किसान व खेती बचाने के लिए एमएसपी गारंटी (MSP Guarantee) जरूरी

देशभर के किसान संगठनों व मजदूर संगठनों की आपात बैठक 13 मार्च, 2024 को दिल्ली के जवाहर भवन में संपन्न हुई. इस में देशभर से आए बहुसंख्य किसान संगठनों ने भाग लिया. इस बैठक में सर्वसम्मति से गठित ’सांझा किसान मजदूर मोरचा’ में सामूहिक नेतृत्व को मान्यता प्रदान करते हुए प्राथमिक रूप से गठित ’मुख्य प्रधानी मंडल’ में जसबीर सिंह भाटी, आत्मजीत सिंह, राजबीर सिंह, डा. राजाराम त्रिपाठी, गुरमुख सिंह, सुदेश खंडेला, भगवान पाल सिंह, भोपाल सिंह चैधरी को शामिल किया गया है.

इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बैठक में किसान संगठनों ने एकमत हो कर किसानों की मुख्य मांगो में 1 एमएसपी पर सी 2 प्लस 50 फीसदी, और एमएस स्वामीनाथन कमीशन आयोग की अन्य लंबित सिफारिशों (फसल बीमा, लागत मूल्य आदि) के साथ ही तत्काल सभी फसलों के लिए सक्षम खरीद गारंटी कानून बनाने की सरकार से मांग की गई. इसी के साथ ही मनरेगा मजदूरों को 200 दिन रोजगार गारंटी और 700 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी की मांग की गई.

– जमीन अधिग्रहण कानून 2013 के तहत जमीन अधिग्रहण का फार्मूला तय करने और किसानों को जल आपूर्ति के लिए पूर्व में घोषित नदियों को जोड़ने की परियोजना पर काम करने की भी मांग की गई.

– सभी संगठनों ने किसान और मजदूर की पूरी तरह से कर्जमाफी की मांग सरकार के सामने रखी.

– वन संरक्षण अधिनियम 2023 को रद्द करने की मांगो पर सर्वसम्मति के साथ सरकार को ज्ञापन देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता बस्तर, छत्तीसगढ़ से पधारे अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक और ‘एसपी गारंटी कानून मोरचा’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि अब वह समय आ गया है कि देश के सभी छोटेबड़े किसान संगठन देश के किसान व किसानी को बचाने के लिए इन जरूरी मांगों को पूरा कराने के लिए अपने समस्त अंतर्विरोधों को ताक पर रख कर एकजुट हो जाएं. ध्यान रहे कि अभी नहीं तो कभी नहीं.

पूर्वी भारत में शहद क्रांति (Honey Revolution) का आगाज

रांची: 13 मार्च 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा की पहल पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तत्वावधान में पूर्वी भारत में शहद क्रांति का आगाज किया.

झारखंड में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अत्याधुनिक बड़ी शहद टैस्टिंग लैब स्थापित की गई. इस का शिलान्यास 14 मार्च को केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने किया. इस क्षेत्र के हनी हब बनने से शहद उत्पादक हजारों किसानों को घरेलू बाजार में विस्तार के साथ ही निर्यात के अवसर मिलेंगे, जिस से उन का जीवनस्तर ऊंचा उठेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में देश में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों और किसानों को प्राथमिकता सरकार सदैव प्राथमिकता देती रही है. इसी क्रम में झारखंड एवं आसपास के राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा आदि की अनूठी शहद किस्मों को अंतर्राष्ट्रीय पहचान देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के संस्थानों द्वारा मंत्री अर्जुन मुंडा की पहल पर अत्याधुनिक वृहद शहद परीक्षण प्रयोगशाला और अन्य परियोजनाओं की स्वीकृति प्रदान की गई.

इन का शिलान्यास कार्यक्रम भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान, नामकुम, रांची, झारखंड में 14 मार्च को हुआ. इस अवसर पर क्षेत्रीय सांसद संजय सेठ, विधायक राजेश कच्छप सहित अन्य जनप्रतिनिधि एवं गणमान्यजन उपस्थित रहे.

इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में किसान और मधुमक्खीपालक शामिल हुए. इस अवसर पर एकीकृत मधुमक्खीपालन विकास केंद्र एवं मधुमक्खीपालन और बांस संवर्धन परियोजना की भी सौगातें प्रदान की गईं. राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन एवं शहद मिशन और कृषि विज्ञान केंद्र, खूंटी, रांची, गुमला, सिमडेगा, सराईकेला, पश्चिमी सिंहभूम सहित विभिन्न संस्थान इस में सहभागी रहे.

अधिक आय के लिए अपनाएं मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation )

उदयपुर: 9 मार्च 2024 को अखिल भारतीय समन्वित मशरूम परियोजना, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के तहत ग्राम पंचायत मकड़ादेव में एकदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया.

मशरूम प्रशिक्षण में गांव पानरवा, मानस, मकड़ादेव, सेलाणा और आसपास के गांव के किसानों एवं किसान महिलाओं ने हिस्सा लिया.

मशरूम एक ऐसा कृषि से जुड़ा रोजगार है, जिसे बिना खेतीबारी की जमीन के भी शुरू किया जा सकता है. इस काम को घर के कमरे से भी शुरू किया जा सकता है, जरूरत है उचित वातावरण की. महरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण जरूरी है, जिस से आप इस काम को सफलता से कर सकें.

साप्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. एनएल मीना ने बच्चों व महिलाओं में मशरूम के उपयोग से कुपोषण को दूर भगाने और अधिक आय प्राप्त करने के लिए मशरूम तकनीकी को अपनाने का विस्तार से व्याख्यान दिया. वहीं पंचायत समिति झाड़ोल की सहायक विकास अधिकारी शांता भुदरा ने महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से मशरूम की खेती को बढ़ावा दे कर अच्छी आय करने के लिए जोर दिया.

क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक कमलेश चरपोटा ने प्राकृतिक खेती व राजस्थान सरकार की अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया.

अविनाश कुमार नागदा, किशन सिंह राजपूत और रवींद्र चौधरी ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी. प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जनजाति उपयोजना के कुल 25 प्रशिक्षणार्थियों को सामग्री बांटी गई.

एपीडा (APEDA) ने कृषि निर्यात को आसान बनाया

नई दिल्ली: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) भारत से कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपाय कर रहा है. एपीडा की दूरदर्शी रणनीति में कुछ उत्पादों पर निर्भरता को कम करने और मूल्य श्रंखला को आगे बढ़ाने के लिए ताजा फल, सब्जियों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और पशु उत्पादों जैसे प्राथमिकता वाले उत्पादों पर केंद्रित उपाय के साथ निर्यात टोकरी का विस्तार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव शामिल है.

यूरोप, लैटिन अमेरिका और एशिया जैसे प्रमुख बाजारों में विस्तार पर ध्यान देने के साथ, एपीडा का लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए वैश्विक सुपरमार्केट के साथ छोटीछोटी भागीदारी बनाना है. इस के अतिरिक्त यह संगठन शोध संस्थानों के साथ सहयोग के जरीए समुद्री प्रोटोकाल स्थापित कर के लौजिस्टिक खर्चों को कम करने पर काम कर रहा है.

ये रणनीतिक उपाय प्रतिस्पर्धात्मकता को बेहतर बना कर और सतत विकास को बढ़ावा दे कर भारत के कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक बार फिर इस मामले में एपीडा की प्रतिबद्धता को बताती है.

इस के अलावा श्रीअन्न बाजरा को बढ़ावा देने के लिए एपीडा के ठोस प्रयास एक स्वस्थ और अधिक विविध खाद्य परिदृश्य विकसित करने के सरकार के विजन के अनुरूप हैं. पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष-2023 के दौरान विशेष ध्यान देने के साथ एपीडा ने श्रीअन्न ब्रांड के तहत मूल्यवर्धित उत्पादों की एक विस्तृत श्रंखला के विकास और एकीकरण की दिशा में बड़ी मेहनत से किया है.

इस रणनीतिक पहल ने पास्ता, नूडल्स, नाश्ते के लिए अनाज, आइसक्रीम, बिाकुट, एनर्जी बार और स्नैक्स सहित विभिन्न मूल्यवर्धित उत्पादों के बनाने और उन्हें मुख्यधारा में लाने में अग्रणी भूमिका निभाई.

