उन्नत खेती में कारगर होगी ड्रोन दीदी

नई दिल्ली: 30 नवंबर, 2023. विकसित भारत संकल्प यात्रा के अंतर्गत प्रधानमंत्री महिला किसान ड्रोन केंद्र का शुभारंभ किया गया. साथ ही एम्स, देवघर में ऐतिहासिक 10,000वें जन औषधि केंद्र का लोकार्पण किया एवं देश में जन औषधि केंद्रों की संख्या बढ़ा कर 25,000 करने का कार्यक्रम भी लौंच किया.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने स्वागत भाषण दिया. भारत सरकार के विकसित भारत संकल्प यात्रा के इस कार्यक्रम से देशभर में लाखों युवा, महिलाएं, किसानों सहित विभिन्न वर्गों के लोग जुड़े. विभिन्न स्थानों पर राज्यपाल, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्र व राज्यों के मंत्री, सांसदविधायक व अन्य जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विकसित भारत संकल्प यात्रा को 15 दिन पूरे हो रहे हैं, अब इस ने गति पकड़ ली है. लोगों के स्नेह व भागीदारी को देखते हुए इस का नाम ‘विकास रथ‘ से बदल कर ‘मोदी की गारंटी वाली गाड़ी‘ कर दिया गया. ‘मोदी की गारंटी गाड़ी‘ अब तक 12,000 से अधिक ग्राम पंचायतों तक पहुंच चुकी है, जहां लगभग 30 लाख नागरिक इस से जुड़ चुके हैं. उन्होंने इस में महिलाओं की भागीदारी की भी सराहना की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि विकसित भारत का संकल्प मोदी या किसी सरकार का नहीं है, यह सभी को विकास के पथ पर साथ ले कर चलने का संकल्प है. विकसित भारत संकल्प यात्रा का उद्देश्य सरकारी योजनाओं और लाभ को उन लोगों तक पहुंचाना है, जो पीछे रह गए हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि वह नमो एप पर विकास की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं. उन्होंने युवाओं से मेरा भारत स्वयंसेवक के रूप में पंजीकरण करने व मेरा भारत अभियान में शामिल होने का भी आग्रह किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि यह यात्रा विकसित भारत के लिए 4 जातियों पर आधारित है, ये हैं- नारी शक्ति, युवा शक्ति, किसान और गरीब परिवार. इन चारों जातियों की प्रगति होगी, जिस से भारत विकसित देश बनेगा.

सरकार गरीबों का जीवन स्तर सुधारने, गरीबी दूर करने, युवाओं के लिए रोजगारस्वरोजगार के अवसर पैदा करने, महिलाओं को सशक्त बनाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए सतत काम कर रही है. स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चल रहे अभियान को ड्रोन दीदी से मजबूती मिलेगी, आय के अतिरिक्त साधन उपलब्ध होंगे. इस से किसानों को बहुत कम कीमत पर ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीक मिल सकेगी, जिस से समय, दवा, उर्वरक की बचत होगी.

Narendra Modiमोदी की दवा की दुकान:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10,000वें जन औषधि केंद्र के उद्घाटन का जिक्र करते हुए कहा कि यह गरीबों और मध्यम तबके के लिए सस्ती दरों पर दवाएं खरीदने का केंद्र बन गया है. जन औषधि केंद्रों को अब ‘मोदी की दवा की दुकान‘ कहा जा रहा है. उन्होंने नागरिकों को उन के स्नेह के लिए धन्यवाद देते हुए बताया कि ऐसे केंद्रों पर तकरीबन 2,000 प्रकार की दवाएं 80 से 90 फीसदी छूट पर बेची जाती हैं.

उन्होंने खुशी जताई कि पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को 5 साल के लिए बढ़ा दिया गया है. प्रधानमंत्री ने इस पूरे अभियान को शुरू करने में पूरी सरकारी मशीनरी व कर्मचारियों के महत्व पर प्रकाश डाला. साथ ही, ग्राम स्वराज अभियान की सफलता को भी याद किया, जो देश के लगभग 60,000 गांवों में 2 चरणों में चलाया गया था और 7 योजनाओं को लाभार्थियों तक पहुंचाया गया था.

योजनाओं को गरीबों तक पहुंचाने के लिए 3,000 वाहन रथ:

गाजियाबाद के एक कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की कल्पना है कि साल 2047 तक देश विकसित भारत के रूप में तबदील हो. यह एक बड़ा व व्यापक अभियान है. इस अभियान से देश का हर आदमी, सभी तबके के लोग जुड़ कर आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे, तो आने वाले कल में हमारा देश वैश्विक मानचित्र में श्रेष्ठ भारत के रूप में स्थापित हो सकेगा.

विकसित भारत संकल्प यात्रा को संचालित करने के लिए तकरीबन 3,000 वाहन रथ के रूप में उपलब्ध कराए गए हैं, जो प्रतिदिन 6,000 गांवों में पहुंचेंगे. नवंबर में शुरू हुई यह यात्रा 26 जनवरी तक चलेगी.

गरीबों के जीवनस्तर में बदलाव लाने के लिए बनी योजनाएं आम जनता तक पहुंचे व पात्र लोगों को इन का लाभ मिले. प्रधानमंत्री ने विकास की दौड़ में पिछड़े जिलों का चयन कर आकांक्षी जिले नाम दिया, ताकि वे अन्य की बराबरी पर आ सकें.

