‘कृषि एवं खाद्य प्रणाली में समावेशी व्यवसाय’ विषय पर कार्यशाला

हिसार : कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में ‘समावेशी व्यवसाय’ विषय पर काम कर रहे उद्यमियों व किसानों के लिए विश्वविद्यालय की ओर से उपलब्ध करवाई जा रही सुविधाओं पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि एबिक सैंटर न केवल चयनित स्टार्टअप्स को तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है, बल्कि जरूरत के अनुसार उन्हें माली मदद भी प्रदान करता है. एबिक युवा व किसानों को उन के उत्पाद की प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन, पैकेजिंग, सर्विसिंग व ब्रांडिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए सहायता प्रदान करता है, ताकि वे अपने व्यवसाय को उच्च स्तर पर स्थापित कर सकें.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय हर जिले में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से ग्रामीण व शहरी महिलाओं, युवाओं व प्रदेश के किसानों को स्वावलंबी, समृद्ध और आर्थिक रूप से संपन्न बनाने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है. उन्होंने कहा कि एचएयू प्रदेश के 6 लाख किसानों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है.

हरियाणा एवं तेलंगाना को समावेशी व्यापार से जोड़ा जाएगा

संयुक्त राष्ट्र की एशिया और प्रशांत क्षेत्रीय आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (यूएनओ) के आर्थिक मामलों के अधिकारी मार्ता पेरेज ने बताया कि यह संगठन हरियाणा व तेलगांना में हकृवि और इन्वेस्ट इंडिया के संयुक्त सहयोग से ‘कृषि एवं खाद्य प्रणाली में समावेशी व्यवसाय’ विषय पर किसानों के हित और आमदनी बढ़ाने के लिए योजनाएं तैयार करेगा.

उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत उपरोक्त दोनों प्रदेशों के किसानों के संसाधनों का खर्चा कम करने व उन को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने और उद्यमियों को समृद्ध बनाने के लिए प्रयास किए जाएंगे.

हैफेड के चेयरमैन कैलाश भगत ने कहा कि हकृवि द्वारा तैयार उन्नत फसल किस्मों के माध्यम से किसान लगातार पैदावार बढ़ा रहा है. साथ ही, हैफेड किसानों के बासमती चावल के निर्यात करने में हर संभव प्रयास कर रहा है.

हरियाणा सरकार के विदेशी सहकारिता विभाग के सलाहाकर पवन चौधरी ने कहा कि हरियाणा प्रदेश पूरे भारतवर्ष में उद्यमियों को समस्त सुविधाएं मुहैया करवाने में अव्वल है. उन्होंने पीएम कुसुम योजना, मेरी फसल-मेरा ब्योरा, परिवार पहचानपत्र, किसान उत्पादक संगठन जैसी स्कीमों के बारे में संयुक्त राष्ट्र से आई टीम के सदस्यों को अवगत कराया. साथ ही, उन्होंने हरियाणा में स्थापित 4 फूड पार्क, 3,000 से ज्यादा फूड प्रोसैसिंग यूनिट, 5 कोल्ड चेन के कार्यों के बारे में भी जानकारी दी.

उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा प्रदेश स्ट्राबेरी एवं दुग्ध उत्पादन में भी अव्वल है. हरियाणा का विदेशी सहकारिता विभाग प्रदेश के उद्यमियों के उत्पादों को निर्यात करने पर निरंतर काम कर रहा है.

टिकाऊ खेती के लिए मौडर्न तकनीक

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘वैश्विक खाद्य पोषण सुरक्षा, स्थिरता और स्वास्थ्य के लिए रणनीति’ विषय पर तीनदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, जिस में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में जरमनी से डा. डिटर एच. त्रुट्ज ओस्नाबु्रक व जापान से डा. टाकुरो शिनानो मौजूद रहे.

मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निबटने के लिए टिकाऊ खेती की ओर अग्रसर होना होगा. असमय तापमान का बढ़ना कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, जिस से निबटने के लिए जलवायु के अनुकूल रोगरहित किस्में उपलब्ध करवाना, मिट्टी की नमी का संरक्षण, जल संचय, फसल विविधीकरण, मौसम का सटीक पूर्वानुमान, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है.
खेती में आधुनिक तकनीक अपनाना जरूरी
प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि भूमि की उर्वराशक्ति को बनाए रखने के लिए मृदा के और्गैनिक कार्बन को बढ़ाना, फसल अवशेषों को जलाने के बजाय खेत में ही मिलाना, क्लाईमेट स्मार्ट तकनीक, जिस में टपक सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, प्रिशिजन खेती, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग, लेजर लैंड लैवलिंग, जीरो टिलेज व ड्रोन का इस्तेमाल भी शामिल है.

उन्होंने आगे कहा कि खाद्य सुरक्षा में न केवल भोजन की उपलब्धता शामिल है, बल्कि इस की पोषण गुणवत्ता भी शामिल है. मृदा स्वास्थ्य, इनपुट उपयोग दक्षता, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए उत्पादन तकनीक, जल संसाधन प्रबंधन, जैविक कीट और रोग प्रबंधन, फसल मौडलिंग, रिमोट के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए संसाधन बाधाओं के तहत फसल और खेती प्रणाली के विकास पर ध्यान देने के साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सही उपयोग कर के गुणवत्ता से परिपूर्ण खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ा सकते हैं.

विशिष्ट अतिथि जरमनी से डा. डिटर एच. त्रुट्ज ओस्नाबु्रक ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण खेती में बढ़ रही चुनौतियों से निबटने के लिए संरक्षित कृषि, संसाधन प्रबंधन एवं एकीकृत कृषि प्रबंधन को अपनाना होगा. जापान से डा. टाकुरो शिनानो ने इस तीनदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने पर खुशी जता कर सभी का अभिवादन किया. उन्होंने मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय बताए व फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन अपनाने के लिए प्रेरित किया.
अतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विभिन्न प्रतियोगिताओं में रहे विजेताओं को भी सम्मान दिया गया.