श्रीअन्न उत्पाद श्रंखला में विविधता ला कर एपीडा ने न केवल नवाचार को बढ़ावा दिया है, बल्कि निर्बाधपूर्वक इन उत्पादों को निर्यात मूल्य श्रंखला से भी जोड़ा है. इन प्रयासों के माध्यम से एपीडा श्रीअन्न बाजरा की प्रोफाइल को खूब अच्छा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इस की वजह से यह संगठन स्वस्थ आहार विकल्पों को बढ़ावा देने और भारत के कृषि निर्यात पोर्टफोलियो के विस्तार को सुगम बनाने के सरकार के व्यापक एजेंडे में योगदान दे रहा है.

अप्रैलनवंबर, 2023 के दौरान एपीडा ने इराक, वियतनाम, सऊदी अरब और ब्रिटेन जैसे बड़े बाजारों में निर्यात को आसान बनाया और पिछले वर्ष की तुलना में अच्छीखासी वृद्धि देखी गई. क्रमशः 110 फीसदी, 46 फीसदी, 18 फीसदी और 47 फीसदी की वृद्धि के साथ यह उल्लेखनीय निर्यात विस्तार प्रमुख बाजारों में भारतीय कृषि उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग को रेखांकित करता है.

समावेशिता को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्य के हिस्से के रूप में एपीडा वैश्विक कार्यक्रमों में स्टार्टअप, महिला उद्यमियों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ व एफपीसी) की भागीदारी को सक्षम बना कर उन को समर्थन दे रहा है.

निर्यातकों की प्रतिक्रिया के उत्तर में एपीडा तुर्की, दक्षिण कोरिया, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और जापान जैसे उभरते हुए बाजारों में नए मेलों में भागीदारी की शुरुआत कर रहा है. इस सक्रिय दृष्टिकोण का मकसद भारतीय निर्यातकों के लिए बाजार तक ज्यादा पहुंच को आसान बनाना और सतत विकास के अवसरों को बढ़ावा देना है.

जलवायु परिवर्तन, कार्बन संचयन और कृषि सहकारिता पर एकदिवसीय कार्यशाला

उदयपुर: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन सीटीएई के सैमिनार हाल उदयपुर में किया गया, जिस में जलवायु परिवर्तन, कार्बन संचयन और कृषि सहकारिता पर किसानों व छात्रों को विस्तार से जानकारी दी गई.

अध्यक्षता करते हुए डा. पीएल गौतम, वाइस चांसलर, आरपीसीएयू ने मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहा कि हम सब को मिल कर काम करने की जरूरत है, तभी हम खेतों में नवाचार कर के अच्छी उपज ले सकते हैं. जलवायु परिवर्तन पर सब को मिल कर काम करने की बात कहीं. डा. अजीत कुमार कर्नाटक, वाइस चांसलर, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने संबोधित करते हुए कहा कि हमें खेतों में ऐसा काम करना है कि हम पैसों की तरफ न भागें, बल्कि पैसा हमारी तरफ भागे.

डा. जगदीश सिंह चैधरी ने जलवायु परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए खेती पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दे कर किसानों को लाभान्वित किया. डा. पीके सिंह डीन, सीटीएई, उदयपुर ने जल संरक्षण पर प्रकाश डालते हुए कार्बन संचयन के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

Climate Changeअर्पण सेवा संस्थान के अध्यक्ष डा. शुभ करण सिंह ने संस्थान द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हम जलवायु परिवर्तन, कार्बन संचयन, कृषि सहभागिता पर काम करेंगे. डा. एनएल पवार  ने खेती में कार्बन का क्या महत्व है, के बारे में प्रकाश डाला.

इस शुभ अवसर पर अर्पण सेवा संस्थान के नए लोगों का विमोचन मंच पर बैठे अतिथियों व उपस्थित किसान समुदाय द्वारा किया गया.