महिलाओं को 15 हजार ड्रोन

आदिवासियों को न्याय व मौलिक सुविधाएं उन तक पहुंचाने के लिए योजनाएं शुरू कीं. महिलाओं को 15,000 ड्रोन उपलब्ध कराएंगे. इन ड्रोन दीदी के माध्यम से महिलाओं का सशक्तीकरण होगा, वे आत्मनिर्भर बनेंगी, रोजगार सृजन से उन की आजीविका बेहतर होगी. साथ ही, खेती में ड्रोन का उपयोग बढ़ने से खेती भी उन्नत होगी.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि देशभर में तकरीबन 90 लाख स्वयं सहायता समूहों से लगभग 10 करोड़ बहनें जुड़ी हुई हैं, जो न सिर्फ अपने जीवन में बदलाव ला रही हैं, बल्कि समाज सेवा और गांवों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं.

उन की क्षमता बढ़ाने व आजीविका बेहतर करने के लिए ड्रोन दीदी कार्यक्रम की कल्पना अद्भुत है. यूरिया, डीएपी व पेस्टीसाइड का जब खेतों में छिड़काव होता है, तो शरीर पर भी इस का बुरा प्रभाव पड़ता है. साथ ही, कहीं ज्यादा तो कहीं कम छिड़काव जैसा असंतुलन भी बना रहता है, लेकिन जब ड्रोन का उपयोग बढ़ जाएगा तो शरीर पर दुष्प्रभाव कम होगा और उर्वरक की खपत भी कम होगी. विकल्प के रूप में नैनो यूरिया, नैनो डीएपी का उपयोग भी बढ़ेगा.

करोड़ों लोगों तक पहुंची अनेक योजनाएं

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में किसान सम्मान निधि के माध्यम से 2.80 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा राशि 15 किस्तों में देश के तकरीबन 11 करोड़ किसानों के खातों में दी जा चुकी हैं. उज्जवला योजना के माध्यम से 9 करोड़ से अधिक बहनों को मुफ्त में रसोई गैस सिलेंडर देने का काम हुआ है. पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के माध्यम से देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त खाद्यान्न देने का काम किया जा रहा है, जो दुनिया का सब से बड़ा कार्यक्रम है.

उदयपुर में बनेगी ड्रोन लेब

उदयपुर: 28 नवंबर, 2023. ’’कृषि क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं व चुनौतियां’’ विषय पर कृषि वैज्ञानिकों ने गहन विचारविमर्श किया. साथ ही, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं धानुका एग्रीटैक लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन यानी एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए. आगामी 5 साल के लिए हुए इस करार के तहत कृषि शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों के साथ कृषि में नवाचार व रोजगारोन्मुखी बनाने पर जोर दिया जाएगा. समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर धानुका ग्रुप के अध्यक्ष आरजी अग्रवाल एवं कुलपति, एमपीयूएटी, डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने हस्ताक्षर किए.

एमओयू का प्रमुख मकसद शिक्षाविदों, एमएससी में उत्कृष्टता के लिए बीएससी (कृषि) के दौरान एमपीयूएटी के छात्रों को फैलोशिप प्रदान करना है. साथ ही, पीएचडी, अनुसंधान और विकास गतिविधियों को प्रोन्नत करने के लिए फसलों में कीटनाशकों के छिड़काव और क्षेत्र के अध्ययन में ड्रोन के उपयोग के विभिन्न विकल्पों का पता लगाया जाएगा.

एमओयू के मुताबिक, धानुका द्वारा प्रायोजित ड्रोन अनुप्रयोगों के माध्यम से जैव प्रभावकारिता और फाइटोटौक्सिीसिटी परीक्षणों का संचालन का जिम्मा एमपीयूएटी का रहेगा. परीक्षणों में धानुका विशेषज्ञों की भागीदारी भी सुनिश्चित रहेगी.

खास बात यह भी है कि ड्रोन लैब की स्थापना के लिए मप्रकृप्रौविवि स्थान और विशेषज्ञता धानुका को उपलब्ध कराएगा. कृषि रसायनों के डिजाइन विकास और प्रभावी उपयोग पर अनुसंधान किया जाएगा. इस के अलावा सहयोगात्मक शोध के परिणाम वाले शोधपत्रों को संयुक्त व समान अधिकार प्राप्त होंगे, ताकि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशन कर के ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके.

समझौते के अनुसार, विश्वविद्यालय के अधीन कृषि विज्ञान केंद्रों के जरीए किसानों के खेतों पर प्रदर्शन के अनुकूल परीक्षण आयोजित किए जाएंगे, जहां प्रगतिशील किसानों का दौरा भी कराया जाएगा.

