संस्थान ने किया मशरूम की अच्छी प्रजातियों का विकास

सोनीपत: महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, मुरथल, सोनीपत का औचक निरीक्षण किया.

निरीक्षण के दौरान उन्होंने पौलीहाउस, नेटहाउस और ओपन में लगी सब्जियों की फसल को देखा और प्रगति के बारे में पूछा.

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से जानकारी हासिल की कि केंद्र में कौनकौन सी फसलों के बीज किसानों को दिए जा रहे हैं.

कुलपति डा. संजीव कुमार मल्होत्रा को अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को दिए जाने वाले बीज व मशरूम के बीज और पौध के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

कुलपति डा. संजीव कुमार मल्होत्रा ने अनुसंधान केंद्र द्वारा उत्कृष्ट कार्य किए जाने की सराहना की और सुझाव दिया कि इस केंद्र ने ओस्टर मशरूम और बटन मशरूम की बहुत अच्छी प्रजातियों का विकास किया है. इन सभी प्रजातियों के नामाकंन करने की आवश्यकता है. संरक्षित खेती की अवसंरचनाओं में केंद्र द्वारा शिमला मिर्च, टमाटर या बंदगोभी की जो किस्में लगाई जा रही हैं, उन पर रिसर्च कर इस क्षेत्र की कृषि जलवायु के लिए प्रजनन का काम शुरू हो, ताकि किसानों को एमएचयू की किस्मों से ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचे.

उन्होंने वैज्ञानिकों से कहा कि जिस उद्देश्य के लिए यूनिवर्सिटी की स्थापना की है, उस पर सभी को तेजी से आगे बढ़ना है, ताकि किसानों को विश्वविद्यालय से उच्च गुणवत्ता के बीज व पौध मिलें. साथ ही, नईनई तकनीकों का विकास कर के किसानों को उपलब्ध कराई जाए. उन्होंने वैज्ञानिकों से यह भी आग्रह किया कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में किसानों को बागबानी विश्वविद्यालय के साथ जोड़ा जाए.

किसान व खेती बचाने के लिए एमएसपी गारंटी (MSP Guarantee) जरूरी

देशभर के किसान संगठनों व मजदूर संगठनों की आपात बैठक 13 मार्च, 2024 को दिल्ली के जवाहर भवन में संपन्न हुई. इस में देशभर से आए बहुसंख्य किसान संगठनों ने भाग लिया. इस बैठक में सर्वसम्मति से गठित ’सांझा किसान मजदूर मोरचा’ में सामूहिक नेतृत्व को मान्यता प्रदान करते हुए प्राथमिक रूप से गठित ’मुख्य प्रधानी मंडल’ में जसबीर सिंह भाटी, आत्मजीत सिंह, राजबीर सिंह, डा. राजाराम त्रिपाठी, गुरमुख सिंह, सुदेश खंडेला, भगवान पाल सिंह, भोपाल सिंह चैधरी को शामिल किया गया है.

इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बैठक में किसान संगठनों ने एकमत हो कर किसानों की मुख्य मांगो में 1 एमएसपी पर सी 2 प्लस 50 फीसदी, और एमएस स्वामीनाथन कमीशन आयोग की अन्य लंबित सिफारिशों (फसल बीमा, लागत मूल्य आदि) के साथ ही तत्काल सभी फसलों के लिए सक्षम खरीद गारंटी कानून बनाने की सरकार से मांग की गई. इसी के साथ ही मनरेगा मजदूरों को 200 दिन रोजगार गारंटी और 700 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी की मांग की गई.

– जमीन अधिग्रहण कानून 2013 के तहत जमीन अधिग्रहण का फार्मूला तय करने और किसानों को जल आपूर्ति के लिए पूर्व में घोषित नदियों को जोड़ने की परियोजना पर काम करने की भी मांग की गई.

– सभी संगठनों ने किसान और मजदूर की पूरी तरह से कर्जमाफी की मांग सरकार के सामने रखी.

– वन संरक्षण अधिनियम 2023 को रद्द करने की मांगो पर सर्वसम्मति के साथ सरकार को ज्ञापन देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता बस्तर, छत्तीसगढ़ से पधारे अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक और ‘एसपी गारंटी कानून मोरचा’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि अब वह समय आ गया है कि देश के सभी छोटेबड़े किसान संगठन देश के किसान व किसानी को बचाने के लिए इन जरूरी मांगों को पूरा कराने के लिए अपने समस्त अंतर्विरोधों को ताक पर रख कर एकजुट हो जाएं. ध्यान रहे कि अभी नहीं तो कभी नहीं.