राम अवतार चैधरी ने कृषि के साथसाथ पशुपालन की तकनीक पर जानकारी दी. मंच का संचालन रमेश चंद शर्मा ने किया और धन्यवाद डा. चंद्रशेखर मीणा ने किया. कार्यशाला में खेरवाड़ा के तकरीबन 107 किसानों ने भाग लिया.

मुलेठी (Liquorice) के सिल्वर नैनो कणों को बनाने की विधि पर मिला पेटेंट

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को मुलेठी (Liquorice) (वैराइटी एचएम-1) का उपयोग कर के सिल्वर नैनो कण बनाने की विधि पर भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है. इस विधि को विश्वविद्यालय के आणुविक जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और जैव सूचना विज्ञान विभाग (एमबीबीएंडबी) की पूर्व विभागाध्यक्ष डा. पुष्पा खरब के नेतृत्व में उन के पीएचडी शोधार्थी डा. कनिका रानी और डा. निशा देवी ने विकसित किया है.

इस विधि को पेटेंट अधिनियम 1970 के अंतर्गत 20 वर्ष की अवधि के लिए 486872 संख्या से पेटेंट अनुदित किया गया है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए कहा कि पौलीहाउस, ग्रीनहाउस, बागबानी व सब्जियों में रूट नौट निमेटोड यानी जड़गांठ सूत्रकृमि के संक्रमण से बहुत अधिक नुकसान देखा गया है.

पौलीहाउस में नियंत्रित पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण निमेटोड की आबादी में वृद्धि हो जाती है और इन की अत्यधिक संक्रमण दर के कारण कोई फसल नहीं उग पाती है. इस वजह से किसानों को काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए हम ने मुलेठी द्वारा निर्मित इन सिल्वर नैनो कणों को रूट नौट निमेटोड पर टैस्ट किया.

इस काम के लिए सूत्रकृमि विभाग के वैज्ञानिक डा. प्रकाश बानाकर का सहयोग लिया गया. शोधार्थियों ने यह जांच पहले लैब में, फिर स्क्रीनहाउस में की, दोनों ही केस में मुलेठी द्वारा निर्मित सिल्वर नैनो कण रूट नौट निमेटोड को मारने में सक्षम पाए गए, इस से संबंधित और भी शोध के काम जारी हैं.

प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि कमर्शियल कैमिकल नेमैटिसाइड (वाणिज्यिक रासायनिक सूत्र कृमिनाशक) की तुलना में मुलेठी द्वारा निर्मित सिल्वर नैनो कणों की बहुत कम मात्रा ही सूत्र कृमिनाशक के रूप में पाई गई है, इसलिए इन सिल्वर नैनो कणों को विभिन्न कृषि फसलों के लिए उपयोग किया जा सकता है.

विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई सिल्वर नैनो कण बनाने की यह विधि प्रभावी, किफायती और स्थिर है. यह सिल्वर नैनो कण एक साल से अधिक समय तक स्थिर पाए गए है.

विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने कहा कि यह पेटेंट मुलेठी (वैराइटी एचएम-1) के मूल अर्क का उपयोग कर के उसे सिल्वर नैनो कणों में परिवर्तित करने की बेहतर विधि है. यह सिल्वर नैनो कण एक साल से अधिक समय तक स्थिर पाए गए हैं. इन नैनो कणों में नेमैटिसाइड (सूत्र कृमिनाशक) क्षमता की जांच इन विट्रो व इन विवो स्थितियों में भी की गई थी.

मुलेठी द्वारा निर्मित सिल्वर नैनो कणों के फायदे

पौधों के इस्तेमाल से नैनो कणों को बनाने की विधि में कैमिकल्स का कम उपयोग होता है और कोई अतिरिक्त जहरीला अवशेष भी नहीं बनता है. मुलेठी के इस्तेमाल से बनाए गए हमारे सिल्वर नैनो कण निमेटोड को मारने में सक्षम पाए गए हैं. किसान मुलेठी आधारित इन सिल्वर नैनो कणों का उपयोग निमेटोड संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कर सकता है, जिस की वजह से तकरीबन सभी खेती वाली फसलों की उपज और गुणवत्ता को गंभीर नुकसान पहुंचता है.

