मटर (Peas) के खास हानिकारक कीट

फलीछेदक कीट (इटिला जिनकेला) : इस के वयस्क कीट सलेटी रंग के होते हैं. मादा कीट समूह में या 1-1 कर के पौधों की कोमल शाखाओं, कलियों या फलियों पर अंडे देती है, जिन से 5-6 दिनों में सूंडि़या निकलती हैं. सूंडि़यों का रंग हराबैगनी होता है. पूर्ण विकसित सूंडि़यों का रंग हलका गुलाबी होता है. सूंडि़यों के ऊपर 5 धब्बे होते हैं.

इस कीट का प्यूपा जमीन के अंदर बनता है. इस की सूंड़ी अवस्था हानिकारक होती है. शुरू में सूंडि़यां पत्तियों पर घूम कर फूलों व कलियों को खाती हैं. उस के बाद विकसित हो रही फलियों के अंदर दानों को खाती हैं. एक सूंडी 15-20 फलियों को नुकसान पहुंचाती है.

प्रबंधन

* आक्रमण के शुरू में संक्रमित फलियों को सूंडि़यों सहित जला देना चाहिए.

* 5 फीसदी एनएसकेई का छिड़काव करें.

* ज्यादा हमला होने पर डाइमेथोएट 30 ईसी की 1.25 लीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

चने का कीट (हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा) : इस कीट की मादा पत्तियों की निचली सतह पर हलके पीले रंग के खरबूजे की तरह की धारियों वाले अंडे देती है. एक मादा अपने जीवन काल में तकरीबन 500-1000 तक अंडे देती है. ये अंडे 3 से 10 दिनों के अंदर फूट जाते हैं और इन से चमकीले हरे रंग की सूंडि़यां निकलती हैं.

सूंडि़यां मटर (Peas) की पत्तियों, कलियों व फूलों को खाती हैं. बाद में ये विकसित हो रही मटर (Pea) की फलियों के अंदर घुस कर दानों को खा जाती हैं. फलियां खोखली होने पर पीली पड़ कर सूख जाती हैं, जिस से पैदावार पर सीधा असर पड़ता है. खाते समय सूंडि़यों का पीछे का आधा भाग फली के बाहर रहता है. शुरू में पूरी सूंड़ी फली के अंदर घुस जाती है.

प्रबंधन

* खेत में 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं.

* खेत में परजीवी पक्षियों के बैठने के लिए 10 ठिकाने प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं.

* सूंडि़यों की शुरू की अवस्था दिखाई देते ही 250 एलई के एचएएनपीवी को 1 किलोग्राम गुड़ और 0.1 फीसदी टीपोल के साथ घोल बना कर उस का प्रति हेक्टेयर की दर से 10-12 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

* इस के अलावा 1 किलोग्राम बीटी का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* इस के बाद 5 फीसदी एनएसकेई का छिड़काव करें.

* प्रकोप बढ़ने पर स्पाइनोसैड 45 एससी व थायोमेंक्जाम 70 डब्ल्यूएससी या क्विनोलफास 25 ईसी या क्लोरपायरीफास 20 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें.

लीफ माइनर या पर्ण सुरंगक कीट : वयस्क मक्खी चमकीली गहरे रंग की होती है, जो आकार में 2-3 मिलीमीटर लंबी होती है. पूरा विकसित मैगट पीले रंग का तकरीबन 3 मिलीमीटर लंबा और 0.75 मिलीमीटर चौड़ा होता है. सूंडि़यां 6-8 दिन खाने के बाद प्यूपा में बदल जाती है. 1 हफ्ते बाद मक्खी निकल कर बाहर उड़ जाती है. इस कीट की मैगट अवस्था ही हानिकारक होती है. मैगट पत्तियों में सुरंग बना कर हरे भाग को अंदर ही अंदर खाते रहते हैं.

इन के असर को पत्तियों के ऊपर धूसर रंग की सुरंगों के रूप में देखा जा सकता है. इन से प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है.

प्रबंधन

* प्रभावित पत्तियों या पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए.

* खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना चाहिए.

* नीम आधारित कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए.

* ज्यादा प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाईमेथोएट 30 ईसी की 1.25 लीटर मात्रा का 800 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

तना मक्खी : यह छोटी व काले रंग की मक्खी है. इस की लंबाई 2.3 मिलीमीटर और पंख विस्तार 2.0 से 2.5 मिलीमीटर होता है. मादा कीट 150-250 अंडे कोमल पत्तियों पर देती है. अंडों से 2-4 दिनों में मैगट निकल आते हैं, जो पत्तियों में सुरंग बना कर मध्य शिरा से होते हुए तने में घुस जाते हैं. मैगट तकरीबन 10 दिनों में बढ़ कर तने के अंदर ही प्यूपा में बदल जाते हैं. प्यूपा से वयस्क 9-10 दिनों में बाहर निकलता है और नई पीढ़ी को जन्म देता है. इस कीट की मैगट अवस्था ही हानिकारक होती है.

प्रबंधन

* प्रभावित पौधों को जड़ से उखाड़ कर जला देना चाहिए.

* कार्बोफ्यूरान 3 सीजी की 15-20 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के साथ इस्तेमाल करनी चाहिए. फसल में प्रकोप होने पर डाईमेथोएट 30 ईसी की 1.25 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर मात्रा का 600 से 800 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

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