उन्नत किस्म और फसल विविधीकरण (Crop Diversification) से अधिक मुनाफा

सोनीपत: महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने 2 मार्च को क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, मुरथल में वैज्ञानिक पद्धति से मधुमक्खीपालन विषय को ले कर सातदिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया.

कार्यशाला के शुभारंभ के बाद कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने केंद्र का निरीक्षण कर केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल की. केंद्र में पहुंचने पर केंद्र निदेशक व कुलसचिव डा. अजय सिंह ने मुख्य अतिथि कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा और विशिष्ट अतिथि, कृषि विभाग के पूर्व क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी डा. जेके श्योरोण, जीत खादी ग्रामोद्योग के प्रधान देवव्रत बाल्यान, सिंधु ग्रामोद्योग समिति के प्रधान अनिल सिंह सिंधू, गोबिंद अतुल्य बी मास्टर प्रोड्यूस कंपनी लिमिटेड का स्वागत किया.

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को फसल विविधीकरण की ओर तेजी से बढ़ना चाहिए. खेती में नई तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए, जो उन के लिए सकारात्मक दूरगामी परिणाम देने वाली साबित होगी.

उन्होंने किसानों को खेती में उन्नत किस्मों का प्रयोग करने की सलाह दी, जिस से फसल की ज्यादा पैदावार के साथसाथ गुणवत्ता में सुधार होगा. किसान अपनी फसलों को अच्छे दामों पर बेच कर भारी मुनाफा कमा सकेंगे. किसानों, युवाओं, महिलाओं को मधुमक्खी और मशरूम को व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहिए.
कृषि विभाग के पूर्व क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी व मधुमक्खीपालन के एडीओ डा. जेके श्योरोण ने मधुमक्खीपालन को ले कर विस्तार से जानकारी दी. ट्रेनिंग कोर्डिनेटर रविंद्र मलिक रहे.

कुलपति ने किया केंद्र का निरीक्षण

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने केंद्र का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान उन्होंने हाईटैक नर्सरी, पौलीहाउस, स्पान लैब व मशरूम यूनिट को देखा. इस बारे में केंद्र के निदेशक ने कुलपति को बताया कि केंद्र में किस प्रकार खाद व बीज बना कर किसानों को उपलब्ध करवाया जाता है.

इस पर कुलपति ने कहा कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा उन्नत किस्म का बीज उपलब्ध करवाया जाए, ताकि किसानों को एमएचयू से ज्यादा फायदा पहुंचे.

प्रतिभागियों को वितरित किए सर्टिफिकेट

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने मशरूम उत्पादन प्रसंस्करण एवं विपणन विषय पर पांचदिवसीय कार्यशाला समापन होने पर प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट व मशरूम का बीज वितरित किया. कार्यशाला में प्रदेशभर के अलगअलग जिलों से आए 24 प्रतिभागियों ने शिरकत की.

उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग का मकसद मशरूम उत्पादन के दौरान होने वाली परेशानियों को पहले ही दूर करना है, ताकि प्रतिभागी मशरूम का उत्पादन अच्छे से कर पाएं. ट्रेनिंग के माध्यम से किसानों को जागरूक करना है. ट्रेनिंग कोर्डिनेटर डा. मनीष कुमार रहे.

उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण (Milk Product Processing) पर प्रशिक्षण

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत किसानों के लिए उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण पर एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति लुवास डा. विनोद कुमार वर्मा द्वारा किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने उपस्थित पशुपालक प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए बताया कि डेयरी उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालकों की जीविका को बढ़ावा देने में अत्यधिक महत्त्व रखता है. यह लाखों किसानों के लिए आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, विशेष रूप से महिला किसानों के लिए, जो डेयरी उत्पादन और दूध प्रसंस्करण में मुख्य भूमिका निभाती हैं. डेयरी क्षेत्र का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि यह न केवल रोजगार के अवसर प्रदान करता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और पोषण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है.

