समुद्री नौकाओं को आधुनिक बनाने के लिए अनुदान

अहमदाबाद: भारत के मत्स्यपालन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए एक महत्वपूर्ण कदम में, मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन ने पिछले दिनों नीली क्रांति और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के माध्यम से पारंपरिक मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की तरफ परिवर्तन में समर्थन देने के लिए केंद्र सरकार की अटूट प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

उन्होंने गुजरात साइंस सिटी, अहमदाबाद में आयोजित ग्लोबल फिशरीज कौंफ्रैंस इंडिया 2023 में ‘गहरे समुद्र में मछली पकड़ना: प्रौद्योगिकी, संसाधन और अर्थशास्त्र‘ विषय पर एक तकनीकी सत्र में यह बात कही.

डा. एल. मुरुगन ने कहा कि सरकार पारंपरिक मछुआरों को अपने जहाजों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली नौकाओं में बदलने के लिए 60 फीसदी तक वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है. इस के अतिरिक्त इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए ऋण सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.

उन्होंने टूना जैसे गहरे समुद्र के संसाधनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने के लिए अंतर्निर्मित प्रसंस्करण सुविधाओं से लैस आधुनिक मछली पकड़ने वाले जहाजों की आवश्यकता पर जोर दिया. यह स्वीकारते हुए कि पारंपरिक मछुआरों में वर्तमान में इन क्षमताओं की कमी है. सरकार इस अंतर को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है.

डा. एल. मुरुगन ने आगे कहा कि टूना मछलियों की दुनियाभर में काफी मांग है और भारत में अपनी टूना मछली पकड़ने की क्षमता बढ़ाने की शक्ति है. उन्होंने अधिक स्टार्टअप को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के क्षेत्र में प्रवेश करने व ईंधन की लागत को कम करने और मछली पकड़ने वाली नौकाओं में हरित ईंधन के उपयोग की खोज पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अनुसंधान का आह्वान किया. गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की क्षमता का स्थायी तरीके से प्रभावी ढंग से उपयोग कर मछली पकड़ने वाले जहाजों को उन्नत करने के लिए अनुसंधान और डिजाइन की आवश्यकता है.

गहरे समुद्र के संसाधनों के उच्च मूल्य पर प्रकाश डालते हुए भारत सरकार के मत्स्यपालन के उपायुक्त डा. संजय पांडे ने कहा कि हिंद महासागर येलोफिन टूना का अंतिम मूल्य 4 बिलियन अमेरिकी डौलर से अधिक है.

विश्व बैंक के सलाहकार डा. आर्थर नीलैंड ने कहा कि भारत के ईईजेड में 1,79,000 टन की अनुमानित फसल के साथ येलोफिन और स्किपजैक टूना की आशाजनक क्षमता के बावजूद वास्तविक फसल केवल 25,259 टन है, जो केवल 12 फीसदी की उपयोग दर का संकेत देती है.

उन्होंने गहरे समुद्र में मछली पकड़ने में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया, जिस से आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ हो सके.

डा. आर्थर नीलैंड ने आगे कहा, ‘‘विशेषज्ञ मत्स्यपालन विज्ञान और प्रबंधन, मछली प्रोसैसिंग और बुनियादी ढांचे के साथ भारत के मजबूत संस्थागत आधार का उपयोग गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की विकास योजनाओं के लिए भी फायदेमंद होगा.‘‘

Fishermanउन्होंने जानकारी देते हुए आगे कहा कि हितधारकों की भागीदारी और निवेश, प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता एवं क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक माहौल बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

इस विषय पर आयोजित एक पैनल चर्चा में प्रस्ताव दिया गया कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के विकास के लिए एक व्यवस्थित ढांचा विकसित करने के लिए सभी हितधारकों की चिंताओं को संबोधित करने वाले सामूहिक और समावेशी प्रयास आवश्यक हैं. गहरे समुद्र के सलाहकार, एनआईओटी, चेन्नई, डा. मानेल जखारियाय, वैज्ञानिक-जीएमओईएस, डा. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव, आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक, डा. पी. शिनोजय और सीएमएलआरई के वैज्ञानिक डी, डा. हाशिम पैनलिस्ट थे.

गहरे समुद्र में मछली पकड़ने का काम प्रादेशिक जल की सीमा से परे किया जाता है, जो तट से 12 समुद्री मील की दूरी पर है, और तट से 200 समुद्री मील के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर है.

जलीय कृषि में नवाचारों के लिए ब्लू फाइनेंस को बढ़ाने का आह्वान

जलवायु परिवर्तन और खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की बढ़ती मांग से उत्पन्न गंभीर खतरों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी साइमन फ्यूंजस्मिथ ने जलकृषि क्षेत्र में नवाचारों और विकास के लिए ब्लू फाइनेंस बढ़ाने का आह्वान किया.

