कम लागत में प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से कैसे करें अच्छी कमाई?

प्राकृतिक खेती के जरीए खेती की लागत में न केवल कमी लाई जा सकती है, बल्कि फसलों पर किए जाने वाले अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग पर लगाम लगा कर सेहतमंद अनाज, फलसब्जियों आदि का उत्पादन भी किया जा सकता है.

प्राकृतिक खेती का सब से प्रमुख आधार है पशुपालन. क्योंकि पशुपालन से प्राप्त गोबर और गौमूत्र को मिट्टी की उत्पादन कूवत में कई गुना वृद्धि करने में सहायक माना जाता है.

गौपालन के जरीए खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा ने अपने खेत की लागत को न केवल कम करने में सफलता पाई है, बल्कि वह जहरमुक्त खेती के जरीए लोगों की सेहत को सुधारने का काम भी कर रहे हैं.

किसान राममूर्ति मिश्रा से गौआधारित खेती को ले कर लंबी बातचीत हुई. पेश है उन से हुई बातचीत के खास अंश :

खेती की लागत में कमी लाने के साथ उसे टिकाऊ कैसे बनाएं?

खेती में प्रयुक्त रसायनों की बढ़ती कीमतों एवं घटती उत्पादकता और मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती में ही संभव है. अगर किसान फसल चक्र अपनाएं, तो खेती में विविधीकरण होता है और इस से पैदावार बिना लागत बढ़ाए ही बढ़ जाती है. प्राकृतिक खेती करने पर पारिस्थितिकी में विभिन्न वनस्पतियों, जीवों व जंतुओं की विविधता अधिक होने से इन का संतुलन बना रहता है और फसलों के स्वस्थ होने पर उन में रोग व व्याधि भी नहीं लगते. साथ ही, पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है.

अगर किसान खेती की लागत में कमी के साथ टिकाऊ बनाना चाहते हैं, तो उन्हें गौआधारित प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे कदम बढ़ाना होगा.

चूंकि प्राकृतिक खेती से प्राप्त उपज को सेहतमंद माना जाता है, इसलिए किसानों को उत्पाद की कीमत अधिक मिलती है.

अगर किसान जैविक खेती प्रमाणीकरण के नियमों का पालन कर जैविक प्रमाणीकरण करा लें, तो उन की उपज की मांग अपनेआप बढ़ जाती है.

प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उत्पादन कूवत कैसे बढ़ती है?

हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन कई प्रकार की गंभीर समस्याएं भी पैदा हुई हैं. रसायनों के बहुत ज्यादा उपयोग के कारण कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उन की जनसंख्या का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. साथ ही, जैव विविधता में कमी आ रही है. प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत अच्छी होगी और उत्पादन भी बेहतर होगा.

प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केंचुए की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ सस्य क्रियाएं, जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवशेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं. इसे अपना कर किसान कृषि निवेशों की बाजार से निर्भरता को कम कर सकते हैं. इस प्रकार लागत में भी कमी आएगी. इस से उत्पादित खाद्य पदार्थों से मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है. साथ ही, मृदा स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है.

किसान शुरुआत में प्राकृतिक खेती के जरीए थोड़ी सी भूमि पर इस का परीक्षण अवश्य करें.

आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन बढ़ा है, तो किसानों की आय भी बढ़ी है, किंतु आमदनी का ज्यादा हिस्सा बीमारी में चला जाता है और पर्यावरण का नुकसान हो रहा है. साथ ही, उत्पादकता भी घट रही है. इसलिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प हो सकती है.

एक देशी गाय से किसान कितने क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती कर सकते हैं?

प्राकृतिक खेती में एक देशी गाय से 30 एकड़ तक की खेती की जा सकती है, क्योंकि एक एकड़ की खुराक तैयार करने के लिए गाय के एक दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है. प्राकृतिक खेती में बाजार से कुछ भी खरीदने की जरूरत नहीं है, जबकि जैविक खेती एक महंगी पद्धति है.

पशु चिकित्सा, जनस्वास्थ्य एवं महामारी पर कार्यशाला

हिसार : लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के पशु चिकित्सा जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग में क्रोमैटोग्राफी तकनीकों के प्रयोग द्वारा खाद्य एवं पर्यावरण संबंधी नमूनों में दूषित पदार्थों (संदूषकों) की जांच विषय पर तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा के दिशानिर्देशन में किया गया.

इस कार्यशाला के समापन समारोह में डा. सज्जन सिहाग, अधिष्ठाता, डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. इस अवसर पर डा. सज्जन सिहाग ने कहा कि इस कार्यशाला में सभी प्रतिभागी निश्चित रूप से लाभान्वित हुए होंगे और इन क्रोमैटोग्राफी तकनीकों को अपनेअपने कार्यक्षेत्रों में प्रयोग करने के लिए सभी प्रतिभागियों को प्रेरित किया.

डा. सज्जन सिहाग ने इन क्रोमैटोग्राफी आधारित तकनीकों से संबंधित कार्यशालाओं को भविष्य में आयोजन करने और इन के प्रयोग द्वारा खाद्य व पशुओं के खाद्य पदार्थों में विभिन्न टोक्सिकनों की जांच के लिए तकनीकों के प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया.

सभी प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र दिए गए
प्रशिक्षण के सफल आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए पशु चिकित्सा, जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान के विभागाध्यक्ष एवं निदेशक मानव संसाधन एवं प्रबंधन डा. राजेश खुराना ने बताया कि इस तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रदेश के विभिन्न संस्थानों के 20 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.

उन्होंने बताया कि भविष्य में भी क्रोमैटोग्राफी तकनीकों से संबंधित अन्य तरीकों एवं उन के उपयोग पर भी कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा.

इस कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्राध्यापक एवं प्रशिक्षक संयोजक डा. विजय जाधव द्वारा किया गया. उन्होंने प्रतिभागियों से इस कार्यशाला से हुए फायदे व भविष्य में इस को अधिक प्रभावी तरीके से आयोजन करने के लिए फीडबैक लिया.