लुवास के कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के परिवर्तनात्मक संभावनाओं पर जोर दिया और इसे डेयरी क्षेत्र में उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में माना. उन्होंने किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल के साथ संपन्न करने की महत्त्वता को भी जाहिर किया, जिस से ऐसे सशक्तीकरण से उन के उद्यमी प्रयासों को मजबूती मिल सकती है और उन की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को उन्नत किया जा सकता है.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि व अन्य विशिष्ट अतिथियों द्वारा “किसानों के लिए उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण‘‘ नामक एक पुस्तिका का लोकार्पण भी किया गया .

कार्यक्रम की शुरुआत में डेयरी साइंस कालेज के अधिष्ठाता एवं पाठ्यक्रम निदेशक डा. सज्जन सिहाग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए किसानों को व्यावसायिक कौशल और व्यावसायिक जानकारी के साथ उन्नत दूध प्रसंस्करण तकनीकों में सशक्त करने के लिए तैयार किए गए व्यापक पाठ्यक्रम के बारे में अवगत कराया.

निदेशक डा. सज्जन सिहाग ने नवीनतम तकनीक और दूरस्थ प्रथाओं को एकत्रित करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया और डेयरी उत्पादन को अनुकूलित करने और उच्च गुणवत्ता परिणाम सुनिश्चित करने के लिए दूध प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता को उजागर किया.

उन्होंने आगे बताया कि यह तीनदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम 4 से 6 मार्च, 2024 तक चलने वाले इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान, हिसार के साथ संयुक्त रूप से किया गया. इस पहल का उद्देश्य किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल प्रदान करना है. इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से 30 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं.

कार्यक्रम समन्वयक के रूप में उपस्थित प्रधान वैज्ञानिक एवं टीओटी प्रभारी डा. नवनीत सक्सेना ने प्रोग्राम के उद्देश्यों को समझाया. उन्होंने बताया कि ये कार्यक्रम किसानों को सशक्त बनाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और उन की उत्पादकता और आय स्तरों को बढ़ाने में मदद करते हैं.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, एचआरएम के निदेशक डा. राजेश खुराना, विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीएस पंवार, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज व अन्य अधिकारी व विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे. इस प्रशिक्षण के समन्वयक डा. शालिनी अरोडा, डा. गुरुराज एवं डा. रचना ने किया.

मेरठ में 2 दिवसीय राष्ट्रीय आलू महोत्सव (National Potato Festival)

मेरठ: भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान-क्षेत्रीय केंद्र मोदीपुरम, मेरठ केंद्र पर भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान एवं भारतीय आलू संघ (आईपीए) की सहभागिता में आलू उत्पादन की नवीनतम तकनीकों एवं आलू की पोषकता की उपयोगिता के महत्व को जनमानस में लोकप्रिय बनाने हेतु एवं भविष्य की चुनौतियों पर विचारविमर्श करने के संदर्भ में 2 दिवसीय राष्ट्रीय आलू महोत्सव-2024 का आयोजन 9-10 मार्च, 2024 के दौरान किया जा रहा है.

इस आयोजन के मुख्य अतिथि डा. हिमांशु पाठक, सचिव, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग, भारत सरकार एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली होंगे.

आयोजन का होगा मुख्य आकर्षण

इस मौके पर नवनिर्मित आलू शीतगृह एवं हाईटैक आलू बीज उत्पादन तकनीक सिस्टम का उदघाटन, संस्थानों द्वारा विकसित आधुनिक प्रौद्योगिकियों एवं उत्पादों का सजीव प्रदर्शन, कृषि प्रदर्शनी, आलू बीज उत्पादन की उन्नत तकनीकयों का प्रदर्शन, एग्री ड्रोन द्वारा फसल सुरक्षा रसायनों के उपयोग का सजीव प्रदर्शन, आलू फसल में मशीनीकरण, कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी, नवोन्मेषी किसान सम्मेलन, कृषकवैज्ञानिक संवाद और परिचर्चा, सफलता की कहानी, प्रगतिशील व सफल किसानों की जबानी, विभिन्न राष्ट्रीयकृत बैंकों/वित्तीय संस्थानों द्वारा किसानों को प्रदान किए जाने वाले कृषि ऋण/योजनाओं की जानकारी हेतु परिचर्चा एवं आलू व्यंजन प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाएगा.