उन के अनुसार, वैश्विक जलीय कृषि साल 2030 तक मानव उपभोग के लिए 59 फीसदी मछली प्रदान करेगी. साइमन फ्यूंजस्मिथ ने कहा कि एशिया 82 मिलियन टन के साथ वैश्विक जलीय कृषि उत्पादन का 89 फीसदी प्रदान करता है. एशिया में अधिकतर छोटे पैमाने के उद्यम कुल उत्पादन में 80 फीसदी से ज्यादा का योगदान दे रहे हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र में 20.5 मिलियन लोगों के लिए नौकरियां पैदा करता है. स्थायी मत्स्यपालन और जलीय कृषि को बढ़ावा देने का उल्लेख करते हुए उन्होंने छोटे पैमाने पर मत्स्यपालन और जल किसानों द्वारा स्थायी प्रथाओं का समर्थन करने का सुझाव दिया.

भेड़बकरी एवं खरगोशपालन पर प्रशिक्षण

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में एग्री बिजनैस इनक्यूबेटर सैंटर एवं केड फाउंडेशन, उदयपुर के तत्वावधान में 10 राज्यों, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली के 45 किसानो (3 महिला एवं 42 पुरुष) का 5वें बैच को व्यावसायिक भेड़बकरी एवं खरगोशपालन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम 16 से 22 नवंबर, 2023 तक केड फाउंडेशन द्वारा पांचदिवसीय प्रशिक्षण उदयपुर में और दोदिवसीय प्रशिक्षण अविकानगर में आयोजित किया गया.

संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने सभी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि इस प्रशिक्षण का उद्देश्य आप के भेड़बकरीपालन की जानकारी से पहले से उपलब्ध जानकारी में कुछ नई जानकारी देनी है.

Sheep-Goat Husbandryवर्तमान समय में वैज्ञानिक तरीके से भेड़बकरीपालन व्यवसाय करते हुए आजीविका में बढ़ोतरी की जा सकती है. बढ़ते शहरीकरण के कारण खेती और पशुपालन उद्यमिता का रूप लेता जा रहा है, क्योकि शहरी लोगों की भोजन की हर आवश्यकता आप के द्वारा ही की जा सकती है.

इसलिए आप अपने भेड़बकरीपालन व्यवसाय को पशुपालन उद्यमिता के रूप में विकसित कर के भारत सरकार की मंशा आत्मनिर्भर भारत में अपने परिवार को माली रूप से सशक्त बना कर और लोगों को भी रोजगार दे कर कर सकते हैं.

निदेशक द्वारा किसान के हर तरह के भेड़बकरीपालन के सवाल का जवाब देते हुए भविष्य में भी संस्थान का पूरा सहयोग का आश्वासन दिया गया. अंत में सभी प्रशिक्षण लेने वाले प्रगतिशील किसानों को प्रमाणपत्र दिया गया.

Sheep-Goat Husbandryअविकानगर में प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डा. विनोद कदम, सहसमन्वयक डा. अजित सिंह महला व डा. अरविंद सोनी द्वारा किया गया. पशु पोषण विभाग के विभागाध्यक्ष डा. रणधीर सिंह भट्ट, केड फाउंडेशन, उदयपुर के निदेशक मुकेश सुथार, डा. अमर सिंह मीना, फिजियोलौजी एवं जैव रसायन विभाग के प्रभारी डा. सत्यवीर सिंह डांगी, डा. दुश्यंत कुमार शर्मा, नरेश बिश्नोई, अविकानगर संस्थान के मीडिया प्रभारी व वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. अमर सिंह मीना आदि द्वारा भी प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरा सहयोग दिया गया.

कमाल का है रैबिट हर्बल हेयर औयल

अविकानगर (राजस्थान): दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं  तेलंगाना आदि में खरगोशपालन एक अच्छा रोजगार बन चुका है. इस के बढ़ते चाव को देखते हुए निदेशक, अविकानगर संस्थान डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा सैंटर के आसपास के रैबिट इकाई का भ्रमण किया गया.

प्रगतिशील खरगोशपालक किसान एम. शर्मीला और करनाप्रकाश व मिसेस करनाप्रकाश जिला पोलाची द्वारा निदेशक एवं टीम को अवगत कराया कि रैबिट ब्लड मिक्स्ड हर्बल हेयर औयल, जिसे खरगोश के खून को मिला कर तैयार किया गया है, यह तेल सिर के बालों के लिए बहुत पसंद किया जा रहा है.