समझौते के तहत धानुका बिना किसी शुल्क के कृषि छात्रों को उत्पाद प्रबंधन प्रशिक्षण और प्रमाणन देेगा. फसल सुरक्षा उत्पादों के सुरक्षित उपयोग के लिए छात्रों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण बांटे जाएंगे. इस के अलावा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किसान मेला, संगोष्ठी, सम्मेलन को प्रायोजित करेगा. प्लेसमेंट उद्देश्य से कैंपस साक्षात्कार में धानुका भाग लेगा, ताकि उच्च शिक्षित छात्रों को रोजगार मिल सके. नई प्रौद्योगिकियों के साथ परियोजनाएं शुरू करने पर भी विचार किया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि धानुका एग्रीटैक लिमिटेड की स्थापना 13 फरवरी, 1985 को हुई. कंपनी तरल, धूल, पाउडर और कणिकाओं में जड़ीबूटियों, कीटनाशकों, कवकनाशी और पौधों के विकास नियामकों जैसे कृषि रसायनों की एक विस्तृत श्रंृखला के निर्माण और व्यापार में संलग्न है. गुजरात के साणंद, राजस्थान के केशवाना और जम्मूकश्मीर के ऊधमपुर में कंपनी की औद्योगिक इकाइयां हैं. स्थानीय नौजवानों, सामुदायिक विकास के मद्देनजर धानुका शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रशिक्षण और रोजगार प्रदान करने के लिए सदैव प्रयासरत है.

बीज उत्पादन के लिए राजस्थान की भूमि सर्वोतम:

संस्थागत विकास योजना व राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि उद्योगपति एवं धानुका एग्रीटैक लिमिटेड के अध्यक्ष आरजी अग्रवाल ने कहा कि वे स्वयं राजस्थान के हैं और ऐसे में राज्य के कृषि छात्रों के भविष्य एवं किसानों की खुशहाली के लिए हर संभव मदद को तत्पर रहेंगे. 80 के दशक में उर्वरक एवं कृषि रसायन के क्षेत्र में कदम रखने वाली धानुका एग्रीटैक कंपनी कृषि के माध्यम से भारत को अग्रणी देशों में देखने को न केवल आतुर है, बल्कि निरंतर प्रयासरत है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय सभागार में आयोजित कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि व पूर्व निदेशक भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान व मेज (मक्का) मैन के नाम से प्रख्यात वैज्ञानिक डा. साईं दास ने कहा कि राजस्थान की माटी, जलवायु हर प्रकार के बीज उत्पादन के लिए मुफीद है. दक्षिणी राजस्थान में सिंगल क्रास हाईब्रिड मक्का की खेती डा. साईं दास की ही देन है.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि डा. साईं दास ने बदलते जलवायु परिदृश्य में मक्का किस्म का परिचय कराया. साथ ही, विश्वविद्यालय की विभिन्न उपलब्धियां गिनाईं.

उन्होंने  कृषि विज्ञान केंद्रों को मंदिर की संज्ञा देते हुए कहा कि केवीके इतने सुदृढ़ होने चाहिए कि किसानों की हर जरूरत की भरपाई वहां हो सके और विगत एक वर्ष में इस के लिए विशेष प्रयास हुए हैं, जो सराहनीय है.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, भूरालाल पाटीदार ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा कृषि जोन-चतुर्थ ए एवं बी में आता है. यहां की प्रमुख खरीफ फसल मक्का है. कृषि विज्ञानी डा. साईं दास ने बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर में सीड रिप्लेसमेंट की दिशा में बेहतर काम किया है. इस के लिये उन्हें सदैव याद किया जाएगा.

भूरालाल पाटीदार ने आगे कहा कि दक्षिणी राजस्थान में मक्का प्रोसैसिंग यूनिट की सख्त आवश्यकता है, ताकि इलाके के किसानों को मक्का उत्पादन का समुचित प्रतिफल मिल सके.

देशदुनिया में श्रीअन्न को बढ़ावा देगा ये शोध केंद्र

नई दिल्ली: 29 नवंबर 2023. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष पहल पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद में स्थापित किया जा रहा ‘‘श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र’’ सर्वसुविधायुक्त रहेगा, जिस के जरीए देशदुनिया में श्रीअन्न को बढ़ावा मिलेगा.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मार्गदर्शन में इस केंद्र के लिए कार्यवाही चल रही है. उन्होंने संबंधित अधिकारियों से कहा कि हमारे किसानों को इस केंद्र का अधिकाधिक लाभ मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, खासकर छोटे व सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल पर अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 मनाया जा रहा है.

18 मार्च, 2023 को पूसा परिसर, नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रीअन्न सम्मेलन में ‘‘श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र” की उद्घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य श्रीअन्न अनुसंधान एवं विकास के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं व उपकरणों से सुसज्जित बुनियादी ढांचे की स्थापना करना है, जिस में मूल्य श्रृंखला, मानव संसाधन विकास, श्रीअन्न के पौष्टिक गुणों के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना एवं वैश्विक स्तर पर पहुंच एवं पहचान बनाना है, ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके.

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इस केंद्र में जीन बैंक, प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र, श्रीअन्न मूल्य श्रृंखला एवं व्यापार सुविधा केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान, कौशल व क्षमता विकास केंद्र और वैश्विक स्तर की अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना का प्रावधान किया गया है.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा “श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र” की प्रगति की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक में बताया गया कि यहां अनुसंधान से संबंधित विभिन्न सुविधाओं में जीनोम अनुक्रमण, जीन संपादन, पोषक जीनोमिक्स, आणविक जीव विज्ञान, मूल्य संवर्धन और जीनोम सहायता प्रजनन के लिए उन्नत अनुसंधान उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाओं की स्थापना के साथसाथ स्पीड ब्रीडिंग, फाइटोट्रौन, जलवायु नियंत्रित कक्ष, ग्रीनहाउस व ग्लासहाउस एवं रैपिड फेनोमिक्स सुविधा की भी स्थापना की जा रही है.

