खेती में रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से मिट्टी की घटती उर्वराशक्ति और आमजन की बिगड़ती सेहत का जज्बा समझते हुए बांदा जिले के अतर्रा गांव के युवा किसान विज्ञान शुक्ला ने एक ऐसी राह चुनी जो खुद के लिए तो मील का पत्थर साबित हुई और अन्य किसानों के लिए भी खेती में नई राह दिखाने का काम कर रही है. विज्ञान शुक्ला बांदा जिले के ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जिनके साथ आज बुंदेलखंड क्षेत्र के लगभग 15 हजार से अधिक किसान जुड़े हुए हैं और उन के बताए रास्ते पर चल कर सफल खेती कर रहे हैं.
जैविक खेती को अपना कर लाखों की कमाई :
विज्ञान शुक्ल ने बताया कि स्नातक की पढ़ाई के दौरान परिजनों को रासायनिक खादों से जूझते देख कर उन का मन दुखी हो गया था. उन्होंने बताया कि ज्यादातर किसान खेती में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं, जिस से खेत की मिट्टी खराब होने के साथ ही लोगों की सेहत के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है.
ऐसे में मैं ने एक नई शुरुआत की और कंपोस्ट खाद के निर्माण में जुट गया और खेती में मित्र कीट कहे जाने वाले केंचुओं से बनने वर्मी कंपोस्ट और गोबर की खाद को अपनाया. इस की शुरुआत करने के लिए चार चरही में गोबर भर कर कन्नौज से लाए और उस में केंचुए ला कर छोड़े तो अच्छी वर्मी कंपोस्ट खाद बनने की शुरुआत हुई.
अच्छे नतीजों से उत्साहित हो कर कृषि एवं उद्यान विभाग से अनुदान ले कर काम को आगे बढ़ाया. कुछ समय बाद खेतों में पैदावार बढ़ने लगी, जिस से खाद में अच्छा उत्पादन होने लगा, तो आमदनी भी बढ़ने लगी. 3 वर्षों के बाद इस काम से फसल पैदावार के अलावा खाद बिक्री से लाख रुपया प्रतिवर्ष आय के रूप आने लगा.
कभी अकेले चले थे अब हजारों कदम हैं साथ :
विज्ञान शुक्ला ने अब से लगभग 15 साल पहले अकेले ही जैविक खेती की शुरुआत की और कंपोस्ट बनाने का काम अपने घर से शुरू किया और आज उन से प्रेरणा ले कर जिले के लगभग हजारों किसान जैविक खेती को अपना रहे हैं, जो लगातार उन के संपर्क में रह कर जैविक खेती के अच्छा फसल उत्पादन ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि जैविक खेती की शुरुआत के 2 सालों में फसल उत्पादन में 10 से 12 फीसदी तक की कमी आई थी, जो बाद में पूरी हो गई. अब तो रासायनिक खेती की तुलना में 20 से 25 फीसदी अधिक पैदावार मिलती है और कम लागत में गुणवत्तायुक्त फसल उत्पादन मिलता है, जिस के बाजार दाम भी अच्छे मिलते हैं.
विज्ञान शुक्ला ने बताया कि उन के प्रक्षेत्र पर स्थापित वर्मी कंपोस्ट यूनिट, पशुपालन यूनिट, जैविक आउटलेट पर अभी तक लगभग 10 हजार किसान भ्रमण कर चुके हैं.
पशुपालन (Dairy Farming) बना मददगार :
विज्ञान शुक्ला ने बताया कि वे पशुपालन भी कर रहे हैं, जो उन के लिए खेती में खासा मददगार बन रहा है. पशुओं से मिलने वाले गोबर से खाद बनाने का काम तो आसान होता ही है, बल्कि पैसे की भी बचत होती है. डेयरी फार्मिंग के कारोबार से दूध की प्रोसैसिंग कर अनेक उत्पादों से भी खासी कमाई हो जाती है.
कैसे करते हैं खेती :
विज्ञान शुक्ला धान, गेहूं, ज्वार, हाईब्रिड ज्वार, मूंग आदि की खेती करते हैं और खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करते हैं और 3 जुताई कल्टीवेटर से कर मिट्टी की संतुति के अनुसार बीज तय करते हैं. जुताई के समय गोबर की खाद 6 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालते हैं. खरपतवार की रोकथाम के लिए समय पर निराईगुड़ाई का काम करते हैं और पहली निराई के समय पौधों में विरलीकरण का काम करते हैं. पहली सिंचाई खेती में पुष्पावस्था के समय और दूसरी सिंचाई पुष्प आने के बाद करते हैं.

जैविक तरीके से फसल सुरक्षा :
फसल सुरक्षा के लिए रस चूसने वाले कीटों और छोटी सूंड़ी, इल्लियों की रोकथाम के लिए नीमशास्त्र का इस्तेमाल और कीटों और बड़ी सूंड़ी के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं. छिड़काव के लिए 100 लिटर पानी में 2.5 मिलीलिटर नीमास्त्र/ ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं और फसल तैयार होने के बाद फसल काटने पर उसे धूप में सुखा कर 10 से 12 फीसदी नमी पर उस का भंडारण करते हैं. सुरक्षित भंडारण के लिए नीम की सूखी पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं. बीज बोने से पहले उस का बीजशोधन ट्राइकोग्रामा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर के बाद राइजोबियम कल्चर 200 ग्राम प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से करते हैं.
लोगों को दे रहे हैं रोजगार :
विज्ञान शुक्ला का कहना है कि उन के प्रक्षेत्र पर 30 वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगी हैं और 13 पशुपालन यूनिट हैं. जैविक आउटलेट हैं जिन के जरीए लगभग सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है.
राष्ट्रीय स्तर के कृषि पुरस्कार से सम्मानित :
विज्ञान शुक्ला को उन के द्वारा खेती में किए जा रहे उत्कृष्ट कार्य के लिए अनेक राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं, जिस में राष्ट्रीय स्तर का ‘जगजीवनराम अभिनव पुरस्कार’ भी शामिल है. इस के अलावा पिछले साल दिल्ली प्रैस द्वारा ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ के अलावा उन्हें ढेरों सम्मान मिल चुके हैं.
विज्ञान शुक्ला ने अनुसार वर्मी कंपोस्ट तकनीक में 15 फुट लंबी, 3 फुट चौड़ी, 2 फुट ऊंची चरही में 15 क्विंटल गोबर और 4 क्विंटल केंचुआ की जरूरत पड़ती है, जिस में 11 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार हो जाती है.
यह खाद 2 एकड़ खेत के लिए पर्याप्त है. इस में सभी 16 पोषक तत्त्व होते हैं. इस के प्रयोग से यूरिया, डीएपी जैसी रासायनिक खादों की जरूरत नहीं पड़ती है. छोटा से छोटा किसान भी वर्मी कंपोस्ट खाद का उत्पादन कर सकता है.