Modern Farmingथीम-1 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- डा. रितु, सीसीएसएचएयू, हिसार, द्वितीय पुरस्कार- डा. गीतिका सरहंदी, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला.
पोस्टर प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- सिमरन गुप्ता, दयाल बाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, आगरा, द्वितीय पुरस्कार- अदिती, सीसीएसएचएयू, हिसार.

थीम-2 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- डा. चित्रा जी. भट्ट, सीसीएसएचएयू, हिसार, द्वितीय पुरस्कार- तुशादरी सिंह, जीबी पंत यूनिवर्सिटी, पंतनगर व चारूलता, आईआईडब्ल्यूबीआर, शिमला.
पोस्टर प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार पीएयू, लुधियाना के शाइला बिंद्रा व जतिन शर्मा, द्वितीय पुरस्कार- इशान मुखर्जी, सीसीएसएचएयू, हिसार व सधान देबनाथ, यूमीयम, मेघालय

थीम-3 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- पुजा रावत, सीसीएसएचएयू, हिसार, द्वितीय पुरस्कार- स्वतंत्र कुमार दुबे, इंटरनेश्नल राइस रिसर्च इंसटीट्यूट, वाराणसी ने प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- सुमंत्रा आर्य, सीसीएसएचएयू, हिसार, द्वितीय पुरस्कार- सरिता रानी, सीसीएसएचएयू, हिसार.

थीम-4 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- सौरभ सुमन, आईसीएआर, आईएआरआई, नई दिल्ली, द्वितीय पुरस्कार- दीपशिखा मंडल, आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली.
पोस्टर प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- पीएयू, लुधियाना के तेनजिनय, जबकि द्वितीय पुरस्कार- केवीके पंचकुला के राजेश लाठर.

थीम-5 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- सीसीएसएचएयू, हिसार की डा. जतेश काठपालिया ने प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- एग्रीकल्चर एक्सटेंशन एजुकेशन, सीसीएसएचएयू, हिसार के अरूलमनिकंदन ने, जबकि द्वितीय पुरस्कार एपरेल एंड टैक्सटाइल सांइस, सीसीएसएचएयू, हिसार की गुंजन ने प्राप्त किया.

थीम-6 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार- यूनिवर्सिटी औफ राजस्थान, अजमेर से के. सिद्धारथा ने प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार: ऐक्सटेशन एजुकेशन एंड कम्यूनिकेशन मैनेजमेंट, सीसीएसएचएयू, हिसार की वर्तिका श्रीवास्तव ने, जबकि द्वितीय पुरस्कार दिल्ली टैक्नोलौजी यूनिवर्सिटी, दिल्ली की अनीशा काठपालिया ने प्राप्त किया.

थीम-7 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार पीएयू, लुधियाना के मनोज कुमार ने, जबकि द्वितीय पुरस्कार सीसीएसएचएयू, हिसार के आशुतोष लोवांशी ने प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: आईसीएआर-एनआरसीई, हिसार की भव्या पहले, जबकि जुलोजी विभाग, सीसीएसएचएयू, हिसार के राहुल कुमार दूसरे स्थान पर रहे.

थीम-8 मौखिक प्रस्तुति: सीसीएसएचएयू, हिसार की रीना चैहान प्रथम, जबकि सीसीएसएचएयू, हिसार की लोचन शर्मा व पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की गुरविंदर कौर ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: पीएयू, लुधियाना की अर्शदीप कौर ने प्रथम, सीसीएसएचएयू, हिसार के नविश कुमार कंबोज व पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ की सिमरन द्वितीय स्थान पर रही.

थीम-9 मौखिक प्रस्तुति: प्रथम पुरस्कार एमपीयूएटी, उदयपुर के मोहित ने प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: सीसीएसएचएयू, हिसार के राम नरेश प्रथम, जबकि भारत पटेल दूसरे स्थान पर रहे.

थीम-10 मौखिक प्रस्तुति: इंटरनेशनल राइस रिर्सच इंसटीट्यूट के प्रोलौय देब प्रथम, आईआरआरआई, साउथ एशिया रीजनल सैंटर, वाराणसी के माले कुमार भौमिक व सीसीएसएचएयू, हिसार के जगदीप सिंह द्वितीय स्थान पर रहे.
पोस्टर प्रस्तुति: वाईएसपी यूएचएफ, सोलन की अमीशा रानी प्रथम व सीसीएसएचएयू, हिसार की शिखा महता दूसरे स्थान पर रही.

थीम-11 मौखिक प्रस्तुति: सैंट्रल यूनिवर्सिटी औफ हरियाणा की अनीता कुमारी प्रथम, जबकि मोनाद यूनिवर्सिटी, उत्तर प्रदेश की रीतू छिकारा दूसरे स्थान पर रही.
पोस्टर प्रस्तुति: सीसीएसएचएयू, हिसार के अंकुश ने प्रथम, जबकि पीएयू, लुधियाना की अर्चना तिवारी दूसरे स्थान पर रही.

थीम-12 मौखिक प्रस्तुति: सीसीएसएचएयू, हिसार की अन्नू रानी प्रथम, जबकि प्रियंका ने दूसरा स्थान प्राप्त किया.
पोस्टर प्रस्तुति: सीसीएसएचएयू, हिसार के मंजीत ने प्रथम, जबकि वाईएसपी यूएचएफ, सोलन की शिवानी ठाकुर ने दूसरा स्थान प्राप्त किया.

