Khejri and Moringa : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में वानिकी विभाग द्वारा ‘मिट्टी से थाली तक’-खेजड़ी एवं सहजन (मोरिंगा) (Khejri and Moringa) का पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया. वानिकी विभाग द्वारा सतत पोषण के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने खेजड़ी और मोरिंगा की विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए जो रिसर्च व प्रसारण के लिए प्रयोग किए जाएंगे.

प्रो. बीआर कांबोज ने अपने संबोधन में कहा कि पर्यावरण प्रदूषण का मानव के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है, इसलिए शरीर को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है. खेजड़ी शुष्क क्षेत्र का बहुत महत्त्वपूर्ण वृक्ष है. इस का संपूर्ण भाग मनुष्य और पशुओं के लिए लाभदायक है. उन्होंने खेजड़ी के पोषकीय महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस की कच्ची सांगरी में प्रोटीन औसतन 8 फीसदी, कार्बोहाइड्रेट 58 फीसदी, फाइबर 28 फीसदी, वसा 2 फीसदी, कैल्शियम 0.4 फीसदी और आयरन 0.2 फीसदी पाया जाता है. इसी प्रकार पक्की फली में प्रोटीन 8-15 फीसदी, कार्बोहाइड्रेट 40-50 फीसदी, फाइबर 9-21 फीसदी और शर्करा 8-15 फीसदी पाई जाती है.

कुलपति ने बताया कि थार शोभा खेजड़ी से प्राप्त सांगरी आय का एक मुख्य स्त्रोत है. कच्ची फलियां, ताजा व सूखी हुई दोनों अवस्थाओं में उपयोग में ली जाती हैं. सांगरी से आचार भी बनता है जो लंबे समय तक उपयोग में लिया जा सकता है. इस की पकी हुई सूखी फली का पाउडर बनाया जा सकता है, जिस से बिसकुट जैसे बेकरी आइटम तैयार किए जा सकते हैं.

उन्होंने बताया कि मोरिंगा का प्रत्येक भाग पोषण के लिए उपयोगी है. इस की पत्तियां खनिज तत्त्वों, विटामिनों और अन्य आवश्यक फाइटोकैमिकल्स से भरपूर होती हैं. औषधीय दृष्टि से मोरिंगा अनेक गुणों से युक्त है. यह एक शक्तिशाली एंटीऔक्सीडैंट, कैंसररोधी, मधुमेहरोधी और रोगाणुरोधी एजेंट के रूप में कार्य करता है. इन विशेषताओं के कारण मोरिंगा को सही मानो में चमत्कारी वृक्ष कहा जाता है. इस की पत्तियां मुख्य रूप से कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, आयरन और विटामिन ए, डी, सी से भरपूर होती हैं.

वानिकी विभागाध्यक्ष अध्यक्ष डा. संदीप आर्य ने कार्यक्रम में सभी का स्वागत करते हुए बताया कि वानिकी विभाग ने विभिन्न कृषि वानिकी मौडलों पर परीक्षण किए हैं, जिस में पाया गया कि खेजड़ी के साथ जो फसल बोई जाती है, उस फसल की उत्पादकता सामान्य से अधिक होती है. यह मिट्टी की उर्वरता क्षमता को बढ़ाता है. इस वृक्ष की फलियां स्थानीय रूप से सांगरी के रूप में जानी जाती हैं, जिस में पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में होते हैं.

इस अवसर पर कुलसचिव सहित विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, विभागाध्यक्ष सहित शिक्षक, गैरशिक्षक कर्मचारियों व विद्यार्थियों ने भी पौधारोपण किया.

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