Onion : तमाम फसलों की तरह प्याज (Onion) की फसल भी कीड़ों की मार से बच नहीं पाती. कीटों का हमला प्याज (Onion) की खेती करने वाले किसानों की हालत खराब कर देता है, लिहाजा इन से बचाव के लिए बेहद सतर्क रहना जरूरी है.
आज भारत में सब्जी व मसाले की प्रमुख फसल है. इसे स्वतंत्र रूप से और अन्य सब्जियों के साथ मिला कर खाया जाता है. भारत दुनिया में प्याज (Onion) का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक है.
प्याज (Onion) में कार्बोहाइड्रेट के साथसाथ सल्फर, कैल्शियम, प्रोटीन व विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. अन्य फसलों की तरह प्याज में भी विभिन्न कीट व बीमारियों का प्रकोप होता है, जो इस के उत्पादन व गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. यदि कीट व बीमारियों को प्रबंधित कर लिया जाए, तो प्याज के उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है.
भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में प्याज (Onion) सब से अधिक महत्त्वपूर्ण और लोकप्रिय है. भारत में प्याज की खेती लगभग 4-8 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है. जिस का कुल उत्पादन लगभग 55 लाख टन है.
हाल के सालों में वैज्ञानिक अपने शोध से जहां एक तरफ प्याज (Onion) में नवीनतम तकनीक और संकर किस्मों को विकसित कर के उत्पादन में लगे हैं, वहीं किसान नवीनतम कृषि पद्धति अपना कर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, जिस के लिए वे अधिक उर्वरक, रसायन और सघन पद्धति इस्तेमाल कर रहे हैं. नतीजतन कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है.
प्रमुख कीट
प्याज का मैगट : इस कीट के प्रौढ़ घरेलू मक्खी जैसे छोटे आकार के लगभग 6 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इन की टांगें पतली व लंबी, पंख पारदर्शी बड़े और शरीर पर छोटेछोटे रोम होते हैं. इन के मैगट लगभग 8 मिलीमीटर लंबे व सफेद होते हैं. ये अगले हिस्से में पतले और पीछे चौड़े होते हैं.
ये कीट जमीन में प्यूपावस्था में शीत निष्क्रिय रहते हैं. बसंत के मौसम में इन से निकलने वाली मक्खियां पत्तियों या पौधों की जड़ों के आसपास जमीन में अंडे देती हैं, जो 2-7 दिनों में फूट जाते हैं. अंडों से निकलने वाले मैगट पत्तियों से होते हुए जमीन में जा कर पौधों के कंदों के कोमल तंतुओं को खाते हैं. ये मैगट 14-21 दिनों में कंदों से बाहर आ कर प्यूपा में बदल जाते हैं.
प्यूपा से 14-21 दिनों में वयस्क निकल कर अपना जीवनचक्र शुरू कर देते हैं. इस कीट की तीसरी पीढ़ी प्याज (Onion) की कटाई के एकदम पहले हमला करती है, जिस से भंडारण के दौराना सड़न उत्पन्न हो जाती है.
इस कीट के मैगट पौधों के तनों व कंदों में घुस कर नुकसान पहुंचाते हैं. इस से पौधे पीले पड़ कर सूखने लगते हैं. बड़े कंदों पर 8-10 मैगट एकसाथ घुस कर उसे खोखला कर देते हैं, जिस से उन पर अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों के असर से मृदुगलन पैदा हो जाता है. इस कीट के प्रकोप से खेत में नष्ट हुए कंद भंडारण के दौरान सड़ने लगते हैं, जिस से अन्य स्वस्थ कंद भी प्रभावित होते हैं.
प्रबंधन : शुरुआती अवस्था में प्रभावित खेत पर काटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी की 10 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से बिखेर कर सिंचाई कर दें.
* बढ़ते हुए पौधों पर मिथोमिल 40 एसपी की 1 किलोग्राम या ट्रायजोफास 40 ईसी की 750 मिलीलीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने पर नए निकले हुए मैगट मर जाते हैं. कीट के जीवनचक्र के मुताबिक 2 या 3 बार छिड़काव करने से फसल को काफी हद तक बचाया जा सकता है.
रसाद कीट : इस कीट के वयस्क पतले, कोमल व लगभग 1 मिलीमीटर लंबे होते हैं. नर पंखहीन होते हैं, जबकि मादा में झालरदार पंख होते हैं. इन के पिछले हिस्से में लंबे बाल पाए जाते हैं. इन का रंग हलका पीलाभूरा होता है. यह कीट प्याज (Onion) व लहसुन पर नवंबर से मई तक रहता है. यह जून में कपास व गरमियों की अन्य फसलों में चला जाता है. सितंबरअक्तूबर में यह सरसों पर रहता है. इस प्रकार यह साल भर सक्रिय रहता है.
