मोटे अनाज के बेकरी उत्पादों को बनाएं रोजगार

उदयपुर: 18 मार्च. कभी मोटे अनाज (श्रीअन्न) जैसे बाजरा, ज्वार, रागी, कांगणी, सांवा, चीना आदि को गरीबों का भोजन माना जाता था, लेकिन आज अमीर आदमी मोटे अनाज के पीछे भाग रहा है. दरअसल, मोटे अनाज में ढेर सारी बीमारियों को रोकने संबंधी पोषक तत्वों की भरमार है, इसलिए लोग श्रीअन्न को अपने भोजन में शामिल करने लगे हैं.

यह बात प्रसार शिक्षा निदेशालय के निदेशक डा. आरए कौशिक ने कही. वे निदेशालय सभागार में पिछले दिनों ‘मोटे अनाज के बेकरी उत्पादों से कुपोषण उन्मूलन’ विषय पर 8 दिवसीय प्रशिक्षण के समांपन समारोह को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिर्वतन के दौर में मोटे अनाज की खेती का रकबा बढ़ा है. लोगों ने भी उस का महत्व समझा तो मांग भी बढ़ी है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अतंर्गत राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर की ओर से अनुसूचित जाति उपयोजना के अतंर्गत जीविकोपार्जन के लिए आयोजित इस प्रशिक्षण में सलूंबर, उदयपुर जिले के चयनित 30 युवकयुवतियों ने भाग लिया.

प्रसार शिक्षा निदेशालय के सहयोग से प्रतिभागियों को मोटे अनाज से जैसे ज्वार पपड़ी, कांगणी पकोड़े, रागी केक, बाजरा लड्डू, बाजरा ब्राउनी, सांवा फ्राईम्स, कांगणी कप केक, ज्वार डोनट, ओट्स कुकीज जैसे दर्जनों व्यंजन बनाना सिखाया गया. यही नहीं, प्रतिभागियों को शहर की बड़ी बेकरियों का एवं राजस्थान महिला विद्यालय में अचार, पापड़ के व्यावसायिक निर्माण इकाई का भ्रमण भी कराया गया.

समारोह अध्यक्ष क्षेत्रीय केंद्र प्रमुख डा. बीएल मीणा ने कहा कि प्रशिक्षण का ध्येय यही है कि सुदूर गांवों के समाज के कमजोर तबके के युवाओं का आत्मविश्वास बढ़े और वे अपने क्षेत्र में एक नया स्टार्टअप शुरू कर माली नजरिए से न केवल मजबूत बन सकें, बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी प्रेरित कर सकें.

डा. बीएल मीणा ने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि प्रसार शिक्षा निदेशालय की ओर से पूरे मनोयोग से प्रशिक्षण लेने के बाद घर पर न बैंठें, बल्कि अपने घर से ही उत्पाद बना कर नए व्यवसाय की शुरुआत करें. जब लगे कि इसे व्यावसायिक शक्ल दी जा सकती है, टीम बना कर काम करें. बेकरी व्यवसाय में 40-50 फीसदी तक मुनाफा है. आरंभ में क्षेत्रीय केंद्र के प्रिसिंपल साइंटिस्ट डा. आरपी शर्मा, रोशन लाल मीणा ने अतिथियों का मेवाड़ी पाग व उपरणा पहना कर स्वागत किया.

इस मौके पर अतिथियों ने मोटे अनाज के विविध व्यंजन, उत्पाद बनाने की विधि व सामग्री संबंधी बुकलेट का विमोचन भी किया. साथ ही, उपरोक्त उत्पादों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया. प्रत्येक प्रतिभागी को बुकलेट के अलावा पूड़ी मेकर, सेंडविच मेकर, सेव चिप्स बनाने की मशीन, छाछ बिलोने की मशीन का पूरा किट दिया गया, ताकि गांव पहुंचने पर बिना समय गंवाए वे अपना व्यवसाय शुरू कर सकें. प्रतिभागियों ने अपने अनुभव भी साझा किए. प्रशिक्षणार्थी प्रिया मेघवाल ने राजस्थानी नृत्य प्रस्तुत दी. संचालन प्रसार शिक्षा निदेशालय की प्रोफैसर डा. लतिका व्यास ने किया