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक एवं सम्मेलन के आयोजन सचिव डा. जीतराम शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डा. राजेश गेरा ने सम्मेलन की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की. साथ ही, मंच संचालन डा. जयंति टोकस ने किया. इस अवसर पर डा. आरके बहल, डा. र्साइंदास, डा. देवकी नंदन, डा. अनिता भटनागर, डा. अनिता दूआ व डा. बीके शर्मा सहित देशविदेश के संस्थानों से आए प्रख्यात वैज्ञानिक व शोधार्थी मौजूद रहे.

किसानों को रोजगार

नई दिल्ली: पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने संसद में कहा कि असम राज्य देश में कुल कच्चे तेल के उत्पादन में लगभग 14 फीसदी और कुल प्राकृतिक गैस उत्पादन में लगभग 10 फीसदी का योगदान देता है. असम से पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के उत्पादन और आयात निर्भरता को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से संबंधित प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि एशिया में पहली रिफाइनरी वर्ष 1889 में डिगबोई में कच्चे तेल के वाणिज्यिक पैमाने पर उत्पादन के बाद वर्ष 1901 में डिगबोई (असम) में स्थापित की गई थी.

उन्होंने सदन को बताया कि पिछले 4 वित्तीय वर्षों अर्थात 2019-20 से 2022-23 के दौरान राज्य सरकार को कच्चे तेल के लिए 9,291 करोड़ रुपए और गैस उत्पादन के लिए 851 करोड़ रुपए की रौयल्टी का भुगतान किया गया है.

उन्होंने विशेष रूप से नुमालीगढ़ रिफाइनरी विस्तार परियोजना, पूर्वोत्तर गैस ग्रिड, पारादीपनुमालीगढ़ कच्चे तेल की पाइपलाइन और एनआरएल बायोरिफाइनरी सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र में 44,000 करोड़ रुपए की प्रमुख परियोजनाओं का उल्लेख किया. नुमालीगढ़ में 185 केएलपीडी क्षमता की 2जी रिफाइनरी बांस से इथेनाल का उत्पादन करेगी और स्थानीय किसानों के लिए रोजगार के बड़े अवसर सृजित करेगी.

उन्होंने सदन को यह भी बताया कि सभी पूर्वोत्तर राज्यों को शहरी गैस वितरण नैटवर्क के अंतर्गत शामिल किया जा रहा है, जिस से आम जनता को सस्ता और स्वच्छ खाना पकाने व वाहन के लिए ईंधन उपलब्ध कराया जा सके.

पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सदन को बताया कि सरकार ने अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में ‘‘नो गो‘‘ क्षेत्रों को लगभग 99 फीसदी तक कम कर दिया है, जिस के चलते तकरीबन 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर अब अन्वेषण और उत्पादन गतिविधियों के लिए मुक्त है.

सरकार द्वारा किए गए अन्य उपायों में नवीनतम प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना, रुग्ण और पुराने कुओं का प्रतिस्थापन और पुनरुद्धार आदि शामिल हैं. सरकार पूंजीगत व्यय कर रही है और आने वाले वर्षों में उत्पादन बढ़ाने के लिए 61,000 करोड़ रुपए का लक्ष्य निर्धारित है.

उन्होंने ई एंड पी क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए उठाए गए परिवर्तनकारी कदमों का भी उल्लेख किया और कहा कि राष्ट्रीय तेल कंपनियों (ओएनजीसी और ओआईएल) ने सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय तेल कंपनियों के साथ समझौते किया है.

मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने नियत तिथि से पहले इथेनाल सम्मिश्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफलता पर प्रकाश डाला (वर्ष 2014 में 1.53 फीसदी से 2023 में 12 फीसदी तक) और कहा कि देश अब फ्लैक्स ईंधन इंजन वाहनों के लिए आगे बढ़ रहा है. ई20 (20 फीसदी इथेनाल मिश्रित ईंधन) पहले से ही 6,000 से अधिक खुदरा दुकानों पर उपलब्ध है और वर्ष 2025 तक पूरे देश में उपलब्ध होगा.

उन्होंने सीबीजी, ग्रीन हाइड्रोजन और इलैक्ट्रिक वाहनों जैसे वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का भी उल्लेख किया. साथ ही, उन्होंने बताया कि हाल ही में असम के शिवसागर में 483 करोड़ रुपए की कुल लागत से सूई-का-फा मल्टीस्पैशिलिटी (350 बिस्तर) अस्पताल का उद्घाटन करने का भी उल्लेख किया, जिस का खर्च ओएनजीसी ने अपनी सीएसआर गतिविधियों के अंतर्गत किया है, जो ऊपरी असम और अन्य राज्यों के पड़ोसी जिलों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा.

किसान राजाराम को मिला ‘महिंद्रा रिचेस्ट फार्मर औफ इंडिया अवार्ड’

नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा, नई दिल्ली के मेला ग्राउंड में आयोजित एक भव्य समारोह में ‘महिंद्रा मिलेनियर फार्मर औफ इंडिया अवार्ड 2023’ में छत्तीसगढ़ के डा. राजाराम त्रिपाठी को केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने देश के सब से अमीर किसान की ट्रौफी दे कर सम्मानित किया और उन्हें ‘भारत के सब से अमीर किसान‘ के खिताब से नवाजा.

इस अवसर पर केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने कहा कि देश के किसान अब समृद्धि की राह पर चल पड़े हैं, इन सफल प्रगतिशील करोड़पति किसानों के बारे में जान कर हम सब को बड़ी प्रसन्नता हुई है. डा. राजाराम त्रिपाठी जैसे उद्यमी किसान देश के किसानों के लिए रोल मौडल हैं.

