पीएम किसान सम्मान निधि (PM Kisan Samman Nidhi) 11 करोड़ से अधिक किसानों तक

नई दिल्ली : दुनिया की सब से बड़ी डीबीटी योजनाओं में से एक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM Kisan Samman Nidhi) ने एक नया पड़ाव पार कर लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महाराष्ट्र के यवतमाल में पीएम किसान योजना की 16वीं किस्त जारी करने के साथ ही अब तक इस योजना से 11 करोड़ से अधिक पात्र किसान परिवारों को तकरीबन 3 लाख करोड़ रुपए का लाभ प्रदान किया जा चुका है. इस में से 1.75 लाख करोड़ रुपए पात्र किसानों को केवल कोविड अवधि के दौरान हस्तांतरित किए गए, जब कि उन्हें प्रत्यक्ष नकद लाभ की सब से अधिक आवश्यकता थी.

देश में किसान परिवारों के लिए सकारात्मक पूरक आय समर्थन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए और उत्पादक, प्रतिस्पर्धी, विविध, समावेशी और स्थायी कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए, भारत सरकार ने 2 फरवरी, 2019 को किसानों के कल्याण के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) की शुरुआत की.

योजना के तहत पात्र किसान परिवारों को हर 4 महीने में 2,000 रुपए की 3 समान किस्तों के साथ हर साल 6,000 रुपए की आय सहायता प्रदान की जाती है. आधुनिक डिजिटल तकनीक का उपयोग करते हुए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से यह लाभ सीधे पात्र लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजी जाती है.

90 लाख नए लाभार्थी जुड़े

हाल ही में 2.60 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का सैचुरेशन सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ के हिस्से के रूप में, 90 लाख पात्र किसानों को पीएम किसान योजना में जोड़ा गया.

पिछले 5 सालों में इस योजना ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसे अपने विजन, स्केल और पात्र किसानों के खातों में सीधे पैसों के निर्बाध अंतरण के लिए विश्व बैंक सहित विभिन्न संगठनों से प्रशंसा मिली है.

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा उत्तर प्रदेश के किसानों को ले कर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि पीएम किसान योजना के तहत लाभ अधिकांश किसानों तक पहुंचा और उन्हें बिना किसी लीकेज के पूरी धनराशि प्राप्त हुई.

इसी अध्ययन के अनुसार, पीएम किसान के तहत नकद अंतरण प्राप्त करने वाले किसानों द्वारा कृषि उपकरण, बीज, उर्वरक और कीटनाशकों की खरीद में निवेश करने की संभावना अधिक होती है.

पारदर्शिता के लिए प्रौद्योगिकी

योजना को अधिक कुशल, प्रभावी और पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से किसान केंद्रित डिजिटल व्यवस्था में निरंतर सुधार किए गए हैं, ताकि योजना का लाभ बिना किसी बिचौलिए की भागीदारी के देशभर के सभी किसानों तक पहुंचना सुनिश्चित किया जा सके. पीएम किसान पोर्टल को यूआईडीएआई, पीएफएमएस, एनपीसीआई और आयकर विभाग के पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है. किसानों को त्वरित सेवाएं प्रदान करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य सभी हितधारकों को पीएम किसान प्लेटफार्म में जोड़ा गया है.

किसान जहां अपनी शिकायतें पीएम किसान पोर्टल पर दर्ज कर सकते हैं और प्रभावी एवं समय पर समाधान के लिए 24×7 काल सुविधा की मदद ले सकते हैं, वहीं भारत सरकार ने ‘किसान ईमित्र’ (एक आवाज-आधारित एआई चैटबाट) भी विकसित किया है, जो किसानों को वास्तविक समय में अपनी भाषा में प्रश्न पूछने और उन का समाधान पाने में समर्थ बनाता है. किसान ई-मित्र अब 10 भाषाओं यानीअंगरेजी, हिंदी, उड़िया, तमिल, बांग्ला, मलयालम, गुजराती, पंजाबी, तेलुगु और मराठी में उपलब्ध है.

यह योजना सहकारी संघवाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि राज्य किसानों की पात्रता को पंजीकृत और सत्यापित करते हैं, जबकि भारत सरकार इस योजना के लिए शतप्रतिशत धनराशि प्रदान करती है.