मशरूम उत्पादन में हिमाचल बढ़ेगा आगे

सोनीपत: उत्तम विश्वविद्यालय, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश के वाइस चांसलर डा. संजीव कुमार शर्मा ने महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, मुरथल का दौरा किया. उन्होंने बताया कि एमएचयू के क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र से ढींगरी मशरूम को ले कर काफी सहयोग मिला, जिस की बदौलत उत्तम विश्वविद्यालय द्वारा ढींगरी मशरूम के प्रचारप्रसार में काफी तेजी आई. एमएचयू का दौरा करने के पीछे मुख्य मकसद है कि यहां से मशरूम को ले कर किस प्रकार सहयोग प्राप्त किया जाए, जिस से मशरूम का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में और तेजी से बढ़ सके. इस को ले कर विचारविमर्श किया गया. केंद्र में विभिन्न प्रकार की मशरूम का बीज और मशरूम पैदा की जा रही है. यहां आ कर सभी प्रकार की मशरूम के बारे में जानकारी हासिल की.

केंद्र के निदेशक डा. अजय सिंह ने बताया कि एमएचयू के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा के नेतृत्व में विश्वविद्यालय तेजी से आगे बढ़ रहा है. उन के निर्देशानुसार रिसर्च, शैक्षणिक  कार्यों में पहले की अपेक्षा और तेजी आई है.

उन्होंने आगे कहा कि उत्तम विश्वविद्यालय, हमीरपुर के वाइस चांसलर संजीव कुमार शर्मा ने मशरूम अनुसंधान का दौरा किया. उन्होंने मशरूम की विभिन्न किस्मों को ले कर गहरी रुचि दिखाई. एमएचयू किस प्रकार से सहयोग कर सकता हैं, इस बारे में आगामी बातचीत कर सहयोग दिया जाएगा.

उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा लगातार किसानों, युवाओं, महिलाओं को मशरूम सहित अन्य बागबानी व खेती से संबंधित ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिस से किसान बागबानी और खेती को और अधिक लाभकारी बना सकें.

किसानों की समृद्धि, भूमि, जल संरक्षण और स्वास्थ्य के लिए आर्गेनिक उत्पाद जरूरी

नई दिल्लीः केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में तीन बहुराज्यीय सहकारी समितियों- भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (बीबीएसएसएल), नेशनल कोआपरेटिव आर्गेनिक्स लिमिटेड (एनसीओएल) और नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (एनसीईएल) के नए कार्यालय भवन का उद्घाटन किया.

इस अवसर पर केंद्रीय सहकारिता राज्यमंत्री बीएल वर्मा और डा. आशीष कुमार भूटानी, सचिव, सहकारिता मंत्रालय के साथसाथ एनसीईएल, एनसीओएल और बीबीएसएसएल के अध्यक्ष एवं मैनेजिंग डायरैक्टर सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा कि आज यहां तीन कोऑपरेटिव्स के नए कार्यालय के उद्घाटन के रूप में एक बहुत बड़े काम का बीज बोया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ‘सहकार से समृद्धि’ की कल्पना के साथ हम आगे बढ़े हैं.

उन्होंने कहा कि सहकारिता मंत्रालय में शुरू में ही गैप्स, उन्हें भरने, कोआपरेटिव्स का दायरा बढ़ाने और टर्नओवर और मुनाफा बढ़ा कर किसानों तक उसे पहुंचाने की गतिविधियों की पहचान कर ली गई थी और इन तीनों समितियों की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई थी.

मंत्री अमित शाह ने आगे कहा कि आज 31,000 वर्गफुट क्षेत्रफल वाले और स्टेट औफ द आर्ट तकनीक के साथ बने इस कार्यालय में इन समितियों का मुख्यालय शुरू होने जा रहा है. उन्होंने कहा कि हम इस कार्यालय में कारपोरेट क्षेत्र के सारे नवाचार का अनुभव करेंगे और उन्हें प्राप्त भी करेंगे. उन्होंने कहा कि ये तीनों समितियां किसानों की अलगअलग प्रकार की जरूरतों को पूरा करने वाली हैं.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि बहुत कम समय में हम ने तीनों समितियों को बनाने के लिए देश की प्रमुख सहकारी समितियों, अमूल, नेफेड, एनसीसीएफ, इफको, कृभको, एनडीडीबी और एनसीडीसी को इन के मूल प्रमोटर के रूप में एकत्रित किया और इन सभी संस्थाओं ने मिल कर इन तीनों समितियों को स्थापित करने का काम किया.

उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड को कोआपरेटिव समितियों से लगभग 7,000, आर्गेनिक लिमिटेड को 5,000 और बीज सहकारी समिति को 16,000 सदस्यता आवेदन मिल चुके हैं. उन्होंने कहा कि यह बताता है कि काम का दायरा कितना बढ़ा है और इतने कम समय में हम इसे इतना नीचे तक उतारने में सफल रहे हैं.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि इन तीनों समितियों की स्थापना एक बहुमुखी उद्देश्य के साथ की गई थी और जब ये पूरी तरह से काम करने लग जाएंगी, तब हमारे किसानों की कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा. उन्होंने कहा कि कैमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग से हमारी जमीन खराब होती जा रही है, हमें इसे बचाना है और आर्गेनिक खेती की ओर किसानों को ले जाना आज के समय की मांग है.

उन्होंने यह भी कहा कि किसानों की समृद्धि, भूमि, जल संरक्षण, बाढ़ से बचाव के साथसाथ 130 करोड़ भारतीयों और विश्वभर के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी आर्गेनिक उत्पादों की वृद्धि, मार्केटिंग और पहुंच बढ़ाना बहुत जरूरी है. साथ ही, उन्होंने कहा कि इस के लिए बनाई गई समिति आर्गेनिक उत्पादों के कलैक्शन, सर्टिफिकेशन, टैस्टिंग, स्टैंडर्डाइजेशन, खरीद, स्टोरेज, प्रोसैसिंग, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग और निर्यात तक की पूरी चेन का सब काम खुद भी करेगी और कई कोआपेरेटिव्स के लिए गाइड का काम भी करेगी.

अमित शाह ने कहा कि बीज के लिए बनाई गई सहकारी समिति हमारे प्राकृतिक, मीठे और पारंपरिक बीजों के स्वाद, गुणवत्ता और बीज को संरक्षित और संवर्धित करने का काम करेगी. उन्होंने कहा कि हम पीएसीएस के माध्यम से ढाई एकड़ जमीन वाले किसानों को भी बीज का प्लाट देने और उन की आय में बढ़ोतरी का काम करेंगे.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि जैविक उत्पादों के लिए बनी समिति इन उत्पादों के मिलने वाले अच्छे दाम में से बहुत छोटा हिस्सा अपने संचालन के लिए रख कर ज्यादातर हिस्सा कोआपरेटिव डेयरी के स्तर पर किसानों को वापस देगी. इसी प्रकार निर्यात के लिए बनी समिति कृषि उत्पादों के वैश्विक निर्यात में हमारे देश के हिस्से को बढ़ाएगी और इस से होने वाला मुनाफा सीधा किसानों के बैंक खातों में जमा होगा.
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि हम ने तय किया है कि अगले 5 साल में निर्यात कोआपरेटिव सोसाइटी के टर्नओवर को सालाना एक लाख करोड़ रूपए तक पहुचाएंगे और निर्यात में फारवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज स्थापित कर दलहन के आयात की कमी को भी इसी माध्यम से पूरा किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि दलहन का उत्पादन तभी बढ़ सकता है, जब इस के निर्यात की सुचारु व्यवस्था हो और तभी किसान दलहन बोएगा. अब ऐसी व्यवस्था की गई है कि कम से कम 50 फीसदी मुनाफा पीएसीएस के माध्यम से सीधा किसान के बैंक अकाउंट में जाए.

अमित शाह ने कहा कि आज हमारे देश में गुजरात सहित कई राज्यों में लाखों किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है. प्राकृतिक खेती के मौडल में एक देशी गाय से 21 एकड़ भूमि की खेती होती है, उत्पादन कम नहीं होता है और भूमि की उर्वरता बढ़ती जाती है. पिछले 3 सालों में प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों की संख्या में 7 गुना वृद्धि हुई है, जो बताता है कि ये प्रयोग सफल रहा है.