इस अवसर पर ब्राजील के राजदूत ने डा. राजाराम त्रिपाठी को अपने देश में आमंत्रित करते हुए ब्राजील यात्रा का टिकट भी प्रदान किया. इस अवसर पर ब्राजील के उच्चाधिकारी, नीदरलैंड के कृषि सलाहकार माईकल, संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत, आईसीएआर के निदेशक, कृषि जागरण की प्रमुख एमसी डोमिनिक, शाइनी डोमिनिक डा. पीसी पंत, ममता जैन, पीसी सैनी, हर्ष राठौर, आशुतोष पांडेय हिंदुस्तान के साथ ही देशभर के कृषि वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र के उद्योगपति और सैकड़ों की तादाद में अलगअलग राज्यों से पधारे प्रगतिशील किसान व कृषि उद्यमी मौजूद थे.

अवार्ड मिलने के बाद डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि वह अपना यह अवार्ड मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सभी साथियों और बस्तर के अपने आदिवासी भाइयों को अर्पित करते हैं. वे अपने समूह की आमदनी का पूरा हिस्सा बस्तर के आदिवासी भाइयों के विकास में ही खर्च कर रहे हैं और आगे इन के विकास के लिए एक ट्रस्ट बना कर अपनी सारी खेती को उस के साथ जोड़ कर उन की बेहतरी के लिए अपनी आखिरी सांस तक काम करते रहेंगे.

यों तो जैविक खेती और औषधीय पौधों की खेती के पुरोधा माने जाने वाले डा. राजाराम त्रिपाठी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. बीएससी (गणित), एलएलबी के साथ हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान सहित 5 विषयों में एमए और डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त डा. राजाराम त्रिपाठी को देश का सब से ज्यादा शिक्षित किसान माना जाता है. खेती में नएनए नवाचारों के साथ ही ये आज भी पढ़ाई कर रहे हैं और इन दिनों ये सामाजिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की परीक्षा दे रहे हैं. इन्हें हरित योद्धा, कृषि ऋषि, हर्बल किंग, फादर औफ सफेद मूसली आदि की उपाधियों से नवाजा जाता है. मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम ने इन्हें ‘‘हर्बलमैन औफ इंडिया‘‘ की उपाधि दी थी.

देश के सब से पिछड़े भाग बस्तर में पिछले 30 सालों की उन की कठिन तपस्या व संघर्षों के बारे में यह दुनिया बहुत कम जानती है. बस्तर के एक बेहद पिछड़े क्षेत्र, कुख्यात झीरम घाटी वाले दरभा विकास खंड के गांव ‘ककनार‘ में जन्मे और वहीं पलेबढ़े डा. राजाराम त्रिपाठी का बचपन बस्तर के जंगलों में आदिवासी सखाओं के साथ गाय चराते और खेती करते बीता है. ये अपने गांव से प्रतिदिन 50 किलोमीटर साइकिल चला कर पढ़ने के लिए जगदलपुर आते थे. इन्होंने अपने बूते देश की विलुप्त हो रही दुर्लभ वनौषधियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए बस्तर, कोंडागांव में लगभग 30 साल मेहनत कर के तकरीबन 10 एकड़ का जैव विविधता से भरपूर एक जंगल उगा कर वनौषधियों के लिए प्राकृतिक रहवास में ही ‘‘इथिनो मैडिको गार्डन‘‘ यानी  ‘‘दुर्लभ वनौषधि उद्यान‘‘  विकसित कर दिखाया है, जहां आज 340 से ज्यादा प्रजातियों की 5,100 दुर्लभ वनौषधियां फलफूल रही हैं.

Dr. Rajaramप्रगतिशील किसान डा. राजाराम त्रिपाठी की कुछ विशेष उपलब्धियां:-

– डा. राजाराम त्रिपाठी के नेतृत्व में ‘‘मां दंतेश्वरी हर्बल‘‘ को आज से 22 साल पहले देश के पहले ‘‘सर्टिफाइड और्गैनिक स्पाइस एंेड हब्र्स फार्मिंग का अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र हासिल करने का गौरव प्राप्त है.

– 2 दशकों से अपने मसालों और हर्बल उत्पादों का यूरोप, अमेरिका आदि देशों में निर्यात में विशिष्ट गुणवत्ता नियंत्रण हेतु ‘राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड‘ भारत सरकार द्वारा ‘बैस्ट ऐक्सपोर्टर’ का अवार्ड भी मिल चुका है.

– डा. राजाराम त्रिपाठी 2 दर्जन से ज्यादा देशों की यात्रा कर के वहां की कृषि एवं विपणन पद्धति का अध्ययन कर चुके हैं.

– डा. राजाराम त्रिपाठी ने भारत सरकार के सर्वोच्च शोध संस्थान सीएसआईआर और आईएचबीटी के साथ करार कर जीरो कैलोरी वाली ‘स्टीविया‘ की बिना कड़वाहट और ज्यादा मिठास वाली प्रजाति के विकास करने और इस की पत्तियों से शक्कर से 250 गुना मीठी स्टीविया की ‘जीरो कैलोरी शक्कर‘ बनाने का  करार किया है.

– डा. राजाराम त्रिपाठी ने जैविक पद्धति से देश के सभी भागों में विशेष रूप से गरम क्षेत्रों में न्यूनतम देखभाल में परंपरागत प्रजातियों से ज्यादा उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता देने वाली काली मिर्च की नई प्रजाति ‘‘मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16, पीपली की नई प्रजाति ‘‘मां दंतेश्वरी पीपली-16‘‘ एवं स्टीविया की नई प्रजाति ‘‘मां दंतेश्वरी स्टीविया-16’’ आदि नई प्रजातियों को विकसित किया है और बड़ी संख्या में किसान इन का फायदा उठा रहे हैं. इस की सराहना स्पाइस बोर्ड के वैज्ञानिकों और देश के कृषि विशेषज्ञों ने भी की है.