योजना की समावेशी प्रकृति इस तथ्य से परिलक्षित होती है कि 4 लाभार्थियों में से कम से कम एक महिला किसान है. इस के अलावा इस योजना के तहत 85 फीसदी से अधिक लाभार्थी छोटे और सीमांत किसान हैं.

परंपरागत खेती (Traditional Farming) को छोड़, कर रहे हैं फलों की खेती

भिंड: जिले के गांव दबोहा के किसान धर्मेंद्र शर्मा के परिवार में पहले कई सालों से परंपरागत खेती चली आ रही थी, जिस से खेती में लाभ कम मिल पा रहा था. एक दिन इन्होंने उन्नत खेती के गुर सीखने के लिए कृषि महकमे से संपर्क किया, जहां से उन्हें किसान संगोष्ठी व किसान प्रशिक्षण में शामिल होने का मौका मिला. वहां उन्हें फल उत्पादन करने की जानकारी दी गई.

किसान धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि 0.20 हेक्टेयर में केला के पौधे लगाए, जिस में 700 पौधे लगे हुए हैं. उन्होंने ये पौधे टिशू कल्चर लैब, दबोह से प्राप्त किए. उस के बाद केले के बीच में सफेद मूसली लगाई, जिस से तकरीबन 4 क्विंटल उत्पादन प्राप्त हुआ. इस वजह से किसान धर्मेंद्र शर्मा को 60,000 से 70,000 रुपए की आमदनी हासिल हुई.

उन्होंने केले के बीच में टमाटर के पौधे भी लगाए. उन्होंने बताया कि केले की तकरीबन 11 महीने में फसल तैयार हो जाएगी. इस के साथसाथ उन्होंने अपने खेत पर ताइबान अमरूद, आम और बेर के कुछ पौधे लगाए हुये हैं, जिन से भी उन्हें अच्छी आय प्राप्त हो रही है.

एफपीओ (FPO) बनाता है किसानों को आत्मनिर्भर

बस्ती: आत्मनिर्भर कृषक समन्वित विकास योजनांतर्गत कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) की मंडल स्तरीय कार्यशाला आयुक्त सभागार में संपन्न हुई, जिस में प्रदेश की अर्थव्यवस्था को ‘एक ट्रिलियन डालर अर्थव्यवस्था‘ के रूप में स्थापित करने में ‘उत्तर प्रदेश कृषक उत्पादन संगठन नीति 2020‘ एक सशक्त साधन के रूप में स्थापित की गई.

मुख्य अतिथि जेडीसी पीके शुक्ला ने कहा कि इस नीति की मूल अवधारणा प्रदेश के किसान को कृषक उद्यमी के रूप में संगठित करना है. कृषक उत्पादक संगठन का मुख्य उद्देश्य निर्माता के लिए स्वयं के संगठन के माध्यम से बेहतर आय सुनिश्चित करना है.

संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र ने कहा कि एफपीओ का उद्देश्य लघु एवं सीमांत किसानों को एक मंच प्रदान करना है, जहां वे संगठित रूप से काम कर अन्य उत्पादों की तरह लाभ ले सकें.
उन्हांेने आगे कहा कि राज्य सरकार द्वारा एफपीओ के गठन, संचालन और उन के विभिन्न कामों के लिए अनुदान पर माली मदद दी जाती है. उन्होंने यह भी बताया कि कार्बन से सुरक्षा के लिए तेजी से बढ़ने वाले पेड़ मेंड़ों पर लगाए जा सकते हैं.

उन्होंने जानकारी देते हुए यह भी बताया कि एक एफपीओ में कम से कम 150 सदस्य हो सकते हैं. एफपीओ को फार्म मशीनरी बैंक, खादबीज, यंत्र का लाइसैंस दिया जाएगा. एफपीओ द्वारा बीज उत्पादन करने पर 0.1 करोड़ रुपए पर अधिकतम 60 लाख रुपए तक अनुदान दिया जाता है. एफपीओ द्वारा उत्पादित बीज, बीज विकास निगम खरीदता है. एफपीओ धान, गेहूं खरीद केंद्र भी खोल सकते हैं.