मंत्री अमित शाह ने आगे कहा कि मोदी सरकार ने देशभर में आर्गेनिक खेती में भूमि परीक्षण और अनाज के प्रोडक्शन की टेस्टिंग के लिए लैबोरेट्रीज का जाल बुनने का काम हाथ में लिया है. अगले 5 साल में देश का एक भी जिला ऐसा नहीं होगा, जहां आर्गेनिक भूमि और प्रोडक्ट का परीक्षण नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि जहां आर्गेनिक उपज ज्यादा है, वहां तक इस प्रक्रिया को ले जा कर और इसे किसानों को उपलब्ध करा कर उत्पाद को सर्टिफाइड कर बाजार का मुनाफा उस तक पहुंचने का काम करेंगे.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि हम ने बीज सहकारी लिमिटेड के लिए 5 वर्ष में 10,000 करोड़ रूपए से ज्यादा टर्नओवर का लक्ष्य तय किया है. उन्होंने कहा कि साल 2030 तक आर्गेनिक्स भारत के घरेलू बाजार में 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी रखेगा.

उन्होंने कहा कि आज वैश्विक आर्गेनिक बाजार लगभग 10 लाख करोड़ रुपए का है और इस में भारत का निर्यात 7,000 करोड़ रुपए है, जिसे बढ़ा कर हम 70,000 करोड़ रुपए तक पहुंचाना चाहते हैं. वहीं वैश्विक कृषि उपज बाजार 2,155 अरब डालर है और इस में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 45 अरब डालर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम ने तय किया है कि साल 2030 तक एक बड़ी छलांग लगा कर इसे 115 अरब डालर तक पहुंचाएंगे. उन्होंने विश्वास जताया कि इन तीन समितियों के माध्यम से आने वाले दिनों में आर्गेनिक प्रोडक्ट, बीज संरक्षण और संवर्धन और एक्सपोर्ट के क्षेत्र में सभी गैप्स को भरने में सफलता मिलेगी.

कृषि की जानकारी पंचायत स्तर तक किसानों को पहुंचे

नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) और कौमन सर्विसेज सैंटर (सीएससी) ईगवर्नेंस सर्विस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया गया. डा. यूएस गौतम, उपमहानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप और सुबोध मिश्रा, वाइस प्रैसिडेंट, सीएससी-एसपीवी ने इस एएमयू पर हस्ताक्षर किए.

डा. यूएस गौतम ने कहा कि सीएससी सैंटर के माध्यम से जिला स्तर पर केवीके से प्राप्त सूचना को पंचायत स्तर तक किसानों को पहुंचाना है. उन्होंने कहा कि सीएससी के 5 लाख से ज्यादा सर्विस सैंटर हैं, जिस के माध्यम से टैली पशु चिकित्सा जैसे प्रोग्राम के साथसाथ प्लांट प्रोटैक्शन, हौर्टिकल्चर और होम साइंस एवं मेकैनाइजेशन जैसे क्षेत्र में टैलीकम्यूनिकेशन प्रोग्राम शुरू करने का परिषद का लक्ष्य है, जिस से ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ हमारा संपर्क बने.

उपमहानिदेशक डा. यूएस गौतम ने कहा कि इस एमओयू के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोग तकनीकी फायदा ले सकेंगे और इस का कृषि में उपयोग कर अपनी आय को बढ़ा सकेंगे. सीएसी सैंटर के माध्यम से कृषि से संबंधित सूचना, जैसे, खेत में कब पानी डालना है, कौन से खेत में कीटनाशक का कब छिड़काव करना है, ये सभी सूचना उचित समय पर किसानों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा, जिस से कृषि क्षेत्र में क्रांति लाई जा सके.

उपमहानिदेशक डा. यूएस गौतम ने आगे यह भी बताया कि अभी 5 लाख सीएससी सैंटर हैं. यदि प्रत्येक केंद्र से सौ लोगों को भी जोड़ा जाए, तो एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी. भाकृअनुप का प्लान है कि देश के 11 करोड़ किसानों को केवीके से, किसान सारथी से और सीएससी से जोड़ा जाए, जिस से केवीके और आत्मा के काम को जमीनी स्तर तक पहुंचाया जा सके.

इस अवसर पर भाकृअनुप के सहायक महानिदेशक, निदेशक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे.