– डा. राजाराम त्रिपाठी देश के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ किसान होने का अवार्ड अब तक 4 बार, भारत सरकार के अलगअलग कृषि मंत्रियों के हाथों मिल चुका है.

– अब तक 7 लाख से अधिक लहलहाते पेड़ उगाने वाले डा. राजाराम त्रिपाठी को आरबीएस ‘अर्थ हीरो‘ (एक लाख की पुरस्कार राशि), ग्रीन वारियर यानी हरित योद्धा अवार्ड सहित कई अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं.

– हालफिलहाल डा. राजाराम त्रिपाठी के मार्गदर्शन में ‘‘मां दंतेश्वरी फार्म एंेड रिसर्च सैंटर‘‘ द्वारा 40 लाख रुपए में तैयार होने वाले एक एकड़ के ‘पौलीहाउस‘ का ज्यादा टिकाऊ, प्राकृतिक, सस्ता और हर साल पौलीहाउस से ज्यादा फायदा देने वाला सफल और बेहतर विकल्प ‘‘नैचुरल ग्रीनहाउस‘‘ कोंडागांव मौडल महज ‘‘डेढ़ लाख रुपए‘‘ में. जी हां, 40 लाख रुपए के पौलीहाउस का विकल्प महज डेढ़ लाख रुपए में तैयार किया है. किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ाने वाले इस मौडल ने तो पूरे देश में तहलका मचा दिया है. इसे देश की खेती का ‘‘गेमचेंजर‘‘ माना जा रहा है. साथ ही, इस नैचुरल ग्रीनहाउस को ‘‘क्लाइमेटचेंज‘‘ के खिलाफ सब से कारगर हथियार माना जा रहा है.

– डा. राजाराम त्रिपाटी के द्वारा स्थापित ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ के साथ अब इन परिवारों की दूसरी पीढ़ी भी कंधे से कंधा मिला कर पसीना बहा रही है. इस नव युवा पीढ़ी की अगुआई कर रही इन की बिटिया अपूर्वा त्रिपाठी, जो कि 25 लाख रुपए का पैकेज ठुकरा कर बस्तर की आदिवासी महिला समूहों के साथ मिल कर उगाए गए विशुद्ध प्रमाणित जैविक जड़ीबूटियों, मसालों और उत्कृष्ट खाद्य उत्पादों की श्रंखला ‘‘एमडी-बोटैनिकल्स‘‘  ब्रांड के जरीए एक विश्वसनीय वैश्विक ब्रांड का तमगा हासिल कर चुकी हैं. इन के बस्तरिया उत्पाद अब ‘फ्लिपकार्ट‘ और ‘अमेजन‘ पर ट्रेंड कर रहे हैं.

– यह भी उल्लेखनीय है कि बस्तर स्थित इनके हर्बल-फार्म जिसे ये किसान की प्रयोगशाला कहते हैं, पर अब तक माननीय महामहिम  राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद राज्यपाल श्री दिनेश नंदन सहाय मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी, अमेरिका, नीदरलैंड, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, इथोपिया सहित विश्व के विभिन्न देशों के कई माननीय मंत्रीगण, प्रतिनिधि गण, उच्चाधिकारी तथा वैज्ञानिक पधार चुके हैं।

– देश के हजारों प्रगतिशील किसानों, स्कूलों के बच्चों और मैडिसिनल प्लांट के शोधार्थियों, वैज्ञानिकों, नवउद्यमी युवाओं के लिए इस किसान की प्रयोगशाला यानी ‘‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म और रिसर्च सैंटर फार्म‘‘ पर निरंतर आनाजाना लगा रहता है.

– वर्तमान में डा. राजाराम त्रिपाठी ‘‘नैशनल मैडिसिनल प्लांट बोर्ड‘‘ आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के सदस्य हैं. साथ ही, भारत सरकार के ‘‘भारतीय गुणवत्ता संस्थान यानी बीआईएक की ‘‘कृषि मशीनरी तकनीकी अप्रूवल कमेटी‘‘ के भी सदस्य हैं.

– डा. राजाराम त्रिपाठी ‘‘सैंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन औफ इंडिया (चाम्फ) ूूू.बींउ.िवतह ‘‘ जो कि जैविक किसानों का देश का सब से बड़ा संगठन है, उस के चेयरमैन हैं.

– डा. राजाराम त्रिपाठी को हाल ही में देश के अग्रणी 223 किसान संगठनों के द्वारा बनाए गए ‘‘एमएसपी गारंटी-किसान मोरचा‘‘ का ‘मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता‘ भी बनाया गया है.

– डा. राजाराम त्रिपाठी वर्तमान में देश के सब से 45 किसान संगठनों के पूरी तरह से गैरराजनीतिक मंच, ‘अखिल भारतीय किसान महासंघ ( आईफा)‘ के ‘राष्ट्रीय संयोजक‘ के रूप में देशभर के किसानों की सशक्त आवाज के रूप में जाने जाते हैं.

– खेतीकिसानी में झंडे गाड़ने से इतर आदिवासी बोली, भाषा और उन की संस्कृति के संरक्षण के लिए डा. राजाराम त्रिपाठी का काम देशभर में उन की अलग पहचान बनाता है. इन के द्वारा लिखी किताबों में ‘‘बस्तर बोलता भी है‘‘ और ‘‘दुनिया इन दिनों‘‘  की गणना देश की चर्चित कृतियों में होती है. विगत एक दशक से दिल्ली से प्रकाशित हो रही जनजातीय सरोकारों की मासिक पत्रिका ‘‘ककसाड़‘‘ के जरीए छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की विलुप्त हो रही बोली, भाषा, संस्कृति और सदियों के संचित अनमोल परंपरागत ज्ञान को संजोने, व बढ़ाने के काम में अथक जुटे ‘‘कृषि ऋषि‘‘ डा. राजाराम त्रिपाठी को लोक संस्कृति का चलताफिरता ध्वजावाहक कहा जाना भी अतिशयोक्ति न होगा. इन का काम बहुआयामी है. इन के बारे में अगर और अधिक जानना हो, तो कृपया गूगल पर जाएं, गूगल बाबा की लाइब्रेरी में इन के ऊपर हजारों पेज आप को मिल जाएंगे.