इस 2 दिवसीय आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों के 1,000 से अधिक प्रगतिशील किसान, आलू क्षेत्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ, केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं निजी क्षेत्रों के वैज्ञानिक और प्रतिनिधि भाग लेंगे.

इस मौके पर जो लोग संस्थान या प्रतिष्ठान के तकनीकों या उत्पादों का सजीव प्रदर्शन करना चाहते हैं, वह स्टाल लगाने के निर्धारित शुल्क 20,000/- रुपए मात्र बैंक खाता MS IPA UNIT CPRI के पक्ष में देय बैंक ड्राफ्ट अथवा औनलाइन एनईएफटी या आरटीजीएस द्वारा खाता संख्या 10172902441, State Bank of India, IFSC – SBIN0003067 में भुगतान कर के अधोहस्ताक्षरी को 6 मार्च, 2024 से पहले सूचित कर सकते हैं.

एफपीओ (FPO) बनाता है किसानों को आत्मनिर्भर

बस्ती: आत्मनिर्भर कृषक समन्वित विकास योजनांतर्गत कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) की मंडल स्तरीय कार्यशाला आयुक्त सभागार में संपन्न हुई, जिस में प्रदेश की अर्थव्यवस्था को ‘एक ट्रिलियन डालर अर्थव्यवस्था‘ के रूप में स्थापित करने में ‘उत्तर प्रदेश कृषक उत्पादन संगठन नीति 2020‘ एक सशक्त साधन के रूप में स्थापित की गई.

मुख्य अतिथि जेडीसी पीके शुक्ला ने कहा कि इस नीति की मूल अवधारणा प्रदेश के किसान को कृषक उद्यमी के रूप में संगठित करना है. कृषक उत्पादक संगठन का मुख्य उद्देश्य निर्माता के लिए स्वयं के संगठन के माध्यम से बेहतर आय सुनिश्चित करना है.

संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र ने कहा कि एफपीओ का उद्देश्य लघु एवं सीमांत किसानों को एक मंच प्रदान करना है, जहां वे संगठित रूप से काम कर अन्य उत्पादों की तरह लाभ ले सकें.
उन्हांेने आगे कहा कि राज्य सरकार द्वारा एफपीओ के गठन, संचालन और उन के विभिन्न कामों के लिए अनुदान पर माली मदद दी जाती है. उन्होंने यह भी बताया कि कार्बन से सुरक्षा के लिए तेजी से बढ़ने वाले पेड़ मेंड़ों पर लगाए जा सकते हैं.

उन्होंने जानकारी देते हुए यह भी बताया कि एक एफपीओ में कम से कम 150 सदस्य हो सकते हैं. एफपीओ को फार्म मशीनरी बैंक, खादबीज, यंत्र का लाइसैंस दिया जाएगा. एफपीओ द्वारा बीज उत्पादन करने पर 0.1 करोड़ रुपए पर अधिकतम 60 लाख रुपए तक अनुदान दिया जाता है. एफपीओ द्वारा उत्पादित बीज, बीज विकास निगम खरीदता है. एफपीओ धान, गेहूं खरीद केंद्र भी खोल सकते हैं.

लखनऊ कृषि निदेशालय से आए तकनीकी हैड अनिमेश श्रीवास्तव ने बताया कि प्रदेश के सभी एफपीओ को शक्ति पोर्टल पर पंजीकरण कराना अनिवार्य है. पंजीकरण के बाद एफपीओ को कृषि से संबंधित सभी योजनाओं की जानकारी, ई-बाजार, मंडी भाव, इनपुट की जानकारी और एफपीओ की ग्रेडिंग एवं रैंकिंग की जानकारी हो सकेगी.

इस के आधार पर बैंक एफपीओ को उन की व्यावसायिक गतिविधियों के लिए लोन आसानी से दे सकेंगे. प्रत्येक एफपीओ सेवा, उत्पाद और व्यापार के क्षेत्र में काम कर के किसानों को बिचैलियों से बचा सकता है.

पर्यावरणविद बीएन पांडेय ने बताया कि अच्छी खेती के लिए पराली प्रबंधन, मृदा परीक्षण, कंपोस्ट खाद का उपयोग, फसल चक्र अपनाने और कृषि वानिकी के साथसाथ समयबद्ध कृषि के काम अनिवार्य है.

