प्रशिक्षण आयोजन में कीट व रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management) पर फोकस

अशेाक नगर : भारत सरकार के अधीन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा अशोक नगर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में आईपीएम ओरियंटेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

सुनीत के. कटियार, प्रभारी अधिकारी, केंएनाप्रकें, मुरैना ने इस प्रयास की सफल शुरुआत के लिए कार्यालय के योगदान पर प्रकाश डाला.

उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्देश्यों, दृष्टिकोण और सिद्धांतों के बारे में एक संक्षिप्त परिचय भी दिया और अनुरोध किया कि बेहतर परिणाम के लिए सभी को अधिक भागीदारी और उत्साह के साथ सभी सत्रों में भाग ले कर अपने बहुमूल्य समय का उपयोग करना चाहिए.

इस दौरान अशोक नगर जिले के उपसंचालक कृषि केएस केन द्वारा अशोक नगर जिले के कीट व्याधि के बारे में जानकारी दी गई. कृषि विज्ञान केंद्र, अशोक नगर के प्रधान वैज्ञानिक डा. बीएस गुप्ता ने स्थायी कृषि में आईपीएम की भूमिका के बारे में प्रशिक्षुओं से बातचीत की.

डा. एचके त्रिवेदी, वैज्ञानिक (पादप संरक्षण) ने जिले में उगाई जाने वाली फसलों में कीट एवं बीमारियों के बारे में और उन के प्रबंधन के बारे में बताया. डा. वीके जैन ने आईपीएम में कीटनाशक का प्रयोग अंतिम सत्र के रूप में करने की बात कही.

डा. केके यादव, वैज्ञानिक (उद्यान) ने सतत्पोषणीय कृषि के बारे में किसानों से चर्चा की. कार्यक्रम में प्रभारी अधिकारी सुनीत कुमार कटियार द्वारा आईपीएम के महत्व, आईपीएम के सिद्धांत एवं उस के विभिन्न आयामों सस्य, यांत्रिक, जैसे येलो स्टिकी, ब्लू स्टीकी, फेरोमोन ट्रैप, फलमक्खी जाल, विशिष्ट ट्रैप, ट्राईकोडर्मा से बीज उपचार के उपयोग के बारे में और जैविक विधि, नीम आधारित एवं अन्य वानस्पतिक कीटनाशक और रासायनिक आयामों के इस्तेमाल के विषय में विस्तार से बताया गया.

प्रवीण कुमार यदहल्ली, वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा जिले की प्रमुख फसलों के रोग और प्रबंधन, चूहे का प्रकोप एवं नियंत्रण और फौल आर्मी वर्म के प्रबंधन, मित्र एवं शत्रु कीटों की पहचान के बारे में बताया गया.

अभिषेक सिंह बादल, सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा मनुष्य पर होने वाले कीटनाशकों का दुष्प्रभाव और कीटनाशकों का सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग, साथ ही साथ केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति द्वारा  अनुमोदित रसायन का कीटनाशकों के लेवल एवं कलर कोड पर आधारित उचित मात्रा में ही प्रयोग करने का सुझाव दिया. साथ ही, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा विकसित किए गए केएनपीएसएसएस एप के उपयोग एवं महत्व की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान केंद्र के अधिकारियों द्वारा आईपीएम प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिस में आईपीएम के विभिन्न आयामों का प्रदर्शन किया गया. कार्यक्रम के दूसरे दिन किसानों को खेत भ्रमण करा कर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विश्लेषण के बारे में बताया गया.

कार्यक्रम में अशोक नगर एवं गुना जिले के 70 से अधिक प्रगतिशील किसानों, कीटनाशक विक्रेता और राज्य कृषि कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में बताया कैसे है मशरूम (Mushroom) इम्यूनिटी बूस्टर

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र पर मशरूम निदेशालय, सोलन के निर्देश पर अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत युवाओं और किसानों के लिए तीनदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण कार्यक्रम किया गया.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वित्त नियंत्रक लक्ष्मी मिश्रा ने कहा कि मशरूम हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी खाद्य पदार्थ है. मशरूम खाने से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है, जिस से मानव जीवन स्वस्थ रह सकता है.