 मधुमक्खीपालन को बनाएं स्वरोजगार, मिल रही सरकारी मदद

हिसार: हरियाणा के भूमिहीन, बेरोजगार और अशिक्षित यानी अपढ़ ग्रामीण पुरुष व महिला किसानों को अब मधुमक्खीपालन के प्रति रुचि पैदा करने व छोटी मधुमक्खीपालन इकाई की स्थापना कर इसे स्वरोजगार के रूप में अपनाने में आर्थिक व तकनीकी मदद मिलेगी. इस के लिए चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और इंडियन औयल कारपोरेशन लिमिटेड के बीच एमओयू हुआ है.
कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा और इंडियन औयल कारपोरेशन लिमिटेड की तरफ से उत्तरी क्षेत्रीय पाइपलाइन के कार्यकारी निदेशक एसके कनौजिया ने इस एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इस दौरान इंडियन औयल कारपोरेशन लिमिटेड की तरफ से उत्तरी क्षेत्रीय पाइपलाइन से डिप्टी जनरल मैनेजर नीरज सिंह व मैनेजर अनुराग जायसवाल भी मौजूद रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि हरियाणा शहद उत्पादन में अग्रणी राज्यों में से एक है. मधुमक्खीपालन क्षेत्रों में हरियाणा राज्य पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है. प्रदेश के भूमिहीन, बेरोजगार, अशिक्षित व कम जोत वाले किसान मधुमक्खीपालन को रोजगार के रूप में अपना कर अपनी माली हालत को मजबूत कर सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों खासतौर पर महिलाओं में मधुमक्खीपालन को लोकप्रिय बना कर स्वरोजगार को स्थापित करना है. इस से प्रशिक्षण प्राप्त प्रतिभागी न केवल खुद रोजगार प्राप्त कर सकेंगे, अपितु दूसरों को भी रोजगार प्रदान करने में सक्षम होंगे.

उन्होंने यह भी बताया कि मधुमक्खीपालन अपनाने से किसानों व खासतौर पर महिलाओं के लिए आजीविका के साधन बढ़ेंगे, साथ ही स्वास्थ्य को भी लाभ मिलेगा.

इंडियन औयल कारपोरेशन लिमिटेड के उत्तरी क्षेत्रीय पाइपलाइन के कार्यकारी निदेशक एसके कनौजिया ने बताया कि हरियाणा में मधुमक्खीपालन में रोजगार के बेहतरीन अवसर हैं. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय किसानों से सीधेतौर से जुड़ कर उन के उत्थान में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि खासतौर पर महिला किसान मधुमक्खीपालन को अपना कर संतुलित आहार व पोषक तत्व सहित अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं. उन्होंने एमओयू पर खुशी जाहिर की, साथ ही सामाजिक दायित्व के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिले सहयोग हेतु विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीआर कंबोज का आभार जताया.

कीट विज्ञान विभाग की अध्यक्ष एवं परियोजना अधिकारी डा. सुनीता यादव ने बताया कि हरियाणा के विभिन्न जिलों में वैज्ञानिक मधुमक्खीपालन और इस में विविधीकरण को अपनाने से स्थायी आर्थिक व पोषण सुरक्षा विषय पर आधारित मधुक्रांति योजना के तहत शुरुआती चरण में हरियाणा के 4 जिलों का चयन किया गया है, जिन में करनाल, कुरुक्षेत्र, झज्जर व सोनीपत शामिल हैं.

उन्होंने बताया कि चारों जिलों से कुल 120 बेरोजगार युवा, महिला प्रशिक्षुओं को मधुमक्खीपालन संबंधित प्रशिक्षण देने व उन्हें छोटी मधुमक्खीपालन इकाई की स्थापना कर इन्हें स्वरोजगार के रूप में अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. प्रशिक्षुओं को मधुमक्खीपालन इकाई की स्थापना के लिए निःशुल्क किट व आवश्यक सामग्री भी उपलब्ध कराई जाएगी.

कृषि विज्ञान केंद्रों की देखरेख व उन की मदद से प्रशिक्षकों को उन के उत्पादों की मार्केटिंग करने में भी मदद की जाएगी. साथ ही, उन्हें मधुमक्खीपालन इकाइयों का भी भ्रमण करवाया जाएगा. उन्होंने बताया कि कुल 1,300 गरीब महिलाओं व बच्चों को निःशुल्क शहद वितरित किया जाएगा और शहद के गुणों व औषधीय लाभों को बता कर उन में जागरूकता पैदा की जाएगी.

कौन सी हैं देशी कपास की खास प्रजातियां

नई दिल्ली: सरकार द्वारा कराए गए विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि देशी कपास की प्रजाति ‘गासिपियम आर्बोरियम‘ कपास की पत्ती मोड़ने वाले वायरस रोग से सुरक्षित है, तुलनात्मक रूप से चूसने वाले कीटों (सफेद मक्खी, थ्रिप्स और जैसिड्स) और बीमारियों ( बैक्टीरियल ब्लाइट और अल्टरनेरिया रोग) के प्रभाव को सहन कर सकती है, ग्रे यानी फफूंदी रोग के प्रति संवेदनशील है. देशी कपास की प्रजातियां नमी को भी सहन कर सकती हैं. यह जानकारी पिछले दिनों राज्यसभा में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चैधरी ने दी.