इस अवसर पर विभाग के अन्य संकाय सदस्य डा. दिनेश मित्तल, डा. रेनू गुप्ता, डा. पल्लवी मुदगिल एवं डा. मनेश कुमार भी उपस्थित रहे. कार्य्रकम के अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डा. विजय जाधव द्वारा प्रस्तुत किया गया.

मत्स्य आहार संयंत्र (Fish Feed Plant) से सानिया बनी सफल उद्यमी

छिंदवाड़ा : प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड परासिया के ग्राम जाटाछापर की सानिया अली और उन के पति जुनेद खान के लिए खासी अच्छी साबित हुई है. इस योजना के अंतर्गत जिले के विकासखंड छिंदवाड़ा के ग्राम भैंसादंड में लगभग साढ़े 3 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित 20 टन प्रति दिवस के उत्पादन क्षमता के प्रदेश के पहले मत्स्य आहार संयंत्र की स्थापना कर सानिया अली और उन के पति जुनेद खान सफल उद्यमी बन गए हैं. उन की माली हालत अब अत्यंत सुदृढ़ हो गई है.

सानिया अली और उन के पति जुनेद खान ने अपनी जेके इंडस्ट्रीज की स्थापना से जहां वर्ष 2023-24 में लगभग 90 लाख रुपए और वर्ष 2023-24 में लगभग पौने 2 करोड़ रुपए का टर्नओवर प्राप्त किया है, वहीं अपने इस उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 200 व्यक्तियों को रोजगार भी दिया है. अब वर्ष 2024-25 में उन्हें अपने व्यापार से लगभग ढाई से 3 करोड़ रुपए का टर्नओवर प्राप्त होने की संभावना है. हितग्राही को इस मत्स्य आहार संयंत्र में उत्पादित मत्स्य आहार के विक्रय से प्रतिवर्ष लगभग 8 से 10 लाख रुपए तक की आय प्राप्त हो रही है.

जेके इंडस्ट्रीज, भैंसादंड की स्वामी सानिया अली अपने पति जुनेद खान के साथ इस मत्स्य आहार संयंत्र का संचालन कर रही हैं. उन्होंने अपने पति जुनेद खान को इस इंडस्ट्रीज का मुख्य कार्यपालन अधिकारी नियुक्त किया है. मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान इस इंडस्ट्रीज को संचालित करने के लिए अपनी पत्नी सानिया अली को भरपूर सहयोग देते हैं. उन की मेहनत व संघर्ष का नतीजा है कि उन का व्यापार अब सफलता की ओर निरंतर बढ़ रहा है और एक सफल उद्यमी के रूप में उन की पहचान बन रही है.

जुनेद खान ने बताया कि वे लगभग 16 वर्ष की आयु से मत्स्यपालन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इस के पूर्व वे वर्ष 2018 में जिले के जुन्नारदेव विकासखंड के ग्राम घोड़ावाड़ी में एक पौंड को किराए पर ले कर मत्स्यपालन कर चुके हैं.

2 साल तक उन्हें इस काम में घाटा हुआ और तीसरे वर्ष इस काम से उन्हें लाभ प्राप्त होना शुरू हुआ, किंतु अनुभव की कमी के कारण इस में अधिक सफलता नहीं मिली. वे मत्स्य आहार के क्षेत्र में कुछ बेहतर करना चाहते थे, इसलिये वे उचित मार्गदर्शन के लिए मत्स्य विभाग पहुंचे, जहां तत्कालीन सहायक संचालक मत्स्योद्योग द्वारा पुन: 5 लाख रुपए तक की मत्स्य यूनिट की जानकारी दी गई, जिस से उन्हें संतुष्टि नहीं मिली.

उन्होंने अन्य बड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त करना चाही, तो उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की जानकारी हुई, जिस में निजी क्षेत्र में मत्स्य आहार संयंत्र की स्थापना के लिए 2 करोड़ रुपए तक का लोन और 60  फीसदी का अनुदान उपलब्ध कराया जाता है. इस जानकारी से उन का मन प्रसन्न हो गया और उन्होंने अपनी पत्नी के नाम से इस योजना के अंतर्गत अपना प्रकरण तैयार कराया और मत्स्य विभाग के माध्यम से उन्हें 2 करोड़ रुपए का लोन और 60 फीसदी अर्थात 1.20 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ. इस संयंत्र की 13 सितंबर, 2021 को स्थापना की गई, जिस का उद्घाटन तत्कालीन संचालक मत्स्योद्योग भरत सिंह, संयुक्त संचालक शशिप्रभा धुर्वे और सहायक संचालक मत्स्योद्योग रवि गजभिये द्वारा किया गया.

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन ने 4 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश के इस प्रथम मत्स्य आहार संयंत्र का अवलोकन किया और संयंत्र के माध्यम से तैयार किए जा रहे मत्स्य आहार की प्रक्रिया की जानकारी के साथ ही मत्स्य आहार की गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता, विक्रय दर, मत्स्य आहार की पैकिंग, निर्यात आदि के संबंध में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर इस संयंत्र के माध्यम से तैयार किए जा रहे मत्स्य आहार और अन्य प्रक्रियाओं पर संतोष व्यक्त करते हुए इस की सराहना भी की.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के देश में क्रियान्वयन के सफल 3 वर्ष पूरे होने पर 15 सितंबर, 2023 को ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर, इंदौर में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रम में भी उन्होंने प्रदेश के प्रथम मत्स्य आहार संयंत्र के रूप में अपने संयंत्र का स्टाल लगा कर प्रदर्शन भी किया, जिस की केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने सराहना की.

