सब्जियों की अच्छी पैदावार उस क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की उपज क्षमता पर निर्भर होती है. सब्जियों को बेमौसम में उगाने के लिए वातावरण उस फसल के अनुकूल हो, इस का ध्यान रखना भी लाजिम है. जिस से हम कम खर्च में ही बेमौसमी सब्जियों को पैदा करके उससे ज्यादा फायदा ले सकते हैं. ऐसी ही एक तकनीक है, जिसका इस्तेमाल कर हम बेमौसम की सब्जियां कभी भी पैदा कर उनका स्वाद ले सकते हैं. क्या है वह तकनीक? अगर आप जानना चाहते हैं तो यह लेख आप के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है.

क्या है प्लास्टिक लो टनल तकनीक

प्लास्टिक लो टनल तकनीक एक ऐसी खास तकनीक है, जिसमें कम तापमान पर पौधों को सुरक्षित रखा जाता है. इस विधि में प्लास्टिक या पोलीथिन के द्वारा कम ऊंचाई में ढ़ककर घेरा बनाया जाता है, जो देखने में छोटे ग्रीनहाउस जैसा लगता है. इसको बनाने के लिए खेत में या घर के बगीचे में ऊंची जगह पर छोटी – छोटी क्यारियां बनाएं. क्यारियों का रुख उत्तर – दक्षिण दिशा में बनाएं, जिससे सूरज की पूरी रोशनी मिलती रहे. क्यारियों के बीच में सिंचाई के लिए ड्रिप लाइन बिछा दें.

लो टनल तैयार करने की विधि

खेत या बगीचे में क्यारियां बनाने के बाद क्यारियों के अंदर पतले पाइप या तारों से अर्धगोलाकार में मोड़कर इस प्रकार का घेरा बना लें, जिस के दोनों सिरों की दूरी तकरीबन 2 फुट हो और ऊंचाई तकरीबन 2 फुट ही रखें. ये जो बनाए गए घेरे हैं, इन्हें क्यारी में लगाने पर एक घेरे की दूरी दूसरे घेरे से तकरीबन डेढ़ से 2 मीटर रखें और इन्हें क्यारियों में सही दूरी पर लगा दें. इसके बाद पौध को इन क्यारियों में बो दें. उसके बाद में 20 माइक्रोन मोटाई और तकरीबन 2 मीटर चौड़ाई की आर – पार दिखने वाली प्लास्टिक की चादर से इन क्यारियों को ढक दें. क्यारियों को ढकने के बाद लंबाई वाली तरफ से प्लास्टिक के किनारों को मिट्टी में दबा दें. इस तरीके से रोपी गई पौध पर प्लास्टिक का एक लंबा व छोटा ग्रीनहाउस जैसा बन जाता है.

तापमान नियंत्रण के उपाय

रात के समय का तापमान यदि 5 डिग्री से कम हो तो प्लास्टिक की चादर में छेद करने की जरूरत नहीं है. जब तापमान बढ़ने लगे तब प्लास्टिक की चादर में छेद करने की जरूरत होती है. जैसे – जैसे तापमान बढ़ता जाता है, प्लास्टिक में छेदों की संख्या भी बढ़ा दी जाती है. पहले ढाई से 3 मीटर की दूरी पर छेद बनाते हैं, बाद में इन्हें 1-1 मीटर की दूरी पर बनाते हैं.
धीरे-धीरे जब मौसम ठीक होने लगता है, उस समय तापमान को ध्यान में रखते हुए मार्च महीने तक टनल की प्लास्टिक को पूरी तरह हटा दिया जाता है. इस समय तक फसल काफी बढ़ चुकी होती है और कुछ समय बाद खेतों में फल प्राप्त होने लगते हैं. इस लो टनल तकनीक से विभिन्न सब्जियों की फसल को तय समय से तकरीबन डेढ़ महीने पहले हासिल किया जा सकता है, जिससे अच्छा फायदा मिलता है.

प्लास्टिक लो टनल तकनीक

कौन-कौन सी सब्जियां उगाई जा सकती हैं

लो टनल तकनीक में कद्दूवर्गीय सब्जियों में लौकी, करेला, तुरई, ककड़ी, खीरा आदि सब्जियों की बेमौसम में भी खेती की जा सकती है. इसके अलावा टमाटर ,बैगन, हरी मिर्च, धनिया जैसी सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं,

लो टनल तकनीक से होने वाले फायदे

आप लो टनल तकनीक से बेमौसम सब्जियों की खेती करके अधिक मुनाफा भी ले सकते हैं, क्योंकि बाजार में बिना मौसम की सब्जियों के मनमाफिक दाम मिलते हैं. और घर बैठे भी कई सब्जियों के स्वाद ले सकते हैं. इस तकनीक से सब्जी उगने के लिए बहुत अधिक जगह की भी जरूरत नहीं होती, आप कम जगह में भी यह मुनाफेदार और सेहत वाली सब्जियां उगा सकते हैं.

कम जगह, कम खर्च, जल्दी फसल और ज़्यादा मुनाफा — किसानों के लिए लाभदायक है प्लास्टिक लो टनल तकनीक. तो आप भी उगें बेमोसम सब्जियां और पाएं मुनाफ़ा.

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