इसी क्रम में संस्थान के नवस्थापित बाड़मेर, राजस्थान एवं सोलापुर, महाराष्ट्र स्थित 2 क्षेत्रीय केंद्रों को भी सुदृढ़ बनाया जा रहा है. केंद्र को वैश्विक स्तर का अनुसंधान और प्रशिक्षण परिसर बनाने के लिए उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं के साथ आधुनिक प्रशिक्षण सुविधाओं, सम्मेलन कक्षों और अंतर्राष्ट्रीय अतिथिगृह की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है. केंद्र की गतिविधियों को समयसीमा में पूरा करने व पूरे देश में लागू करने के लिए आईसीएआर के 15 संस्थान सहयोग करेंगे.

बैठक में कृषि सचिव मनोज आहूजा, डेयर के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक के साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे. श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र की स्थापना के लिए केंद्रीय बजट में 250 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इस संबंध में केंद्र सरकार के स्तर पर कार्यवाही तेजी से प्रगति पर है, साथ ही नियमित बैठकें भी हो रही हैं.

केले पर मंडराया संकट, लग रही फंगस

केले की बागबानी से इन दिनों किसान अच्छा मुनाफा ले रहे हैं, लेकिन हाल ही में आई एक खबर ने केले की खेती करने वाले किसानों के सामने नई मुसीबत खड़ी कर दी है. पता चला है कि केले की प्रजाति को एक खास फंगस ने अपनी चपेट में ले लिया है.

उचित देखभाल की कमी में यह रोग लगता है. जब तक कुछ समझ में आता है, तब तक केले की पूरी फसल खराब हो जाती है. दुनियाभर के वैज्ञानिक और किसान चिंतित हैं और उपाय खोज रहे हैं.

केले में यह फंगस महामारी जैसा है. दुनिया में 99 फीसदी केलों की फसलों में फंगस से खतरा पैदा हो गया है. यहां तक कि यह बीमारी 20 से अधिक देशों में फैल गई है. दुनियाभर के किसानों को यह  चिंता है कि कहीं इस खतरनाक फंगस से केले का वजूद ही खत्म न हो जाए.

अचानक फैले फंगस से निबटने के लिए किसान और वैज्ञानिक तमाम तरह के उपाय अपनाने पर काम कर रहे हैं. यह फंगस लक्षण दिखने से पहले ही फैल जाता है और पौधे पर लगने के बाद इसे रोकना नामुमकिन है.

इस बीमारी में केले के पत्ते हरे रंग की तुलना में अधिक पीले और किनारे काले पड़ जाते हैं.

अगर इस फंगस की रोकथाम न की गई तो केले की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

जलवायु परिवर्तन पर बैठक में भारत की भागीदारी

नई दिल्ली: 28 नवंबर, 2023. जलवायु परिवर्तन पर यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन औन क्लाडइमेट चेंज (सीओपी-28) की बैठक 30 नवंबर से 12 दिसंबर, 2023 तक दुबई में होगी. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस बैठक में भारतीय शिष्टमंडल की भागीदारी के लिए चल रही तैयारियों के साथ ही कृषि क्षेत्र में कार्बन क्रेडिट की क्षमता की समीक्षा की.

उन्होंने बताया कि मंत्रालय द्वारा बैठक में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जलवायु अनुकूल श्रीअन्न, प्राकृतिक खेती, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जलवायु अनुकूल गांवों के वैश्विक महत्व समेत देश की उपलब्धियां साइड इवेंट्स में प्रदर्शित होंगी.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आगे कहा कि कृषि को जलवायु परिवर्तन के मुताबिक किया जाना चाहिए, ताकि किसान समुदाय इस से फायदा ले सकें. उन्होंने जोर दे कर कहा कि भारत जैसा अत्यधिक आबादी वाला देश मीथेन की कटौती की आड़ में खाद्य सुरक्षा पर समझौता नहीं कर सकता है.

समीक्षा बैठक में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण सचिव मनोज अहूजा ने मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सीओपी बैठक के महत्व, जलवायु परिवर्तन व भारतीय कृषि पर लिए गए निर्णयों के प्रभाव के बारे में जानकारी दी.

मंत्रालय के एनआरएम डिवीजन के संयुक्त सचिव फ्रैंकलिन एल. खोबुंग ने खाद्य सुरक्षा पहलुओं और भारतीय कृषि की स्थिरता के संबंध में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर ऐतिहासिक निर्णयों और भारत के रुख पर विवरण प्रस्तुत किया.

बैठक में डेयर के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने भी अधिकारियों के साथ हिस्सा लिया.

संयुक्त सचिव (एनआरएम) ने कार्बन क्रेडिट के महत्व को भी प्रस्तुत किया, जो जलवायु अनुकूल टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से खेती में पैदा किया जा सकता है. राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन के अंतर्गत कृषि वानिकी, सूक्ष्म सिंचाई, फसल विविधीकरण, राष्ट्रीय बांस मिशन, प्राकृतिक व जैविक खेती, एकीकृत कृषि प्रणाली आदि जैसे अनेक उपायों का आयोजन किया गया है. मिट्टी में कार्बन को अनुक्रमित करने की क्षमता है, जिस से जीएचजी व ग्लोबल वार्मिंग में योगदान कम हो जाता है.

