बारिश के मौसम में सब्जियों की पौधशाला तैयार की जाती है. सब्जियों के बीज ज्यादा महंगे व बारीक होने के कारण उन को खास देखभाल में उगाना जरूरी होता है. लिहाजा इस के लिए सब्जियों को पौधशाला में उगाना जरूरी है. पौधशाला में कैसे पौधों को कीड़ों व बीमारियों से दूर रखा जाए, क्योंकि मिट्टी में बहुत से छोटे जीव पाए जाते हैं. उन में से कुछ जीव पौध के लिए नुकसानदायक भी होते हैं. इसलिए हमें पौधों को ऐसे तरीके से उगाना चाहिए जिस में मिट्टी की जरूरत न हो, लेकिन यदि कहा जाए कि बिना मिट्टी के भी फलसब्जियां पैदा हो सकती हैं, तो सुन कर थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन ऐसा हो सकता है.
किसान इस तकनीक से खीरा, टमाटर, पालक, गोभी, शिमला मिर्च व दूसरी सब्जियां उगा सकते हैं.
इस तकनीक के कई फायदे हैं
* पौधों पर मिट्टी से होने वाले रोगों का असर नहीं होगा.
* पूरी तरह से विषाणु रोग रहित पौध उपलब्ध होती है.
* बेमौसमी पौध तैयार की जा सकती है, जिस से किसान की आमदनी बढ़ाई जा सकती है.
* कम रकबे में अधिक पौध तैयार करना मुमकिन है व 1 साल में 5 से 6 बार पौध तैयार की जा सकती है. 1 ट्रे में 90 से 110 तक पौधे तैयार किए जा सकते हैं.
* पौध को ट्रे के साथ दूर स्थानों तक ले जाया जा सकता है.
* ऐसी सब्जियां जिन की पुराने तरीके से पौध तैयार करना मुमकिन नहीं है. जैसे बेल वाली सब्जियों की भी पौध तैयार कर सकते हैं.
* पौध की बढ़वार एक जैसी होती है.
* पौध तैयार कर बेचने का कारोबार किया जा सकता है.
* पौध तैयार करने का समय तय है करीब 25 से 30 दिन होता है.
* यह तकनीक सामान्य और संकर किस्मों के बीज उत्पादन में बहुत फायदेमंद हो सकती है.
कैसे लें इस तकनीक का फायदा
* इस के लिए हम सब से पहले प्लास्टिक की ट्रे का इस्तेमाल करते हैं, जिस में खाने बने होते हैं. इन खानों की गहराई 10 से 20 सेंटीमीटर तक होती है. इन्हें प्रो-ट्रे के नाम से जानते हैं.
* इन खानों में भरने के लिए बिना मिट्टी वाले कोकोपीट, वर्मीकुलाइट व परलाइट को 3:1:1 के अनुपात में मिलाया जाता है.
* मिलाने के बाद इस को गीला करते हैं. फिर इसे ट्रे के खानों में भरा जाता है.
* बाद में उंगली से हलके गड्ढे बना कर हर गड्ढे में 1-1 बीज बोया जाता है.
* बीज बोने के बाद वर्मीकुलाइट की पतली परत से ढक दिया जाता है ताकि बीजों को अंकुरण के वक्त सही नमी मिलती रहे.
* वर्मीकुलाइट में जल भरने की कूवत ज्यादा होती है, जो नमी को ज्यादा वक्त तक बनाए रखता है, जिस से अंकुरण अच्छा होता है.
* अमूमन सब्जियों के बीजों के अंकुरण के लिए 20 से 25 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान सही होता है.
* यदि तापमान अंकुरण के लिए सही है तो ट्रे को बाहर ही रखा जा सकता है. नहीं तो यदि तापमान 10 से 12 डिगरी सेंटीग्रेड से कम है तो बीज बोआई के बाद ट्रे को अंकुरण कक्ष में रखा जाता है.
* अंकुरण के फौरन बाद ग्रीनहाउस में बनी बैंच या जमीन से ऊपर उठा कर बनाई गई क्यारियों के ऊपर ट्रे को रखा जाता है. यदि ग्रीन हाउस नहीं है, तो घर के कमरों में भी रख सकते हैं.
* सही बढ़वार के लिए अंकुरण के 1 हफ्ते बाद सिंचाई के पानी के साथ जरूरी मात्रा में मुख्य पोषक तत्त्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश) और सभी सूक्ष्म तत्त्वों को भी दिया जाता है. इस के लिए बाजार में मिलने वाले विभिन्न अनुपात (20:20:20 या19:19:19 या 15:15:15) में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरक जिन में सूक्ष्म तत्त्व भी मिले रहते हैं, उन का इस्तेमाल करना चाहिए.
* इस तकनीक से पौधे 25 से 30 दिनों में रोपाई के लायक हो जाते हैं.
* पौधों को तैयार होने पर ट्रे में बने खानों से बाहर निकाला जाता है. इस वक्त माध्यम के गुच्छे के चारों ओर जड़ों का फैलाव सफेद धागों जैसा साफ दिखाई देता है.
* ये पौधे आसानी से खानों से बाहर निकल आते हैं, जिस से इन की जड़ें नहीं टूटती और जमीन में आसानी से लगाए जा सकते हैं.
* सामान्य तापमान होने पर रोपाई का काम सुबह या दोपहर में किसी भी समय किया जा सकता है. लेकिन ज्यादा तापमान होने पर रोपाई का काम शाम को किया जाना चाहिए. इस पौध उत्पादन तकनीक को लघु उद्योग के रूप में अपनाया जा सकता है.