उन्होंने ने आगे कहा कि मशरूम में प्रोटीन के अलावा विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज लवण मौजूद होते हैं, जिस के कारण इस को इम्यूनिटी बूस्टर भी कहा जाता है.

निर्देशक ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने कहा कि मशरूम एक प्रकार का सुपरफूड है, इस को खाने से शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है. साथ ही, भरपूर मात्रा में खनिज लवण भी उपलब्ध हो जाते हैं. अब देश में बायोफोर्टीफाइड मशरूम भी आने लगा है, जिस की मांग धीरेधीरे बढ़ रही है.

विभागाध्यक्ष प्रो. कमल खिलाड़ी ने कहा कि मशरूम को उगने से किसानों को रोजगार मिलता है और कम क्षेत्रफल में मशरूम की खेती प्रारंभ की जा सकती है. इस के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए किसान इस क्षेत्र में आगे आ कर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक प्रो. गोपाल सिंह ने बताया कि मशरूम खाद्य एवं औषधि प्रजातियों के उत्पादन तकनीकी का प्रशिक्षण कार्यक्रम कराया गया, जिस से पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा मशरूम उत्पादन का काम कर सके और उन को स्वरोजगार मिल सके.

डा. गोपाल सिंह ने आगे कहा कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत 50 युवा एवं किसानों ने पंजीकरण कराया और मशरूम उत्पादन की तकनीकी के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रो. अनिल सिरोही, प्रो. रामजी सिंह, प्रो. रमेश यादव, प्रो. प्रशांत मिश्रा, प्रो. डीबी सिंह, प्रो. राजेंद्र कुमार आदि ने भी व्याख्यान दिए और मशरूम की उपयोगिता और उस के उत्पादन तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिकों ने खोजी मटर की नई बीमारी ( New Disease of Pea)

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मटर की नई बीमारी व इस के कारक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी (एपीएस) पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सब से पुराने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है, जो विशेषत: पौधों की बिमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सब से पहले वैज्ञानिक हैं. इन वैज्ञानिकों ने फाइटोप्लाज्मा मटर में बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में छापा है.

बीमारी के बाद इस के प्रसार की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य
विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है. उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा.

उन्होंने यह भी कहा कि वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए. इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सब्जी विभाग के अध्यक्ष डा. एसके तेहलान, पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल कुमार, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व एसवीसी कपिल अरोड़ा भी मौजूद रहे.

साल 2023 में मटर की फसल में दिखाई दिए थे लक्षण
अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने बताया कि पहली बार फरवरी, 2023 में सेंट्रल स्टेट फार्म, हिसार में मटर की फसल में नई तरह की बीमारी दिखाई दी, जिस में मटर के 10 फीसदी पौधे बौने और झाड़ीदार हो गए थे. एचएयू के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस बीमारी के कारक कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी.

इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलौजिस्ट डा. जगमोहन सिंह ढिल्लो ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा मार्च, 2024 के दौरान इस शोध रिपोर्ट को छापा है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बीमारी के सब से पहले शोधकर्ता माने गए हैं.

नैनो यूरिया (Nano Urea) उपयोग से खेती हुई आसान

छिंदवाड़ा : जिले के चौरई विकासखंड के ग्राम चीचगांव के किसान दीपक आढनेरिया ने भी इस वर्ष एक एकड़ में नैनो यूरिया का उपयोग कर लागत निकालने के बाद तकरीबन 80 हजार रुपए का आर्थिक लाभ प्राप्त किया है.

उल्लेखनीय है कि नैनो यूरिया एक लागत प्रभावी उत्पाद है और खेत में इस की कम मात्रा डालने पर ही फसलों को जरूरी नाइट्रोजन प्राप्त हो जाती है. खेती के लिए नैनो यूरिया का उपयोग करने का सब से बड़ा फायदा ये है कि इस से पर्यावरण को कम से कम नुकसान पड़ता है. इस से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा और हवा व पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा.