मत्स्य आहार संयंत्र से छिंदवाड़ा जिले के साथ ही आसपास के जिलों बैतूल, सिवनी, बालाघाट, इंदौर, भोपाल, खंडवा, राजगढ़, नर्मदापुरम आदि एवं प्रदेश के बाहर के प्रदेशों असम, ओड़िसा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि में भी विक्रय किया जा रहा है.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान ने बताया कि इस संयंत्र की स्थापना में उन की पत्नी और उन्हें अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि संयंत्र की स्थापना के लिए मत्स्य विभाग से लोन और अनुदान प्राप्त करने के अलावा अपने पिता जमील खान से लगभग 30 लाख रुपए की लागत से एक एकड़ भूमि खरीदवाई, बैंक औफ बड़ौदा की छिंदवाड़ा शाखा से 50 लाख रुपए का कर्जा लिया, व्यक्तिगत कर्ज लिया और अपनी सारी जमापूंजी लगाने के साथ ही अन्य रिश्तेदारों से भी माली मदद ली. भवन व अधोसंरचना निर्माण में लगभग 80 लाख रुपए, मुख्य आहार निर्माण मशीन में लगभग सवा करोड़ रुपए निजी ट्रांसफार्मर की स्थापना पर लगभग 12 लाख रुपए, रौ मेटेरियल पर लगभग 13 से 14 लाख रुपए, पैकिंग सामग्री पर लगभग 4 लाख रुपए, ट्रेड मार्क लेने पर लगभग 3 लाख रुपए और अन्य मदों पर राशि खर्च हुई.

उन्होंने आगे बताया कि आहार संयंत्र की स्थापना में पहले 2 साल बहुत ही मुश्किल हालात में बीते. राजस्थान और चीन से आहार संयंत्र की अत्याधुनिक मशीनें खरीदी गई थीं, किंतु राजस्थान से खरीदी मशीन बारबार बंद हो रही थी और उस के पार्ट्स व इंजीनियर को राजस्थान से बुलवाने में काफी समय लगता था. ऐसी स्थिति में 4 से 7 दिनों तक उत्पादन प्रभावित होता था. सुबह 9 बजे से लगातार रात 4 से 5 बजे तक मशीन का सुधार कार्य चलता था और इस काम में 3 से 4 दिन लग जाते थे. इस स्थिति से परेशान हो कर संबंधित कंपनी को मशीन वापस भेज कर उस से दूसरी मशीन रिप्लेस करवाई गई और काम शुरू किया गया.

मशीनरी ठीक होने के बाद जब अप्रैलमई, 2022 में उत्पादन प्रारंभ हुआ, तो मार्केटिंग की समस्या सामने आई और इस में एक वर्ष तक घाटे की स्थिति रही. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संयंत्र को बंद करना पड़ सकता है, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी और न ही उन की हिम्मत टूटी.

अपनी जिद और जुनून के दम पर उन्होंने मार्केटिंग के लिए अपनी इंडस्ट्री का ट्रेडमार्क लिया और देश के विभिन्न राज्यों में 15 डीलर नियुक्त किए, जिन के माध्यम से उन्हें व्यापार में सफलता मिलनी शुरू हुई.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान ने बताया कि मत्स्य आहार बनाने के लिए उन्होंने कोलकाता और नई दिल्ली के वैज्ञानिकों और डाक्टरों से रेसिपी प्राप्त की और आहार बनाना शुरू किया. मत्स्य आहार बनाने के लिए रौ मेटेरियल के रूप में सोयाबीन व सरसों की खली, गेहूं, मक्का, चावल, सूखी मछली, मछली का तेल, मेडिसन, मिनरल्स और अन्य सामग्री का उपयोग किया जा रहा है. उन के संयंत्र में मछलियों के साइज के हिसाब से आहार तैयार किया जाता है, जिस में 20 किलोग्राम और 35 किलोग्राम के पैकेट तैयार किए जाते हैं. 20 किलोग्राम की पैकिंग में 4 प्रकार के आहार बनाए जाते हैं, जिस में डस्ट में 40 फीसदी प्रोटीन व 6 फीसदी फेट, एक एमएम में 32 फीसदी प्रोटीन व 6 फीसदी फेट, 2 एमएम में 30 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट और 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट रहता है.

वहीं दूसरी ओर 35 किलोग्राम की पैकिंग में 3 एमएम में 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 व 6 एमएम में 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 एमएम में 26 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 एमएम में 24 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट और 4 एमएम में 20 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट रहता है.

इस पौष्टिक आहार से 6 माह में ही मछलियों का विकास एक से डेढ़ किलोग्राम तक होने पर वे बिकने को तैयार हो जाती हैं. इन के बिकने से कम समय में अधिक आय प्राप्त होती है और मत्स्यपालक लाभान्वित होते हैं, जबकि दूसरी कंपनियों के आहार में यह विकास 8 से 10 माह में होता है. बाजार मूल्य से 20 फीसदी कम मूल्य पर मत्स्य आहार उपलब्ध कराने पर हमारे संयंत्र से उत्पादित पौष्टिक आहार की मांग बढ़ती जा रही है.

उन्होंने आगे बताया कि मुख्य संयंत्र में प्रत्यक्ष रूप से 20 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिन्हें स्थायी रोजगार मिला है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से 15 डीलरों के पास 10-10 किसानों के अलावा 15 से 20 अन्य व्यक्ति रोजगार प्राप्त करते हैं और ट्रांसपोर्ट के काम में लगे 10 ट्रकों के 20-20 ड्राइवरों व कंडक्टरों को भी स्थायी रोजगार मिला है.

उन्होंने यह भी बताया कि उन के परिवार में पतिपत्नी के अलावा उन का एक 7 साल का बेटा व 3 साल की बेटी है. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की तालीम हासिल की है, जबकि उन की पत्नी इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैं.

अपने मत्स्य आहार संयंत्र को उन्होंने भारत का सब से बड़ा आहार निर्माण संयंत्र बनाने का संकल्प लेते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ति की ओर वे निरंतर बढ़ रहे हैं.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने से उन्हें समाज में भी सम्मान मिला है. वह और अन्य उद्यमियों को इस योजना का लाभ लेने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.