जारी की गई 77जी आर्बोरियम कपास किस्म

व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई 77जी आर्बोरियम कपास किस्मों में से, वसंतराव नाइक मराठवाड़ा के वैज्ञानिकों ने 4 लंबी रोएंदार किस्में विकसित की हैं, जो पीए 740, पीए 810, पीए 812 और पीए 837 हैं. कृषि विद्यापीठ (वीएनएमकेवी), परभणी (महाराष्ट्र) की स्टेपल लंबाई 28-31 मिलीमीटर है और बाकी 73 किस्मों की मुख्य लंबाई 16-28 मिलीमीटर तक है.

वसंतराव नाइक मराठवाड़ा, कृषि विद्यापीठ, परभणी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – आल इंडिया कौटन रिसर्च प्रोजैक्ट औन कौटन के परभणी केंद्र ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – सैंट्रल इंस्टीट्यूट फौर रिसर्च औन कौटन टैक्नोलौजी, नागपुर केंद्र में ऊपरी आधी औसत लंबाई, जिनिंग आउट टर्न, माइक्रोनेयर वैल्यू सहित कताई परीक्षणों के लिए देशी कपास की किस्मों का परीक्षण किया है. परीक्षणों में कताई की किस्मों को सफल घोषित किया गया है.

देशी कपास स्टेपल फाइबर की लंबाई बढ़ाने के लिए अनुसंधान प्रयास जारी है. वर्ष 2022-23 के दौरान इन किस्मों के 570 किलोग्राम बीजों का उत्पादन किया गया. अगले बोआई सत्र में बोआई के लिए किसानों के पास पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध है.

कृषि स्टार्टअप से लग रहे कृषि क्षेत्र को पंख

नई दिल्ली: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत वर्ष 2018-19 से ‘नवाचार एवं कृषि उद्यमिता विकास” कार्यक्रम लागू किया जा रहा है, जिस का उद्देश्य देश में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का पोषण करने के लिए वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करते हुए नवाचार और कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देना है.

स्टार्टअप के इनक्यूबेशन और इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए 5 नालेज पार्टनर्स (केपी) और 24 आरकेवीवाई एग्री बिजनैस इनक्यूबेटर (आर-एबीआई) नियुक्त किए गए हैं.

स्टार्टअप को नालेज पार्टनर्स (केपी) और आरकेवीवाई एग्री बिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) द्वारा प्रशिक्षित और इनक्यूबेट किया जाता है. भारत सरकार कृषि स्टार्टअप कौनक्लेव, कृषि मेला, प्रदर्शनियों, वैबिनार, कार्यशालाओं सहित विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों का आयोजन करती है, जिस से उन्हें विभिन्न हितधारकों के साथ जोड़ कर कृषि स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान किया जा सके.

कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता प्राप्त कृषि स्टार्टअप ‘योजना‘ से ले कर ‘मापन‘ और ‘विकास चरण‘ कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं. ये कृषि स्टार्टअप कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जैसे कि सटीक कृषि, कृषि मशीनीकरण, कृषि परिचालन एवं आपूर्ति श्रृंखला, कृषि प्रसंस्करण एवं खाद्य प्रौद्योगिकी, अपशिष्ट से धन, जैविक कृषि, पशुपालन, डेरी और मत्स्यपालन आदि. कृषि स्टार्टअप्स द्वारा विकसित एवं उभरती प्रौद्योगिकियां कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में विभिन्न सस्ती और अभिनव समाधान प्रदान कर रही हैं.

कार्यक्रम के अंतर्गत, वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक कुल 1524 कृषि स्टार्टअप को 106.25 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की गई.

गेहूं स्टाक सीमा में संशोधन,  जमाखोरों पर जुर्माना

नई दिल्ली: भारत सरकार ने समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन और जमाखोरी व बेईमान सट्टेबाजी को रोकने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए व्यापारियों और थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़े चेन रिटेलरों और प्रोसैसरों के लिए लागू गेहूं पर स्टाक सीमा लगा दी है. निर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, स्टाक सीमा और आवाजाही प्रतिबंधों को हटाने संबंधी (संशोधन) आदेश, 2023 12 जून, 2023 को जारी किया गया था और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 31 मार्च, 2024 तक लागू था.

केंद्र सरकार ने गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के अपने निरंतर प्रयासों के अंतर्गत संस्थाओं के संबंध में गेहूं स्टाक सीमा को संशोधित करने का निर्णय लिया है:

सभी गेहूं स्टाकिंग संस्थाओं को गेहूं स्टाक सीमा पोर्टल पर पंजीकरण करना और प्रत्येक शुक्रवार को स्टाक स्थिति अपडेट करना आवश्यक है. कोई भी संस्था जो पोर्टल पर पंजीकृत नहीं पाई गई या स्टाक सीमा का उल्लंघन करती है, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 6 और 7 के अंतर्गत उचित दंडात्मक कार्यवाही के अधीन होगी.

यदि उपरोक्त संस्थाओं द्वारा रखे गए स्टाक उपरोक्त निर्धारित सीमा से अधिक हैं, तो उन्हें अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के भीतर इसे निर्धारित स्टाक सीमा में लाना होगा. केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारी इन स्टाक सीमाओं के कार्यान्वयन की निकटता से निगरानी करेंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश में गेहूं की कोई बनावटी कमी पैदा न हो.

इस के अलावा सरकार ने ओपन मार्केट सेल स्कीम (घरेलू) यानी ओएमएसएस (डी), के अंतर्गत अनेक कदम उठाए हैं. 101.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं 2,150 रुपए प्रति क्विंटल की रियायती दर पर एफसीआई द्वारा साप्ताहिक ईनीलामी के माध्यम से घरेलू खुले बाजार में कैलिब्रेटेड रिलीज के लिए आवंटित किया गया है. आवश्यकता के आधार पर जनवरी से मार्च, 2024 के दौरान ओएमएसएस के तहत अतिरिक्त 25 एलएमटी को बेचा जा सकता है. अब तक एफसीआई ने साप्ताहिक ईनीलामी के माध्यम से प्रोसैसरों को 44.65 लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचा है और इस से खुले बाजार में सस्ती कीमतों पर गेहूं की उपलब्धता बढ़ गई है, जिस से देशभर में आम उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है.