लखनऊ कृषि निदेशालय से आए तकनीकी हैड अनिमेश श्रीवास्तव ने बताया कि प्रदेश के सभी एफपीओ को शक्ति पोर्टल पर पंजीकरण कराना अनिवार्य है. पंजीकरण के बाद एफपीओ को कृषि से संबंधित सभी योजनाओं की जानकारी, ई-बाजार, मंडी भाव, इनपुट की जानकारी और एफपीओ की ग्रेडिंग एवं रैंकिंग की जानकारी हो सकेगी.

इस के आधार पर बैंक एफपीओ को उन की व्यावसायिक गतिविधियों के लिए लोन आसानी से दे सकेंगे. प्रत्येक एफपीओ सेवा, उत्पाद और व्यापार के क्षेत्र में काम कर के किसानों को बिचैलियों से बचा सकता है.

पर्यावरणविद बीएन पांडेय ने बताया कि अच्छी खेती के लिए पराली प्रबंधन, मृदा परीक्षण, कंपोस्ट खाद का उपयोग, फसल चक्र अपनाने और कृषि वानिकी के साथसाथ समयबद्ध कृषि के काम अनिवार्य है.

कुशीनगर से आए प्रावधान एफपीओ के अध्यक्ष अंशुमान उपाध्याय ने श्रीअन्न की प्रोसैसिंग एवं उस से जुड़े यंत्र की जानकारी दी. केवीके, बस्ती के वैज्ञानिक डा. प्रेमशंकर ने बताया कि बटन मशरूम के लिए गुणवतापूर्ण कंपोस्ट खाद तैयार करना आवश्यक है.

अयोध्या के विपणन अधिकारी डा. शशिकांत सिंह ने उत्तर प्रदेश कृषि निर्यात नीति 2019 के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि बस्ती मंडल में काला नमक चावल, सिद्धार्थनगर और संतकबीर नगर में केला व बस्ती जनपद के लिए हरी सब्जियों को जीआई टैग प्राप्त है. उन्होंने इस का अधिक से अधिक क्लस्टर बना कर खेती करने का सुझाव दिया.

मुख्य प्रबंधक, यूको बैंक, अयोध्या क्षेत्र के विक्रांत त्यागी ने बताया कि यूको बैंक के माध्यम से पूर्वांचल के 16 जिलों में एफपीओ को ऋण देने का काम किया जाता है. उपनिदेशक, उद्यान, पंकज शुक्ला ने फूड प्रोसैसिंग नीति के बारे में जानकारी दी. उन्होंने यह भी बताया कि बीज उत्पादन के लिए लाइसैंस लेना अनिवार्य है.

कार्यशाला का संचालन जिला कृषि अधिकारी डा. राजमंगल चैधरी ने किया. उन्होंने बताया कि कृषि के साथसाथ उद्यान, पशुपालन, रेशम, दुग्धपालन, मत्स्यपालन, गन्ना सहित 17 विभाग एफपीओ के माध्यम से किसानों को लाभान्वित कर सकते हैं.

कार्यशाला में उपकृषि निदेशक अशोक कुमार गौतम, अरविंद कुमार विश्वकर्मा, सहायक आयुक्त, गन्ना, रंजीत कुमार निराला, यूको बैंक प्रबंधक स्वर्णा त्रिपाठी, एफपीओ के निदेशक राममूर्ति मिश्रा, शिवचंद्र दुबे, वीरेंद्र कुमार, घनश्याम और बस्ती, सिद्धार्थ नगर व संतकबीर नगर के विभागीय अधिकारी एवं एफपीओ के निदेशक उपस्थित रहे.

गेहूं की उन्नत किस्म (Improved Wheat Variety) ‘डब्ल्यूएच 1270’ पहुंचेगी किसानों तक

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित गेहूं की ’डब्ल्यूएच 1270’ की उन्नत किस्म किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है, क्योंकि यह किस्म गेहूं की अधिक पैदावार तो बढ़ाती है, साथ ही साथ गेहूं की मुख्य बीमारियां जैसे पीला मोजक, रतुआ व भूरा रतुआ के प्रति रोगरोधी क्षमता से भी परिपूर्ण है. इन्हीं गुणों के साथ गेहूं की ‘डब्ल्यूएच 1270’ की उन्नत किस्म हरियाणा के साथसाथ देश के सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्यों के किसानों को भी भरपूर फायदा मिल रहा है.