कुशीनगर से आए प्रावधान एफपीओ के अध्यक्ष अंशुमान उपाध्याय ने श्रीअन्न की प्रोसैसिंग एवं उस से जुड़े यंत्र की जानकारी दी. केवीके, बस्ती के वैज्ञानिक डा. प्रेमशंकर ने बताया कि बटन मशरूम के लिए गुणवतापूर्ण कंपोस्ट खाद तैयार करना आवश्यक है.

अयोध्या के विपणन अधिकारी डा. शशिकांत सिंह ने उत्तर प्रदेश कृषि निर्यात नीति 2019 के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि बस्ती मंडल में काला नमक चावल, सिद्धार्थनगर और संतकबीर नगर में केला व बस्ती जनपद के लिए हरी सब्जियों को जीआई टैग प्राप्त है. उन्होंने इस का अधिक से अधिक क्लस्टर बना कर खेती करने का सुझाव दिया.

मुख्य प्रबंधक, यूको बैंक, अयोध्या क्षेत्र के विक्रांत त्यागी ने बताया कि यूको बैंक के माध्यम से पूर्वांचल के 16 जिलों में एफपीओ को ऋण देने का काम किया जाता है. उपनिदेशक, उद्यान, पंकज शुक्ला ने फूड प्रोसैसिंग नीति के बारे में जानकारी दी. उन्होंने यह भी बताया कि बीज उत्पादन के लिए लाइसैंस लेना अनिवार्य है.

कार्यशाला का संचालन जिला कृषि अधिकारी डा. राजमंगल चैधरी ने किया. उन्होंने बताया कि कृषि के साथसाथ उद्यान, पशुपालन, रेशम, दुग्धपालन, मत्स्यपालन, गन्ना सहित 17 विभाग एफपीओ के माध्यम से किसानों को लाभान्वित कर सकते हैं.

कार्यशाला में उपकृषि निदेशक अशोक कुमार गौतम, अरविंद कुमार विश्वकर्मा, सहायक आयुक्त, गन्ना, रंजीत कुमार निराला, यूको बैंक प्रबंधक स्वर्णा त्रिपाठी, एफपीओ के निदेशक राममूर्ति मिश्रा, शिवचंद्र दुबे, वीरेंद्र कुमार, घनश्याम और बस्ती, सिद्धार्थ नगर व संतकबीर नगर के विभागीय अधिकारी एवं एफपीओ के निदेशक उपस्थित रहे.

गेहूं की उन्नत किस्म (Improved Wheat Variety) ‘डब्ल्यूएच 1270’ पहुंचेगी किसानों तक

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित गेहूं की ’डब्ल्यूएच 1270’ की उन्नत किस्म किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है, क्योंकि यह किस्म गेहूं की अधिक पैदावार तो बढ़ाती है, साथ ही साथ गेहूं की मुख्य बीमारियां जैसे पीला मोजक, रतुआ व भूरा रतुआ के प्रति रोगरोधी क्षमता से भी परिपूर्ण है. इन्हीं गुणों के साथ गेहूं की ‘डब्ल्यूएच 1270’ की उन्नत किस्म हरियाणा के साथसाथ देश के सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्यों के किसानों को भी भरपूर फायदा मिल रहा है.

ये विचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कंपनियों से समझौते के दौरान कहे किसानों की माली हालत को और मजबूत बनाने के लिए विश्वविद्यालय ने जगदीश हाईब्रिड सीड्स कंपनी, सुपर सीड्स, हिसार, यमुना सीड्स, इंद्री व गोपाल सीड्स फार्म, मानसा से समझौता किया है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि उन्नत किस्म ‘डब्लयूएच 1270’ की पैदावार व रोग प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए इस की मांग अन्य राज्यों में भी लगातार बढ़ती जा रही है. विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के गेहूं अनुभाग द्वारा विकसित गेहूं की किस्म ‘डब्ल्यूएच 1270’ को भारत के उत्तरपश्चिमी मैदानी भाग के सिंचित क्षेत्र में अगेती बिजाई वाली खेती के लिए वरदान साबित हो रही है. इस की मांग पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगातार बढ़ती जा रही है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आगे यह भी बताया कि यह वैज्ञानिकों की मेहनत का ही परिणाम है कि हरियाणा प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत ही छोटा है, जबकि देश के केंद्रीय खाद्यान्न भंडारण में प्रदेश का कुल भंडारण का तकरीबन 16 फीसदी हिस्सा है और फसल उत्पादन में अग्रणी प्रदेशों में है.