उर्वरकों (Fertilizers) के असली व नकली की पहचान है जरुरी

खेती में प्रयोग में लाए जाने वाले कृषि निवेशों में से सब से मंहगी सामग्री रासायनिक उर्वरक है. उर्वरकों के शीर्ष उपयोग की अवधि हेतु खरीफ एवं रबी के पूर्व उर्वरक विनिर्माता फैक्टरियों और विक्रेताओं द्वारा नकली एवं मिलावटी उर्वरक बनाने एवं बाजार में उतारने की कोशिश होती है. इस का सीधा असर किसानों पर पड़ता है.

नकली एवं मिलावटी उर्वरकों की समस्या से निबटने के लिए समयसमय पर विभागीय अभियान चला कर जांचपड़ताल की जाती है, फिर भी यह आवश्यक है कि खरीदारी करते समय किसान उर्वरकों की शुद्धता मोटेतौर पर उसी तरह से परख लें, जैसे बीजों की शुद्धता, बीज को दांतों से दबाने पर कट और किच्च की आवाज से, कपड़े की गुणवत्ता उसे छू कर या मसल कर और दूध की शुद्धता की जांच उसे उंगली से टपका कर लेते हैं.

किसानों के बीच प्रचलित उर्वरकों में से प्रायः डीएपी, जिंक सल्फेट, यूरिया और एमओपी नकली व मिलावटी रूप में बाजार में उतारे जाते हैं. खरीदारी करते समय किसान इस की प्रथमदृष्टया परख सरल विधि से कर सकते हैं और अगर उर्वरक नकली पाया जाए, तो इस की पुष्टि किसान सेवा केंद्रों पर उपलब्ध टेस्टिंग किट से की जा सकती है.

टेस्टिंग किट किसान सेवा केंद्रों पर उपलब्ध होती हैं. ऐसी स्थिति में कानूनी कार्यवाही किए जाने के लिए इस की सूचना जिले के उप कृषि निदेशक (प्रसार) या जिला कृषि अधिकारी एवं कृषि निदेशक, उत्तर प्रदेश को दी जा सकती है.

यूरिया पहचान विधि

यूरिया के असली होने की पहचान की उस के दाने सफेद चमकदार, लगभग समान आकार के होते हैं. इस के दाने पानी में डालने पर पूरी तरह घुल जाते हैं और घोल छूने पर ठंडी अनुभूति. जब यूरिया के दाने को गरम तवे पर रखा जाता है, तो यह पिघल जाता है.

एकचैथाई टेबल स्पून यूरिया में 8 से 10 बूंद सिल्वर नाइट्रेट मिलाने पर अगर यूरिया पूरी तरह घुल जाता है और बिलकुल पारदर्शी गोल प्राप्त होता है, तब यूरिया असली है. यदि सिल्वर नाइट्रेट मिलने पर घोल में दही जैसे थक्के बन जाते हैं, तब यूरिया नकली है.

डीएपी (डाई) पहचान विधि

असली डीएपी की पहचान है कि यह सख्त, दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग और नाखूनों से आसानी से नहीं टूटता है. डीएपी के कुछ दानों को ले कर तंबाकू की तरह उस में चूना मिला कर मलने पर तेज गंध निकलती है, जिसे सूंघना असहनीय हो जाता है. असली डीएपी को तवे पर धीमी आंच में गरम करने पर दाने फूल जाते हैं.

डीएपी के 4 से 5 दाने ले कर और उस में बुझा चूना मिलाने पर अत्यंत तीक्ष्ण गंध आती है. यदि तीक्ष्ण गंध नहीं निकलती है, तब डीएपी नकली हो सकती है

आधा चम्मच पिसा हुआ डीएपी लें. उस के ऊपर 10 मिलीलिटर आसुत जल और एक मिलीलिटर संद्रप्त नाइट्रिक एसिड डालें. यदि डीएपी पूरी तरह घुल जाती है और घोल का रंग पारदर्शी रहता है, तब डीएपी शुद्ध है. अगर डीएपी पूरी तरह नहीं घुलता है और घोल का रंग मटमैला रहता है, तब डीएपी अशुद्ध है.