ये विचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कंपनियों से समझौते के दौरान कहे किसानों की माली हालत को और मजबूत बनाने के लिए विश्वविद्यालय ने जगदीश हाईब्रिड सीड्स कंपनी, सुपर सीड्स, हिसार, यमुना सीड्स, इंद्री व गोपाल सीड्स फार्म, मानसा से समझौता किया है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि उन्नत किस्म ‘डब्लयूएच 1270’ की पैदावार व रोग प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए इस की मांग अन्य राज्यों में भी लगातार बढ़ती जा रही है. विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के गेहूं अनुभाग द्वारा विकसित गेहूं की किस्म ‘डब्ल्यूएच 1270’ को भारत के उत्तरपश्चिमी मैदानी भाग के सिंचित क्षेत्र में अगेती बिजाई वाली खेती के लिए वरदान साबित हो रही है. इस की मांग पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगातार बढ़ती जा रही है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आगे यह भी बताया कि यह वैज्ञानिकों की मेहनत का ही परिणाम है कि हरियाणा प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत ही छोटा है, जबकि देश के केंद्रीय खाद्यान्न भंडारण में प्रदेश का कुल भंडारण का तकरीबन 16 फीसदी हिस्सा है और फसल उत्पादन में अग्रणी प्रदेशों में है.

एकसाथ 4 कंपनियों के साथ हुआ समझौता, अभी तक हो चुके हैं कुल 35 समझौते

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजू महता ने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर से एकसाथ 4 कंपनियों के साथ समझौते हुए, जिन में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने हस्ताक्षर किए, जबकि जगदीश हाईब्रिड सीड्स कंपनी की ओर से नमन मित्तल और प्रबंधक महावीर, सुपर सीड्स, हिसार के निदेशक अंकित गर्ग, यमुना सीड्स, इंद्री के पार्टनर रमन कुमार और गोपाल सीड्स फार्म, मानसा के प्रबंधक संदीप कुमार ने समझौते पर हस्ताक्षर किए.

गेहूं की उन्नत किस्म (Improved Wheat Variety)

ज्ञात रहे कि विश्वविद्यालय ने गेहूं की ‘डब्ल्यूएच 1270’ की उन्नत किस्म किसानों तक पहुंचाने के लिए कुल 35 कंपनियों से समझौते किए हैं.

‘डब्ल्यूएच 1270’ की विशेषताएं

गेहूं एवं जौ अनुभाग के प्रभारी डा. पवन कुमार ने बताया कि इस किस्म में विश्वविद्यालय द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार बिजाई कर के उचित खाद, उर्वरक व पानी दिया जाए, तो इस की औसतन पैदावार 75.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है और अधिकतम पैदावार 91.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि इस समय गेहूं के अंदर बालियां निकलने लग रही हंै. कुछ क्षेत्रों के अंदर जहां रेतीली भूमि है, वहां पर सूक्ष्म तत्वों की कमी से होने वाले रोग के कारण बालियां ठीक से नहीं निकल पा रही हैं. यह मैगनीज तत्व की कमी के लक्षण हैं. इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि उपरोक्त स्थिति में वे 500 ग्राम मैगनीज सल्फेट 100 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ स्प्रे करें. इस से बालियां सही ढंग से निकलने लग जाएंगी. यदि उस के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों रहती है, तो एक सप्ताह के बाद पुनः मैगनीज सल्फेट का छिडकाव करें.

ये रहे मौजूद

इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, डा. ओपी बिश्नोई, एसवीसी कपिल अरोड़ा, आईपीआर सेल के प्रभारी डा. विनोद सांगवान सहित अन्य उपस्थित रहे.

खाद्य इकाई (Food Unit) लगाने के लिए मिलेगा दस लाख अनुदान

जयपुर: प्रमुख शासन सचिव, कृषि एवं उद्यानिकी वैभव गालरिया की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन में प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (पीएमएफएमई) की बैठक राज्य के प्रमुख बैंकों के स्टेट हैड के साथ आयोजित की गई.