एकसाथ 4 कंपनियों के साथ हुआ समझौता, अभी तक हो चुके हैं कुल 35 समझौते

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजू महता ने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर से एकसाथ 4 कंपनियों के साथ समझौते हुए, जिन में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने हस्ताक्षर किए, जबकि जगदीश हाईब्रिड सीड्स कंपनी की ओर से नमन मित्तल और प्रबंधक महावीर, सुपर सीड्स, हिसार के निदेशक अंकित गर्ग, यमुना सीड्स, इंद्री के पार्टनर रमन कुमार और गोपाल सीड्स फार्म, मानसा के प्रबंधक संदीप कुमार ने समझौते पर हस्ताक्षर किए.

गेहूं की उन्नत किस्म (Improved Wheat Variety)

ज्ञात रहे कि विश्वविद्यालय ने गेहूं की ‘डब्ल्यूएच 1270’ की उन्नत किस्म किसानों तक पहुंचाने के लिए कुल 35 कंपनियों से समझौते किए हैं.

‘डब्ल्यूएच 1270’ की विशेषताएं

गेहूं एवं जौ अनुभाग के प्रभारी डा. पवन कुमार ने बताया कि इस किस्म में विश्वविद्यालय द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार बिजाई कर के उचित खाद, उर्वरक व पानी दिया जाए, तो इस की औसतन पैदावार 75.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है और अधिकतम पैदावार 91.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि इस समय गेहूं के अंदर बालियां निकलने लग रही हंै. कुछ क्षेत्रों के अंदर जहां रेतीली भूमि है, वहां पर सूक्ष्म तत्वों की कमी से होने वाले रोग के कारण बालियां ठीक से नहीं निकल पा रही हैं. यह मैगनीज तत्व की कमी के लक्षण हैं. इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि उपरोक्त स्थिति में वे 500 ग्राम मैगनीज सल्फेट 100 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ स्प्रे करें. इस से बालियां सही ढंग से निकलने लग जाएंगी. यदि उस के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों रहती है, तो एक सप्ताह के बाद पुनः मैगनीज सल्फेट का छिडकाव करें.

ये रहे मौजूद

इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, डा. ओपी बिश्नोई, एसवीसी कपिल अरोड़ा, आईपीआर सेल के प्रभारी डा. विनोद सांगवान सहित अन्य उपस्थित रहे.

जलकुंभी (Water Hyacinth) से करें जल का उपचार

“जलकुंभी एक जलीय पौधा है, जिस का उपयोग अपशिष्ट जल और भारी धातुओं को हटाने के लिए किया जा सकता है.” जी हां, जलकुंभी फ्री फ्लोटिंग यानी स्वतंत्र रूप से तैरने वाला जलीय पौधा है, जिस का उपयोग अपशिष्ट जल के उपचार और भारी धातुओं को हटाने के लिए किया जा सकता है.

यह तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, जो पानी से भारी धातुओं को अपनी जड़ों से ग्रहण कर सकता है. भारी धातुएं जलकुंभी पौधों की पत्तियों और तनों में आसानी से जमा हो जाती हैं.

जलकुंभी से जल का उपचार करने के लिए अपशिष्ट जल को पहले एक टैंक या तालाब में पंप किया जाता है, जहां जलकुंभी बढ़ रही होती है. ऐसी जगहों में जलकुंभी पानी से भारी धातुओं को सोख लेगी. पानी से जब जलकुंभी भारी धातुओं को सोख लेती है, तब कुछ समय के बाद जलकुंभी को काटा जा सकता है और पौधे से भारी धातुओं को हटाया जा सकता है.

भारी धातुओं को हटाने में जलकुंभी की दक्षता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिस में भारी धातु का प्रकार, पानी में भारी धातु की घुलनशीलता और जलकुंभी की वृद्धि दर शामिल है. सामान्य तौर पर जलकुंभी सीसा, जस्ता, तांबा और कैडमियम सहित विभिन्न प्रकार की भारी धातुओं को हटाने में प्रभावी हो सकती है.

जलकुंभी अपशिष्ट जल के उपचार और भारी धातुओं को हटाने के लिए कम लागत वाली और टिकाऊ विधि है. यह एक तकनीक है, जिस का उपयोग दुनिया के कई हिस्सों में पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जा सकता है.