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सुझाव दिया कि कार्बन क्रेडिट का लाभ कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय बीज निगम के बीज फार्मों और आईसीएआर संस्थानों में मौडल फार्मों की स्थापना के माध्यम से किसानों तक पहुंचना चाहिए.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि केवीके को किसान समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करने में भी शामिल होना चाहिए, ताकि किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके. कार्बन क्रेडिट, किसानों को सतत् कृषि का अभ्यास करने में प्रोत्साकहन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हो सकती है. ऐसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए कार्बन क्रेडिट की जानकारी वाले किसानों को साथ लिया जा सकता है.

भारतीय गन्ना सब से महंगा

नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन (आईएसओ) ने अपनी 63वीं परिषद बैठक में घोषणा की कि भारत वर्ष 2024 के लिए संगठन का अध्यक्ष होगा. इस संगठन का मुख्यालय लंदन में है. वैश्विक चीनी क्षेत्र का नेतृत्व करना देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और यह इस क्षेत्र में देश के बढ़ते कद को दर्शाता है.

आईएसओ परिषद बैठक में भाग लेते हुए भारत के खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने कहा कि भारत 2024 में आईएसओ की अपनी अध्यक्षता की अवधि के दौरान सभी सदस्य देशों से समर्थन और सहयोग चाहता है और गन्ने की खेती, चीनी और इथेनाल उत्पादन में अधिक टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने और उपउत्पादों के बेहतर उपयोग के लिए सभी सदस्य देशों को एकसाथ लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है.

भारत दुनिया में चीनी का सब से बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सब से बड़ा उत्पादक देश रहा है. वैश्विक चीनी खपत में लगभग 15 फीसदी हिस्सेदारी और चीनी के लगभग 20 फीसदी उत्पादन के साथ, भारतीय चीनी रुझान वैश्विक बाजारों को बहुत प्रभावित करते हैं. यह अग्रणी स्थिति भारत को अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन (आईएसओ) का नेतृत्व करने के लिए सब से उपयुक्त राष्ट्र बनाती है, जो चीनी और संबंधित उत्पादों पर शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय निकाय है. इस के लगभग 90 देश सदस्य हैं.

चीनी बाजार में विश्व के पश्चिमी गोलार्ध में ब्राजील तो पूर्वी गोलार्ध में भारत अग्रणी है. अब, अमेरिका और ब्राजील के बाद इथेनाल उत्पादन में दुनिया का तीसरा सब से बड़ा देश होने के नाते भारत ने हरित ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और घरेलू बाजार में अधिशेष चीनी की चुनौतियों को जीवाश्म ईंधन आयात के समाधान में बदलने की क्षमता दिखाई है और इसे सीओपी 26 लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में पेश किया है.

उल्लेखनीय है कि भारत में इथेनाल मिश्रण साल 2019-20 में 5 फीसदी से बढ़ कर साल 2022-23 में 12 फीसदी हो गया है, जबकि इसी अवधि के दौरान उत्पादन 173 करोड़ लिटर से बढ़ कर 500 करोड़ लिटर से अधिक हो गया है.

भारतीय चीनी उद्योग ने पूरे व्यापार मौडल को टिकाऊ और लाभदायक बनाने के लिए इस के आधुनिकीकरण और विस्तार के साथसाथ अतिरिक्त राजस्व धाराओं का सृजन करने के लिए अपने सहउत्पादों की क्षमता के दोहन के लिए विविधीकरण में एक लंबा सफर तय किया है. इस ने कोविड महामारी के दौरान अपनी मिलों का संचालन कर के अपनी मजबूती साबित की है, जबकि देश लौकडाउन का सामना कर रहा था और देश में मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैंड सैनिटाइजर का उत्पादन कर के आगे बढ़ रहा था.

भारत को अपने किसानों के लिए उच्चतम गन्ना मूल्य का भुगतानकर्ता होने का एक अनूठा गौरव प्राप्त है और अब भी यह बिना किसी सरकारी वित्तीय सहायता के आत्मनिर्भर तरीके से काम करने और लाभ कमाने में पर्याप्त रूप से सक्षम है. सरकार और चीनी उद्योग के बीच तालमेल ने भारतीय चीनी उद्योग को फिर से जीवंत करना और देश में हरित ऊर्जा में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में बदलना संभव बना दिया है. किसानों के लंबित गन्ना बकाए का युग अब बीते जमाने की बात हो गई है.

पिछले सीजन 2022-23 के 98 फीसदी से अधिक गन्ना बकाया का भुगतान पहले ही किया जा चुका है और पिछले गन्ना मौसम के 99.9 फीसदी से अधिक गन्ना बकाया का भुगतान हो चुका है. इस प्रकार, भारत में गन्ना बकाया लंबित राशि अब तक के सब से निचले स्तर पर है.

भारत ने न केवल किसानों और उद्योग का ध्यान रख कर, बल्कि उपभोक्ताओं को भी आगे रख कर मिसाल कायम की है. घरेलू चीनी खुदरा कीमतें स्थिर हैं. जहां वैश्विक कीमतें एक वर्ष में लगभग 40 फीसदी बढ़ जाती हैं, वहीं भारत चीनी उद्योग पर अतिरिक्त बोझ डाले बिना पिछले साल से 5 फीसदी की वृद्धि के भीतर चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने में सक्षम रहा है.