प्रमुख शासन सचिव द्वारा बैंक अधिकारियों को इस योजना के प्रति संवेदनशील रहते हुए योजना के लक्ष्य अर्जित करने के लिए निर्देशित किया गया. उन्होंने बताया कि योजना का उद्देश्य खाद्य से संबंधित योजना में अनुदान प्रदान कर इकाइयों को बढ़ावा देना है.

उल्लेखनीय है कि आटा मिल, दाल मिल, प्रोसैसिंग यूनिट, ग्रेडिंग क्लिनिंग यूनिट, अचार व पापड़ के उद्योग, दूध व खाद्य पदार्थों से संबंधित इकाइयों के लिए इस योजना में अनुदान दिया जा रहा है.

प्रमुख शासन सचिव ने योजना की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि बैंकों द्वारा छोटे व मंझले खाद्य प्रसंस्करण उद्यमियों को अधिक से अधिक किस प्रकार लाभान्वित करवाया जा सकता है. इस योजना में नई व पुरानी खाद्य इकाइयों को स्थापित करने के लिए केंद्र व राज्य सरकार द्वारा 35 फीसदी या अधिकतम 10 लाख रुपए तक का अनुदान दिया जा रहा है. इस योजना के तहत विभिन्न बैंकों की ओर से खाद्य इकाई लगाने पर 90 फीसदी तक की ऋण सहायता दी जा रही है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि राज्य में योजना को जनजन तक पहुंचाने एवं आवेदकों की सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर 9829026990 काम कर रहा है. योजना में आवेदनों की संख्या बढ़ाने की दृष्टि से रोलिंग प्रक्रिया के द्वारा अधिक से अधिक डिस्टिक रिसोर्स पर्सन सूचीबद्ध किए जा रहे हैं. सामान्य प्रक्रिया के तहत डिस्टिक रिसोर्स पर्सन के लिए आवेदनपत्र पीएमएफएमई राजस्थान पोर्टल पर उपलब्ध है.

राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड के जनरल मैनेजर आशु चैधरी ने बताया कि इस योजना का संचालन विपणन बोर्ड द्वारा विगत 3 सालों से किया जा रहा है, जिस में भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा सम्मिलित रूप से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगाने के लिए अनुदान दिया जा रहा है.

इस के लिए राज्य में एक प्रबंध यूनिट का संचालन भी किया जा रहा है. यह यूनिट इकाई को मशीन, आवेदन, ब्रांडिंग व मार्केटिंग में भी सहयोग करती है. इस योजना में आवेदन पूरी तरह से निःशुल्क है और डिस्टिक रिसोर्स पर्सन को 20,000 रुपए की राशि का भुगतान भी राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड द्वारा किया जाता है.

किसान घरबैठे जानें अपने खेत की मिट्टी की सेहत (Soil Health)

जयपुर: मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना किसानों के लिए केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2015 में गंगानगर जिले के सूरतगढ़ से प्रारंभ की गई.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि सौयल हेल्थ कार्ड योजना का उद्देश्य प्रति इकाई लागत कम कर अधिक उत्पादन प्राप्ति के लिए उर्वरक सिफारिशों को अपनाने हेतु किसानों को प्रोत्साहित करना है.

इस कार्ड के माध्यम से किसानों को उन के खेत की मिट्टी के उर्वरता स्तर की सटीक जानकारी प्राप्त होती है एवं फसलों में संतुलित खाद एवं उर्वरक के उपयोग को बढ़ावा मिलता है, जिस से फसलों के उत्पादन में वृद्धि के साथसाथ अच्छी गुणवत्तायुक्त उत्पाद में वृद्धि होती है और प्रति इकाई लागत में कमी एवं किसानों की आमदनी में इजाफा होता है.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि सौयल हेल्थ कार्ड योजना के प्रथम चरण में सिंचित क्षेत्र में 2.5 हेक्टेयर इकाई क्षेत्र से एक नमूना एवं असिंचित क्षेत्र में 10 हेक्टेयर क्षेत्र से एक नमूना लिया गया.

वर्ष 2019-20 से राज्य की समस्त ग्राम पंचायतों के चयनित गांवों के खेतों से मिट्टी के नमूने लिए जा रहे हैं.
मृदा स्वास्थ्य कार्ड नमूना संग्रहण.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि वर्तमान में मिट्टी के नमूनों का संग्रहण भारत सरकार द्वारा विकसित सौयल हेल्थ कार्ड एप के माध्यम से कृषि पर्यवेक्षकों द्वारा किसानों का पंजीकरण करते हुए औनलाइन किया जा रहा है.