किसान दीपक बताते हैं कि उन के द्वारा पहले यूरिया का उपयोग किया जाता था. अधिक मात्रा में इस का उपयोग करने से लागत भी अधिक लगती थी और परिवहन करने में भी समस्या आ रही थी. माली नुकसान को देखते हुए कृषि विभाग चौरई द्वारा नैनो यूरिया तरल के बारे में बताया गया.

उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया तरल की 500 मिलीलिटर की एक बोतल सामान्य यूरिया के कम से कम एक बैग यानी एक बोरी के बराबर होगी. इस के प्रयोग से लागत में कमी आएगी और नैनो यूरिया तरल का आकार छोटा होने के कारण इसे आसानी से पाकेट में भी रखा जा सकता है, जिस से परिवहन और भंडारण करने में लगने वाली लागत में काफी कमी आएगी और फसलों की पैदावार बढ़ती है. इसे पौधों के पोषण के लिए प्रभावी व असरदार पाया गया है. इस का प्रयोग पोषक तत्वों की गुणवत्ता सुधारने एवं जलवायु परिवर्तन व टिकाऊ उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भी अहम भूमिका निभाएगा.

कृषि विभाग द्वारा बताई गई जानकारी के बाद उन के द्वारा इस साल एक एकड़ खेत में नैनो यूरिया का प्रयोग किया गया, जिस में 2 बार नैनो यूरिया का स्प्रे किया, जिस की लागत एक बोतल की कीमत 225 रुपए व 2 बार स्प्रे करने पर 450 रुपए की आई. नैनो यूरिया एवं अन्य खर्च की कुल लागत निकालने के बाद भी लगभग 80 हजार रूपए का आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ है.

नैनो यूरिया के उपयोग से किसान दीपक के लिए खेती करना अब बहुत आसान और लाभ का व्यवसाय हो गया है. वह इस के लिए शासन और कृषि विभाग के अधिकारियों को धन्यवाद देते हैं, साथ ही अन्य किसानों को भी नैनो यूरिया का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

प्राकृतिक रूप से खेती कर 250 रुपए प्रति किलोग्राम बेच रहे मशरूम

बालाघाट : किरनापुर में कटंगी के रामेश्वर चौरिवार ने प्राकृतिक रूप से मशरूम की खेती करने के लिए अपने ही कुछ अलग ढंग से तैयारी की. कक्षा 8 वीं जमात तक पढ़े रामेश्वर केवीके, बड़गांव में मिले प्रशिक्षण से प्रभावित हुए और अमल में लाने के लिए प्रयास शुरू किए. अब तक उन्होंने 2 बार ढींगरी (औयस्टर) मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा लिया है.

उन्होंने बताया कि आत्मा परियोजना के अंतर्गत समयसमय पर आयोजित किए जाने वाले प्रशिक्षणों से उन्हें काफी लाभ हुआ है. इसी से प्रेरित हो कर इस की खेती की. इस के लिए उन्होंने 10*10 के कमरे में दीवारों पर टाट और सतह पर रेत का उपयोग व सुबहशाम स्प्रे कर कमरे को वातानुकूलित बनाया है, क्योंकि मशरूम की खेती के लिए तापमान का बड़ा महत्व होता है. इस के लिए 16 डिगरी से 25 डिगरी सैल्सियस तक तापमान मेंटेन करना पड़ता है.

200 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है मशरूम
रामेश्वर ने बताया कि 45 से 90 दिनों की फसल होती है. गत वर्ष 30 बैग लगाए थे, जिस से उन्हें 60 से 70 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन हुआ, जिसे स्थानीय बाजार और बालाघाट में काफी अच्छा भाव मिला. यहां मशरूम 200 रुपए तक बिकता है. इस वर्ष तापमान के कारण उत्पादन कम हुआ, लेकिन भाव 200 से 250 रुपए प्रति किलोग्राम मिलने से अच्छा मुनाफा हुआ है.