युवा अपनाएंगे बहुस्तरीय खेती का ‘कोंडागांव मौडल’

बस्तर: देशके अग्रणी ‘कलिंगा विश्वविद्यालय‘ के प्रोफेसरों और छात्रछात्राओं का 50 सदस्यीय दल 15 मार्च को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर‘‘ कोंडागांव पहुंचा. इस दल  का नेतृत्व डा. आर. जय कुमार, विभागाध्यक्ष विज्ञान संकाय, डा. सुषमा दुबे, एचओडी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, बिदिशा रौय, सहायक प्रोफैसर जैव प्रौद्योगिकी विभाग, इंद्राणी सरकार, सहायक प्रोफैसर, जैव सूचना विज्ञान विभाग, प्रियेश कुमार मिश्रा, प्रयोगशाला सहायक, जैव प्रौद्योगिकी विभाग कर रहे थे.

‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ के निदेशक अनुराग कुमार और जसमती नेताम, शंकर नाग रमेश पंडा, मैंगो नेताम के द्वारा ग्राम चिखलपुटी स्थित आस्ट्रेलिया टीक के पेड़ों पर सौसौ फीट ऊंचाई तक काली मिर्च के फलों से लदी फसल से रूबरू कराया गया और विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की जैविक खेती की जानकारी दी गई.

प्राध्यापकों और छात्रों के दल ने डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा विकसित किए गए बहुचर्चित ‘‘नैचुरल ग्रीनहाउस‘‘ के सफल व लोकप्रिय मौडल के अंतर्गत अन्य पौधों की तुलना में धरती को 300 गुना ज्यादा नाइट्रोजन देने वाले और महज 7-8 सालों में ही हर पेड़ से लाखों रुपए की बहुमूल्य इमारती लकड़ी भी देने वाले व आस्ट्रेलियन टीक के प्लांटेशन और आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर चढ़ाई गई काली मिर्च की लताओं की लगी हुई फसल का निरीक्षण किया.

उल्लेखनीय है कि नैचुरल ग्रीनहाउस का यह एक एकड़ का मौडल महज 2 लाख रुपए में तैयार हो जाता है, जबकि एक एकड़ के वर्तमान प्रचलित ‘पौलीहाउस‘ की लागत 40 लाख रुपए है. 40 लाख वाला पौलीहाउस का जीवन महज 7 साल होता है. उस के बाद यह कबाड़ के भाव में बिकता है, जबकि एक एकड़ नैचुरल ग्रीनहाउस से 8-10 साल में लगभग ढाई करोड़ रुपए की लकड़ी मिलती है. इसीलिए इस कोंडागांव मौडल देश की खेती का गेम चेंजर माना जा रहा है.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि इस ‘नैचुरल ग्रीनहाउस मौडल‘ को अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी स्वीकार लिया गया है, जो कि बस्तर, छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश के लिए गर्व का विषय है.
यहां आस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च के पेड़ों के बीच खाली बची जगह पर अंतर्वती फसलों के रूप में हलदी, सफेद मूसली, अदरक, इंसुलिन प्लांट की उच्च लाभदायक खेती का भी निरीक्षणपरीक्षण किया गया.

शक्कर से 25 गुना मीठा स्टीविया

हर्बल फार्म पर लगे स्टीविया के पौधों की शक्कर से लगभग 25 गुना ज्यादा मीठी पत्तियों को चख कर छात्र चैंक गए. उन्हें बताया गया कि ये पत्तियां इतनी ज्यादा मीठी होने के बावजूद जीरो कैलोरी होती हैं. इसलिए डायबिटीज के मरीज भी इसे बड़े आराम से शक्कर की जगह उपयोग कर सकते हैं और भरपूर मात्रा में खा सकते हैं. भ्रमण के पश्चात इस दल को ‘बईठका हाल‘  में समूह के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि युवा अपनी तरक्की का रास्ता स्वयं ढूंढें़ एवं ‘‘अप्प दीपो भव‘‘ को चरितार्थ करें.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने आगे बताया कि कैसे छत्तीसगढ़ के ज्यादातर युवा किसानों के परिवार के हैं. वे सरकारी व गैरसरकारी नौकरियों का मोह छोड़ कर उच्च लाभदायक बहुस्तरीय खेती अपना कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. डा. आर. जय कुमार, विभागाध्यक्ष विज्ञान, डा. सुषमा दुबे, एचओडी, जैव प्रौद्योगिकी ने कहा कि हम सब यहां हो रहे विभिन्न कृषि व शोध कार्यों को देख कर चकित हैं और हम वापस जा कर कुलपति महोदय से चर्चा कर ’मां दंतेश्वरी हर्बल फाम्र्स एवं रिसर्च सैंटर‘ के साथ जुड़ कर जैविक कृषि और हर्बल कृषि व प्रसंस्करण में जैव प्रौद्योगिकी के सकारात्मक उपयोग के लिए काम किया जाएगा.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ की ओर से सभी अतिथियों का अंगवस्त्रम से सम्मान किया गया. सभी अतिथियों को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ के पेड़ों पर पकी हुई, विश्व की नंबर वन जैविक ‘काली मिर्च‘ भी भेंट की गई.