प्रयोगशालाओं द्वारा प्राप्त नमूनों का विश्लेषण कर सौयल हेल्थ कार्ड पोर्टल पर जांच परिणामों की प्रविष्टियां करते हुए कार्ड तैयार किए जाते हैं. यह कार्ड कृषि पर्यवेक्षकों द्वारा किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं.

यदि किसानों को कार्ड प्राप्त नहीं होते हैं, तो किसान भारत सरकार के सौयल हेल्थ कार्ड पोर्टल पर लौगइन कर अपना मोबाइल नंबर दर्ज कर मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्राप्त कर सकते हैं. इस योजना के तहत विकसित भारत संकल्प यात्रा में 2 लाख, 21 हजार, 299 कार्ड वितरित किए गए हैं.

पशुधन ( Livestock) को मिलेंगी शीघ्र उत्कृष्ट चिकित्सकीय सेवाएं

जयपुर: मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि स्वस्थ पशुधन के लिए राज्य सरकार संकल्पबद्ध है. इसी क्रम में सरकार ने हेल्पलाइन नंबर 1962 की शुरुआत की है. इस के माध्यम से पशुओं को शीघ्र चिकित्सकीय सेवाएं उपलब्ध हांेगी और प्रदेश के पशुपालक समृद्ध होंगे.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ओटीएस स्थित मुख्यमंत्री निवास पर मोबाइल वेटरनरी इकाइयों के लोकार्पण पर आयोजित समारोह में भाग ले रहे थे. उन्होंने 21 मोबाइल वेटरनरी इकाइयों को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया. इस के अतिरिक्त प्रदेश में जिला स्तर पर आयोजित समारोहों में 159 इकाइयों का लोकार्पण भी किया गया.

इस मौके पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि प्रत्येक एक लाख पशुओं पर एक मोबाइल वेटरनरी यूनिट काम करेगी. उन्होंने यह भी कहा कि इस योजना के अंतर्गत राज्य स्तरीय काल सैंटर की स्थापना भी की जाएगी, जो पशुओं के सामान्य रोगों के उपचार के लिए टैलीमैडिसन व्यवस्था एवं पशु प्रबंधन, पोषण आदि के लिए सलाह भी देगा. काल सैंटर के माध्यम से पशुओं का आपात स्थिति में प्राथमिकता से उपचार सुनिश्चित हो सकेगा.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि हमारी सरकार किसान कल्याण एवं पशुपालकों के हित में दूरगामी निर्णय कर रही है. सरकार ने अपने पहले बजट में ही गौवंश संरक्षण के लिए शैड, खेली का निर्माण और दुग्ध, चारा, बांटा संबंधी उपकरण खरीदने के लिए गोपाल क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत एक लाख रुपए तक ब्याजमुक्त ऋण उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण घोषणा की है.

1,600 तकनीकी व्यक्तियों को मिलेगा रोजगार

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि प्रत्येक ब्लौक में मोबाइल वेटरनरी इकाइयों द्वारा पशु चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर पशुपालकों को लाभान्वित किया जाएगा. प्रत्येक ब्लौक में एक मोबाइल वेटरनरी यूनिट के लिए एक पशु डाक्टर, एक तकनीकी पशु चिकित्सा कर्मचारी एवं एक ड्राइवर कम पशु परिचारक होंगे. इस से तकरीबन 1600 तकनीकी व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा.

मत्स्य प्रसंस्करण इकाई (Fish Processing Unit) का उद्घाटन

उदयपुर: 28 फरवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक मात्स्यकी महाविद्यालय में दूसरे दिन छोटी मत्स्य प्रसंस्करण इकाई का उद्घाटन मात्स्यकी महाविद्यालय के डा. आरए कौशिक, अधिष्ठाता द्वारा एवं डा. बीके शर्मा, पूर्व अधिष्ठाता, डा. आशीष झा, प्रमुख वैज्ञानिक आईसीएआर-सीआईएफटी और डा. सुमन ताकर की मौजूदगी में संपन्न हुआ.