दीनदयाल उन्नत खेती, नरेंद्र उद्यानिकी, हीरेंद्र रेशम और जंगल सिंह को पशुपालन के लिए किया सम्मान
आत्मा परियोजना औन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन वर्ष 2023-24 के अंतर्गत जिले में उन्नत कृषि तकनीक एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से उत्तम काम करने वाले 5 किसानों को जिला स्तरीय सर्वोत्तम पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस के अलावा 28 किसानों को विभिन्न श्रेणियों में विकासखंड स्तरीय सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. जिला स्तरीय सर्वोत्तम किसान को 25-25 हजार और विकासखंड स्तरीय सम्मान के रूप में 10-10 हजार रुपए की राशि प्रोत्साहन के रूप में प्रदान किए गए.

आत्मा परियोजना संचालक अर्चना डोंगरे ने बताया कि इन के अलावा 5 सर्वोत्तम स्वसहायता समूह को विभिन्न श्रेणियों में 20-20 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि बैंक खातों में प्रदान की गई.

ये हैं जिले के 5 सर्वोत्तम किसान
आत्मा परियोजना में जिला स्तरीय सर्वोत्तम कृषक का सम्मान पाने वाले किसानों में कटंगी के रामेश्वर चौरिकर को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए और आगरवाड़ा कटंगी के दीनदयाल कटरे को उन्नत कृषि के लिए, थानेगांव वारासिवनी के नरेंद्र सुलकिया को उद्यानिकी, बटरमारा किरनापुर के हिरेंद्र गुरदे को रेशमपालन और चिचरंगपुर बिरसा को पशुपालन में सम्मान पाने में शामिल है.

दुधारू पशु (Milch Animals) प्रदाय में अब गाय के साथ भैंस भी शामिल

रायसेन : राज्य शासन ने “मुख्यमंत्री दुधारू पशु प्रदाय कार्यक्रम’’ के रूप में लागू किया है. कार्यक्रम में अब हितग्राही की मंशा के अनुसार दुधारू गाय के अलावा भैंस भी प्रदाय की जा सकेगी. साथ ही, इस का लाभ अब विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के साथ सहरिया और भारिया को भी मिलेगा. जनजातियों की कमजोर माली हालात को देखते हुए हितग्राही अंशदान की राशि 25 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी गई है.

पशुपालकों को प्रति 2 दुधारू पशु गाय/भैंस दी जाएगी. कार्यक्रम में 90 फीसदी सकीय अनुदान और 10 फीसदी हितग्राही अंशदान होगा. खरीदे गए सभी पशुओं का बीमा होगा. मिल्क रूट और दुग्ध समितियों का गठन मध्य प्रदेश दुग्ध महासंघ और पशुपालन विभाग द्वारा किया जाएगा. गाय प्रदाय के लिए 1 लाख, 89 हजार 250 रुपए और भैंस के लिए 2 लाख, 43 हजार रुपए की राशि निर्धारित की गई है. गौ प्रदाय में 1 लाख, 70 हजार, 325 रुपए शासकीय अनुदान और बाकी 18 हजार, 925 रुपए हितग्राही अंशदान होगा. भैंस प्रदाय में 2 लाख, 18 हजार, 700 रुपए का शासकीय अनुदान और महज 24 हजार, 300 रुपए हितग्राही का अंशदान होगा.

कार्यक्रम का उद्देश्य दुग्ध उत्पादन और पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता में वृद्धि, रोजगार के नवीन अवसर द्वारा हितग्राहियों की आर्थिक स्थिति में सुधार और उच्च उत्पादक क्षमता के गायभैंस वंशीय पशुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना है.

हितग्राही को आवेदन निर्धारित प्रपत्र में अपने निकटतम पशु चिकित्सा संस्था या दुग्ध सहकारी समिति को देना होगा. चयनित हितग्राहियों को पशुपालन, पशु आहार और पशु प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ परिचयात्मक दौरा भी करवाया जाएगा.

नई तकनीक से मत्स्यपालन

भिंड : मत्स्य उद्योग एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे गरीब से गरीब व्यक्ति अपना सकता है एवं अच्छी आय प्राप्त कर सकता है और समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है. विभिन्न माध्यमों से मत्स्यपालन व्यवसाय में लग कर मानवेंद्र सिंह अपना आर्थिक स्तर सुधार रहे हैं.