सुपर फास्फेट पहचान विधि

यह सख्त दानेदार, भूरा काला, बादामी रंगों से युक्त और नाखूनों से आसानी से न टूटने वाला उर्वरक है. यह चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध होता है. इस दानेदार उर्वरक की मिलावट बहुधा डीएपी एवं एनपी के मिक्सचर उर्वरकों के साथ की जाने की संभावना बनी रहती है.

परीक्षण

इस दानेदार उर्वरक को यदि गरम किया जाए, तो इस के दाने फूलते नहीं हैं, जबकि डीएपी व अन्य कम्प्लैक्स के दाने फूल जाते हैं. इस प्रकार इस की मिलावट की पहचान आसानी से कर सकते हैं.

जिंक सल्फेट पहचान विधि

जिंक सल्फेट में मैग्नीशियम सल्फेट प्रमुख मिलावटी रसायन हैं. भौतिक रूप में समानता के कारण नकलीअसली की पहचान कठिन होती है. अगर एक फीसदी जिंक सल्फेट के घोल में 10 फीसदी सोडियम हाईड्रौक्साइड का घोल मिलाया जाए, तो यह थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है. मैग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता.

जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक 10 फीसदी का घोल मिलाने पर सफेद, मटमैला माड़ जैसा अवक्षेप बनता है, जिस में गाढ़ा कास्टिक 40 फीसदी का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूरी तरह घुल जाता है. यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैग्नीशियम सल्फेट है, तो अवशेष नहीं घुलेगा.

एमओपी (पोटाश खाद) पहचान विधि

यह सफेद कणाकार, पिसे नमक और लाल मिर्च जैसा मिश्रण होता है. इस के कण नम करने पर आपस में चिपकते नहीं हैं और पानी में घोलने पर खाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरता है.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को सफल मौडल के रूप में अपनाएं किसान

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र, सदलपुर द्वारा ‘गौ आधारित प्राकृतिक खेती’ विषय पर जिलास्तरीय जागरूकता कार्यक्रम व कृषि विज्ञान मेले का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों को जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र अग्निस्त्र, दशप्रर्णी अर्क आदि का प्रयोग कर के प्राकृतिक खेती को एक सफल मौडल के रूप में विकसित कर के अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. गौ आधारित प्राकृतिक खेती से न केवल पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने किसानों को कृषि कार्यों में नई तकनीक अपनाने की सलाह दी. साथ ही, किसानों को अपने उत्पादों का प्रसंस्करण कर के मूल्य संवर्धन करने और अपने उत्पादों की खुद कीमत तय कर के विपणन कर के अधिक लाभ कमाया जा सकता है. उन्होंने फार्मर प्रोड्यूसर और्गैनाइजेशन के तौर पर समूह बना कर काम करने, जिस में शुद्ध अनाज, सब्जी, फल तैयार कर के अधिक उत्पादन लेने के लिए किसानों को जागरूक किया.

विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती में अंतर को समझाते हुए, वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है. किसान विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों से तकनीकी जानकारी ले कर सीमित क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं.

विश्वविद्यालय में परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. ओपी बिश्नोई, डा. राजेश आर्य व डा. सुनील ने किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई विभिन्न किस्मों व तकनीकों की जानकारी दी.

सेवानिवृत वैज्ञानिक डा. ओपी नेहरा, डा. बीडी यादव ने विभिन्न फसलों में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं के बारे में बताया. कृषि विज्ञान केंद्र के कोआर्डिनेटर डा. नरेंद्र कुमार ने किसानों को कृषि क्षेत्र में नवाचार द्वारा स्वरोजगार स्थापित कर के अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं से जुड़ कर लागत कम कर के मुनाफा बढ़ाने की जानकारी दी.