उन्होंने अपने पिता जमील खान, जिन्हें वे अपना गुरु मान कर उनके सिखाए रास्ते पर अपने उद्योग को चला रहे हैं, के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया है. साथ ही, इस योजना के अंतर्गत मत्स्य आहार संयंत्र चलाने में मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग प्रदान करने के लिए सहायक संचालक मत्स्योद्योग राजेंद्र सिंह, सहायक मत्स्योद्योग अधिकारी संजय अंबोलीकर और मत्स्य निरीक्षक अनिल राउत के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया है.

 किसानों के खेतों पर लगेंगे 50 हजार से अधिक सोलर पंप (Solar Pumps)

जयपुर : मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की आमदनी बढ़ा कर उन्हें खुशहाल और समृद्ध करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने आते ही सब से अधिक फैसले किसान हित में लिए हैं. पीएम किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के लिए वित्तीय सहायता को 6,000 से बढ़ा कर 8,000 रुपए प्रतिवर्ष किया गया है और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 125 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोनस दे कर इसे 2,400 रुपए कर दिया गया है.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पिछले दिनों जयपुर के दुर्गापुरा स्थित राज्य कृषि प्रबंध संस्थान में आयोजित पीएम कुसुम सौर पंप संयंत्र स्वीकृतिपत्र वितरण समारोह को संबोधित कर रहे थे. समारोह में 500 से ज्यादा किसान उपस्थित थे, जिन में से 10 किसानों को मुख्यमंत्री और कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डा. किरोड़ी लाल ने स्वीकृतिपत्र प्रदान किए.

विभिन्न जिलों में पंचायत समिति केंद्रों पर किसान वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से जुड़े. सोलर पंप के लिए प्रदेश के लगभग 50,000 किसानों को स्वीकृतियां जारी की गई हैं, इस पर लगभग 1,830 करोड़ रुपए का खर्च होगा, जिस में से 908 करोड़ रुपए अनुदान के रूप में किसानों को प्रदान कर लाभान्वित किया जाएगा. इन सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना से लगभग 200 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि हमारे किसानों की कड़ी मेहनत के कारण ही आज राजस्थान इसबगोल एवं जीरा उत्पादन में देशभर में प्रथम, मैथी, लहसुन एवं सौंफ के उत्पादन में दूसरे और अजवाइन एवं धनिया के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. किसानों की उपज बढ़ाने के लिए राज्य बजट में 12 लाख किसानों को मक्का, 8 लाख किसानों को बाजरा, 7 लाख किसानों को सरसों, 4 लाख किसानों को मूंग एवं 1-1 लाख किसानों को ज्वार एवं मोठ के बीज की मिनीकिट निःशुल्क उपलब्ध कराने की घोषणा की गई है.

उन्होंने यह भी कहा कि उन्नत कृषि यंत्र किसानों को किराए पर उपलब्ध कराने के लिए 500 कस्टम हायरिंग केंद्रों की भी स्थापना की जाएगी.

पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की समस्या होगी दूर
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार ने अपने 3 माह के अल्प कार्यकाल में पानी की समस्या को दूर करने के लिए प्राथमिकता से काम किया है. पूर्वी राजस्थान के लिए ईआरसीपी एकीकृत परियोजना और शेखावाटी क्षेत्र के लिए ताजेवाला हैडवर्क्स के ऐतिहासिक एमओयू के माध्यम से इन क्षेत्रों में पेयजल एवं सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो सकेगा. साथ ही, उदयपुर में देवास बांध परियोजना तृतीय एवं चतुर्थ के माध्यम से दक्षिण राजस्थान में भी जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी नहर के 15 किलोमीटर लंबे कच्चे हिस्से को भी पक्का करवाने की मंजूरी दे दी गई है.

ऊर्जा के क्षेत्र में सरप्लस स्टेट बनेगा राजस्थान
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि किसानों को समय पर और पर्याप्त बिजली आपूर्ति सुनिश्चित हो, इस के लिए हम ने किसानों को सौ दिन की कार्ययोजना में 20 हजार से अधिक कृषि कनेक्शन जारी किए हैं. हाल ही में 3,325 मेगावाट क्षमता की थर्मल आधारित और 28,500 मेगावाट क्षमता की अक्षय ऊर्जा आधारित विद्युत परियोजनाओं के लिए 1 लाख, 60 हजार करोड़ रुपए के एमओयू किए हैं. इन परियोजनाओं की स्थापना के बाद प्रदेश ऊर्जा क्षेत्र में सरप्लस स्टेट बनेगा. हम भविष्य में बिजली खरीदने के बजाय बेचेंगे.

उन्होंने कहा कि पिछली सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन के कारण राज्य की समस्त बिजली कंपनियों पर ऋण भार बढ़ कर डेढ़ गुना हो गया था.

किसानों का हो रहा उत्थान
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद ‘गरीबी हटाओ’ के नारे बहुत लगे, मगर धरातल पर काम नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि देश में किसानों को संबल प्रदान करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. उन्होंने सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए ’पीएम सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना’ शुरू करने की घोषणा की है, जिस में एक करोड़ घरों को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जाएगी.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में सौर पंप सैट लगाने की दिशा में उल्लेखनीय काम हो रहा है. अब तक डेढ़ लाख से अधिक सोलर पंप सेट लगाए जा चुके हैं. राज्य सरकार पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत प्रदेश में सभी मौजूदा ट्यूबवैलों का सौ फीसदी सौर ऊर्जा द्वारा संचालन सुनिश्चित करेगी.