Rabbit Blood Oilरैबिट ब्लड मिक्स्ड हर्बल हेयर औयल के कई फायदों के बारे में किसानों ने बताया कि यह सिर के बालों के लिए बहुत फायदेमंद है. जैसे बालों की ग्रोथ न होना, बालों को काला करना व मजबूती देना और बालों के टूटने की समस्या को दूर करता है. इस तेल की पड़ोसी देशों मे भी खासी मांग है खासकर श्रीलंका, मलयेशिया, सिंगापुर आदि देशों में इस तेल की सप्लाई है.

तमिलनाडु राज्य के संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. एएस राजेंद्रयन, जो कि लंबे समय तक दक्षिण सैंटर पर काम कर चुके हैं ने बताया कि रैबिट ब्लड मिक्स्ड हर्बल हेयर औयल मानव में सिर के बालों का रूसी कम करने, बालों का झड़ना कम करना, बालों के सफेद होने को रोकना, सिर के बालों की थिकनैस, लंबाई और ग्रोथ को बढ़ाता है. साथ ही, समय से पहले सिर के बालों के काला रंग को कमजोर होने की दर को रोकता है.

उन्होंने यह भी बताया कि यह औयल कंप्यूटर और डिजिटल स्क्रीन पर लंबे समय तक काम करने के चलते होनी वाली  आखों की तिलमिलापन को रोकने और कम करने में मदद करता है.

Rabbit Blood Oilइन्हीं खूबियों की वजह से खरगोशपालक द्वारा 100 एमएल रैबिट ब्लड मिक्स्ड हर्बल हेयर की कीमत कम से कम 200 से 300 रुपए तक बेची जा रही है. इस के चलते दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के खरगोशपालक इस औयल के निर्माण से खरगोश के मांस से भी ज्यादा कमाते हैं. जो लोग रैबिट मीट खाने में हिचकिचाते हैं, वे उस के औयल को आसानी से बिना कोई दिक्कत के उपयोग कर रहे हैं.

डा. राजेंद्रयन ने बताया कि अभी इस के उपभोक्ता ही इस का प्रचारप्रसार अपने अनुभव और फायदे के आधार पर कर रहे हैं, जिस के करना तमिलनाडु में कई किसान 1,000 से 2,000 तक रैबिट इकाई संचालित कर रहे हैं. इस का वास्तविक वैज्ञानिक कारण अभी तक पता नहीं, जो भविष्य का अनुसंधान का विषय है, जबकि माना यह जाता है कि रैबिट ब्लड में सल्फरयुक्त अमीनो एसिड और बायोटिन विटामिन की बहुतायत रहती है. इन सब के अलावा भी बहुत से अमीनो एसिड और उन के विभिन्न  अवयव की मात्रा भी मिलती है.

उत्तरप्रदेश में हाईटैक नर्सरी बढ़ाएगी किसानों की आमदनी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में किसानों को विभिन्न प्रजातियों के उच्च क्वालिटी के पौधे उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इजराइली तकनीक पर आधारित हाईटैक नर्सरी तैयार की जा रही है. यह काम मनरेगा अभिसरण के तहत उद्यान विभाग के सहयोग से कराया जा रहा है और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों की दीदियां भी इस में हाथ बंटा रही हैं. इस से स्वयं सहायता समूहों को काम मिल रहा है.

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बताया कि इस योजना के क्रियान्वयन से कृषि और औद्यानिक फसलों को नई ऊंचाई मिलेगी. विशेष तकनीक का प्रयोग कर के ये नर्सरी तैयार की जा रही हैं. सरकार की मंशा है कि प्रदेश का हर किसान समृद्ध बने और बदलते समय के साथ किसान हाईटैक भी बने.

उन्होंने आगे बताया कि सरकार पौधरोपण को बढ़ावा देने के साथ ही बागबानी से जुड़े किसानों को भी माली रूप से मजबूत बनाने का काम कर रही है. मनरेगा योजना से 150 हाईटैक नर्सरी बनाने के लक्ष्य के साथ तेजी से काम किया जा रहा है.

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के निर्देश व पहल पर ग्राम्य विकास विभाग ने इस को ले कर प्रस्ताव तैयार किया था, जिस को ले कर जमीनी स्तर पर युद्धस्तर पर काम हो रहा है. हाईटैक नर्सरी से किसानों की माली हालत भी मजबूत हो रही है.

प्रदेशभर में 150 हाईटैक नर्सरी बनाने का लक्ष्य रखा गया है. बुलंदशहर के दानापुर और जाहिदपुर में हाईटैक नर्सरी बन कर तैयार भी हो चुकी है. 32 जिलों की 40 साइटों पर ऐसी नर्सरी बनाने का काम किया जा रहा है.

कन्नौज के उमर्दा में स्थित सैंटर औफ एक्सीलेंस फौर वेजिटेबल की तर्ज पर प्रदेश के सभी जनपदों में 2-2 मिनी सैंटर स्थापित करने की कार्यवाही जारी है. किसानों को उन्नत किस्म के पौध के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.