खुले बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के एक और कदम के रूप में एफसीआई द्वारा ईनीलामी के माध्यम से पेश की जाने वाली साप्ताहिक मात्रा को तत्काल प्रभाव से 3 लाख मीट्रिक टन से 4 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है. इस से खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता में और वृद्धि होगी.

एफसीआई नेफेड, एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार जैसे केंद्रीय सहकारी संगठनों को आटा प्रसंस्करण और उन के फिजीकल व मोबाइल आउटलेट के माध्यम से ‘भारत आटा‘ ब्रांड के तहत बिक्री के लिए 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम की किफायती कीमत पर आटा प्रोसैसिंग के लिए गेहूं जारी कर रहा है. उन क्षेत्रों की पहचान की गई है, जहां कीमतें अधिक हैं और एजेंसियां इन क्षेत्रों में लक्षित बिक्री कर रही हैं.

भारत आटे के लिए आपूर्ति की जाने वाली गेहूं की मात्रा को जनवरी, 2024 के अंत तक 2.5 लाख मीट्रिक टन से बढ़ा कर 4 लाख मीट्रिक टन किया जा रहा है. पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नेफेड व एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार को आवंटन की समयसमय पर समीक्षा की जा रही है.

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग कीमतों को नियंत्रित करने और देश में सहज उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के स्टाक की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है.

हाथियों में रक्तस्रावी रोग बन रहा घातक

नई दिल्ली: भारत में संरक्षित क्षेत्र के साथसाथ मुक्त वन क्षेत्र में देखे गए इस रक्तस्रावी रोग के कारण हाथी के बछड़ों (एलिफैंट काव्स) की बढ़ती मौत काफी चिंता की वजह है.

एशियाई हाथी हमारे देश के राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत वाले जंतु हैं और विश्व के कुल हाथियों की आबादी का 55 फीसदी हिस्सा हैं.

ईईएचवी-एचडी रोग के बढ़ते प्रकोप के कारण यह आबादी घट रही है. इसलिए उन्हें इस घातक बीमारी से बचाना जरूरी है. वन क्षेत्र और संरक्षित क्षेत्र में इस रोग की स्थिति की पुष्टि के लिए और अधिक गहन जांच की आवश्यकता है.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से संबद्ध संस्थान, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईवीआरआई), इज्जतनगर, बरेली द्वारा किए गए एक अध्ययन में भारत में एशियाई हाथियों की आबादी के बीच संचारित हो रहे ईईएचवी और इस के दूसरे प्रकारों की सटीक स्थिति का पता लगाया गया है.

जर्नल माइक्रोबियल पैथोजेनेसिस में प्रकाशित एक शोध में भारतीय हाथियों की आबादी में फैल रहे इस वायरस के जीनोम की विशेषता बताई गई और इस रोग से जुड़ी एंडोथेलियल कोशिकाओं की शिथिलता के आणविक तंत्र का भी पता लगाया गया.

इस काम के आधार पर अब नैदानिक (डायग्नोस्टिक) किट (पेन साइड) और टीके विकसित करने की सुविधा के लिए काम शुरू किया गया है. इस परियोजना के शोध से एकत्रित जानकारी से एक ऐसी मानक संचलन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने में सहायता मिली है, जिस से महावतों और हाथी संरक्षणवादियों के बीच बीमारी की जानकारी का प्रबंधन किया जा सकता है.

भेड़बकरी व खरगोशपालन की ली जानकारी

अविकानगरः केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में एसएस जैन सुबोध पीजी कालेज, रामबाग सर्किल, जयपुर के 42 स्नातकोत्तर एवं स्नातक के छात्रों का एकदिवसीय शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम अपनी फैकल्टी के डा. अनुराग जैन एवं डा. अनुरूपा गुप्ता के साथ आयोजित किया गया. छात्रों ने भ्रमण के दौरान संस्थान के दुंबा भेड़पालन के साथ खरगोशपालन इकाई का दौरा किया और बायोटैक्नोलौजी लैब में जा कर वहां के वैज्ञानिको के साथ संस्थान मे चल रहे शोध कार्यों को जाना.

इस दौरान छात्रों नें जानकारी ली कि कैसे वे संस्थान की सहायता से अपने पीजी रिसर्च प्रोजैक्ट पर काम कर सकते हैं.

एटिक सैंटर के तकनीकी कर्मचारी पिल्लू मीना द्वारा छात्रों को संस्थान का एकदिवसीय भ्रमण के तहत विभिन्न जगह जैसे वूल प्लांट, सैक्टर्स, फिजिलौजी आदि का भी भ्रमण कराया गया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने सभी छात्रों को संबोधित किया कि आने वाले समय में आप के द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्र में जा कर नए शोध को कर के देश को रिसर्च मे नई ऊंचाई देनी है.

उन्होंने छात्रों से आगे कहा कि आप संस्थान से अपने विषय की प्रैक्टिकल जानकारी सीख कर जाएं कि कैसे आप अपने कालेज की तालीम से देशहित में योगदान दे सकते हैं. सुबोध कालेज की फैकल्टी डा. अनुरूपा गुप्ता द्वारा भी भविष्य मे संस्थान के साथ जुड़ कर छात्रों के शोध कार्य में अवसर के बारे मंे विस्तार से निदेशक के साथ डिस्कशन किया गया.