तकनीकी पक्ष पर भी, राष्ट्रीय चीनी संस्थान, कानपुर ने अपना विस्तार किया है और इस क्षेत्र में नवीनतम प्रौद्योगिकियों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए इंडोनेशिया, नाईजीरिया, मिस्र, फिजी सहित कई देशों के साथ सहयोग कर रहा है.

कई देशों को भेजा जाएगा काजू

भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अधीन एक संगठन, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने निर्यात सुविधा प्रदाता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 23 नवंबर, 2023 को राष्ट्रीय काजू दिवस पर बंगलादेश, कतर, मलयेशिया और अमेरिका के लिए अपने काजू निर्यात को झंडी दिखा कर रवाना किया. बंगलादेश को ओडिशा से काजू की अब तक की पहली खेप प्राप्त होगी.

कोटे डी आइवर के बाद, भारत 15 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी के साथ काजू का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, इस के बाद विश्व के काजू निर्यात में वियतनाम का स्थान है. भारत के शीर्ष निर्यात देश संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड, जापान और सऊदी अरब हैं. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु भारत के प्रमुख काजू उत्पादक राज्य हैं. भारत मुख्य रूप से काजू गिरी को थोड़ी मात्रा में काजू शैल तरल और कार्डानोल के साथ निर्यात करता है.

यूएई और नीदरलैंड के भारतीय काजू के लिए शीर्ष निर्यात गंतव्य बने रहने के साथ, एपीडा जापान, सऊदी अरब, ब्रिटेन, स्पेन, कुवैत, कतर, अमेरिका और यूरोपीय देशों आदि के अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में काजू के लिए नए बाजारों की खोज करने की दिशा में काम कर रहा है.

एपीडा ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ संयुक्त रूप से काजू एसोसिएशन, निर्यातकों और हितधारकों के सहयोग से 7 राज्यों में राष्ट्रीय काजू दिवस मनाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए. इस आयोजन में विविध प्रकार के कार्यकलाप शामिल थे, जैसे काजू के हितधारकों के साथ बातचीत सत्र, नेटवर्किंग के लिए प्लेटफार्म, जानकारी साझा करना और उद्योग के रुझानों व इस सैक्टर में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा.

काजू उद्योग के हितधारकों, निर्यातकों और क्षेत्र से जुड़े उत्साही लोगों के एकजुट होने के इस कार्यक्रम में एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने राष्ट्रीय काजू दिवस मनाने के लिए प्रतिभागियों को संबोधित किया और कहा, “आज एपीडा के हमारे विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालय न केवल समारोह मनाने बल्कि वृद्धि रुझानों, उत्पादन, निर्यात रणनीतियों और काजू क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर सार्थक चर्चा में शामिल होने के लिए भी एकत्र हुए हैं.”

काजू उत्पादों की मांग बढ़ रही है और उद्योग को विकसित और फलतेफूलते देखना एक सुखद क्षण है. यह बढ़ोतरी किसानों, प्रोसैसरों और निर्यातकों की कड़ी मेहनत का प्रमाण है.

एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने किसानों और काजू उत्पादकों की सराहना की, उन्हें प्रोत्साहित किया और कहा, “किसानों ने काजू के बढ़ते उत्पादन में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. गुणवत्तापूर्ण और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के प्रति उन की प्रतिबद्धता ने न केवल उद्योग के मानकों को ऊंचा किया है, बल्कि हमें वैश्विक बाजार में प्रमुख देशों के रूप में भी स्थापित किया है.”

जैसे ही काजू और इस का उत्पाद एपीडा के दायरे में आया है, इस ने आधुनिकीकरण और प्रोसैसिंग की सुविधाओं, लौजिस्टिक, गुणवत्ता के रूप में उद्योग के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करने और कड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए काजू क्षेत्र के हितधारकों के साथ जुड़ना आरंभ कर दिया है.

यह कार्यक्रम देश के सभी काजू उत्पादक क्षेत्रों में काजू क्षेत्र के हितधारकों के साथ जुड़ने का एक ऐसा मंच था और एपीडा विश्व काजू व्यापार में अपनी स्थिति फिर से हासिल करने के लिए इस तरह की पहल में तेजी लाएगा.

भविष्य में एपीडा काजू उद्योग के आटोमेशन में हस्तक्षेप कर सकता है. पेशेवरों का प्रशिक्षण, काजू प्रोसैसिंग इकाइयों का रजिस्ट्रेशन और मूंगफली की तरह काजू के लिए भी एक ट्रेसेबिलिटी प्रणाली तैयार की जाएगी. एपीडा हितधारकों तक काजू से संबंधित जानकारी प्रसारित करेगा. एपीडा लगातार नवोन्मेषी तरीकों की खोज करने, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने और व्यापार संबंधों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय काजू उत्पाद दुनिया के हर कोने तक पहुंच सके.