धातुओं को हटाने और पानी के उपचार का तरीका

सब से पहले प्रदूषित या अपशिष्ट जल एकत्र करें, फिर तालाब में जलकुंभी उगाएं. इस के उपरांत अपशिष्ट या प्रदूषित जल को टैंक या तालाब में पंप करें, जहां जलकुंभी बढ़ रही हो. जिस जगह प्रदूषित पानी को जलकुभी के साथ इकट्ठा किया गया है, वहां जलकुंभी को कुछ समय के लिए पानी से भारी धातुओं को अवशोषित करने दें. जब लगे कि पानी से जलकुंभी ने भारी धातुओं को सोख लिया है, तो जलकुंभी की कटाई करें.
जब भारी धातुओं को यह सोख चुकी होती है, तब जलकुंभी से भारी धातुओं को हटा दें. इस जलकुंभी से उपचारित किए गए पानी का उपयोग सिंचाई, औद्योगिक प्रक्रियाओं या अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जलकुंभी अपशिष्ट जल उपचार का पूरी तरह समाधान नहीं है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि पानी मानव उपयोग के लिए सुरक्षित है, जलकुंभी उपचार को अन्य तरीकों जैसे निस्पंदन और क्लोरीनीकरण के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है.

– डा. ज्योत्सना मिश्रा, महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, दुर्ग,

कैंप कार्यालयः कृषक सभागार, इं.गां.कृ.वि.वि. परिसर, लाभांडी, रायपुर (छ.ग.) 492012)

किसानों को दिया गया जैविक खेती (Organic Farming) पर प्रशिक्षण

उदयपुर: 29 फरवरी, 2024. प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में विषय विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती के संदर्भ में आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही, जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशियों आदि जैविक उत्पादों का किसानों द्वारा स्वयं अपने स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के उपयोग से तैयार कर उपयोग करने के संबंध में सजीव प्रदर्शन के साथ जानकारी प्रदान की गई.

वर्तमान में कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कवकनाशियों और दूसरे रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से इनसान, दूसरे जीवजंतुओं एवं मृदा स्वास्थ्य पर हानिकारक व विपरीत प्रभावों को ध्यान में रखते हुए उक्त रसायनों के संतुलित उपयोग के साथ ही जिला सलूंबर में जैविक खेती के बेहतर विकल्प को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आदर्श किसान तैयार कर इन किसानों के जरीए जिले में दूसरे किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर के जैविक खेती में आदर्श और अग्रणी बनाए जाने की जरूरत को महसूस किया गया.

अतः उक्त अवधारणा को जिला कलक्टर, सलूंबर की पहल पर नवाचार कार्यकम के तौर पर ले कर क्रियान्वित करने के लिए जिले के प्रत्येक ब्लौक से 5-5 किसानों को चुना गया. किसानों को विश्वविद्यालय परिसर में ही केवल जैविक उत्पादों के उपयोग से बेहतरीन बढ़वार के साथ तैयार गेहूं, चना, मैथी आदि फसलों का मुआयना भी करवाया गया.

उक्त कार्यकम संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार), गौस मोहम्मद, सलूंबर द्वारा क्रियान्वित एवं हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, जावर माइंस, अभिमन्यु सिंह (जनसंपर्क अधिकारी) के सहयोग से संपादित किया गया.
उक्त प्रशिक्षक में जिला कलक्टर जसमित सिंह संधु स्वयं प्रशिक्षण में उपस्थित हो कर विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों का अवलोकन किया और किसानों से गोष्ठी में सवांद स्थापित किया एवं जैविक खेती अपनाने पर बल दिया.

डा. आरए कौशिक, निदेशक प्रसार, शिक्षा निदेशालय, डा. आरएस राठौड़, समन्वयक कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र, पुरुषोत्तम लाल भट्ट, उपनिदेशक, उद्यान सलूंबर, अभिमन्यु सिंह, नेहा दिवान (सीएसआर) इत्यादि ने इस गोष्ठी में भाग लिया.

डा. रविकांत शर्मा, परियोजना प्रभारी, अखिल भारतीय नैटर्वक, श्रवण कुमार यादव एवं रवि जैन, जैविक अनुसंधान परियोजना इकाई का अवलोकन कराया व इस की उपयोगिता बताई.