समूह के सदस्यों को रोजगार

नर्सरी की देखरेख करने के लिए स्वयं सहायता समूह को जिम्मेदारी दी गई है. समूह के सदस्य नर्सरी का काम देखते हैं, जो पौधों की सिंचाई, रोग, खादबीज आदि का जिम्मा संभालते हैं. इस के लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है.

किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए सरकार उच्च क्वालिटी व उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी को बढ़ावा देने के लिए तेजी से काम कर रही है. प्रत्येक जनपद में पौधशालाएं बनाने का काम किया जा रहा है. इन में किसानों को फूल और फल के साथ सर्पगंधा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा जैसे औषधीय पौधों को रोपने के लिए जागरूक किया जा रहा है. किसानों को कम लागत से अधिक फायदा दिलाने के लिए पौधरोपण की नई तकनीक से जोड़ा जा रहा है.

अब तक 7 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बताया कि हाईटैक नर्सरी के निर्माण में अब तक 7 करोड़ से ज्यादा की धनराशि खर्च की जा चुकी है. बुलंदशहर में 2, बरेली, बागपत, मुजफ्फरनगर, मेरठ, महोबा, बहराइच, वाराणसी, बलरामपुर समेत 9 जनपदों में हाईटैक नर्सरी की स्थापना के लिए अब तक 7 करोड़ रुपए की धनराशि का भुगतान किया जा चुका है.

ग्राम्य विकास आयुक्त जीएस प्रियदर्शी ने बताया कि प्रदेश में 150 हाईटैक नर्सरी के निर्माण की कार्यवाही मनरेगा कन्वर्जेंस के अंतर्गत की जा रही है, जिस के सापेक्ष 125 हाईटैक नर्सरी की स्वीकृति जनपद स्तर पर की जा चुकी है.

रसायनों का संतुलित प्रयोग कृषि में लाभकारी

हिसार: वर्तमान समय में कृषि में उपयोग किए जा रहे फफूंदनाशकों और कीटनाशकों के प्रति कीटों और खरपतवारों में प्रतिरोधकता का विकास कृषि उत्पादों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है. इस स्थिति से निबटने के लिए नई जैव रासायनिक क्रिया को प्रदर्शित करने वाले नए उत्पादों के विकास की अत्यधिक आवश्यकता है.

यह विचार चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने व्यक्त किए. वे नोबल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी महिला वैज्ञानिक मैरी क्यूरी की याद में विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग व कैंपस स्कूल के सयुक्ंत तत्वावधान में आयोजित रसायन पखवाड़ा के अंतिम दिन ‘किसानों के लिए रसायन विज्ञान’ कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे.

कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने कहा कि लगभग आधी सदी से जैविक रसायन का उपयोग कृषि में खाद्य उत्पादन को बढ़ाने और फसल सुरक्षा के लिए हो रहा है. इन रसायनों का संतुलित प्रयोग कृषि में स्थिरता के लिए जरूरी है.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि में कई ज्वलंत मुद्दे हैं, जिन का समाधान रसायन विज्ञान में नवाचार कर के किया जा सकता है.

इन मुद्दों में से एक कृषि में जहरीला धातु संदूषण है. आर्सेनिक, कैडमियम, सीसा और पारा जैसी धातुओं के उच्च स्तर के संपर्क में आने से मनुष्य में गंभीर सेहत संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं, जबकि दूसरी ओर लोहा, बोरान और तांबा पौधों के विकास के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व हैं. इसलिए ऐसी धातुओं का पता लगाने के लिए उन्नत विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान तकनीकों का उपयोग कर के समयसमय पर किसानों के खेतों से ऐसी जानकारी एकत्र करने की आवश्यकता है.

Fertilizersकुलपति बीआर काम्बोज ने रसायन वैज्ञानिकों से यह भी कहा कि उन के अनुसंधान किसानों के कल्याण के लिए केंद्रित होने चाहिए. जैसे, कम साइटोटौक्सिसिटी वाले नए रोगाणुरोधी और नेमाटीसाइडल का विकास, कृषि रसायन व्यवहार और खतरों की पहचान, कृषि अपशिष्ट के उपयोग के लिए प्रक्रियाओं का विकास, हरित रसायन अनुसंधान और नैनोकण विकास आदि.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि यह प्रशंसा की बात है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा इन विषयों को अपने अनुसंधान कार्यक्रमों में प्राथमिकता दी गई है.

हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद के सदस्य प्रो. ओम प्रकाश अरोड़ा ने इस कार्यक्रम के विषय को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हरित क्रांति से पहले भारत को अमेरिका से अनाज मंगाना पड़ता था, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों के योगदान से अब हम दूसरे देशों को भी अनाज भेज रहे हैं. उस समय पैदावार बढ़ाने के लिए रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता था, जो कि समय की जरूरत थी. लेकिन अब हम जैविक व प्राकृतिक खेती को अपना कर गुणवत्ता से परिपूर्ण अनाज की पैदावार की तरफ भी ध्यान दे रहे हैं.

उन्होंने कहा कि रसायन विज्ञान का फसलों की उपज बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है. बच्चों को किताबी जानकारी के साथसाथ व्याहवारिक जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने प्रेरित किया. उन्होंने हमारे देश के महापुरुषों पर भी प्रकाश डाला.

इस से पूर्व मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के कैंपस स्कूल के सहयोग से आयोजित किए गए रसायन विज्ञान पखवाड़ा के दौरान भाषण प्रतियोगिता, प्रश्नोत्तरी और वर्किंग मौडल प्रदर्शनी जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिन में स्कूलों और कालेज के विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया.

कार्यक्रम को रसायन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. रजनीकांत शर्मा ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम के अंत में कैंपस स्कूल की निदेशक संतोष कुमारी ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. मंच का संचालन पीएचडी छात्रा सुचेता छाबड़ा ने किया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, विद्यार्थी व कर्मचारी मौजूद रहे.

ये रहे प्रतियोगिताओं के नतीजे

इस कार्यक्रम के तहत आयोजित की गई प्रतियोगिताओं के नतीजे इस प्रकार रहे: भाषण प्रतियोगिता: प्रथम पुरस्कार रिद्धी ने प्राप्त किया, जबकि द्वितीय पुरस्कार रितु और तृतीय पुरस्कार हिमांशी ने जीता. एप्रिसिएशन पुरस्कार प्रिया व अलांशा को मिला. इंटर कालेज प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में गवर्नमेंट पीजी कालेज, हिसार की रेणुका भारद्वाज, मुस्कान व पंकज प्रथम, जबकि इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की गुंजन, रेणु व प्रतिभा को द्वितीय पुरस्कार मिला, वहीं हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय से नमन, अर्पित कंबोज व प्रिया यादव तीसरे स्थान पर रहे.

इंटर कालेज वर्किंग मौडल प्रदर्शनी में कृषि महाविद्यालय के अंकित गावड़ी व कल्पना यादव प्रथम, ओडीएम महिला कालेज, मुकलान की मुस्कान व दीप्ति द्वितीय और मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय की खुशबू व पुजा देवी तृतीय स्थान पर रहीं.

अंतरविद्यालय प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में सेंट एंथोनी स्कूल के लक्ष्य, देव मलिक व दिव्यांशी प्रथम, सिद्धार्थ इंटरनेशनल स्कूल के रचित मेहरा, राघव व कनिष्का द्वितीय और दि आर्यन स्कूल के प्रणव, अर्नव गांधी व सात्विकी रेहपड़े तृतीय स्थान पर रहे.

इंटर स्कूल वर्किंग मौडल प्रदर्शनी में: ओपी जिंदल मौडर्न स्कूल के नमन व गुन्मय को ‘प्रकृति से भविष्य तक’ विषय पर प्रथम पुरस्कार मिला, वहीं दि आर्यन स्कूल के आदित्य व दीपिका को ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ विषय पर द्वितीय, जबकि डीएवी पुलिस पब्लिक स्कूल, हिसार की इशिका व अनु को तृतीय पुरस्कार मिला.

इसी प्रकार दि श्रीराम यूनिवर्सल स्कूल की समृद्धि व अनिंदया, सेंट मैरी स्कूल, हिसार की मनु सुनंदन व नंदिता और दिल्ली पब्लिक स्कूल, हिसार के अभय व शिवम को एप्रिसिएशन पुरस्कार मिला.

खेती में रासायनिक उर्वरकों का अधिक इस्तेमाल: सेहत व मिट्टी से खिलवाड़

चंडीगढ़: हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के महानिदेशक डा. नरहरि बांगड़ ने कहा कि किसान फसलों में आने वाली किसी भी प्रकार की बीमारी की रोकथाम के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह ले कर ही दवा का छिडकाव करें.

फसलों को बीमारियों से बचाव के लिए कृषि विभाग द्वारा भरसक प्रयास किए जा रहे हैं. फसलों को गुलाबी सुंडी या अन्य किसी प्रकार की बीमारी से बचाव के लिए किसानों को जागरूक होना जरूरी है.

उन्होंने किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन करने व सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए कहा. उन्होंने किसानों से सीधा संवाद भी किया और किसानों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दिए.