गरीब किसान के सपने नहीं होंगे चकनाचूर
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि किसान कठिन हालात में संघर्ष कर अपने बच्चों को पढ़ने के लिए शहर भेजता है, ताकि वह सरकारी सेवा में आ कर जीवन में आगे बढ़ सके. मगर जब पेपर लीक होता है, तो किसानों के सपने चकनाचूर हो जाते हैं. हम ने सरकार बनते ही पेपर लीक के दोषियों पर सख्त कार्रवाई की और एसआईटी का गठन किया. आज गुनाहगारों की गिरफ्तारियां हो रही हैं. हमारा वादा है कि पेपर लीक का एक भी दोषी सजा से बच नहीं पाएगा.

इस अवसर पर कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री किरोड़ी लाल ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से पीएम कुसुम योजना के बी कंपोनेंट की शुरुआत प्रदेश में की गई है. जल्द ही राज्य सरकार ‘कृषि विभाग आप के द्वार’ अभियान शुरू करेगी, जिस में किसानों के घरघर जा कर उन्हें विभागीय योजनाओं की जानकारी दी जाएगी.

ये है पीएम कुसुम योजना
योजना में केंद्र व राज्य सरकार द्वारा किसानों को खेतों में सोलर पंप लगाने पर 60 फीसदी दिया जाता है, जिस में से 30 फीसदी अंशदान केंद्र व 30 फीसदी अंशदान राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है. इस के अतिरिक्त प्रदेश के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए राज्य मद से 45 हजार रुपए का प्रति किसान  अतिरिक्त अनुदान भी दिया जा रहा है. जनजातीय क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के किसानों को 3 एचपी एवं 5 एचपी क्षमता के सौर संयंत्र लगाने पर सौ फीसदी अनुदान दिया जा रहा है.
कार्यक्रम में ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हीरालाल नागर, सांसद रामचरण बोहरा, ऊर्जा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आलोक, कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया सहित विभिन्न जनप्रतिनिधि, तमाम अधिकारी, प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए किसान और बड़ी संख्या में आम लोग मौजूद रहे.

बीज परीक्षण (Seed Testing) के लिए बनेंगी प्रयोगशालाएं

कटनी : मध्य प्रदेश में उद्यानिकी फसलों के बीज परीक्षण के लिए प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएंगी. राज्य सरकार “एक जिला-एक नर्सरी” योजना के तहत नर्सरियों को हाईटैक नर्सरी के रूप में विकसित करेगी. उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री नारायण सिंह कुशवाह ने यह जानकारी उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा “आधुनिक तकनीकी से उद्यानिकी का समग्र विकास’’ विषय पर आयोजित दोदिवसीय कार्यशाला में दी.

मंत्री नारायण सिंह कुशवाह ने कहा कि लघु एवं सीमांत किसानों को उद्यानिकी की ओर आकर्षित करने के लिए आवश्यक है कि उन्हें उद्यानिकी फसलों के प्रमाणित बीज और पौध आसानी से उपलब्ध कराए जाएं. उन्होंने कहा कि इस के लिए उद्यानिकी विभाग प्रदेश में उन्नत बीज परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करेगा.

उन्होंने कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझावों पर भी विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए. कार्यशाला के प्रथम सत्र में कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कहा कि उद्यानिकी गतिविधियां कृषि का महत्वपूर्ण घटक है. किसानों की संपन्नता के लिए उन्हें कृषि के साथसाथ उद्यानिकी फसलों के प्रति आकर्षित किया जाना आवश्यक है.

प्रमुख सचिव उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण सुखवीर सिंह ने कहा कि किसानों को उद्यानिकी फसलों की ओर आकर्षित करने के साथसाथ उन्हें नवीन तकनीकी और उत्पादित माल की विक्रय प्रक्रिया पर भी योजना बनाई जा रही है. कार्यशाला में आए सुझावों पर उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा समयसीमा में कार्यवाही की जाएगी.

तकनीकी सत्र में नागपुर के वैज्ञानिक डा. आरके सोनकर द्वारा नीबूवर्गीय फलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन, प्रसंस्करण एवं विपणन पर वाराणसी के वैज्ञानिक शैलेष तिवारी ने मध्य प्रदेश में संकर सब्जी बीज उत्पादन की संभावनाओं पर, वैज्ञानिक डा. आरके जायसवाल ने फल पौध नर्सरी के अनिवार्य घटक, डा. केवीआर राव द्वारा मध्य प्रदेश उद्यानिकी फसलों की संरक्षित खेती की संभावनाओं पर तकनीकी, उपसंचालक एके तोमर द्वारा नर्सरी एक्रीडेशन करने के मापदंड और सुझावों पर अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के संचालक एम. सेलवेंद्रन सहित अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित थे.

जैविक खेती (Organic Farming) से पार्वती बनीं सफल सब्जी उत्पादक

छिंदवाड़ा : पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. आजीविका मिशन से जुड़ कर ग्रामीण महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर हो कर परिवार के भरणपोषण में सहयोग कर रही हैं, बल्कि समाज में उन्हें एक नई पहचान भी मिली है, जिस से घर, परिवार और समाज में उन का मानसम्मान बढ़ा है. छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड जुन्नारदेव की ग्राम पंचायत जुन्नारदेव विशाला के ग्राम जुन्नोर दमामी की पार्वती दीदी भी उन्हीं ग्रामीण महिलाओं में से एक हैं.

आजीविका मिशन के माध्यम से स्वसहायता समूह से जुड़ कर पार्वती दीदी जैविक खेती कर एक सफल सब्जी उत्पादक बन गई हैं. पिछले वर्ष पार्वती दीदी ने पेप्सिको कंपनी से आलू उत्पादन का अनुबंध किया था, जिस से 65,000 रुपए का खालिस मुनाफा प्राप्त हुआ था.

पार्वती दीदी जैविक खेती के लिए जैविक खाद का निर्माण स्वयं करती हैं और गांव के दूसरे लोगों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित करती हैं. अपने गांव को जैविक गांव बनाने का सपना देखने वाली पार्वती दीदी को एक सफल प्रशिक्षक और कृषि कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में एक नई पहचान भी मिली है.

