आज विकास तीव्र गति से हो रहा है पर इसके साथ प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन भी हो रहा है. भूमि, जल और ऊर्जा संसाधनों पर बढ़ता दबाव मानव जीवन के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है. ऐसे में सतत संसाधन प्रबंधन का महत्त्व और भी बढ़ जाता है. यह न केवल कृषि उत्पादन को टिकाऊ बनाता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और मानव स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करता है. सतत कृषि की वर्तमान समय में क्या है आवश्यकता, जानें –

CCS हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का आयोजन 

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘संसाधन प्रबंधन, सतत कृषि, खाद्य, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य’ (सफर) 2025 विषय पर 2 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ. मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में आयोजित सम्मेलन का उद्घाटन कृषि वैज्ञानिक भरती बोर्ड (एएसआरबी) के चेयरमैन एवं मुख्य अतिथि डा. संजय कुमार ने किया, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव राज कांबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. यह सम्मेलन हकृवि एवं सोसाइटी फोर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एंड रिसोर्स मैनेजमैंट, (एसएसएआरएम) हिसार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया.

नोबेल पुरस्कार विजेता ने क्या कहा         

सम्मेलन में फ्रांस के आईएनआरएई के पूर्व वैज्ञानिक, 2007 के नोबेल पुरस्कार विजेता आर्थर रीडैकर विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे. उन्होंने सतत कृषि, खाद्य पर्यावरण सहित विभिन्न बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने लैंड यूज एफिशिएंसी बढ़ाने के लिए मृदा में उचित आर्गेनिक कार्बन का स्तर बनाए रखते हुए फसलों की उत्पादकता बढ़ाने पर बल दिया.

एएसआरबी चेयरमैन डा. संजय कुमार का क्या है कहना 

एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स रिक्रूटमेंट बोर्ड के चेयरमैन डा. संजय कुमार ने अपने संबोधन में खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन के लिए स्थानीय और मौसमी खाद्य पदार्थों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने खाद्य प्रसंस्करण, उद्योगों का विकास, खाद्य अपव्यय में कमी और किसानों को आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण देने के बारे में अपने विचार रखें. उन्होंने नैनो फर्टिलाइजर, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का सिफारिश के अनुसार प्रयोग करने का आह्वान किया.

चुनौतियों से निबटने के लिए आपसी तालमेल जरूरी- प्रो. कंबोज

कुलपति प्रो. बलदेव राज कंबोज ने कहा कि – “कृषि, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य आपस में जुड़े हुए हैं. जलवायु परिवर्तन, जल संकट, भूमि क्षरण और रासायनिक प्रदूषण जैसी चुनौतियां तेजी से बढ़ रही हैं. इन समस्याओं के समाधान के लिए सतत संसाधन प्रबंधन अपनाना समय की आवश्यकता है, ताकि कृषि उत्पादन टिकाऊ हो.”

उन्होंने बताया कि, पिछले 5 वर्षों के दौरान विश्वविद्यालय ने राया, गन्ना, मूंग और गेहूं सहित विभिन्न फसलों की 44 उन्नत किस्में विकसित की हैं. साथ ही विभिन्न फसलों की उन्नत किस्में विकसित करने की प्रक्रिया जारी है. ईजाद की गई उन्नत किस्मों ने हरियाणा सहित देश के विभिन्न राज्यों में रिकार्ड  उत्पादन किया है. यूनिवर्सिटी द्वारा उत्पन्न किस्मों की मांग अन्य राज्यों में निरंतर बढ़ती जा रही है. इस सम्मेलन से विद्यार्थियों को शोध करने के लिए प्रेरणा मिलेगी.

एसएसएआरएम के डा. डीपी सिंह क्या बोले 

एसएसएआरएम के प्रधान एवं जबलपुर कृषि विश्वविश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. डीपी सिंह ने सोसाइटी द्वारा विद्यार्थियों को शोध के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए दी जाने वाली फैलोशिप के बारे में बताया व देश – विदेश में आयोजित किए गए सम्मेलनों के बारे में जानकारी दी.

बायर क्रॉप साइंस के निदेशक भी हुए शामिल 

बायर क्रॉप साइंस के कृषि मामलों के निदेशक डा. राजबीर राठी ने बताया कि वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए उचित प्रयास करने जरूरी हैं.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...