भिंड जिले के दबोह क्षेत्र के मानवेंद्र सिंह यादव द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मत्स्यपालन की नवीन तकनीक बायोफ्लोक यूनिट द्वारा मत्स्यपालन का काम किया जा रहा है.

मानवेंद्र सिंह बताते हैं कि वर्ष 2019-20 में सहायक संचालक मत्स्योद्योग जिला भिंड के अधिकारी की सहायता से बायोफ्लोक पद्धति से 4 मीटर व्यास, 1.5 मीटर ऊंचाई एवं 10 हजार लिटर पानी की क्षमता के 2 टैंकों में मत्स्य उत्पादन किया गया, जिस में 50 हजार की लागत से 1.5 मीट्रिक टन मत्स्योत्पादन किया गया, जिस में एक लाख रुपए का लाभ प्राप्त हुआ.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 में मत्स्य विभाग जिला भिंड से संपर्क कर 7 टैंक 5 मीटर व्यास, 1.5 मीटर ऊंचाई, 20 हजार लिटर पानी की क्षमता एवं 7.5 लाख रुपए की लागत से 7 टैंकों का निर्माण करवाया गया एवं प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से 3 लाख का अनुदान प्राप्त हुआ.

साथ ही, सभी टैंकों में 20 हजार पंगेशियस मत्स्य बीज का संचयन किया, जिस में एक वर्ष में 2 बार (प्रत्येक 6-6 माह में) मत्स्य उत्पादन का कार्य किया जाता है, जिस में 5 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हो चुका है. इस से वर्ष में 5 लाख रुपए का मुनाफा प्राप्त हुआ है. वर्तमान में 5 मीटर व्यास, 1.5 मीटर ऊंचाई, 20 हजार लिटर पानी की क्षमता वाले 14 टैंक हैं, जिन में मछली को  पालने का काम किया जा रहा है.

आईडीबीआई बैंक ने बीएयू में कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का किया आयोजन

भागलपुर : आईडीबीआई बैंक ने अपने कैंपस कनेक्ट प्रोग्राम के हिस्से के रूप में जूनियर असिस्टेंट मैनेजर (जेएएम) की न्युक्ति के लिए विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष के कृषि स्नातक छात्रों के लिए एक कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव आयोजित किया. समूह चर्चा और व्यक्तिगत साक्षात्कार सहित कठोर चयन प्रक्रिया से गुजरते हुए, इस पहल में कुल 28 छात्रों ने भाग लिया. कुल 5 विद्यार्थियों का अंतिम रूप से चयन किया गया.

चयनित अभ्यर्थियों को वार्षिक पैकेज के रूप में 6.14 लाख से 6.50 लाख रुपए तक मिलेंगे.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने भाग लेने वाले छात्रों को शुभकामनाएं दी और साक्षात्कार आयोजित करने के लिए आईडीबीआई बैंक के प्रति आभार व्यक्त किया.

इस सफल कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव को व्यवस्थित करने में डा. जेएन श्रीवास्तव, निदेशक छात्र कल्याण, डा. चंदन कुमार पांडा, प्लेसमेंट सेल के प्रभारी, डा. अनिल पासवान और डा. अपूर्वा पाल द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई.

यह प्रयास न केवल छात्रों के लिए कैरियर मूल्यांकन के लिए अवसर प्रदान करता है, बल्कि विश्वविद्यालय और कारपोरेट क्षेत्र के बीच संबंध को भी मजबूत करता है.

किसान ने बागबानी (Gardening) से की बंपर कमाई

भिंड : सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उद्यानिकी फसलों के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इस की महत्ता को समझ कर कई किसान परंपरागत खेती को छोड़ कर बागबानी कर रहे हैं. ऐसे ही भिंड जिले के विकासखंड अटेर के ग्राम ऐंतहार के प्रगतिशील किसान डीपी शर्मा ने परंपरागत खेती को छोड़ बागबानी शुरू की और अब वे इस से अच्छी आमदनी कर रहे हैं.

किसान डीपी शर्मा ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र और उद्यानिकी विभाग से परामर्श ले कर 8 अगस्त, 2020 को वीएनआर अमरूद का बगीचा लगाया गया, जिस में 550 पौधे अमरूद के और 50 पौधे नीबू, 100 पौधे करौंदा और  11 पौधे कटहल का रोपण किया गया.