दुग्ध उत्पादकों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता

जयपुर: पशुपालन, गोपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत से पिछले दिनों भारतीय किसान संघ के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात कर उन का आभार व्यक्त किया. जयपुर डेयरी के दुग्ध उत्पादक किसानों के 6 महीने से लंबित चल रहे बकाया अनुदान का भुगतान हो जाने पर प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने खुशी जाहिर करते हुए जोराराम कुमावत का धन्यवाद किया.

पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने बताया कि पिछले एक महीने में लगभग 80 फीसदी किसानों के बकाया अनुदान राशि का भुगतान हो चुका है, बाकी 20 फीसदी का भुगतान भी जल्दी ही हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में नवगठित सरकार की पहली प्राथमिकता राज्य की सभी सहकारी डेयरियों से जुड़े दुग्ध उत्पादकों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान है और इस के लिए नई कल्याणकारी योजनाएं अमल में लाई जाएंगी. ग्रास रूट लेवल तक दुग्ध उत्पादकों को सहकारी डेयरियों से जोड़ने के प्रयास किए जाएंगे और अधिक से अधिक संख्या में नई प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों का गठन किया जाएगा.

मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि प्रदेश में दुग्ध उत्पादकों की सामाजिक सुरक्षा और उन के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और वर्तमान में चल रही सुरक्षा योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा. उन्होंने जिला दुग्ध संघों के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों और डेयरी अधिकारियों में बेहतर समन्वय स्थापित किए जाने पर भी बल दिया.

उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि राजस्थान ने दुग्ध उत्पादन में देशभर में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है. उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि राज्य सरकार दुग्ध उत्पादकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगी. प्रतिनिधिमंडल में जगदीश गुर्जर, मंजू, करण सिंह, चंद सिंह, वीरेंद्र, करण सिंह आदि सम्मिलित थे.

समर्थन मूल्य पर सरसों, चना बेचने हेतु रजिस्ट्रेशन शुरू

जयपुर: भारत सरकार द्वारा राज्य में सरसों खरीद के लिए 14.58 लाख मीट्रिक टन एवं चना खरीद के लिए 4.52 लाख मीट्रिक टन खरीद लक्ष्य स्वीकृत किए गए हैं. राज्य में पिछले सालों की भांति सरसों, चना की खरीद औनलाइन प्रक्रियानुसार की जानी है. इस के लिए कोटा संभाग में सरसों, चना के किसानों के पंजीयन 12 मार्च से और बाकी राज्य में 22 मार्च से आरंभ किए जा रहे हैं.

कोटा संभाग में सरसों, चना की खरीद का काम 15 मार्च से और शेष राज्य में 1 अप्रैल से आरंभ किया जाएगा. रबी सीजन 2024-25 में किसानों को उन के नजदीकी क्षेत्र में सरसों, चना की तुलाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरसों एवं चने के 520-520 कुल 1040 क्रय केंद्र स्वीकृत किए गए हैं.
प्रबंध निदेशक, राजफैड एवं शासन सचिव, सहकारिता स्तर से रबी 2024-25 में सरसों एवं चने की खरीद संबंधी तैयारियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग यानी वीसी के जरीए समीक्षा की गई.

इस दौरान बतलाया गया कि कृषक ई मित्र केंद्र के माध्यम से पंजीयन करवा सकेंगे. पंजीयन का समय प्रातः 9 बजे से सायं 7 बजे तक का रहेगा. पंजीयन प्रक्रिया के संबंध में विशेष दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं. किसान को जनाधार कार्ड, गिरदावरी एवं बैंक पासबुक की प्रति पंजीयन फार्म के साथ अपलोड करनी होगी. किसान को आधार आधारित बायोमैट्रिक अभिप्रमाणन से पंजीयन करवाना होगा. सभी किसान अपना मोबाइल नंबर आधार से लिंक करवा ले, ताकि किसानों को समय रहते तुलाई दिनांक की सूचना प्राप्त हो सके.