Krishi Rasayanमहानिदेशक डा. नरहरि बांगड़ पिछले दिनों भिवानी में फसल अवशेष प्रबंधन और कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से बचाव को ले कर आयोजित किसान संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने किसानों से कहा कि वे मिट्टी की उर्वराशक्ति को बनाए रखने के लिए फसल अवशषों को खेत की मिट्टी में ही मिलाएं, इस के लिए विभाग द्वारा अनुदान पर कृषि यंत्र दिए जाते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि फसल अवशेषों में अनेक प्रकार के पोषक तत्व होते हैं, जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं. उन्होंने किसानों से यह भी कहा कि वे किसी भी कीमत पर फसल अवशेष न जलाएं, इस से मित्र कीट जलने के साथसाथ पर्यावरण भी प्रदूषत होता है. भूमि की उर्वराशक्ति कम होती है.

उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि खेती में रासायनिक उर्वकों का अंधाधुंध प्रयोग न करें. रासायनिक उर्वकों के अधिक प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होने लगती है, जिस से खेती की जमीन में बांझपन आ जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि किसानों से प्राकृतिक व और्गैनिक खेती अपनाने को कहा. इस से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और सेहत भी सही रहेगी.

डा. नरहरि बांगड़ ने कहा कि कपास की फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप सामने आ रहा है, ऐसे में यदि कपास के फूल, टिंडा पर गुलाबी सुंडी दिखाई दे, तो उस को तुरंत प्रभाव से नष्ट करें, ताकि वह अधिक न फैले.

उन्होंने किसानों को परंपरागत खेती के बजाय आधुनिक खेती में फल, फूल, सब्जी उत्पादन व बागबानी पर जोर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए बीज से ले कर बाजार तक रास्ता सुगम किया है.

सीआरपीएफ के मेन्यू में अब मिलेट्स

रांची : बेहतर स्वास्थ्य, पोषण और ऊर्जा के लिए अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के झारखंड सैक्टर के जवानों और अधिकारियों के भोजन मेन्यू में स्माल मिलेट्स यानी श्रीअन्न भी शामिल किए जाएंगे. स्माल मिलेट्स में आयरन, सूक्ष्म पोषक तत्वों, प्रोटीन और फाइबर की मात्रा गेहूंचावल की तुलना में अधिक रहती है. इसी उद्देश्य से सीआरपीएफ के 10 जवानों के एक दल ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सामुदायिक विज्ञान विभाग में स्माल मिलेट्स के गुणों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस से बनने वाले विभिन्न प्रोसैस्ड पदार्थों की निर्माण प्रक्रिया की विधिवत जानकारी प्राप्त करने के लिए तीन दिनों का प्रशिक्षण प्राप्त किया.

सामुदायिक विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डा. रेखा सिन्हा और एसआरएफ बिंदु शर्मा ने उन्हें मिलेट्स से तैयार होने वाले विभिन्न उत्पाद जैसे चावल, रोटी, दलिया, खिचड़ी, हलवा, बिसकुट, कुकीज, केक, लड्डू, सेवई, चाऊमीन, मैक्रोनी आदि बनाने की तकनीकी जानकारी दी और विभिन्न मशीनों की कार्यप्रणाली, क्षमता और अनुमानित कीमत के बारे में बताया.

पार्टी कमांडर शिव नारायण किस्कू के नेतृत्व में सीआरपीएफ प्रशिक्षणार्थियों का एक दल आया था.
संयुक्त राष्ट्र के निर्णयानुसार वर्ष 2023 को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. श्रीअन्न में मड़ुआ, गुंदली, बाजरा, कंगनी, सावां, कोदो, कुटकी, चेना, हरी कंगनी आदि शामिल हैं.

विभागाध्यक्ष डा. रेखा सिंह ने बताया कि सीआरपीएफ के आईजी ने कुछ दिन पहले विभाग का भ्रमण किया था और यहां से मड़ुवा कुकीज खरीद कर ले गए थे. इस के स्वाद और गुणों से प्रभावित हो कर उन्होंने अपने दल को प्रशिक्षण के लिए भेजा और कहा कि आवश्यकता के अनुसार वहां मिलेट्स के प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्माण के लिए छोटेछोटे प्लांट भी लगाए जाएंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अभी कई मिलेट्स बाजार में महंगे मिल रहे हैं, किंतु जैसेजैसे मांग बढ़ेगी, किसान दूसरी फसलें छोड़ कर उन के उत्पादन में लगेंगे और उत्पादकता बढ़ने से आने वाले समय में इन की कीमतों में स्वत: कमी आएगी.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में कैंसर जागरूकता कार्यशाला

रांची : भारत में कैंसर से प्रतिदिन 1,300 लोगों की मृत्यु होती है, इसलिए इस बीमारी से बचाव के लिए और हो जाने पर इस के सामयिक और प्रभावी इलाज के लिए समुचित कदम उठाना आवश्यक है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर द्वारा एकत्रित आकंड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2022 में 14.61 लाख लोगों में कैंसर के मामले सामने आए, जिन में लगभग एकतिहाई लोगों की मौत हो गई.