कार्यक्रम के दौरान खेतीबारी से जुड़ी मशीनरी, उर्वरक, सिंचाई में काम आने वाली सिस्टम और अन्य इनपुट बनाने वाली कंपनियों की प्रदर्शनियां भी लगाई गईं, जिस में सब्जी उत्पादन में काम आने वाली मशीनें, शतप्रतिशत जल विलय उर्वरक और नैनो यूरिया व नैनो डीएपी इत्यादि उत्पादों के बारे में किसानों को जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान प्रगतिशील किसान सरपंच नथूराम, श्रीरामेश्वर करिर, शिवशंकर, कृष्ण रावलवास, सरजीत, विक्रम खांडा खेड़ी, चिरिंजी और कार्तिक को सम्मानित किया गया. इन प्रगतिशील किसानों ने प्राकृतिक खेती के बारे में अपने अनुभव साझा कर के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया. इस अवसर पर केवीके के वैज्ञानिक डा. कुलदीप व डा. दिनेश भी उपस्थित रहे.

उन्नत किस्म और फसल विविधीकरण (Crop Diversification) से अधिक मुनाफा

सोनीपत: महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने 2 मार्च को क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, मुरथल में वैज्ञानिक पद्धति से मधुमक्खीपालन विषय को ले कर सातदिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया.

कार्यशाला के शुभारंभ के बाद कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने केंद्र का निरीक्षण कर केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल की. केंद्र में पहुंचने पर केंद्र निदेशक व कुलसचिव डा. अजय सिंह ने मुख्य अतिथि कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा और विशिष्ट अतिथि, कृषि विभाग के पूर्व क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी डा. जेके श्योरोण, जीत खादी ग्रामोद्योग के प्रधान देवव्रत बाल्यान, सिंधु ग्रामोद्योग समिति के प्रधान अनिल सिंह सिंधू, गोबिंद अतुल्य बी मास्टर प्रोड्यूस कंपनी लिमिटेड का स्वागत किया.

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को फसल विविधीकरण की ओर तेजी से बढ़ना चाहिए. खेती में नई तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए, जो उन के लिए सकारात्मक दूरगामी परिणाम देने वाली साबित होगी.

उन्होंने किसानों को खेती में उन्नत किस्मों का प्रयोग करने की सलाह दी, जिस से फसल की ज्यादा पैदावार के साथसाथ गुणवत्ता में सुधार होगा. किसान अपनी फसलों को अच्छे दामों पर बेच कर भारी मुनाफा कमा सकेंगे. किसानों, युवाओं, महिलाओं को मधुमक्खी और मशरूम को व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहिए.
कृषि विभाग के पूर्व क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी व मधुमक्खीपालन के एडीओ डा. जेके श्योरोण ने मधुमक्खीपालन को ले कर विस्तार से जानकारी दी. ट्रेनिंग कोर्डिनेटर रविंद्र मलिक रहे.

कुलपति ने किया केंद्र का निरीक्षण

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने केंद्र का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान उन्होंने हाईटैक नर्सरी, पौलीहाउस, स्पान लैब व मशरूम यूनिट को देखा. इस बारे में केंद्र के निदेशक ने कुलपति को बताया कि केंद्र में किस प्रकार खाद व बीज बना कर किसानों को उपलब्ध करवाया जाता है.

इस पर कुलपति ने कहा कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा उन्नत किस्म का बीज उपलब्ध करवाया जाए, ताकि किसानों को एमएचयू से ज्यादा फायदा पहुंचे.

प्रतिभागियों को वितरित किए सर्टिफिकेट

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने मशरूम उत्पादन प्रसंस्करण एवं विपणन विषय पर पांचदिवसीय कार्यशाला समापन होने पर प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट व मशरूम का बीज वितरित किया. कार्यशाला में प्रदेशभर के अलगअलग जिलों से आए 24 प्रतिभागियों ने शिरकत की.

उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग का मकसद मशरूम उत्पादन के दौरान होने वाली परेशानियों को पहले ही दूर करना है, ताकि प्रतिभागी मशरूम का उत्पादन अच्छे से कर पाएं. ट्रेनिंग के माध्यम से किसानों को जागरूक करना है. ट्रेनिंग कोर्डिनेटर डा. मनीष कुमार रहे.