किसान जनाधार कार्ड में अपने बैंक खाते के नंबर को अपडेट कराना सुनिशिचित करें, ताकि खाता संख्या और आईएफएससी कोड में यदि कोई विसंगति यानी गड़बड़ी है, तो किसान द्वारा समय पर उस का सुधार करवाया जा सके.

विभागीय अधिकारियों द्वारा यह भी बतलाया गया कि एक जनाधार कार्ड पर एक ही पंजीयन मान्य होगा. किसान एक मोबाइल नंबर पर एक ही पंजीयन दर्ज करा सकेगा. उन के द्वारा यह भी निर्देश दिए गए कि ईमित्र पंजीयन से संबंधित नियमों की पूरी तरह से पालना सुनिश्चित करें. जिस क्षेत्र में किसान की कृषि भूमि है, उसी तहसील के कार्यक्षेत्र में आने वाले क्रय केंद्र का चयन कर पंजीयन करवा सकेंगे.

यदि किसान या ईमित्र द्वारा गलत तहसील भर कर पंजीयन कराया जाता है, तो ऐसे किसानों से जिंस क्रय करना संभव नहीं होगा. यदि ईमित्र द्वारा गलत पंजीयन किए जाते हैं अथवा तहसील से बाहर पंजीयन किए जाते हैं, तो ऐसे ईमित्र के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाएगी.

विभागीय अधिकारियों द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि सरसों का समर्थन मूल्य भारत सरकार द्वारा 5,650 रुपए एवं चने का 5,440  रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया गया है. सरसों में नमी की अधिकतम मात्रा 8 फीसदी एवं चने में नमी की अधिकतम मात्रा 14 फीसदी निर्धारित है.

किसान क्रय केंद्र पर अपने जिंस को साफसुथरा, छान कर लाएं, ताकि एफएक्यू श्रेणी के गुणवत्ता मापदंडों के अनुरूप सरसों, चना की खरीद की जा सके. किसानों की समस्या के समाधान के लिए राजफैड द्वारा हैल्पलाइन नंबर 18001806001 स्थापित किया हुआ है.

किसान व खेती बचाने के लिए एमएसपी गारंटी (MSP Guarantee) जरूरी

देशभर के किसान संगठनों व मजदूर संगठनों की आपात बैठक 13 मार्च, 2024 को दिल्ली के जवाहर भवन में संपन्न हुई. इस में देशभर से आए बहुसंख्य किसान संगठनों ने भाग लिया. इस बैठक में सर्वसम्मति से गठित ’सांझा किसान मजदूर मोरचा’ में सामूहिक नेतृत्व को मान्यता प्रदान करते हुए प्राथमिक रूप से गठित ’मुख्य प्रधानी मंडल’ में जसबीर सिंह भाटी, आत्मजीत सिंह, राजबीर सिंह, डा. राजाराम त्रिपाठी, गुरमुख सिंह, सुदेश खंडेला, भगवान पाल सिंह, भोपाल सिंह चैधरी को शामिल किया गया है.

इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बैठक में किसान संगठनों ने एकमत हो कर किसानों की मुख्य मांगो में 1 एमएसपी पर सी 2 प्लस 50 फीसदी, और एमएस स्वामीनाथन कमीशन आयोग की अन्य लंबित सिफारिशों (फसल बीमा, लागत मूल्य आदि) के साथ ही तत्काल सभी फसलों के लिए सक्षम खरीद गारंटी कानून बनाने की सरकार से मांग की गई. इसी के साथ ही मनरेगा मजदूरों को 200 दिन रोजगार गारंटी और 700 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी की मांग की गई.

– जमीन अधिग्रहण कानून 2013 के तहत जमीन अधिग्रहण का फार्मूला तय करने और किसानों को जल आपूर्ति के लिए पूर्व में घोषित नदियों को जोड़ने की परियोजना पर काम करने की भी मांग की गई.

– सभी संगठनों ने किसान और मजदूर की पूरी तरह से कर्जमाफी की मांग सरकार के सामने रखी.