इस कीट की मादा 14-30 दिनों के अपने जीवनकाल में 50-60 सफेद अंडे पत्तियों की बाहरी त्वचा में गड्ढे बना कर देती है. अंडों से 5-10 दिनों में छोटेछोटे अर्भक यानी बच्चे निकल कर पत्तियों के मुलायम भागों से रस चूसना शुरू कर देते हैं.
ये अर्भक पत्तियों व फलों पर रहते हैं और 4-6 दिनों में बड़े हो जाते हैं. 3-7 दिनों बाद ये पंखदार वयस्क बन जाते हैं. इस कीट का पूरा जीवनचक्र गरमियों में 15 दिनों व जाड़ों में 22-45 दिनों में पूरा हो जाता है. इस के 1 साल में 8-10 जीवनचक्र होते हैं.
इस कीट के वयस्क व बच्चे दोनों ही पौधों की पत्तियों को खुरच कर व उन का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं, जो बाद में पीलेसफेद रंग के निशान में परिवर्तित हो जाते हैं, जिस से पत्तियां चमकीली सफेद दिखाई देने लगती हैं. ऐसी पत्तियां बाद में ऐंठ कर व मुड़ कर सूख जाती हैं.
प्रबंधन : प्याज व लहसुन की कीटरोधी प्रजातियां उगानी चाहिए.
* कीट के अधिक प्रकोप की दशा में 150 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
तंबाकू की इल्ली : इस के पतंगे भूरे रंग के होते हैं. इन का ऊपरी पंख कत्थई रंग का होता है, उस पर सफेद लहरदार धारियां पाई जाती हैं. पिछले पंख सफेद रंग के होते हैं. पूर्ण विकसित इल्ली का शरीर कोमल व रंग पीलापन लिए हुए भूरा होता है. यह लगभग 40-50 मिलीमीटर लंबी होती है.
शरीर पर कहींकहीं रोम पाए जाते हैं. इल्ली की पीठ पर दोनों ओर 1-1 पीली धारी पाई जाती है. 1-1 पीली धारी शरीर के निचले भाग में भी दोनों ओर होती है. इस कीट की मादा पत्तियों की निचली सतह पर 250-300 अंडे समूहों में देती है. ये अंडे भूरे बालों से ढके रहते हैं और अंडों से 3-5 दिनों में पीलापन लिए गहरेभूरे रंग की इल्लियां निकलती हैं. बड़ी होने पर ये पूरे खेत में फैल जाती हैं.
इल्लियां खेत से उतर कर भूमि में 2.5 से 3.0 सेंटीमीटर नीचे ककून में प्यूपा बनाती हैं. गरमी में प्यूपावस्था 7-9 दिनों व सर्दी में 29-30 दिनों की होती है. इस कीट की साल भर में 8 पीढि़यां होती हैं.
इस कीट की इल्लियां प्याज (Onion) व लहसुन की पत्तियों को खा कर नुकसान पहुंचाती हैं. पौधों की छोटी अवस्था में इस का प्रकोप होने पर पूरा पौधा मर जाता है. कभीकभी यह कीट 50-60 फीसदी तक नुकसान पहुंचाता है. बड़े पौधों में प्रकोप होने पर उस की पत्तियों की तादाद में कमी हो जाती है, जिस से कंद छोटे रह जाते हैं और उपज में भी कमी हो जाती है.
प्रबंधन : पहले बोई गई फसल के कटने के बाद खेत की अच्छी तरह से मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए.
* कीट के अंड समूह को पत्ती सहित तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
* समूह में पाई जाने वाली इल्लियों को भी पत्ती सहित तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
* प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर के वयस्क कीटों को पकड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
* अधिक प्रकोप की दशा में इंडोक्साकार्ब 14.5 एसपी की 500 मिलीलीटर मात्रा या लैम्डा सायहेलोथ्रिन 50 ईसी की 300 मिलीलीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
चने का कटुवा कीट : इस कीट का वयस्क भूरा व भारी शरीर वाला होता है. इस के अगले पंख हलके भूरे रंग के होते हैं, जिन पर बहुत सी लहरदार रेखाएं व गुर्दे के आकार के धब्बे होते हैं. पिछले पंख सफेद व पंखों की शिराएं काली होती हैं. इस कीट की सूंड़ी हलका पीलापन लिए हुए सलेटी रंग की होती है और छूने में चिकनी व लगभग 40 मिलीमीटर लंबी होती है.