उन्होंने बताया कि उद्यानिकी विभाग भिंड की तरफ से उन के बगीचे में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगवाया गया है. ड्रिप के माध्यम से सभी पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी और खाद दिया जा रहा है. वर्तमान में पौधे में लगभग 18 महीने में फल आने लगे हैं, जिस में एक फल लगभग 400 ग्राम से ले कर 650 ग्राम तक का अमरूद का उत्पादन होने लगा है.

किसान डीपी शर्मा ने किसानों को संदेश दिया है कि धान व गेहूं की खेती में पानी ज्यादा लगता है, जलस्तर को बचाने के लिए बागबानी की तरफ रुझान बढ़ाएं. अमरूद का बाग लगा कर अन्य किसान भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं. पानी की बचत में बागबानी खेती सब से बेहतर है.

किसानों को न्यूट्री गार्डन में दिया प्रशिक्षण

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम के तहत गांव पायल व चिड़ोद में ‘फलफूल एवं सब्जी उत्पादन’ विषय पर एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस में किसानों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया.

फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम के प्रमुख अन्वेषक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को पोषण एवं गुणवत्तायुक्त खानपान बढ़ाने के लिए न्यूट्री गार्डन विकसित कर स्वास्थ्य लाभ लेने के बारे में जागरूक करना था. किसान परिवारों के घरआंगन में, आंगनवाड़ी केंद्र व स्कूलों में न्यूट्री गार्डन स्थापित करने से जहां एक तरफ फल व सब्जियों की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं, वहीं दूसरी ओर उच्च गुणवत्ता के फल व सब्जियां स्वास्थ्य लाभ के लिए भी जरूरी हैं.

उन्होंने बताया कि एक अच्छी व पोषण से भरपूर डाइट लेना हर व्यक्ति का अधिकार है. इस मुहिम से आम लोगों को जोड़ने के लिए लगातार प्रयास चल रहे हैं, ताकि कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके.

बागबानी विभाग के वैज्ञानिक डा. प्रिंस ने किसानों को अमरूद, किन्नू, नीबू व आडू के फलदार पौधे लगाने व उन के पोषक तत्त्व प्रबंधन की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि नए कलमी पौधों की देखभाल अच्छी तरह से करें. जैसे उन को सर्दीगरमी से बचाने के लिए पराली से ढकना चाहिए व हलकी सिंचाई करते रहें. यह भी ध्यान रखें कि कलमी पौधों में कलम की गई टहनी से नीचे कोई भी बढ़वार आती है, तो उसे साथसाथ काटते रहंे. साथ ही, उन्होंने किचन गार्डन में गरमी के मौसम में आसानी से उगाई जाने वाली सब्जियां जैसे घीया, तोरई, करेला, भिंडी, ग्वार व लोबिया आदि के बारे में बताया.

चारा अनुभाग के सस्य वैज्ञानिक डा. सतपाल ने किसानों को अमरूद व अन्य फलदार पौधों के लाइनों के बीच में बची हुई जगह में चारा फसल उगाने व अन्य छाया सहनशील सब्जियां जैसे हलदी, प्याज, लहसुन आदि उगाने की संभावनाओं के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने चारे की फसल बरसीम के बीज उत्पादन लेने के लिए इस की आखिरी कटाई मार्च माह के दूसरे सप्ताह तक करने व बाद में बीज के लिए फसल को छोड़ने, कटाई के बाद व बीज बनते समय फसल में सिंचाई करने के बारे में जानकारी दी.

इस अवसर पर किसानों को फलदार पौधे, जिन में अमरूद, नीबू, किन्नू, आडू आदि के पौधे निःशुल्क वितरित किए गए. साथ ही, गरमी के मौसम में उगाई जाने वाली सब्जियों के बीजों की किट भी बांटी गई. इस के अलावा फलसब्जी उगाने व प्रोसैसिंग करने की तकनीकी पुस्तिकाएं किसानों को दी र्गइं.