– वन संरक्षण अधिनियम 2023 को रद्द करने की मांगो पर सर्वसम्मति के साथ सरकार को ज्ञापन देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता बस्तर, छत्तीसगढ़ से पधारे अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक और ‘एसपी गारंटी कानून मोरचा’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि अब वह समय आ गया है कि देश के सभी छोटेबड़े किसान संगठन देश के किसान व किसानी को बचाने के लिए इन जरूरी मांगों को पूरा कराने के लिए अपने समस्त अंतर्विरोधों को ताक पर रख कर एकजुट हो जाएं. ध्यान रहे कि अभी नहीं तो कभी नहीं.

पूर्वी भारत में शहद क्रांति (Honey Revolution) का आगाज

रांची: 13 मार्च 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा की पहल पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तत्वावधान में पूर्वी भारत में शहद क्रांति का आगाज किया.

झारखंड में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अत्याधुनिक बड़ी शहद टैस्टिंग लैब स्थापित की गई. इस का शिलान्यास 14 मार्च को केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने किया. इस क्षेत्र के हनी हब बनने से शहद उत्पादक हजारों किसानों को घरेलू बाजार में विस्तार के साथ ही निर्यात के अवसर मिलेंगे, जिस से उन का जीवनस्तर ऊंचा उठेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में देश में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों और किसानों को प्राथमिकता सरकार सदैव प्राथमिकता देती रही है. इसी क्रम में झारखंड एवं आसपास के राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा आदि की अनूठी शहद किस्मों को अंतर्राष्ट्रीय पहचान देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के संस्थानों द्वारा मंत्री अर्जुन मुंडा की पहल पर अत्याधुनिक वृहद शहद परीक्षण प्रयोगशाला और अन्य परियोजनाओं की स्वीकृति प्रदान की गई.

इन का शिलान्यास कार्यक्रम भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान, नामकुम, रांची, झारखंड में 14 मार्च को हुआ. इस अवसर पर क्षेत्रीय सांसद संजय सेठ, विधायक राजेश कच्छप सहित अन्य जनप्रतिनिधि एवं गणमान्यजन उपस्थित रहे.

इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में किसान और मधुमक्खीपालक शामिल हुए. इस अवसर पर एकीकृत मधुमक्खीपालन विकास केंद्र एवं मधुमक्खीपालन और बांस संवर्धन परियोजना की भी सौगातें प्रदान की गईं. राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन एवं शहद मिशन और कृषि विज्ञान केंद्र, खूंटी, रांची, गुमला, सिमडेगा, सराईकेला, पश्चिमी सिंहभूम सहित विभिन्न संस्थान इस में सहभागी रहे.

अधिक आय के लिए अपनाएं मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation )

उदयपुर: 9 मार्च 2024 को अखिल भारतीय समन्वित मशरूम परियोजना, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के तहत ग्राम पंचायत मकड़ादेव में एकदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया.

मशरूम प्रशिक्षण में गांव पानरवा, मानस, मकड़ादेव, सेलाणा और आसपास के गांव के किसानों एवं किसान महिलाओं ने हिस्सा लिया.

मशरूम एक ऐसा कृषि से जुड़ा रोजगार है, जिसे बिना खेतीबारी की जमीन के भी शुरू किया जा सकता है. इस काम को घर के कमरे से भी शुरू किया जा सकता है, जरूरत है उचित वातावरण की. महरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण जरूरी है, जिस से आप इस काम को सफलता से कर सकें.

साप्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. एनएल मीना ने बच्चों व महिलाओं में मशरूम के उपयोग से कुपोषण को दूर भगाने और अधिक आय प्राप्त करने के लिए मशरूम तकनीकी को अपनाने का विस्तार से व्याख्यान दिया. वहीं पंचायत समिति झाड़ोल की सहायक विकास अधिकारी शांता भुदरा ने महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से मशरूम की खेती को बढ़ावा दे कर अच्छी आय करने के लिए जोर दिया.

क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक कमलेश चरपोटा ने प्राकृतिक खेती व राजस्थान सरकार की अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया.

अविनाश कुमार नागदा, किशन सिंह राजपूत और रवींद्र चौधरी ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी. प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जनजाति उपयोजना के कुल 25 प्रशिक्षणार्थियों को सामग्री बांटी गई.