इस अवसर पर महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. उद्घाटन के दौरान मात्स्यकी महाविद्यालय के समस्त शिक्षक और छात्र समुदाय उपस्थित थे.

मत्स्य प्रसंस्करण इकाई की स्थापना आईसीएआर-सीआईएफटी के द्वारा की गई. इस के लिए डा. आरए कौशिक ने निदेशक आईसीएआर-सीआईएफटी का दिल से धन्यवाद प्रेषित किया. यह इकाई यहां के आदिवासी बहुल क्षेत्र के मत्स्य किसानों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. इस के लिए विभिन्न प्रकार मत्स्य सहउत्पादों का प्रशिक्षण आयोजित किया जा सकेगा.

प्रशिक्षण के दूसरे दिन डाया मत्स्य सहकारी समिति के 60 मत्स्यपालकों ने अलगअलग प्रकार के मत्स्य सहउत्पाद बनाने की कला को पूरी जिज्ञासा के साथ सीखा, जिस में मुख्य रूप से फिश फिंगर, फिश कटलेट, झींगा मछली (झींगा के साथ), फिश बाल, फिश समोसा, फिश पकोड़ा, फिश ब्रेड पकोड़ा एवं मत्स्य अचार मत्स्य किसानों ने स्वयं अपने हाथों से बनाए, जिस में आईसीएआर-सीआईएफटी से आए हुए सभी टीम के साथियों एवं महाविद्यालय के डा. बीके शर्मा, डा. एमएल ओझा एंव डा. सुमन ताकर ने इन सहउत्पादों को बनाने में प्रशिक्षणार्थियों को अपना सहयोग प्रदान किया.

महाविद्यालय के तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों ने वर्तमान सत्र में चल रहे कोर्सों का प्रायोगिक जानकारी अर्जित की. साथ ही, मत्स्य सहउत्पादों के विभिन्न व्यंजनों को बनाने में अपनी पूरी रुचि भी दिखाई.

किसानों को दिया गया जैविक खेती (Organic Farming) पर प्रशिक्षण

उदयपुर: 29 फरवरी, 2024. प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में विषय विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती के संदर्भ में आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही, जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशियों आदि जैविक उत्पादों का किसानों द्वारा स्वयं अपने स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के उपयोग से तैयार कर उपयोग करने के संबंध में सजीव प्रदर्शन के साथ जानकारी प्रदान की गई.

वर्तमान में कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कवकनाशियों और दूसरे रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से इनसान, दूसरे जीवजंतुओं एवं मृदा स्वास्थ्य पर हानिकारक व विपरीत प्रभावों को ध्यान में रखते हुए उक्त रसायनों के संतुलित उपयोग के साथ ही जिला सलूंबर में जैविक खेती के बेहतर विकल्प को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आदर्श किसान तैयार कर इन किसानों के जरीए जिले में दूसरे किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर के जैविक खेती में आदर्श और अग्रणी बनाए जाने की जरूरत को महसूस किया गया.

अतः उक्त अवधारणा को जिला कलक्टर, सलूंबर की पहल पर नवाचार कार्यकम के तौर पर ले कर क्रियान्वित करने के लिए जिले के प्रत्येक ब्लौक से 5-5 किसानों को चुना गया. किसानों को विश्वविद्यालय परिसर में ही केवल जैविक उत्पादों के उपयोग से बेहतरीन बढ़वार के साथ तैयार गेहूं, चना, मैथी आदि फसलों का मुआयना भी करवाया गया.

उक्त कार्यकम संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार), गौस मोहम्मद, सलूंबर द्वारा क्रियान्वित एवं हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, जावर माइंस, अभिमन्यु सिंह (जनसंपर्क अधिकारी) के सहयोग से संपादित किया गया.
उक्त प्रशिक्षक में जिला कलक्टर जसमित सिंह संधु स्वयं प्रशिक्षण में उपस्थित हो कर विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों का अवलोकन किया और किसानों से गोष्ठी में सवांद स्थापित किया एवं जैविक खेती अपनाने पर बल दिया.