पूर्वोत्तर को मिला नया कृषि संस्थान (Agricultural Institute)

असम:केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने आईएआरआई, दिरपई चापोरी, गोगामुख, असम में प्रशासनिक सह शैक्षणिक भवन, मानस गैस्ट हाउस, सुबनसिरी गल्र्स होस्टल और ब्रह्मपुत्र बौयज होस्टल का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चैधरी उद्घाटन समारोह में उपस्थित थे और उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, असम में प्रदर्शनी स्टाल का दौरा किया.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास पर विशेष बल है. केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि के विकास की कमियों को दूर कर उन्हें मुख्यधारा में लाने का काम किया है. इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को एक नया आयाम दिया है. सरकार 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प के साथ काम कर रही है, जिस में कृषि की भूमिका बेहद अहम है.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि खाद्य तेल आयात का बोझ कम करने और तिलहन में आत्मनिर्भर बनने के लिए 11,000 करोड़ रुपए का मिशन चलाया जा रहा है. हमें इस सोच के साथ काम करना है कि आने वाले दिनों में हम आयात नहीं, बल्कि निर्यात करेंगे. उन्होंने कहा कि जब हम एक विजन के साथ काम करते हैं, तो हमें सफलता जरूर मिलती है.

अर्जुन मुंडा ने जलवायु अनुकूल फसल किस्मों के विकास पर भी बल दिया और कहा कि कृषि शिक्षा को आजीविका व रोजगार के अवसरों से जोड़ा जाना चाहिए. जैव विविधता अध्ययन पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि एक साल में यह संस्थान शोध के लिए सब से पसंदीदा विकल्प होगा.

कृषि संस्थान (Agricultural Institute)

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि प्रौद्योगिकियों को जलवायु और लैंगिक स्तर पर तटस्थ होना चाहिए. वहीं राज्य मंत्री कैलाश चैधरी ने वैज्ञानिकों से उत्तरपूर्व क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक विविधता का दोहन करने का आग्रह किया.

उन्होंने प्रकृति के करीब प्रौद्योगिकियों के विकास पर भी बल दिया और कहा कि हमें जैविक और प्राकृतिक खेती से जुड़ना चाहिए. साथ ही, उन्होंने दलहन और तिलहन से संबंधित अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने पर बल दिया, ताकि देश को दालों के निर्यात पर बहुत अधिक पैसा खर्च न करना पड़े.
उन्होंने कहा कि कृषि अनुसंधान को उद्यमिता से जोड़ना होगा और यह सब तभी संभव है, जब विभिन्न संगठनों के बीच विचारों का मुक्त आदानप्रदान हो.

असम सरकार के शिक्षा, सामान्य जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री डा. रनोज पेगु ने आईएआरआई, असम के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आईएआरआई, असम द्वारा किया जाने वाला शोध कार्य पौधों, पशुओं और मत्स्य विविधता पर विचार करने के साथसाथ पर्यावरण के संरक्षण में भी सहायक होगा.

लखीमपुर के सांसद प्रदान बरुआ ने कहा कि यह हमारा सपना था कि असम में इस स्तर का एक संस्थान बने. हमें आशा है कि यह संस्थान पूरे उत्तरपूर्व भारत के युवा प्रतिभाओं की उम्मीदों पर खरा उतरेगा.
डीएआरई के सचिव और आईसीएआर, नई दिल्ली के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने वर्चुअल माध्यम से उपस्थित लोगों को संबोधित किया और आईएआरआई, असम के उद्देश्यों व दायित्वों के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उत्तरपूर्व भारत में अपार संभावनाएं हैं, जिन्हें अनुसंधान और विकास के माध्यम से तलाशने की जरूरत है.

उन्होंने आश्वासन दिया कि आईसीएआर यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा कि संस्थान तेजी से प्रगति करता रहे. इस संस्थान का खुलना आईसीएआर के इतिहास में एक यादगार दिन है. उन्होंने संस्थान के विकास से जुड़े लोगों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी. आईएआरआई के निदेशक डा. एके सिंह ने आईएआरआई, असम की श्रमिक समिति द्वारा किए गए सभी प्रयासों की सराहना की. इस अवसर पर डा. डीके सिंह, डा. अनिल सिरोही, डा. मनोज खन्ना, डा. अनुपम मिश्रा, भार्गव शर्मा, डा. वाईएल सिंह, डा. केबी पुन, अंकुर भराली और धेमाजी के जिला कमिश्नर भी उपस्थित थे.