निर्धन परिवार में जनमी पार्वती दीदी का विवाह छिंदवाड़ा जिले के ग्राम जुन्नोर दमामी निवासी विनोद पवार से हुआ. इस परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. पति हाथठेला में सब्जी बेच कर परिवार का जैसेतैसे भरणपोषण करते थे. इन के परिवार में पतिपत्नी के अलावा 2 बेटे और 1 बेटी है. जीवन में कई उतारचढ़ाव आए, कई मौके ऐसे भी आए, जब पार्वती और उन के परिवार को सूखी रोटी खा कर रात गुजारनी पड़ी, लेकिन पार्वती दीदी ने हिम्मत नहीं हारी.

वे वर्ष 2020 में ग्राम के संगठन आराध्या ग्राम संगठन जुन्नोर दमामी के अंतर्गत स्वसहायता समूह से जुड़ीं. समूह से जुड़ने के बाद उन के मन में खर्चों से कटौती कर बचत करने की भावना बढ़ी. सामूहिक बचत से छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी होने लगीं.

समूह से जुड़ने के उपरांत पार्वती दीदी को समूह, ग्राम एवं संकुल स्तरीय संगठन की अवधारणा, बुक कीपिंग, एमसीपी निर्माण, कृषि सखी एवं आजीविका मिशन के 30 मार्गदर्शी बिंदुओं का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ. इस के बाद उन्होंने कृषि सीआरपी (कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन) के रूप में कार्य शुरू किया.

आज पार्वती दीदी अपने गांव के अलावा ब्लौक स्तर के साथ ही अन्य जिले में भी प्रशिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं  दे कर ग्रामीण महिलाओं के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, जिस से उन्हें जिला स्तर पर एक सफल प्रशिक्षक एवं कृषि कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन की भी पहचान मिली है.

इतना ही नहीं, समूह से जुड़ने के बाद पार्वती दीदी ने सब से पहले सीसीएल लोन की राशि 10,000 रुपए ले कर अपने पति के हाथठेला व्यवसाय में गन्ने का रस वाली मशीन ले कर नया काम शुरू किया. 10 किस्तों में इस लोन को चुकाने पर दूसरा सीसीएल लोन 35,000 रुपए का प्राप्त हुआ, जिस से उन्होंने बंजर पड़ी भूमि को सुधार कर अपनी मेहनत और आजीविका मिशन के सहयोग से नई तकनीकी का प्रयोग कर व्यावसायिक सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया. तृतीय सीसीएल लोन राशि 50,000 रुपए से कृषि कार्य के लिए कुआं गहरीकरण कर और ट्रैक्टर एवं कल्टीवेटर के लिए लोन ले कर जैविक सब्जी उत्पादन एवं खेती का काम कर रही हैं.

सब्जियों के उत्पादन में पार्वती दीदी इतनी दक्ष हो गई हैं कि कंपनियों से अनुबंध कर सब्जियों के विक्रय से अच्छा लाभ प्राप्त कर रही हैं. पिछले साल पेप्सिको कंपनी से अनुबंध द्वारा आलू का विक्रय कर 65,000 रुपए का शुध्द लाभ प्राप्त किया था. इन की जैविक सब्जियां अपने स्वाद और गुणवत्ता के कारण लोकप्रिय बनी हुई हैं. मध्यान्ह भोजन के लिए स्कूलों और छात्रावासों के लिए इन की सब्जियों का विक्रय थोक में किया जाता है.

पार्वती दीदी ने सब्जियों और फसलों के उत्पादन में रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग अब पूरी तरह बंद कर दिया है. जैविक खाद और दवाओं जैसे ब्रम्हास्त्र, अग्निअस्त्र, नीमास्त्र, भूनाडेप, केंचुआ खाद का निर्माण स्वयं घर पर ही कर लेती हैं, जिस से खेती में होने वाले खर्च की बचत भी हो जाती है.

समूह से जुड़ कर पार्वती दीदी का न केवल घर, परिवार, समाज में मानसम्मान बढ़ा है, बल्कि आर्थिक मदद के साथ ही उन की जागरूकता और विभिन्न विषयों पर समझ भी बढ़ी है. वे ग्रामीणों को स्वच्छता मिशन के अंतर्गत शौचालयों के उपयोग, बच्चों को आंगनबाड़ी में भेजने और जैविक कृषि के लिए भी गांव वालों को प्रेरित करती हैं.

ड्रोन (Drones) जैसी आधुनिक तकनीक से कृषि बनेगी सुगम

हिसार : हाल ही में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में कृषि मेला संपन्न हुआ. मेले में अनेक उन्नत किस्में, नई तकनीकें, प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शन हुआ. मेले में मुख्य तौर पर किसानों ने विभिन्न स्टालों पर तकनीकी जानकारी ली और उन्नत किस्मों के बीज खरीदे. साथ ही, प्रश्नोत्तरी सत्र में किसानवैज्ञानिकों के संवाद के अलावा विशेष तौर पर खेती में ड्रोन तकनीक के महत्व पर चर्चा की गई.

मेले में दोनों दिन हरियाणा के अलावा पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों से तकरीबन 67,360 किसान शामिल हुए.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि ड्रोन तकनीक समय, श्रम व संसाधनों की बचत करने वाली एक आधुनिक तकनीक है, जो कृषि लागत को कम करने में व फसल उत्पादन बढ़ाने में सहायक है. ड्रोन का उपयोग अपनी फसलों के बारे में नियमित जानकारी प्राप्त करने और अधिक प्रभावी कृषि तकनीकों के विकास में सहायक है. बदलते मौसम की स्थिति में भी ड्रोन तकनीक का कुशलता से प्रयोग कर सकते हैं.

