Agricultural University : बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने एक बार फिर भारतीय कृषि विज्ञान को राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)–भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईओआर), हैदराबाद द्वारा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची में आयोजित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी)–कुसुम एवं तीसी की वार्षिक समीक्षा बैठक में बीएयू, सबौर को ‘Best एआईसीआरपी–लिनसीड सैंटर अवार्ड 2024–25’ से सम्मानित किया गया.

यह सम्मान तीसी ( लिनम यूसिटाटिसिम usitatissimum एल.) में जर्मप्लाज्म सुधार, जलवायु सहनशील एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों के विकास तथा नैनोप्रौद्योगिकी आधारित उत्पादन तकनीक में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया गया.

विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि यह उच्च स्तरीय शोध कार्य बीएयू सबौर के निदेशक अनुसंधान डा. अनिल कुमार सिंह के रणनीतिक नेतृत्व एवं वैज्ञानिक मार्गदर्शन में संचालित किया गया, जिन के विजन और सतत सहयोग से यह उपलब्धि संभव हो पाई.

इस उपलब्धि के लिए भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद द्वारा विशेष प्रशस्ति प्रमाणपत्र प्रदान किया गया. यह तकनीक सटीक पोषण प्रबंधन और जलवायु के प्रति लचीली कृषि का उत्कृष्ट उदाहरण है.

तीसी बीज ओमेगा-3 फैटी एसिड, α-लिनोलेनिक एसिड (एएलए ), लिग्नान और उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का समृद्ध स्रोत है.

बीएयू द्वारा विकसित प्रजातियां

फंक्शनल फूड्स, औषधि, बायोपेंट, वार्निश एवं पशु आहार हेतु अत्यंत उपयुक्त हैं. जीनोमिक चयन और फैनोटाइपिक सुधार के माध्यम से तेल की गुणवत्ता, स्थिरता और औद्योगिक उपयोगिता को सुदृढ़ किया गया है.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा, “बीएयू ने तीसी की नई किस्मों एवं जलवायु के प्रति सहनशील तकनीकों के क्षेत्र में देश में नया मानक स्थापित किया है. यह पुरस्कार हमारे बहुविषयी वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सतत नवाचार का जीवंत प्रमाण है.”

यह उपलब्धि स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जीनोमिक प्रजनन, नैनो उर्वरक और सटीक पोषण प्रबंधन का समन्वित उपयोग तिलहन उत्पादन को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है. यह भारत की खाद्य तेल एवं पोषण सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा. किसानों की आय वृद्धि और कृषि आधारित उद्योगों के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा.

बीएयू, सबौर अब भारत का ‘राष्ट्रीय तिलहन नवाचार केंद्र’ बन कर उभरा है, जो देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए मजबूत वैज्ञानिक आधार प्रदान करेगा.

नई किस्में और राष्ट्रीय योगदान

निदेशक अनुसंधान डा. अनिल कुमार सिंह के मार्गदर्शन में परियोजना के मुख्य अन्वेषक डा. आरबीपी निराला और सहयोगी वैज्ञानिक डा. रामानुज विश्वकर्मा, डा. शिवशंकर आचार्य, डा. एसके चौधरी और डा. ए. लोकेश्वर रेड्डी ने 2021–22 से 2023–24 के बीच गहन प्रजनन एवं आणविक अनुसंधान द्वारा उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त कीं.

संस्थान द्वारा विकसित नई किस्में

सबौर तीसी-2 – ≥42 फीसदी उच्च तेल प्रतिशत, मध्यम अवधि एवं स्थिर उपज क्षमता. सबौर तीसी-3–अल्टरनेरिया ब्लाइट और पाउडरी मिल्ड्यू रोगों के प्रति उच्च सहनशीलता. सबौर तीसी-4–सूखा एवं ऊष्मा सहनशील, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल.

राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव

इन किस्मों का 21.4 फीसदी प्रजनक बीज उत्पादन में प्रत्यक्ष योगदान देशभर में किया जा रहा है, जो किसी एक केंद्र से असाधारण उपलब्धि है.

नैनो प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादन नवाचार

सबौर टीम ने नैनो यूरिया (3 मिलीलिटर/लिटर पानी) का फूल आने की अवस्था में पर्णीय छिड़काव करने की अभिनव तकनीक विकसित की. नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में 18–20 फीसदी तक वृद्धि. रासायनिक उर्वरक की खपत में 25–30 फीसदी तक कमी. औसतन 12–15 फीसदी तक उपज में वृद्धि.

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