नस्ल सुधार के लिए वैज्ञानिक तरीके से भेड़पालन (Sheep Rearing)

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में मालपुरा भेड़ के सैक्टर मालपुरा परियोजना के एनडब्बूपीएसआई की एससीएसपी उपयोजना के अंतर्गत मालपुरा तहसील के 11 गांवों (सदरपुरा, चौरूपुरा, धोली, खेड़ा, भीपुर, कैरवालिया, लावा, डिग्गी नुक्कड़, लक्ष्मीपूरा, अजमेरी एवं चांदसेन) एवं पीपलू तहसील के ज्वाली गांव आदि के 20 अनुसूचित जाति के किसानों को मालपुरा भेड़ों में नस्ल सुधार हेतु वैज्ञानिक भेड़पालन पर पांचदिवसीय (19 से 23 फरवरी, 2024) प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन मुख्य अथिति डा. जीके गौड़, सहायक महानिदेशक, पशु उत्पादन एवं प्रजनन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, कार्यक्रम के अध्यक्ष व निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर,प्रधान वैज्ञानिक डा. आरसी शर्मा, विभाग अध्यक्ष डा. एसएस मिश्रा, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार, मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी राजकुमार एवं मालपुरा परियोजना के पीआई डा. पीके मलिक की मौजूदगी में किया गया.

मुख्य अथिति डा. जीके गौड़ द्वारा अपने संबोधन में सभी किसानों को वैज्ञानिक तरीके से भेड़पालन करने के लिए विभिन्न उदाहरणों से संबोधित किया.

उन्होंने आगे बताया कि भारत सरकार गांवों के किसानों को आधुनिक खेती और पशुपालन के माध्यम से ही विकसित भारत के सपने को पूरा करने के लिए हर रोज नई स्कीमें लागू कर रही है, जिस से गांवों में भी सभी तरह के संसाधनों का विकास हो.

उन्होंने यह भी बताया कि स्वच्छ वातावरण में पाला जाने वाला पशु ही सब से अच्छा मांस और उत्पाद देता है. यह वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन करने से ही संभव है.

भेड़पालन (Sheep Rearing)

अंत मे उन्होंने कहा कि आप के उत्थान के लिए ही हम लोग काम कर रहे हैं, इसलिए आप की आर्थिक उन्नति होने पर ही हमारे कामों की सार्थकता है.

निदेशक डा. अरुण कुमार द्वारा किसानों को भेड़पालन पर उन की समस्या को सुनते हुए अपनी टीम के साथ उपयुक्त सुझाव दिया और निवेदन किया कि भेड़पालन के लिए वैज्ञानिक तरीका और मालपुरा भेड़, सिरोही नस्ल के अच्छे पशु ही पालना चाहिए, जिस से आप को अच्छा मुनाफा मिले, क्योंकि इस वातावरण मे ये पशु सर्वोत्तम है. आने वाले समय में आप का क्षेत्र मालपुरा भेड़ के उत्तम पशुओं का अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए अच्छा पशु मिलने का केंद्र बनेगा .

उन्होंने बताया कि अभी संस्थान के पास किसानों की बहुत मांग है और आप के सहयोग के बिना मेरा संस्थान पूर्ति नहीं कर सकता.

पशु आनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डा. एसएस मिश्रा एवं मालपुरा परियोजना एनडब्लूपीएसआई के प्रधान अन्वेषक डा. पीके मलिक द्वारा समापन कार्यक्रम में पधारे अथितियों का स्वागत करते हुए परियोजना और विभाग द्वारा किए जा रहे प्रयास पर प्रकाश डालते हुए किसानों को संस्थान की बातों का प्रसार अन्य को करने का भी निवेदन किया.

कार्यक्रम के अथितियों द्वारा सभी किसानों को प्रशिक्षण प्रमाणपत्र के साथ चारा ट्राफ, लोहे की जाली, पशुपालन से जुड़े आवश्यक सामान का वितरण किया गया.

कार्यक्रम में एजीबी विभाग के वैज्ञानिक डा. नागराजन, डा. राजीव कुमार, डा. एसएमके थिरूमरान, डा. सरवणे, अमर सिंह मीना, योगीराज के साथ परियोजना की फील्ड में काम कर रहे कर्मचारी भी उपस्थित रहे.