डा. आरए कौशिक, निदेशक प्रसार, शिक्षा निदेशालय, डा. आरएस राठौड़, समन्वयक कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र, पुरुषोत्तम लाल भट्ट, उपनिदेशक, उद्यान सलूंबर, अभिमन्यु सिंह, नेहा दिवान (सीएसआर) इत्यादि ने इस गोष्ठी में भाग लिया.

डा. रविकांत शर्मा, परियोजना प्रभारी, अखिल भारतीय नैटर्वक, श्रवण कुमार यादव एवं रवि जैन, जैविक अनुसंधान परियोजना इकाई का अवलोकन कराया व इस की उपयोगिता बताई.

आईसीएआर (ICAR) सोसायटी की 95वीं वार्षिक आम बैठक

नई दिल्ली: 28 फरवरी 2024, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) सोसायटी की 95वीं वार्षिक आम बैठक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा की अध्यक्षता में हुई. केंद्रीय मंत्री डा. जितेंद्र सिंह व श्री कैलाश चैधरी, उत्तर प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी मंत्री धर्मपाल सिंह, नागालैंड के कृषि मंत्री माथुंग यंथन एवं आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक भी मौजूद थे.

बैठक में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आईसीएआर ने देश को भूख व कुपोषण से निकाल कर स्वस्थ कृषि उत्पादन की ओर ले जाने की दिशा में कृषि क्षेत्र में नवाचार का नेतृत्व किया है. पिछली बैठक में 46 से अधिक सुझाव आए थे, जिन सभी पर आईसीएआर ने काम पूरा किया है.

उन्होंने आगे कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्र सरकार की उपलब्धि का ही नतीजा है कि विश्व में सर्वाधिक आबादी होने के बावजूद भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को केंद्र द्वारा मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. कई उपलब्धियों के बावजूद भी कुछ चुनौतियां हैं, जिन का समाधान तलाशते हुए हमें अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढना है. प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में कृषि, किसान को समृद्ध बनाते हुए देश को आगे बढ़ाने का काम सुनिश्चित किया जा रहा है. साथ ही, कृषि संबद्ध क्षेत्रों, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुधमक्खीपालन आदि को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.

आईसीएआर (ICAR)

हमें जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण जैसी चुनौतियों के समाधान की दिशा में तेजी से काम करते हुए किसानों की उन्नति का रास्ता साफ करना है. खुशी की बात है कि इस में आईसीएआर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. आईसीएआर ने साल 2005 से 2014 के दौरान जहां अधिक पैदावार देने वाली 1,225 फसल किस्में जारी की गई थीं, वहीं 2014 से 2023 के दौरान 2,279 ऐसी किस्में जारी की गई हैं, जो लगभग दोगुना है.

अब ध्यान पौषणिक सुरक्षा पर है, इस के लिए जैव प्रबलित किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. इस दिशा में प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने के लिए बैठक में आने वाले सुझाव काफी मददगार होंगे.
मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह भी कहा कि मानव समाज के लिए, कृषि क्षेत्र की प्रगति के बिना किसी और क्षेत्र की प्रगति नहीं हो सकती है.

इस का संतुलन बना कर व तमाम चुनौतियों का सही आंकलन कर उस का निराकरण करते हुए बेहतर परिणाम देने का प्रयास होना चाहिए. सुदूर क्षेत्र में रहने वाले छोटे से छोटे किसान में आत्मस्वावलंबन हो, उन की प्रगति हो, कृषि उत्पादन बढ़े और हर दृष्टि से आत्मनिर्भरता हो, इस की कोशिश होनी चाहिए. इस दिशा में हम सब को मिल कर विचार करते हुए काम करने की जरूरत है, ताकि आने वाले दिनों में लक्ष्य हासिल करें और जो संकल्प लिया है, उसे पूरा कर सकें.

उन्होंने ने आईसीएआर के प्रकाशन व 22 फसलों की 24 किस्में जारी कीं, जिन में धान, गेहूं, मक्का, सावां, रागी, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, चना, अरहर, मसूर, मोठ, जूट, टमाटर, भिंडी, चैलाई, सेम, खीरा, मटर, आलू, मशरूम, अमरूद हैं. डीजी डा. हिमांशु पाठक ने आईसीएआर की उपलब्धियों पर रिपोर्ट पेश की.