देश में विदेशी कृषि विशेषज्ञों का जमावड़ा

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में 4 से 6 दिसंबर को ‘खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, स्थिरता व स्वास्थ्य (न्यूट्री-2023)’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा, जिस में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, कजाकिस्तान, जापान, मिस्र, फ्रांस, जरमनी, ट्यूनिशिया, ब्राजील, मोरक्को सहित 15 देशों के 900 वैज्ञानिक व शोधार्थी भाग लेंगे.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर. काम्बोज ने बताया कि इस तीनदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल वैज्ञानिकों व शोधार्थियों द्वारा वैश्विक पोषण सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए बाजरा, फसल सुधार के लिए पारंपरकि प्रजनन, जैव प्रौद्योगिकी, जैव सूचना विज्ञान, आनुवंशिक इंजीनियरिंग, फेनोमिक्स, जीनोमिक्स, प्रोटिओमिक्स, कृषि अनुसंधान में मौडलिंग, सिमुलेशन, फसल कटाई के बाद प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन, कृषि प्रौद्योगिकी स्थानांतरण, प्रभाव मूल्यांकन, किसान सशक्तीकरण, खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए उद्योग संपर्क आदि विषयों पर चर्चा की जाएगी.

इस के अलावा खेती से जुड़े कारोबार, कृषि अर्थव्यवसाय के लिए कृषि में महत्वपूर्ण जीवजंतु, जलकृमि, पशुधन, फसल उत्पादन, सूक्ष्म जीवों में जैविकअजैविक तनाव प्रबंधन के लिए रणनीतियां, स्मार्ट कृषि के लिए मशीनीकरण, गैरपारंपरिक ऊर्जा संसाधन व डिजिटलीकरण, जलवायु परिवर्तन, टिकाऊपन के लिए संरक्षण कृषि, संसाधन प्रबंधन, एकीकृत खेती, खाद्य सुरक्षा में कृषि शिक्षा की भूमिका व स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक एवं जैविक खेती विषयों पर चर्चा कर के समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा.

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने बताया कि इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, निजी उद्योगों समेत विदेशी कृषि संस्थाओं से 1125 वैज्ञानिकों व शोधार्थियों ने आवेदन किया था. उन में से 900 का चयन हुआ है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि सम्मेलन में तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जाएगा, जिस से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने वाले वैज्ञानिकों व शोधार्थियों को एक ऐसा मंच मिलेगा, जिस से कि कृषि की चुनौतियों का सामना करने के लिए देशविदेश के वैज्ञानिकों, किसानों, उद्योगपतियों और शोधार्थियों को एकसाथ आने का मौका मिलेगा. उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आए देश के वैज्ञानिक व शोधार्थी अपनेअपने विषयों पर व्याख्यान व प्रस्तुति देंगे.

पशुपालन आंकड़े हुए जारी

गुवाहाटी: केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने पिछले दिनों गुवाहाटी में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में पशु एकीकृत नमूना सर्वे (मार्च, 2022-फरवरी, 2023) पर आधारित बुनियादी पशुपालन आंकड़े 2023 (दूध, अंडा, मांस और ऊन उत्पादन 2022-23) जारी किए. बुनियादी पशुपालन आंकड़ों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

दूध, अंडा, मांस एवं ऊन उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बताया कि देश में दूध, अंडा, मांस और ऊन के उत्पादन का अनुमान वार्षिक एकीकृत नमूना सर्वे (आईएसएस) के परिणामों के आधार पर लगाया जाता है, जो देशभर में 3 मौसमों यानी गरमी (मार्चजून), बरसात (जुलाईअक्तूबर) और सर्दी (नवंबरफरवरी) में आयोजित किया जाता है. वर्ष 2022-23 के लिए दूध, अंडा, मांस और ऊन के उत्पादन का अनुमान सामने लाया गया है और इस सर्वे के परिणामों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है.

दूध उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बताया कि वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल दूध उत्पादन 230.58 मिलियन टन अनुमानित है, जिस में पिछले 5 वर्षों में 22.81 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जो वर्ष 2018-19 में 187.75 मिलियन टन थी. इस के अलावा वर्ष 2021-22 के अनुमान से वर्ष 2022-23 के दौरान उत्पादन 3.83 फीसदी बढ़ गया है. पूर्व में, वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 6.47 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 5.69 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 5.81 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 5.77 फीसदी थी.

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि वर्ष 2022-23 के दौरान सब से अधिक दुग्ध उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश था, जिस की कुल दुग्ध उत्पादन में हिस्सेदारी 15.72 फीसदी थी. इस के बाद राजस्थान (14.44 फीसदी), मध्य प्रदेश (8.73 फीसदी), गुजरात (7.49 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (6.70 फीसदी) का स्थान था. वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) के संदर्भ में, पिछले वर्ष की तुलना में सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर कर्नाटक (8.76 फीसदी) में दर्ज किया गया, इस के बाद पश्चिम बंगाल (8.65 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (6.99 फीसदी) का स्थान रहा.

अंडा उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि देश में कुल अंडा उत्पादन 138.38 बिलियन होने का अनुमान है. वर्ष 2018-19 के दौरान 103.80 बिलियन अंडों के उत्पादन के अनुमान की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान पिछले 5 वर्षों में 33.31 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. इस के अलावा, वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान उत्पादन में 6.77 फीसदी की वार्षिक वृद्धि हुई है. पूर्व में वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 9.02 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 10.19 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 6.70 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 6.19 फीसदी थी.