दुर्गम इलाकों में और असमतल भूमि में कीटनाशक, उर्वरकों व खरपतवारनाशक के छिडक़ाव में भी सहायक है. खरपतवार पहचान एवं प्रबंधन में ड्रोन तकनीक सब से महत्वपूर्ण है. ड्रोन के माध्यम से किए गए सर्वे पारंपरिक सर्वे की तुलना में 10 गुना तेज व अधिक सटीक होते हैं. ड्रोन का उपयोग कर के मिट्टी व खेत का विश्लेषण भी किया जा सकता है.

कीट व बीमारियों से लड़ने के लिए बड़े स्तर पर ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है. मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजरी सिस्टम से लैस ड्रोन द्वारा कीड़ों, टिड्डी व सैनिक कीट के आक्रमण का पता लगते ही समय पर कृषि रसायनों का छिड़काव करने से फसल के नुकसान को बहुत ही कम किया जा सकता है. प्रिसिजन फार्मिंग, जेनेटिक इंजीनियरिंग से ले कर जलवायु स्मार्ट कृषि और कृषि से जुड़े अन्य डिजिटल तकनीक को सही तरीके से क्रियान्वित करने के लिए ड्रोन तकनीक बहुत ही सहायक सिद्ध होगी.

उन्होंने बताया कि मेले के माध्यम से विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई नवीनतम किस्मों व कृषि पद्धतियों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी, जिस से कि फसलों की पैदावार बढ़ेगी. वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र में आ रही चुनौतियों जैसे भूजल के स्तर का गिरना, भूमि की उर्वराशक्ति में कमी आना, भूमि की लवणता, क्षारीयता व जलभराव की स्थिति, जलवायु परिवर्तन, फसल विविधीकरण और फसल उत्पादन में कीटनाशक एवं रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग शामिल है.

ड्रोन (Drones)

उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली स्टालों को दिए पुरस्कार
विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि स्टालों में से सीड ग्रुप में शक्तिवर्धक सीड्स/आईएफएसए सीड्स, सुपर गोल्ड, करनाल व नाजीरेडू सीड्स/सुपर सीड्स ने क्रमश: पहला, दूसरा और तीसरा   पुरस्कार, इंसेक्टिसाइड्स व पेस्टीसाइड्स ग्रुप में ग्वाला और्गेनिक, देवी क्राप साइंस/मेगामनी और्गेनिक, मिकाडो क्राप साइंस/इंदोरमा ने क्रमश: पहला, दूसरा और तीसरा पुरस्कार प्राप्त किए. फर्टिलाइजर ग्रुप में यारा, इफको/एनएफएल, बायोस्टड इंडिया/आईकेएमएस बायोटेक को क्रमश: पहला, दूसरा व तीसरा पुरस्कार, मशीनरी व ट्रैक्टर ग्रुप में फील्ड मार्शल, करतार ट्रैक्टर्स/एमएसडब्ल्यू, रतिया, बीरबल चीमा/रेनबो को पहला, दूसरा व तीसरा पुरस्कार प्रदान किया गया. फार्मास्यूटिकल ग्रुप में टाइटेनिक फार्मा, एमडी बायोसीड्स/बायोडिसेंट फार्मा और वेक्सटर हेल्थकेयर को क्रमश: पहला, दूसरा व तीसरा पुरस्कार प्रदान किया गया.

प्रगतिशील किसान समूह में सुभाष कंबोज, धर्मवीर/श्रीभगवान व राजेश कुमार क्रमश: पहले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे. इसी प्रकार हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग, कम्यूनिटी साइंस/एग्री टूरिज्म, एमबीबी/माइक्रोबायोलौजी को क्रमश: पहला, दूसरा व तीसरा पुरस्कार, सरकारी विभाग/एमएचयू/लुवास/एनजीओ में एमएचयू/आईएफएफडीसी, एचएसडीसी/नैशनल सीड्स, जिला विधिक सेवाएं/सरोज ग्रेवाल क्रमश: पहले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे.

 

कृषि योजनाओं (Agricultural Schemes) से महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

हिसार : सभी बाधाओं के बावजूद महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का प्रमाण दिया है. महिलाओं के उद्यमी और प्रगतिशील स्वभाव के कारण वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पूरी मेहनत और प्रयास कर रही है.

महिलाओं ने अपनी क्षमताओं का सुबूत दिया है. ऐसे कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं के ज्ञान, कौशल, जागरूकता, निर्णय लेने की क्षमता और आत्मविश्वास में परिवर्तन लाने के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं. सरकार की विभिन्न योजनाओं और पहलों के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में सुधार देखा जा रहा है.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कैंपस स्कूल की निदेशिका संतोष कुमारी ने रखे. वे गांव धांसू में इंदिरा चक्रवर्ती गृह विज्ञान महाविद्यालय द्वारा आयोजित ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव कार्यक्रम के समापन पर बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रही थीं.

इंदिरा चक्रवर्ती गृह विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. बीना यादव ने बताया कि इस मासिक कार्यक्रम में प्रत्येक छात्रा ने कम से कम 3 परिवारों में व्याख्यान, प्रदर्शनी, रैली, समूह चर्चा आदि जैसे विस्तार तरीकों का उपयोग कर के भोजन पोषण, संसाधन प्रबंधन, अपशिष्ट प्रबंधन, कपड़े निर्माण और अलंकरण, बच्चों की देखभाल, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी.

कृषि योजनाओं (Agricultural Schemes)उन्होंने ग्रामीण महिलाओं से आह्वान किया कि अब समय बदल गया है कि उन्हें न केवल किसी भी कार्यक्रम में लाभार्थी के रूप में भाग लेना चाहिए, बल्कि योजना और कार्यान्वयन में भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए.

कार्यक्रम में पौष्टिक व्यंजन, बाजरा के उत्पाद, कपड़े की कढ़ाई अध्यापन सामग्री सहित गांव की पारंपरिक वस्तुओं की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिस का मुख्यातिथि ने अवलोकन किया. इस दौरान छात्राओं ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में विशिष्ट योगदान देने वाली महिलाओं को मुख्यातिथि ने स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया.