मैदानी भागों में मादा अक्तूबर महीने से पत्तियों की निचली सतह, तनों व गीली मिट्टी में अंडे देना शुरू कर देती है. यह एक स्थान पर 30 व अपने जीवनकाल में लगभग 300 अंडे देती है. अंडे करीब 30 दिनों में फूट जाते हैं.
इल्लियां अंडों से निकल कर पौधों की जड़ों व ऊपरी भागों को खाना शुरू कर देती हैं और लगभग 3-7 दिनों में पूरी तरह विकसित हो जाती है. इस के बाद जमीन के अंदर जाती हैं और मिट्टी में ककून के अंदर वयस्क कीट निकल आते हैं. इस कीट की इल्लियां प्याज (Onion) व लहसुन की पत्तियों को काट कर पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं. ये दिन के समय खेत में ढेलों में छिपी रहती हैं और रात में नुकसान पहुंचाती हैं. इल्लियां जितना खाती हैं, उस से ज्यादा काटकाट कर नष्ट करती हैं.
प्रबंधन : खेत में जगहजगह छोटेछोटे गड्ढे बना कर इल्लियों को उन में जमा कर के नष्ट कर देना चाहिए.
* प्रकाश प्रपंच लगा कर वयस्क कीटों को आकर्षित कर के नष्ट कर देना चाहिए.
* खेत में जगहजगह बेकार पत्तियों के ढेर लगा कर इल्लियों को उन के नीचे जमा कर के नष्ट कर देना चाहिए.
* मिथाइल पैराथियान 5 फीसदी का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए.
* ज्यादा प्रकोप होने की दशा में अल्कामेथ्रिन 10 ईसी की 250 मिलीलीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
मूंगफली का कर्ण कीट: यह कीट अपने खास आकार के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है. यह पौधों की जड़ों के पास घास या पत्तों के नीचे दरारों में छिपा रहता है. इस कीट की मादा 21 से 139 तक अंडे देती है, जो 7-10 दिनों में फूट जाते हैं. कीट 5 अवस्थाओं के बाद विकसित हो जाते हैं. इस का जीवनचक्र 61 दिनों का होता है.
इस कीट के बच्चे व वयस्क दोनों ही अपने कुतरने व चुभाने वाले मुखांगों से पत्तियों व पौधे के कोमल भागों को नुकसान पहुंचाते हैं. यह प्याज (Onion) व लहसुन का मामूली कीट है, पर कभीकभी काफी नुकसान पहुंचाता है.
प्रबंधन : खेत में पौधों की रोपाई से पहले 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिथाइल पैराथियान 2 फीसदी धूल डालने से इस कीट के प्रकोप को कम किया जा सकता है.
मटर का पर्ण सुरंग कीट : इस कीट की वयस्क मक्खी 2-3 मिलीमीटर लंबी चमकीले गहरे रंग की होती है. इस के बीच का ऊपरी भाग हलके काले रंग का होता है. विकसित मैगट 3 मिलीमीटर लंबा और 0.75 मिलीमीटर चौड़ा होता है. यह कीट दिसंबर से ले कर मई तक सक्रिय रहता है. मादा मक्खी पत्तियों के तंतुओं में तिकोने आकार के छेद बना कर हर छेद में 1 अंडा देती है.
ये अंडे 3-4 दिनों में फूट जाते हैं और उन से मैगट निकल कर पत्तियों की कोशिकाओं से भोजन प्राप्त करने लगते हैं. इस प्रकार नुकसान करते हुए मैगट 5-12 दिनों में पूरी तरह विकसित हो कर प्यूपा में बदल जाते हैं. प्यूपा से मौसम के अनुसार 7-15 दिनों में वयस्क कीट निकल कर दोबारा जीवनचक्र शुरू कर देते हैं. 1 साल में इस कीट की 4-5 पीढि़यां पाई जाती हैं.
इस कीट के मैगट पत्तियों के ऊपरी सिरे की ओर से सुरंग बना कर उस के हरे ऊतकों को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. नतीजतन पत्तियां सूख जाती हैं. बाद में इस कीट का प्रकोप पत्तियों के निचले भाग पर होता है. इस से पत्तियां टेड़ी दिखाई देने लगती हैं. ज्यादा प्रकोप होने से पौधों की बढ़वार पर असर पड़ता है और पौधे छोटे रह जाते हैं.
प्रबंधन : प्रभावित पत्तियों की चोटी को काट कर नष्ट कर देना चाहिए.
* सूखी हुई जमीन पर इस का प्रकोप अधिक होता है, लिहाजा समय से पानी देना चाहिए.
* लैम्डा सायहेलोथ्रिन 5 ईसी की 300 मिलीलीटर या फेंथोएट 50 ईसी, की 1.0 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.