उन्होंने बताया कि देश के कुल अंडा उत्पादन में प्रमुख योगदान आंध्र प्रदेश का रहा है, जिस की हिस्सेदारी कुल अंडा उत्पादन में 20.13 फीसदी है. इस के बाद तमिलनाडु (15.58 फीसदी), तेलंगाना (12.77 फीसदी), पश्चिम बंगाल (9.94 फीसदी) और कर्नाटक (6.51 फीसदी) का स्थान है. वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) के संदर्भ में, सब से अधिक वृद्धि दर पश्चिम बंगाल में (20.10 फीसदी) दर्ज की गई और उस के बाद सिक्किम (18.93 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (12.80 फीसदी) का स्थान रहा.

मांस उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल मांस उत्पादन 9.77 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिस में वर्ष 2018-19 में 8.11 मिलियन टन के अनुमान की तुलना में पिछले 5 वर्षों में 20.39 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 में 5.13 फीसदी की वृद्धि हुई. इस से पहले वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 5.99 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 5.98 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 2.30 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 5.62 फीसदी थी.

उन्होंने आगे कहा कि कुल मांस उत्पादन में प्रमुख योगदान 12.20 फीसदी हिस्सेदारी के साथ उत्तर प्रदेश का है और इस के बाद पश्चिम बंगाल (11.93 फीसदी), महाराष्ट्र (11.50 फीसदी), आंध्र प्रदेश (11.20 फीसदी) और तेलंगाना (11.06 फीसदी) का स्थान है. वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में, उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) सिक्किम में (63.08 फीसदी) दर्ज की गई है, इस के बाद मेघालय (38.34 फीसदी) और गोवा (22.98 फीसदी) का स्थान है.

ऊन उत्पादन

मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बताया कि वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल ऊन उत्पादन 33.61 मिलियन किलोग्राम अनुमानित है, जिस में वर्ष 2018-19 के दौरान 40.42 मिलियन किलोग्राम के अनुमान की तुलना में पिछले 5 वर्षों में 16.84 फीसदी की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि वर्ष 2021-22 की तुलना में 2022-23 में उत्पादन 2.12 फीसदी बढ़ गया है. इस से पूर्व में वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर -2.51 फीसदी, वर्ष 2019-20 में -9.05 फीसदी, वर्ष 2020-21 में -0.46 फीसदी और वर्ष 2021-22 में -10.87 फीसदी थी.

उन्होंने बताया कि कुल ऊन उत्पादन में 47.98 फीसदी हिस्सेदारी के साथ राजस्थान का प्रमुख योगदान है, इस के बाद जम्मूकश्मीर (22.55 फीसदी), गुजरात (6.01 फीसदी), महाराष्ट्र (4.73 फीसदी) और हिमाचल प्रदेश (4.27 फीसदी) का स्थान है. वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर अरुणाचल प्रदेश (35.75 फीसदी) में दर्ज किया गया है, इस के बाद राजस्थान (6.06 फीसदी) और झारखंड (2.36 फीसदी) का स्थान है.

विदेश में ट्रेनिंग करेंगे छात्र

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के 10 विद्यार्थियों का पौलेंड के वारसा विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण के लिए चयन हुआ है. ये विद्यार्थी उपरोक्त विश्वविद्यालय में कृषि, गृह विज्ञान और मत्स्य विज्ञान के क्षेत्रों में नवीन प्रौद्योगिकियों, नवाचारों आदि बारे व्यावहारिक जानकारी प्राप्त करेंगे.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीार काम्बोज ने पौलेंड में प्रशिक्षण के लिए चयनित विद्यार्थियों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय में शिक्षा व शोध में अपनाए जा रहे उच्च मानकों का परिणाम है. अब तक इस विश्वविद्यालय के अनेक विद्यार्थी उच्च शिक्षा व प्रशिक्षणों के लिए विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में जा चुके हैं.

कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि विद्यार्थियों का चयन राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी-आईडीपी) के तहत अंतर्राष्ट्रीय संगठन में छात्र विकास कार्यक्रम की प्रक्रिया के अंतर्गत परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर हुआ है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से प्रशिक्षण अवधि के दौरान वीजा, आनेजाने का किराया, मैडिकल इंश्योरेंस आदि के लिए भत्ता दिया जाएगा. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि इन चयनित विद्यार्थियों में कृषि महाविद्यालय, हिसार के तृतीय वर्ष के छात्र सुशांत नागपाल, चतुर्थ वर्ष की छात्रा निधि व विशाल, कृषि महाविद्यालय, बावल से मुनीश व नैनसी, कृषि महाविद्यालय कौल से हरितिमा व अंजू, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय से ममता व मुस्कान और मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय से अमित शामिल हैं.

इस अवसर पर चयनित विद्यार्थियों ने कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज के मार्गदर्शन में चलाई जा रही आईडीपी परियोजना के प्रमुख अन्वेषक व स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा व अंतर्राष्ट्रीय मामलों के संयोजक डा. अनुज राणा का आभार जताया.

इस अवसर पर मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय की निदेशक डा. मंजु मेहता, अंतर्राष्ट्रीय सेल की प्रभारी डा. आशा कवात्रा व मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य उपस्थित रहे.