इस अवसर पर सरपंच प्रतिनिधि सुरजीत सिंह, स्कूल प्राचार्य मोहनलाल बैनीवाल, भारी संख्या में महिलाएं, जिला परिषद, पशु चिकित्सालय, ब्लौक समिति एवं ग्राम पंचायत के सदस्य, युवा संगठन, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के ग्राम स्तरीय अधिकारी, महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहित अन्य शामिल हुए.

दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण (Milk Products Processing) पर प्रशिक्षण

हिसार : लुवास के डेयरी विज्ञान और प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में किसानों के लिए आयोजित तीनदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम “उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण’’ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. यह कार्यक्रम केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के साथ संयुक्त रूप से आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल प्रदान करना था.

इस कार्यक्रम के माध्यम से किसानों को आधुनिक तकनीकों, प्रक्रियाओं और उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई,  जो उन्हें अपनी डेयरी व्यावसायिकता को बढ़ाने और मानकों को पूरा करने में मदद करेगी.
डा. राजेश खुराना, निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए आधुनिक तकनीकों और विधियों के प्रयोग की महत्वपूर्णता पर जोर दिया.

उन्होंने इस प्रशिक्षण के महत्व को डेयरी क्षेत्र में उत्पादकता और उत्पाद गुणवत्ता में सुधार के लिए अद्वितीय योगदान के रूप में माना. उन्होंने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों की प्रतिबद्धता और सीखने के प्रति समर्पण की सराहना की और उद्यम और प्रगति के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ाने वाला कहा.

डा. सज्जन सिहाग, अधिष्ठाता, डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय ने अपने संबोधन में सभी प्रतिभागियों, प्रशिक्षकों और अतिथियों को इस कार्यक्रम की सफलता में योगदान के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया. उन्होंने डेयरी उद्योग को आगे बढ़ाने में निरंतर अध्ययन और सहयोग की महत्वता पर जोर दिया और ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भूमिका को उजागर किया.

उन्होंने बताया कि डेरी उद्योग अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर उन क्षेत्रों में, जहां इस का उपयोग आधुनिक प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विज्ञान के साथ किया जा रहा है. इस संदर्भ में प्रशिक्षण कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. इन कार्यक्रमों के माध्यम से, उद्योग के नए और उन्नत प्रौद्योगिकी और विज्ञान को अधिक समझा जा सकता है, जिस से उत्पादन में नवाचार और बेहतर हो सके.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षकों को नवाचार, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के नवीनतम विकास के साथ अवगत कराया गया, जिस से वे अपने शैक्षिक प्रोग्रामों को उत्कृष्ट बना सकें.

दूध उत्पाद प्रसंस्करण (Milk Products Processing)

प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कार्यक्रम समन्वयक डा. नवनीत सक्सेना एवं डा. शालिनी अरोड़ा ने प्रशिक्षण कार्यक्रम की उपलब्धियों का विवरण दिया. उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त ज्ञान और अनुभवों के महत्व को प्रकट किया और प्रतिभागियों को उन के अनुभव में सहयोग और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया.

उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं पर विचार किए, उत्पादकता और उत्पाद गुणवत्ता में सुधार के महत्व को समझाया और प्रतिभागियों को उन को कैसे बढ़ावा देना है, इस विषय पर सुझाव दिए.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम के समापन समारोह में प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए. यह प्रमाणपत्र उन के प्रयासों और उपलब्धियों को मान्यता देने का एक प्रतीक था, जो उन के द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा किया गया.

समापन समारोह ने कार्यक्रम के दौरान प्राप्त समृद्ध अनुभवों और अंतर्दृष्टियों पर विचार करने का मंच प्रदान किया. डा. गुरुराज और डा. रचना, कार्यक्रम समन्वयक ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सचिवालय परिसर को चार चांद लगा रहे हैं 10 प्रजातियों के गुलाब (Species of Roses)

जयपुर : रंगबिरंगे फूल किसी भी परिसर की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं और उन की भीनी महक किसी भी व्यक्ति के मन को आनंद से प्रफुल्लित कर सकती है. इन दिनों शासन सचिवालय का उद्यान हर साल की तरह विविध रंगों के फूलों से महक रहा है. पिटुनिया, साल्विया, डहेलिया, पैंजी, डायन्थस, फ्लोक्सम, बरबीना, केलेंडूला, मेरीगोल्ड, बिगोनिया, लार्कस्पर, क्राईसेंथिमम, बोगनबीलिया, आइसप्लांट, पनसेटिया जैसी किस्मों के विविध रंगों से लबरेज 40 तरह की फुलवारियां यहां रंग बिखेर रही हैं. यहां गुलाब की 10 से भी ज्यादा किस्में हैं, जिन के फूलों की रंगबिरंगी छटा भी देखते ही बनती है.

सार्वजनिक निर्माण विभाग के वरिष्ठ अधीक्षक (उद्यान) सुरेश नारायण शर्मा ने बताया कि इन दिनों 40 से अधिक फुलवारियां एवं 10 किस्मों के गुलाब शासन सचिवालय उद्यान को सुशोभित किए हुए हैं और आगंतुकों को आकर्षित व आनंदित कर रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि राजस्थान रोज सोसाइटी द्वारा हाल ही में आयोजित रोज शो-2024 में भी शासन सचिवालय उद्यान को उत्कृष्ट श्रेणी की फुलवारी में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ. उन्होंने बताया कि गरमी के मौसम की फुलवारी की तैयारियां भी आरंभ हो चुकी हैं.

फूलों से गुलजार इन फुलवारियों का रखरखाव कार्मिक विभाग के निर्देशों पर सार्वजनिक निर्माण विभाग की उद्यान शाखा द्वारा कराया जा रहा है.