परिषद के अनुसार, प्रत्येक 9 में से एक व्यक्ति को जीवन के किसी चरण में कैंसर होता ही है, इसलिए इस के कारणों के प्रति सतत सचेत रहना जरूरी है.

कांके स्थित टाटा ट्रस्ट द्वारा पोषित रांची कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के चिकित्सा निदेशक डा. (कर्नल) मदन मोहन पांडेय ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में जागरूकता व्याख्यान देते हुए उक्त बातें कहीं.

उन्होंने आगे कहा कि बीमारी का देर से पता लगना, विशेषज्ञता वाले बड़े अस्पतालों का महानगरों में केंद्रित रहना, विशेषज्ञ डाक्टरों, नर्सों एवं ढांचागत सुविधाओं की कमी, महंगा इलाज, तंबाकू, शराब का उपयोग, भोजन में रेशे की कमी, मोटापा, गतिहीन जीवनशैली, रसायन उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण आदि इस के प्रमुख कारण हैं. जिन लोगों में कैंसर की पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है, यानी मातापिता, दादादादी या भाईबहन में से कोई कैंसर का मरीज रहा हो, तो उन में कैंसर होने की संभावना 10-15 फीसदी रहती है, किंतु उन्हें कैंसर होगा ही, यह जरूरी नहीं है.

डा. मदन मोहन पांडेय ने बताया कि सुकुरहुट्टू, कांके में टाटा ट्रस्ट के सहयोग एवं संरक्षण से निर्मित आधुनिकतम सुविधाओं और मशीनों से लैस रांची कैंसर अस्पताल पिछले एक वर्ष से कार्यरत है, जो महानगरों में अवस्थित किसी भी कारपोरेट अस्पताल से कम विशेषज्ञता वाला नहीं है.

यहां केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) की दर पर इलाज होता है. आयुष्मान भारत कार्ड वालों का इलाज मुफ्त में होता है. अब तक 20,000 टेस्ट, 300 सर्जरी, 4,000 रेडियोथेरेपी और 1,100 कीमोथेरेपी हो चुकी है. टाटा ट्रस्ट का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है, इसलिए यहां जांच और इलाज के लिए काफी कम शुल्क लिया जाता है. ‘अपने स्वास्थ्य को जानिए’ पैकेज के तहत 30 वर्ष तक की उम्र के लोगों को 1,000 रुपए में और 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को 1,500 रुपए में कई तरह की जांच कर दी जाती हैं, जिस में कुछ अंगों का कैंसर स्क्रीनिंग भी शामिल है. दूसरे अस्पतालों और डाक्टरों द्वारा अनुशंसित सीटी स्कैन, एमआरआई, मेमोग्राफी, अल्ट्रासाउंड और पैथोलौजिकल जांच भी यहां कम लागत पर की जाती है.

रांची कैंसर अस्पताल की मैडिकल आंकोलोजिस्ट डा. रजनीगंधा टुडू ने कैंसर के कारणों, लक्षण, वार्निंग सिग्नल, विभिन्न स्टेज, इलाज के चरण, बचाव के लिए सावधानियां, निदान के उपायों आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला.

इस अवसर पर अस्पताल प्रबंधन की प्रियदर्शिनी और मुकुल कुमार घोष ने भी अपने विचार रखे. बीएयू के निदेशक छात्र कल्याण डा. बीके अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

बीएयू के कुलसचिव डा. एमएस मलिक ने कहा कि अगले चरण में टाटा ट्रस्ट के सहयोग से विश्वविद्यालय के छात्रछात्राओं के लिए कैंसर जागरूकता कार्यशाला आयोजित की जाएगी.

खाद्यान्न जरूरतों के मामले में भारत सरप्लस

रांची : कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के सचिव और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति अबूबकर सिद्दीकी ने कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान किया है कि वे जलवायु के अनुकूल खेती पर अपना अनुसंधान प्रयास केंद्रित करें.

उन्होंने यह भी कहा कि अपनी खाद्यान्न जरूरतों के मामले में भारत सरप्लस है, लेकिन बायोसेफ्टी, पोषण सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अब भी बहुत काम करने की जरूरत है.

