन यह सिर्फ एक सांकेतिक योजना बन कर रह जाती है.

हालांकि, ‘भूमिहीन कृषि मजदूर कल्याण योजना’ के तहत 5.65 लाख मजदूरों को सालाना 10,000 रुपए की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया है, जो एक अच्छा कदम कहा जा सकता है. यदि यह राशि सीधे मजदूरों के खातों में पारदर्शी तरीके से पहुंचती है, तो इस से काफी राहत मिलेगी.

कृषि व वनोपज आधारित उद्योगों के लिए कोई ठोस नीति और क्रियान्वयन का रोड मैप नहीं

छत्तीसगढ़ में खाद्य प्रसंस्करण और कृषि व वनोपजों पर आधारित उद्योगों की अपार संभावनाएं हैं. लेकिन अभी इस दिशा में कोई ठोस व्यावहारिक नीति नहीं है.

डेयरी समग्र विकास परियोजना के लिए मात्र 50 करोड़ रुपए रखे गए हैं, जो ऊंट के मुंह में जीरा है. मत्स्यपालन, पोल्ट्री, बकरीपालन के लिए मात्र 200 करोड़ रुपए का प्रावधान है, जब कि ये क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी मजबूत कर सकते हैं.

यह भी उल्लेखनीय है कि बस्तर में काजू, कौफी और मसालों की खेती के अलावा जड़ीबूटियों की खेती और प्रसंस्करण की जबरदस्त संभावनाएं हैं, लेकिन इस बजट में इन के लिए कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं दिया गया. यदि सरकार इस क्षेत्र में ठोस नीतियां बनाती, तो बस्तर का आर्थिक परिदृश्य बदल सकता था.

अंत में यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान वित्त मंत्री ओपी चौधरी पूर्व में बस्तर के संवेदनशील लोकप्रिय कलक्टर रह चुके हैं. उन्हें इस क्षेत्र की चुनौतियों की गहरी समझ थी और उम्मीद थी कि उन के वित्त मंत्री के कार्यकाल में बस्तर को अधिक प्राथमिकता मिलेगी. लेकिन चाहे वजह जो भी हो, पर हुआ एकदम उलटा. मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री ने अपनेअपने क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया, जब कि बस्तर के लिए बहुत कम ध्यान दिया गया. गजब है कि हमारी लगभग सभी समस्याओं की जड़ में राजनीति है और सभी समस्याओं का समाधान भी राजनीति में ही निहित है. इस राजनीति की माया भी अजब है, जहां राजनीति के हमाम में उतरते ही सब नंगे हो जाते हैं.

(लेखक ग्रामीण अर्थशास्त्र एवं कृषि मामलों के विशेषज्ञ और राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ ‘आईफा’)

अब टीवी, रेडियो पर प्रसारित होंगे मेवाड़ मौडल आधारित कृषि कार्यक्रम

उदयपुर :  प्रसार भारती कृषि से जुड़े लोगों और खासकर किसानों के लिए ‘मेवाड़ मौडल’ को रेखांकित करते हुए ऐसे कार्यक्रम तैयार कर प्रसारण करेगा, ताकि किसान आत्महत्या के लिए मजबूर न हों. उन का जीवन और आजीविका दोनों सुरक्षित रहें. यही नहीं, झाबुआ (मध्य प्रदेश) में कड़कनाथ और एमपीयूएटी द्वारा विकसित प्रतापधन मुरगीपालन को भी देशभर में परिचित कराने संबंधी कार्यक्रम तैयार किए जाएंगे.

इस के अलावा संरक्षित खेती, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती को भी देशभर में प्रचारित किए जाने की जरूरत है. कुलमिला कर प्रसार भारती से सबद्ध आकाशवाणी और दूरदर्शन एक सशक्त विस्तार कार्यकर्ता की भूमिका निभाते हुए देश के किसानों की भलाई के काम करेंगे.

प्रसार शिक्षा निदेशालय में ‘कृषि में संकट और तनाव’ विषयक पांचदिवसीय कार्यशाला में शिरकत करने वाले 12 राज्यों से रेडियो व दूरदर्शन के अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा किए और इस नतीजे पर पहुंचे कि कृषि क्षेत्र में हो रहे शोध और शिक्षण पर भरपूर काम हो रहा है, लेकिन विस्तार कार्यकर्ताओं की कमी के कारण तकनीक सही माने में किसानों तक नहीं पहुंच रही है.

कार्यशाला में यह बात भी उभर कर सामने आई कि हर साल सरकार 500 करोड़ रुपए विस्तार पर खर्च कर रही है. 180 करोड़ रुपए कृषि दर्शन और कृषि वाणी पर, जब कि करोड़ों रुपए कृषि संबंधी लघु कार्यक्रमों व मास मीडिया पर खर्च कर रही है, लेकिन फील्ड में किसानों तक सीधी पहुंच रखने वाले विस्तार कार्यकर्ताओं की बेहद कमी है.

ऐसे में प्रसार भारती की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. कार्यशाला में इस बात पर भी सर्वसम्मति बनी कि राजस्थान खासकर मेवाड़ संभाग में जलवायु परिवर्तन या बाजार में उतारचढ़ाव के बावजूद यहां का किसान आत्महत्या नहीं करता, क्योंकि वह खेती के साथसाथ पशुपालन और एकाधिक फसलों की खेती करता है.

रेडियो व टैलीविजन के लिए ‘कृषि में संकट और तनाव’ विषयक कार्यक्रमों की अवधारणा और डिजाइन तैयार करने और प्रसारण के लिए पांचदिवसीय कार्यशाला पिछले दिनों 3 मार्च को संपन्न हो गई. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (आईसीएआर) के अधीन कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) जोन द्वितीय, जोधपुर और राष्ट्रीय प्रसारण एवं मल्टीमीडिया प्रसार भारती, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला की मेजबानी प्रसार शिक्षा निदेशालय, एमपीयूएटी ने की.

कार्यशाला के समापन समारोह के मुख्य अतिथि एमपीयूएटी के पूर्व कुलपति डा. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि कृषि में संकट और तनाव को राजस्थान खासकर मेवाड़ और मारवाड़ का किसान बखूबी जानता है. मारवाड़ में कम वर्षा होने के बावजूद यहां का किसान हार नहीं मानता. यही नहीं, सीमावर्ती जिलों के युवा सेना में बड़ी संख्या में भरती होते हैं. ऐसे युवा देश के लिए जान तक न्योछावर कर देता है, लेकिन यहां का किसान ऐसे संकट और तनाव को भी सहन कर जाता है.

जलवायु परिवर्तन की बात करें, तो बांसवाड़ा में माही डेम बनने के बाद पाला कम पड़ने लगा है. ऐसे में बांसवाड़ा में किसान रबी में मक्का की फसल भी लेने लगे, जो एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक उत्पादन देती है. इस के अलावा प्रतापधन मुरगीपालन भी किसानों को खूब संबल देती है. महज 2 महीने में ही इस में 6 किलोग्राम मांस हो जाता है. इस का अंडा भी 25 रुपए प्रति नग बिकता है.

प्रसार भारती की अतिरिक्त महानिदेशक अनुराधा अग्रवाल ने कहा कि आकाशवाणी व दूरदर्शन केंद्र रेतीली फसल एपीसोड तैयार करेंगे. कार्यशाला में कृषि उत्पादों में क्याकुछ नया हो रहा है, किसान को इस के बारे में विस्तार से सीखने को मिला. देश के दूसरे राज्यों में भी इस तरह के कार्यक्रमों के प्रसारण से किसानों के मार्गदर्शन का काम प्रसार भारती करेगा.

अटारी, जोधपुर के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने कहा कि संकट को संकट ही बना रहने देंगे, तो समाधान संभव नहीं है. बदलाव एकाएक किसी को रास नहीं आता है, लेकिन बदलाव जरूरी है, तभी संकट का समाधान हो पाएगा.