वह भारतीय आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन सोसाइटी, नई दिल्ली के रांची चैप्टर द्वारा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में ‘फसल सुधार के लिए पौधा विज्ञान की चुनौतियां, अवसर एवं रणनीतियां’ विषय पर आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रीय सैमिनार को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जो लोग अपने ज्ञान को साझा नहीं करते, उन के ज्ञान की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती है, इसलिए वैज्ञानिकों को पढ़ना, सुनना, देखना, विश्लेषण करना और नवोन्मेष (इनोवेशन) करना सतत जारी रखना चाहिए. ज्ञानकौशल की गति और गुणवत्ता दुनिया के साथ मिला कर रखना होगा, तभी हम प्रतिस्पर्धा और रोजगार बाजार में टिक पाएंगे.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (खाद्य एवं चारा फसलें) डा. एसके प्रधान ने कहा कि देश में इस वर्ष 330 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ, जो वर्ष 2030 का लक्ष्य था यानी इस मोरचे पर हम 7 वर्ष आगे हैं, किंतु इस से हमें आत्मसंतुष्ट नहीं होना है. मक्का और मिलेट्स उत्पादन का वर्तमान स्तर 37 और 15 मिलियन टन है, जिसे वर्ष 2047 तक बढ़ा कर क्रमशः 100 मिलियन टन एवं 45 मिलियन टन करना है. बायोफ्यूल के लिए भी मक्का फसल की जरुरत है. उत्पादन वृद्धि का भावी लक्ष्य भी हमें कम पानी, कम उर्वरक, कम रसायन और कम भूमि का प्रयोग करते हुए हासिल करना होगा.

Surplus Foodसोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ (उत्तर प्रदेश) के निदेशक डा. संजय कुमार ने अपने औनलाइन संबोधन में कहा कि भारत में दुनिया की लगभग 18 फीसदी आबादी रहती है, किंतु इस के पास विश्व का केवल 2.4 फीसदी भूमि संसाधन और 4 फीसदी जल संसाधन उपलब्ध है, इसलिए भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपनी फसल प्रजनन और बीज प्रजनन नीतियों, योजनाओं और रणनीतियों में बदलाव लाना होगा.

शुरू में स्वागत भाषण करते हुए आयोजन सचिव और बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग की अध्यक्ष डा. मणिगोपा चक्रवर्ती ने सोसाइटी के रांची चैप्टर की गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला.

आयोजन हाईब्रिड मोड में किया जा रहा है, जिस में देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और कृषि उद्योगों से आनुवंशिकी, पौधा प्रजनन, पादप जैव प्रौद्योगिकी, फसल दैहिकी, बीज प्रौद्योगिकी, बागबानी एवं सब्जी विज्ञान से जुड़े डेढ़ सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक औफलाइन एवं औनलाइन मोड में भाग लिया. औनलाइन भाग लेने वालों में बीएयू के पूर्व कुलपति डा. एमपी पांडेय, डा. ओंकार नाथ सिंह और बीएचयू के स्कूल औफ बायोटैक्नोलौजी के पूर्व प्रोफैसर डा. बीडी सिंह शामिल हैं.

कृषि सचिव ने इस अवसर पर बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. जेडए हैदर एवं डा. वायलेट केरकेट्टा और पूर्व अनुसंधान निदेशक डा. ए. वदूद को उन के विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया. सोसाइटी की कोषाध्यक्ष डा. नूतन वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

कैसे करें फूलों का उत्पादन

रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से चल रही फूलों से संबंधित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की जनजातीय उपयोजना के तहत बागबानी विभाग में ‘व्यावसायिक पुष्पोत्पादन तकनीक’ विषय पर एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

इस में रांची जिला के नगड़ी प्रखंड के चिपरा पंचायत के 2 गांवों- कोलांबी और पंचडीहा की 30 किसान महिलाओं ने भाग लिया. ये महिलाएं झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा गठित कृषक समूह की अगुवा शांति तिर्की, नीतू तिर्की और किसान मित्र फूलमनी खलखो के नेतृत्व में आई थीं.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बीएयू के अनुसंधान निदेशक डा. पीके सिंह ने कहा कि झारखंड में कृषि संबंधी अधिकांश काम महिलाएं ही करती हैं, इसलिए फूलों की खेती के परिदृश्य में भी वे बड़े बदलाव ला सकती हैं. झारखंड की जरूरत का अधिकांश फूल भी दूसरे राज्यों से आता है, इसलिए इस राज्य में फूलों के उत्पादन और लाभकारी विपणन की काफी संभावनाएं हैं.

उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान अर्जित ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग करने की सलाह किसान महिलाओं को दी.

बागबानी विभाग की डा. पूनम होरो, डा. शुभ्रांशु सेनगुप्ता, डा. सविता एक्का, डा. सुप्रिया सुपल सुरीन और डा. अब्दुल माजिद अंसारी ने प्रशिक्षणार्थियों को गेंदा, ग्लेडियोलस, जरबेरा और गुलाब की वैज्ञानिक खेती, उत्पादन क्षमता, झारखंड के लिए उपयुक्त उन्नत प्रभेदों, फसल संरक्षण तकनीक आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी.