Sesame : तिल की खेती को बढ़ावा 

Sesame : उत्तर प्रदेश में सरकार किसानों की उपज और आमदनी को बढ़ाने के लिए समयसमय पर कदम उठा रही है. इसी में से एक प्रदेश में तिल की खेती करने वाले किसानों को सरकार प्रोत्साहित करेगी. कृषि विभाग तिल के बीजों पर 95 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर अनुदान देगी. तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9,846 रुपए प्रति क्विंटल है.

खरीफ मौसम में उत्तर प्रदेश में तकरीबन 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में तिल की खेती की जाती है. तिल की खेती में कृषि निवेश न के बराबर लगता है पर तिल का बाजार मूल अधिक होने के कारण प्रति इकाई क्षेत्रफल में लगभग होने की संभावना अधिक है तिल की प्रमुख प्रजातियां आरटी 346, आरटी 351, गुजरात तिल 6 आरटी, 372 आरटी, एमटी 2013-3 और बीयूएटी तिल-1 है. तिल के बीज बोने से पहले थीरम या कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजोपचारित करने से मिट्टी और बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है.

MSP : किसानों को मिली सौगात, खरीफ की 14 फसलों की बढ़ी एमएसपी

MSP: केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में किसानों को बड़ी सौगात दी गई. खरीफ की 14 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया गया है, जिस से किसानों को अब उन की उपज के अधिक दाम मिलेंगे. साल 2025- 26 खरीफ फसलों के समर्थन बढ़ने से किसानों का मुनाफा बढ़ेगा और उन की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा. पिछले कुछ सालों से किसान और अनेक किसान संगठन एमएसपी बढ़ाने को ले कर सरकार पर दबाव बना रहे थे. ऐसे में सरकार का यह कदम किसानों के लिए लाभकारी है.

सोयाबीन एवं धान सहित अन्य खरीफ फसलों की बोआई से पहले केंद्र सरकार ने किसानों के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है. दरअसल, 28 मई को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में धान, कपास, सोयाबीन, अरहर समेत खरीफ की 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में इजाफा किया गया है.

इस के अलावा सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज सब्सिडी योजना को भी आगे बढ़ाया है.

अब किसान क्रेडिट कार्ड पर कम ब्याज में लोन भी दिया जाएगा. इस बात की जानकारी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी. नई एमएसपी से सरकार पर 2 लाख 7 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा. यह पिछले फसल सीजन की तुलना में 7 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है.

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फसल की लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा हो, इस बात का खास ध्यान रखा गया है. सोयाबीन, धान एवं कपास सहित कई खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में कितनी बढ़ोतरी की गई है, इस की जानकारी यहां दी गई है.

खरीफ फसलों की नई एमएसपी

धान की नई एमएसपी 2,369 रुपए तय की गई है, जो पिछली एमएसपी से 69 रुपए ज्यादा है. कपास की नई एमएसपी 7,710 रुपए तय की गई है. इस की एक दूसरी किस्म की नई एमएसपी  8,110 रुपए कर दी गई है, जो पहले से 589 रुपए ज्यादा है. सब से ज्यादा रामतिल की एमएसपी में 820 रूपए की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

एमएसपी          एमएसपी       एमएसपी  वृद्धि

फसल             2024-25(रुपए में)   2025-26(रुपए में)   (रुपए में)

धान (सामान्य)       2,300             2,369              69

धान (A ग्रेड)         2,320             2,389              69

ज्वार (हाइब्रिड)       3,371             3,699              328

ज्वार (मालदंडी)      3,421             3,749              328

बाजरा              2,625             2,775              150

रागी               4,290             4,886              596

मक्का              2,225             2,400              175

तुवर/अरहर          7,550              8,000              450

मूंग                8,682             8,768               86

उड़द               7,400              7,800              400

मूंगफली            6,783              7,263              480

सूरजमुखी           7,280             7,721              441

सोयाबीन            4,892             5,328              436

तिल                9,267             9,846              579

रामतिल             8,717             9,537              820

कपास (मिडिल स्टेपल) 7,121             7,710              589

कपास (लांग)               7,521             8,110              589

मिनिमम सर्पोट प्राइस यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य वो गारंटीड मूल्य है, जो सरकार द्वारा तय किया जाता है. जिस के तहत किसानों को उन की फसल पर नई एमएसपी पर उपज की कीमत मिलती है. भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो.

इस के पीछे सरकार का तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव का असर किसानों पर न पड़े. उन्हें अपनी फसल की न्यूनतम कीमत मिलती रहे.

सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी (CACP) यानी ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ की सिफारिश पर  एमएसपी तय करती है. यदि किसी फसल की बंपर पैदावार हुई है तो उस की बाजार में कीमतें कम होती हैं, तब एमएसपी उन के लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है. यह एक तरह से कीमतें गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पौलिसी की तरह काम करती है.

किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज सब्सिडी योजना को आगे बढ़ाया

केंद्र सरकार ने 2025-26 के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज सब्सिडी योजना (खरीफ फसल एमएसपी सूची) को जारी रखने का फैसला किया है. ब्याज सब्सिडी योजना को अगले वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जारी रखने को मंजूरी दे दी गई है.

इस के लिए जरूरी फंड भी तय कर लिया गया है. ये योजना किसान क्रेडिट कार्ड के द्वारा किसानों को कम ब्याज पर लोन देने के लिए है. किसान, किसान क्रेडिट कार्ड  से 3 लाख रुपए तक का लोन 7 फीसदी ब्याज पर ले सकते हैं, जिस में बैंकों को 1.5 फीसदी ब्याज सब्सिडी मिलती है.

जो किसान समय पर लोन चुका देते हैं, उन्हें 3 फीसदी तक का प्रोत्साहन मिलता है, यानी उन का ब्याज सिर्फ 4 फीसदी रह जाता है. इस के अलावा कृषि के सहायक काम जैसे पशुपालन या मछलीपालन के लिए भी लोन पर 2 लाख रुपए तक की सीमा पर ये लाभ मिलता है.

कुल मिला कर देखा जाए तो खेती और उस से जुड़े काम करने वाले अनेक लोगों समेत सरकार ने सब का ध्यान रखा है .

सरकार ने बढ़ाई खरीद सीमा, किसानों को होगा जम कर मुनाफा

बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) पीएम आशा योजना का ही एक घटक है. बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) को राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकार के अनुरोध पर अलगअलग तरह की जल्दी खराब होने वाली कृषि/बागबानी वस्तुओं जैसे टमाटर, प्याज और आलू आदि की खरीद के लिए लागू किया जाता है, जिन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू नहीं होता है.

जब राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में पिछले सामान्य मौसम की दरों की तुलना में बाजार में कीमतों में कम से कम 10 फीसदी  की कमी होती है, ऐसी स्थिति में किसानों को अपनी उपज को मजबूरी में कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर न होना पड़े, इसलिए बाजार हस्तक्षेप योजना लागू की जाती है, ताकि किसानों को उन की उपज का सही दाम मिले और वह घाटे में न रहे.

बाजार हस्तक्षेप योजना के कार्यान्वयन के लिए अधिक राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के दिशानिर्देशों के निम्नलिखित प्रावधानों में बदलाव किया है:

– बाजार हस्तक्षेप योजना को पीएम आशा की व्यापक योजना का एक घटक बनाया.

– पिछले सामान्य वर्ष की तुलना में प्रचलित बाजार मूल्य में न्यूनतम 10 फीसदी की कमी होने पर ही बाजार हस्तक्षेप योजना लागू की जाएगी.

– फसलों की उत्पादन मात्रा की खरीद/कवरेज सीमा को मौजूदा 20 फीसदी से बढ़ा कर 25 फीसदी कर दिया गया है.

– राज्य के पास भौतिक खरीद के स्थान पर सीधे किसानों के बैंक खाते में बाजार हस्तक्षेप मूल्य और बिक्री मूल्य के बीच के अंतर के भुगतान करने का विकल्प भी दिया गया है.

–  इस के अलावा जहां उत्पादन और उपभोक्ता राज्यों के बीच टौप फसलों (टमाटर, प्याज और आलू) की कीमत में अंतर है, वहां किसानों के हित में नाफेड ( NAFED) और एनसीसीएफ (NCCF) जैसी केंद्रीय नोडल एजंसियों द्वारा उत्पादक राज्य से अन्य उपभोक्ता राज्यों तक फसलों के भंडारण और परिवहन में होने वाली सभी परिचालन लागत की भरपाई की जाएगी. मध्य प्रदेश से दिल्ली तक 1,000 मीट्रिक टन तक खरीफ टमाटर के परिवहन के लिए परिवहन लागत की भरपाई के लिए एनसीसीएफ (NCCF)  को मंजूरी दे दी गई है.

बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत शीर्ष फसलों की खरीद करने और कार्यान्वयन करने वाले राज्य के साथ समन्वय में उत्पादक राज्य और उपभोक्ता राज्य के बीच मूल्य अंतर की स्थिति में उत्पादक राज्य से उपभोक्ता राज्य तक भंडारण और परिवहन की व्यवस्था करने के लिए, NAFED और NCCF के अलावा किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी), राज्य द्वारा नामित एजेंसियों और अन्य केंद्रीय नोडल एजेंसियों को शामिल करने का प्रस्ताव किया जा रहा है.

तिलतिल मरने को मजबूर किसान

देशभर के किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल पिछले 50 दिनों से भी अधिक समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए पंजाब और हरियाणा के शंभू और खनौरी बौर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे हैं. उन की स्थिति अब अत्यंत गंभीर हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने भी पंजाब सरकार से उन की सेहत को लेकर रिपोर्ट मांगी है. सरकार की चुप्पी और टालमटोल नीति के कारण किसान समुदाय में गहरी चिंता व्याप्त है कि अगर जगजीत डल्लेवाल कुछ हुआ तो किसान आंदोलन उग्र रूप ले सकता है. अगर ऐसा हुआ तो स्थिति कहीं अधिक खराब हो सकती है. पंजाब सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने जानकारी दी कि उन्हें नजदीक ही एक अस्थाई अस्पताल में शिफ्ट किया गया है. और केंद्र सरकार के साथ किसानों की बात भी चल रही है. जो भी हो, यह बहुत ही दुखद बात है कि किसानों को अपनी बात रखने के लिए उन्हें अपनी जान तक देनी पड़ रही है.

इस विकट स्थिति को लेकर अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डा. राजाराम त्रिपाठी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आज पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है. डा. त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ ‘आईफा’ ने कहा कि “संवाद से समाधान निकलता है, लेकिन अब सबसे पहले डल्लेवाल के जीवन की रक्षा करना जरूरी है.

किसानों की आवाज को बारबार अनसुना करने से उन की पीड़ा हल नहीं होगी. यदि किसानों को उन का न्यायोचित अधिकार नहीं मिला तो यह देश के कृषि तंत्र के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा.”

उन्होंने याद दिलाया कि जब प्रधानमंत्री जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने स्वयं किसानों के हितों के लिए मुखर होकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के महत्व की वकालत की थी और आज वही किसान आप के भरोसे की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं.

मांगें सिर्फ किसानों की नहीं, देश की जरूरत हैं

देश के किसान न सिर्फ अपने परिवार बल्कि समूचे राष्ट्र को जीवनदायिनी अन्न उपलब्ध कराते हैं. उन के हितों की अनदेखी करना “ऊसर खेत में हरियाली की उम्मीद” करने जैसा है. एमएसपी की गारंटी न होने से किसानों को उन की उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता, जिस से कर्ज और आत्महत्या की समस्या और बढ़ जाती है.

डॉ. त्रिपाठी ने आगे कहा, “सरकार को चाहिए कि संवेदनशीलता का परिचय देते हुए तुरंत पहल करे. डल्लेवाल का जीवन बचाना और किसानों की न्यायोचित मांगों पर सकारात्मक कदम उठाना न केवल राजनीतिक बल्कि मानवीय जिम्मेदारी भी है. हमारी महासंघ की ओर से हर सहयोग के लिए हम तत्पर हैं.”

अंततः यह सुनिश्चित करना कि देश का किसान सम्मान के साथ जीवित रह सके, राष्ट्र के विकास की सबसे मजबूत नींव है.

किसानों को सब्सिडी (Subsidy) के साथ मिलेगी पूरी खाद

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सभा में फसलों पर एमएसपी, किसानों की कर्जमाफी समेत कई विषयों पर सवालों के जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए किसानों को एमएसपी देने से इंकार कर दिया था, जब कि‍ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार पिछले 10 वर्षों से एमएसपी में लगातार बढ़ोतरी कर रही है, वहीं शिवराज सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार उपज एमएसपी पर खरीदती रहेगी. चौहान ने कहा कि हमारी सरकार 50% से ज्यादा का एमएसपी तय करने के साथ ही किसानों से उपज भी खरीदेगी. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य देने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि साल 2015 में इस मंत्रालय का नाम कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय रखा गया, इस से पहले किसान कल्याण का कोई संबंध ही नहीं था.

राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को नया नाम “किसानों के लाड़ले” दिया है. शिवराज सिंह चौहान राज्य सभा में प्रश्नकाल के दौरान कृषि संबंधी सवालों के जवाब दे रहे थे, इसी दौरान सभापति धनखड़ ने कहा कि जिस आदमी की पहचान देश में लाड़ली बहनों के भैया के नाम से है, अब वो किसान का लाड़ला भाई भी होगा, मैं पूरी तरह आशावान हूं कि ऊर्जावान मंत्री अपने नाम ‘शिवराज’ के अनुरूप ये करके दिखाएंगे. सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज से मैंने आपका नामकरण कर दिया- “किसानों के लाड़ले”.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसानों की उपज मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर खरीदी जाएगी. हमारी सरकार 50% से ज्यादा का एमएसपी तय भी करेगी और उपज भी खरीदेगी. उन्होंने कहा कि यह नरेंद्र मोदी की सरकार है, मोदी की गारंटी वादा पूरा करने की गारंटी है. शिवराज सिंह ने कहा कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उन्होंने कहा था कि वो एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं.

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही ये फैसला किया कि लागत पर 50% मुनाफा जोड़कर एमएसपी की दरें तय की जाएगी. जब कांग्रेस सरकार थी, तब कभी भी 50% से ज्यादा लागत पर इन्होंने किसानों को लाभ नहीं दिया, लेकिन हम कटिबद्ध हैं, प्रतिबद्ध हैं कि कम से कम 50% से ज्यादा लाभ देकर किसानों की फसलें खरीदेंगे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मोदी की सरकार बहुत दूरदर्शिता से काम करती है. किसानों का कल्याण और विकास प्रधानमंत्री मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता है. कृषि के लिए बजट आवंटन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. साल 2013-14 तक ये केवल 21,900 करोड़ रुपए था, जो अब बढ़कर 1,22,528 करोड़ रुपए हो गया है. किसान कल्याण के लिए हमारी 6 प्राथमिकताएं हैं- हम उत्पादन बढ़ाएंगे, उत्पादन की लागत घटाएंगे, उत्पादन का उचित मूल्य देंगे, फसल में अगर नुकसान हो तो उसकी भरपाई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के द्वारा करेंगे, हम कृषि का विविधीकरण करेंगे और प्राकृतिक खेती की तरफ ले जाकर किसानों की आय इतनी बढ़ाएंगे कि बार-बार किसान कर्ज माफी के लिए मांग करने की स्थिति में नहीं होगा.

हम आय बढ़ाने पर विश्वास रखते हैं. मेरी कोशिश रहेगी कि पूरी सामर्थ्य और क्षमता झोंक कर काम कर के अपने किसानों की सेवा कर सकूं और कृषि के परिदृश्य को हम और बेहतर बना सकें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत का संकल्प लिया है उसी का एक रोडमैप हमने बनाया है, जिसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

शिवराज सिंह ने कहा कि हम न केवल फर्टिलाइजर उपलब्ध करवा रहे हैं, बल्कि सब्सिडी भी दे रहे हैं. पिछली बार किसानों को 1,94,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है. तब जाकर यूरिया की बोरी हो, डीएपी की बोरी हो, ये किसानों को सस्ती मिलती है. 2100 रुपए की एक बोरी पर सब्सिडी देने का चमत्कार नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है और सारे भारत के किसानों को सब्सिडी देकर हम फर्टिलाइजर समय पर उपलब्ध कराने का काम कर भी रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. कैमिकल फर्टिलाइजर के असंतुलित और अंधाधुंध प्रयोग के कारण जो नुकसान होते हैं, उसके लिए भी हम जागरूकता पैदा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस के लिए भी चिंतित हैं. इस के लिए जैविक खेती और प्राकृतिक खेती की तरफ हम ध्यान दे रहे हैं, लेकिन मैं फिर पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहूंगा कि, किसानों को सब्सिडी के साथ पूरा खाद देने में सरकार ने ना तो कोताही बरती है, ना ही आगे कभी बरतेगी पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराया जाएगा.

पिछले दस वर्षों में दालों का उत्पादन (Pulses Production) 60 फीसदी बढ़ा

नई दिल्ली: केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण व वस्त्र और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने और 50 अरब डालर से अधिक के कृषि संबंधी उत्पादों के निर्यात को सक्षम बनाने के लिए कृषि उत्पादों के उत्पादन एवं गुणवत्ता में बढ़ोतरी होने पर प्रसन्नता व्यक्त की.

मंत्री पीयूष गोयल ने सहकारी प्रमुख भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) के सहयोग से वैश्विक दलहन परिसंघ द्वारा आयोजित ‘नेफेड: पल्स 2024 सम्मेलन’ में अपने संबोधन के दौरान यह बात कही. इस कार्यक्रम का आयोजन सहकारी क्षेत्र के प्रमुख राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) के सहयोग से किया गया.

मंत्री पीयूष गोयल ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने और देश को खाद्यान्न, दलहन, मसूर, सब्जियों व फलों के एक बड़े उत्पादक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में उन के योगदान के लिए भारत के किसानों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि इस से विभिन्न खाद्य उत्पादों के उत्पादन एवं गुणवत्ता दोनों में विस्तार हुआ है, जिस से भारत 50 अरब डालर से अधिक के कृषि और संबंधित उत्पादों का निर्यातक बन गया है.

उन्होंने कहा कि पिछले दशक में किसानों की प्रतिबद्धता व क्षमताओं के कारण दालों का उत्पादन साल 2014 में 171 लाख टन से 60 फीसदी बढ़ कर साल 2024 में 270 लाख टन हो गया है. दालों को न केवल भारत का, बल्कि दुनिया का एक प्रमुख आहार बनाने के लिए राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और वैश्विक दलहन परिसंघ के बीच साझेदारी बढ़ती रहेगी.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने आगे कहा कि सरकार ने देश के किसानों का सहयोग करने और भारतीय नागरिकों के लिए उचित मूल्य वाली दालों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के मकसद से भारत दाल की शुरुआत की है. ‘भारत‘ ब्रांड के तहत खुदरा बिक्री के लिए सरकार द्वारा खरीदी गई चना दाल ने बाजार में उतरने के 4 महीनों में ही दलहन के क्षेत्र में 25 फीसदी हिस्सेदारी हासिल कर ली है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि विभिन्न ई-कौमर्स साइटों पर ग्राहक समीक्षाओं से ‘भारत दाल’ को मिली उच्च रेटिंग किसानों की उच्च गुणवत्ता वाली दालों का उत्पादन करने की क्षमता को दर्शाती है और सरकार के सहयोग से यह आम आदमी के लिए सहजता से उपलब्ध भोजन बन सकता है. पिछले एक दशक में दालों की सरकारी खरीद 18 गुना बढ़ चुकी है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह भी कहा कि साल 2015 में सरकार ने मध्यम कीमतों और मूल्य स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए बफर स्टाक की शुरुआत की थी, जिस से उपभोक्ताओं को खाद्य मुद्रास्फीति से बचाया जा सके. इस के असर से विकसित दुनिया सहित कई देश 40 साल की उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि भारत सब से कम मुद्रास्फीति दर के साथ एक प्रमुख देश था और पिछले दशक में मुद्रास्फीति को दोहरे अंक में 5-5.5 फीसदी तक लाने में सक्षम रहा है.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बारे में उन्होंने कहा कि एमएसपी आज हमारे किसानों को उत्पादन की वास्तविक लागत से 50 फीसदी अधिक कीमत का आश्वासन देती है, जिस से निवेश पर आकर्षक रिटर्न मिलता है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह भी कहा कि एक दशक पहले प्रदान की गई राशि की तुलना में मसूर में 117 फीसदी, मूंग में 90 फीसदी, चना दाल में 75 फीसदी अधिक, तुअर और उड़द में 60 फीसदी अधिक वृद्धि के साथ एमएसपी आज सब से अधिक है.

मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि नेफेड व एनसीसीएफ किसानों को दलहन व मसूर में विविधता लाने के मकसद से प्रोत्साहित कर रहे हैं और सरकारी खरीद के लिए 5 साल के अनुबंध के लक्ष्य के साथ सुनिश्चित मूल्य प्रदान करने के इच्छुक हैं, जो भारत सरकार का एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि भारत दुनिया में मोटे अनाज का सब से बड़ा उत्पादक और 5वां सब से बड़ा निर्यातक है. सरकार श्रीअन्न की तरह ही दलहन और मसूर पर भी समान रूप से ध्यान केंद्रित कर रही है.
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कार्यक्रम में उपस्थित उद्योग जगत के प्रमुखों से उत्पादकता में सुधार लाने और दलहन उद्योग को बढ़ाने के लिए सुझाव देने एवं मार्गदर्शन प्रदान करने का आग्रह किया.

राजस्थान में मूंग और मूंगफली की ज्यादा खरीद करेगी सरकार

जयपुर: राज्य में अधिक से अधिक किसानों को समर्थन मूल्य पर खरीद का लाभ मिले, इस के लिए मूंग और मूंगफली की पंजीकरण क्षमता को 90 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी किया गया है.

प्रबंध निदेशक, राजफैड, संदेश नायक ने बताया कि जिन केंद्रों पर पंजीयन क्षमता पूरी हो चुकी है, वहां 20 फीसद अतिरिक्त पंजीयन सीमा बढ़ाई गई है. किसान बढ़ी हुई पंजीयन सीमा का लाभ प्राप्त कर सकेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि किसान पंजीयन सीमा बढ़ाने पर मूंग के लिए 12,731 एवं मूंगफली के लिए 17,025 कुल 29,756 अतिरिक्त किसान पंजीयन करवा सकेंगे. दलहन व तिलहन खरीद की कुल सीमा भारत सरकार द्वारा स्वीकृत लक्ष्य तक सीमित रहेगी.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि मूंग, उड़द, मूंगफली एवं सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर जारी मूंगफली के लिए 9,443 किसानों द्वारा पंजीकरण करवाया गया है.

प्रबंध निदेशक संदेश नायक ने बताया कि अब तक 5,584 किसानों से 11,487 मीट्रिक टन मूंग और मूंगफली की खरीद की जा चुकी है, जिसकी राशि लगभग 98 करोड़ रुपए है. उड़द एवं सोयाबीन के बाजार भाव समर्थन मूल्य दर से अधिक होने के कारण किसानों द्वारा समर्थन मूल्य पर उक्त जिंस के विक्रय में रुचि नहीं ली जा रही है.

उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि समर्थन मूल्य खरीद योजना का लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से ई-मित्र के माध्यम से आवश्यक दस्तावेज यथा गिरदावरी, बैंक की पासबुक, आधारकार्ड सहित शीघ्र पंजीयन करावें, ताकि किसानों को जिंस तुलाई हेतु पंजीयन की प्राथमिकता के क्रम में तुलाई दिनांक आवंटित की जा सके.

प्रबंध निदेशक संदेश नायक ने बताया कि किसान दलहन व तिलहन को सुखा कर और साफसुथरा कर अनुज्ञेय नमी की मात्रा के अनुरूप तुलाई केंद्रों पर लाएं. किसानों की समस्या के समाधान के लिए किसान हेल्पलाइन नंबर 18001806001 जारी किया है, जहां किसान अपनी समस्या का निराकरण कर सकते हैं.

एमएसपी : ठगा जा रहा है अन्नदाता

अगर किसान को उस की फसल की लागत से थोड़ा अधिक पैसा मिल जाए तो वह संतुष्ट हो कर अगली फसल के लिए बेहतर बीज, खाद और पानी का इंतजाम कर सकेगा. इस से फसल भी अच्छी, अधिक और उम्दा होगी और इस का सीधा असर उस की खुशहाली पर दिखेगा.

कमजोर तबकों को जो अनाज बांटा जाता है, उस की क्वालिटी भी अच्छी होगी. अच्छे अनाज, दालें और सब्जियों का सीधा संबंध हमारी सेहत से है. लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारें किसान की फसल के लिए एमएसपी तय करने में नानुकुर करती हैं. लिहाजा, न तो किसान अच्छे बीज खरीद पाता है, न खाद, न पानी, कीटाणुनाशक दवाओं आदि की व्यवस्था भी नहीं कर पाता है. कई बार तो पैसे के अभाव में अगली फसल की बोआई तक नहीं होती. खेत खाली ही पड़े रहते हैं.

हम में से बहुत से लोग वाकिफ नहीं होंगे कि यह एमएसपी क्या होता है और यह कैसे तय किया जाता है, इस से किसानों को क्या फायदा है. न्यूनतम सर्मथन मूल्य यानी एमएसपी किसानों की फसल की सरकार द्वारा तय कीमत होती है.

एमएसपी के आधार पर ही सरकार किसानों से उन की फसल खरीदती है. राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए इस एमएसपी पर सरकार किसानों से उन की फसल खरीदती है. हालांकि उन किसानों की तादाद महज 6 फीसदी है, जिन को एमएसपी रेट मिल रहे हैं.

हर साल फसलों की बोआई से पहले उस का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाता है. बहुत से किसान तो एमएसपी देख कर ही फसल की बोआई करते हैं. सरकार विभिन्न एजेंसियों, जैसे एफसीआई आदि के माध्यम से किसानों से एमएसपी पर अनाज खरीदती है. एमएसपी पर खरीद कर सरकार अनाजों का बफर स्टौक बनाती है.

सरकारी खरीद के बाद एफसीआई और नैफेड के गोदामों में यह अनाज जमा होता है. इस अनाज का इस्तेमाल गरीब लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी राशन प्रणाली में वितरण के लिए होता है.

केरल सरकार ने तो सब्जियों के लिए भी आधार मूल्य तय करने की पहल की है. सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने वाला केरल पहला राज्य बन गया है. सब्जियों का यह न्यूनतम या आधार मूल्य उत्पादन लागत से तकरीबन 20 फीसदी अधिक होता है.

एमएसपी कौन तय करता है

सरकार हर साल रबी और खरीफ सीजन की फसलों का एमएसपी घोषित करती है. फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषि लागत और मूल्य आयोग तय करता है. यह आयोग तकरीबन सभी फसलों के लिए दाम तय करता है, जबकि गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है.

मूल्य आयोग समय के साथ खेती की लागत के आधार पर फसलों की कीमत तय कर के अपने सुरक्षा व सरकार के पास भेजता है. सरकार इन सुझाव पर स्टडी करने के बाद एमएसपी की घोषणा करती है.

किन फसलों का होता है एमएसपी

MSPकृषि लागत एवं मूल्य आयोग हर साल खरीफ और रबी सीजन की फसल आने से पहले एमएसपी की गणना करता है. इस समय 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार तय करती है, जिन में मुख्य हैं : धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, गन्ना, कपास और जूट वगैरह.

सब को नहीं मिलती एमएसपी

कोई किसान नहीं चाहता कि उस की फसल एमएसपी से कम दाम पर बिके, लेकिन 94 फीसदी किसानों को अपनी फसल औनेपौने दामों पर आढ़तियों को बेचनी पड़ती है. जिन किसानों की फसलें एमएसपी पर बिकती हैं, उन के सामने भी संकट कम नहीं हैं.

कई बार जब फसल की बिक्री का समय आता है, तो मंडियों में सरकारी खरीद केंद्रों पर फसलों से भरे ट्रैक्टरों व ट्रकों की लंबी लाइनें लग जाती हैं. किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कईकई दिनों इंतजार करना पड़ता है.

इस के अलावा अधिकतर सरकारी केंद्रों पर कुछ न कुछ दिक्कतें रहती हैं. कभी लेबर की कमी, तो कभी सरकारी खरीद केंद्र तय समय से बहुत देरी से खुलते हैं. इस के चलते किसानों को अपनी फसल कम दाम पर आढ़तियों को बेचनी पड़ती है, जिस से उन्हें काफी नुकसान होता है.

कई बार तो किसानों को नुकसान इतना अधिक होता है कि अगली फसल के लिए बीज, खाद, पानी, बिजली, कीटनाशक और लेबर का खर्चा निकालना उन के लिए संभव नहीं होता है. ऐसे में वह कर्ज के बोझ तले दबता चला जाता है.

एक अनुमान के मुताबिक, देश में केवल 6 फीसदी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का फायदा मिलता है, जिन में से सब से ज्यादा किसान उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के हैं.

यह दर बहुत ही कम है. इस को बढ़ाए जाने की जरूरत है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान अपनी लागत पर कुछ अतिरिक्त कमा सकें और उस पूंजी का इस्तेमाल अपनी अगली फसल को बेहतर बनाने में कर सकें.

एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें

प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक प्रो. एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. उन की अगुआई में 18 नवंबर, 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था. इस आयोन ने 4 अक्तूबर, 2006 को अपनी 5वीं और अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.

रिपोर्ट का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में व्यापक और स्थायी बदलाव लाने के साथसाथ खेती को कमाई व रोजगार का जरीया बनाना था. उन्होंने किसानों की आय बढ़ाने के लिए जो सुझाव  दिए थे, अगर वे लागू कर दिए जाते तो देशभर के किसानों की दशा बदल जाती. लेकिन मोदी सरकार ने उन की 201 सिफारिशों में से मात्र 25 को ही बमुश्किल लागू किया है और वह भी जमीनी स्तर पर पूरी तरह फायदा नहीं दे रही हैं.

महात्मा गांधी ने 1946 में कहा था कि जो लोग भूखे हैं, उन के लिए रोटी भगवान है. देश में जबजब किसान आंदोलन होता है व किसान जब सड़क पर आते हैं, तबतब स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों की चर्चा होती है.

भूमि सुधार के लिए आयोग की सिफारिशें

इस रिपोर्ट में भूमि सुधारों की गति को बढ़ाने पर खास जोर दिया गया है. सरप्लस व बेकार पड़ी जमीनों को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने के हक यकीनी बनाना व राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा सुधारों के विशेष अंग हैं.

किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए

आयोग की सिफारिशों में किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी विशेष जोर दिया गया है.

एमएसपी औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही ध्येय खास है. किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र व मार्केट दखल स्कीम भी लौंच करने की सिफारिश रिपोर्ट में है.

सिंचाई के लिए

सभी को पानी की सही मात्रा मिले, इस के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग व वाटर शेड परियोजनाओं को बढ़ावा देने की बात रिपोर्ट में है. इस लक्ष्य से पंचवर्षीय योजनाओं में ज्यादा धन आवंटन की सिफारिश की गई है.

फसली बीमा के लिए

रिपोर्ट में बैंकिंग व आसान वित्तीय सुविधाओं को आम किसान तक पहुंचाने पर विशेष जोर दिया गया है. सस्ती दरों पर फसल लोन मिले यानी ब्याजदर सीधे 4 प्रतिशत कम कर दी जाए. कर्ज उगाही में नरमी यानी जब तक किसान कर्ज चुकाने की स्थिति में न आ जाए, तब तक उस से कर्ज न वसूला जाए. उन्हें प्राकृतिक आपदाओं में बचाने के लिए कृषि राहत फंड बनाया जाए.

उत्पादकता बढ़ाने के लिए

भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही खेती के लिए ढांचागत विकास संबंधी बातें भी रिपोर्ट में कही गई हैं. मिट्टी की जांच व संरक्षण भी एजेंडे में है. इस के लिए मिट्टी के पोषण से जुड़ी कमियों को सुधारा जाए व मिट्टी की टैस्टिंग वाली लैबों का बड़ा नैटवर्क तैयार हो.

MSPखाद्य सुरक्षा के लिए

प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता बढ़े, इस मकसद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल सुधारों पर बल दिया गया है. कम्यूनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने व राष्ट्रीय भोजन गारंटी कानून की संस्तुति भी रिपोर्ट में है.

इस के साथ ही वैश्विक सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनाने की सिफारिश की गई है, जिस के लिए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के एक फीसदी हिस्से की जरूरत होगी. उन्होंने लिखा है, ‘महिला स्वयंसेवी ग्रुप की मदद से ‘सामुदायिक खाना और पानी बैंक’ स्थापित करने होंगे, जिन से ज्यादा से ज्यादा लोगों को खाना मिल सके. कुपोषण को दूर करने के लिए इस के अंतर्गत प्रयास किए जाएं.’ वादा तो था स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने का, पर अब एमएसपी ही खतरे में है.

स्वामीनाथन आयोग की एक प्रमुख सिफारिश एमएसपी को ले कर थी. उन्होंने कहा कि किसानों को उन की फसलों के दाम उन की लागत में कम से कम 50 प्रतिशत जोड़ कर दिया जाना चाहिए. देशभर के किसान इसी सिफारिश को लागू करने की मांग ले कर सड़कों पर कई बार आंदोलन कर चुके हैं.

कभी गन्ने के बकाया भुगतान को ले कर, तो कभी प्याज की अचानक घट जाती कीमतों को ले कर, तो कभी कारपोरेट के इशारे पर जमीन के जबरन अधिग्रहण को ले कर, तो कभी बिजली, खाद, डील को रियायती दर पर देने की मांग को ले कर, तो कभी अपनी उपज की वाजिब कीमत को ले कर देश का किसान सड़कों पर उतरता रहा है. लेकिन तमाम वादे करने के बाद भी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को न तो संप्रग सरकार ने लागू किया और न ही वर्तमान भाजपा सरकार ने.

भाजपा ने साल 2014 के आम चुनाव के समय अपने घोषणापत्र, जिसे वह ‘संकल्पपत्र’ कहती है, में वादा किया है कि वह फसलों का दाम लागत में 50 प्रतिशत जोड़ कर के देगी. लेकिन जब हरियाणा के एक आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने आरटीआई दायर कर के सरकार से इस वादे के बारे में पूछा, तो सरकार ने जवाब दिया कि वह इसे लागू नहीं कर सकती है.

विडंबना है कि जो लोग सरकारी नौकरियों में हैं, उन का वेतन तो 150 गुना तक बढ़ाया गया है और किसान के लिए यही वृद्धि 70 बरस में सिर्फ 21 गुना तक बढ़ी है. लगता यही है कि पूरा तंत्र ही किसानों का विरोधी है.

सरकार क्यों नहीं दे रही एमएसपी की गारंटी

सरकार का सोचना है कि एमएसपी से देश में महंगाई बढ़ेगी. इस से सरकारी खजाने पर बोझ  के साथसाथ आम उपभोक्ताओं की जेब पर भी भारी बोझ पड़ेगा. कृषि उपज में महंगाई की आग भड़केगी, जिस से रसोईघर की लागत बढ़ जाएगी.

सरकार कहती है कि किसानों के लिए कहने को तो यह न्यूनतम समर्थन मूल्य है, लेकिन बाजार में यही अधिकतम मूल्य बन कर महंगाई का दंश देगा. इस से मुट्ठीभर किसानों का हित भले ही हो, पर उपभोक्ताओं के लिए एमएसपी मुश्किलों का सबब बन जाएगा.

आमतौर पर एमएसपी पर होने वाली सरकारी खरीद में अनाज की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में होती है. इस से सरकारी खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को सालाना कई हजार करोड़ रुपए की चपत लगती है.

खराब अनाज ही राशन में बांटने की होगी मजबूरी

एमएसपी की गारंटी पर खाद्यान्न की खरीद बढ़ने के साथ कम गुणवत्ता वाले अनाज की खरीद भी अधिक करनी पड़ेगी. लिहाजा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत गरीब उपभोक्ताओं को घटिया अनाज प्राप्त करना उन की नियति बन जाएगी.

आमतौर पर मुफ्त अनाज मिलने की वजह से उन का मुखर विरोध कहीं सुनाई नहीं पड़ता. लिहाजा, इस का पूरा खमियाजा सरकारी खजाने के साथ गरीबों और आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा. इन्हीं गंभीर चुनौतियों को ध्यान में रख कर पहले की सरकारें भी एमएसपी की गारंटी देने से बचती रही हैं.

पीडीएस में जाता है 90 फीसदी अनाज

सरकारी एजेंसियां सालाना 3.50 करोड़ टन से ले कर 3.90 करोड़ टन तक गेहूं और 5.19 करोड़ टन तक चावल की खरीद करती हैं. गेहूं व चावल की ही सर्वाधिक खरीद होती है, जो कुल पैदावार का 30 फीसद होता है. सरकारी खरीद का 90 फीसदी हिस्सा पीडीएस में वितरित किया जाता है, जबकि 10 फीसदी हिस्सा स्ट्रैटेजिक बफर स्टौक के तौर पर रखा जाता है. एमएसपी पर होने वाली खरीद केवल 6 फीसद किसानों से ही होती है.

एमएसपी को ले कर ज्यादातर किसान अनजान

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के मुताबिक, देश के मुश्किल से 10 फीसदी किसानों को ही एमएसपी अथवा न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानकारी है. एमएसपी पर होने वाली सरकारी खरीद का कोई निश्चित क्वालिटी मानक न होने से जैसा भी अनाज बिकने को आता है, सरकारी एजेंसियों पर उन्हें खरीदने का दबाव होता है. यही वजह है कि एफसीआई हर साल कई लाख टन अनाज डैमेज क्वालिटी के नाम पर कौडि़यों के भाव नीलाम करती है.

बढ़ रहा है खाद्य सब्सिडी का बोझ

एमएसपी में लगातार होने वाली वृद्धि और पीडीएस पर बहुत ज्यादा रियायती दरों पर खाद्यान्न के वितरण से खाद्य सब्सिडी का बोझ बढ़ता जा रहा है. समर्थन मूल्य की गारंटी के साथ सरकारी खरीद कई गुना तक बढ़ सकती है. इतने अधिक अनाज को रखने और उस की खपत कहां होगी, इस का बंदोबस्त करना संभव नहीं होगा. स्वाभाविक तौर पर खुले बाजार में अनाज की कमी का सीधा असर कीमतों पर पड़ेगा, जो महंगाई को सातवें आसमान पर पहुंचा देगा.

ये तमाम बातें सरकार को एमएसपी की गारंटी देने से रोकती हैं. एमएसपी पर सरकारी खरीद चालू रहे और उस से कम पर फसल की खरीद को अपराध घोषित करना इतना आसान नहीं हैं जितना किसान संगठनों को लग रहा है.

यह भी सच है कि सरकार हर किसान का अनाज नहीं खरीद सकती. लिहाजा, खुला बाजार और मंडी में बैठे कालाबाजारियों के हाथों किसान लुटता व बरबाद होता रहेगा.

किसानों को मिलेगा लाभ, सरकार ने फिर बढ़ाई एमएसपी

नई दिल्ली :18 अक्तूबर, 2023. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में विपणन सीजन 2024-25 के लिए सभी जरूरी रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में खासी बढ़ोतरी की गई है.

मंजूरी दिए जाने पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार के इस फैसले ने किसान कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को फिर सिद्ध किया है.

मोदी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए गत 9 साल से ज्यादा के समय में एक के बाद एक अनेक कल्याणकारी निर्णय लिए हैं, कई योजनाएं-कार्यक्रम सृजित किए, जिन का बेहतर क्रियान्वयन भी हो रहा है.

केंद्र सरकार ने विपणन सीजन 2024-25 के लिए रबी फसलों की एमएसपी में वृद्धि की है, ताकि उत्पादक किसानों को उन की उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जा सके.

एमएसपी में सब से ज्यादा बढ़ोतरी दाल (मसूर) के लिए 425 रुपए प्रति क्विंटल, रेपसीड-सरसों के लिए 200 रुपए प्रति क्विंटल की मंजूरी दी गई है. गेहूं व कुसुम, हरेक के लिए 150 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी को मंजूरी दी गई है. जौ व चने के लिए क्रमश: 115 रुपए प्रति क्विंटल और 105 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी को मंजूरी दी गई है.

MSP
MSP

विपणन सीजन 2024-25 के लिए अनिवार्य रबी फसलों की एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुरूप है, जिस में एमएसपी को अ.भा. भारित औसत उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर निर्धारित करने की बात कही गई थी. अ.भा. भारित औसत उत्पादन लागत पर अपेक्षित लाभ गेहूं के लिए 102 फीसदी, रेपसीड-सरसों के लिए 98 फीसदी, दाल के लिए 89 फीसदी, चने के लिए 60 फीसदी, जौ के लिए 60 फीसदी व कुसुम के लिए 52 फीसदी है.

रबी फसलों की इस बढ़ी हुई एमएसपी से किसानों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित होगा और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन भी मिलेगा.

सरकार खाद्य सुरक्षा बढ़ाने, किसानों की आय में वृद्धि करने व आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन, दलहन और श्री अन्न/मोटे अनाजों की उपज बढ़ाने के क्रम में फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है.

MSP
MSP

मूल्य नीति के अलावा, सरकार ने वित्तीय सहायता प्रदान करने व तिलहन व दलहन की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) और राष्ट्रीय तिलहन और औयल पाम मिशन (एनएमओओपी) जैसी विभिन्न पहलें की हैं. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि व 10 हजार नए एफपीओ बनाने की महत्वपूर्ण योजनाओं से भी किसानों को सीधा फायदा पहुंच रहा है.

इस के अतिरिक्त देशभर में हरेक किसान तक किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना का लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने किसान ऋण पोर्टल (केआरपी), केसीसी घरघर अभियान और मौसम सूचना नेटवर्क डेटा प्रणाली (विंड्स) का शुभारंभ किया है. विंड्स का उद्देश्य किसानों को अपनी फसल के संबंध में निर्णय लेने में सशक्त बनाने के लिए मौसम की समय पर व सटीक जानकारी प्रदान करना है.

इन पहलों का लक्ष्य कृषि में क्रांति लाना, वित्तीय समावेश का विस्तार करना, डेटा उपयोग को अधिकतम करना व किसानों के जीवन को बेहतर बनाना है.

चावल खरीद में ये 7 राज्य हैं आगे

नई दिल्ली: खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने राज्य के खाद्य सचिवों और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की एक बैठक की अध्यक्षता की, जिस में आगामी खरीफ विपणन मौसम (केएमएस) 2023-24 में खरीफ फसल की खरीद के प्रबंधों पर चर्चा की गई. आगामी खरीफ विपणन मौसम (केएमएस) 2023-24 के दौरान 521.27 लाख मीट्रिक टन चावल की खरीद का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वर्ष का अनुमान 518 लाख मीट्रिक टन था.

पिछले खरीफ विपणन मौसम 2022-23 के दौरान वास्तव में 496 लाख मीट्रिक टन की खरीद की गई थी. खरीफ विपणन मौसम 2023-24 के दौरान, चावल की अनुमानित खरीद के मामले में अग्रणी राज्य पंजाब (122 लाख मीट्रिक टन), छत्तीसगढ़ (61 लाख मीट्रिक टन) और तेलंगाना (50 लाख मीट्रिक टन) रहे. इस के बाद ओडिशा (44.28 लाख मीट्रिक टन), उत्तर प्रदेश (44 लाख मीट्रिक टन), हरियाणा (40 लाख मीट्रिक टन), मध्य प्रदेश (34 लाख मीट्रिक टन), बिहार (30 लाख मीट्रिक टन), आंध्र प्रदेश (25 लाख मीट्रिक टन), पश्चिम बंगाल (24 लाख मीट्रिक टन) और तमिलनाडु (15 लाख मीट्रिक टन) का स्‍थान रहा.

राज्यों द्वारा खरीफ विपणन मौसम 2023-24 के दौरान 33.09 लाख मीट्रिक टन) श्री अन्न/बाजरा (श्री अन्न) की खरीद का अनुमान लगाया गया है, जबकि खरीफ विपणन मौसम 2022-23 (खरीफ और रबी) के दौरान 7.37 लाख मीट्रिक टन की वास्तविक खरीद की गई. इस खरीफ विपणन मौसम 2023-24 से शुरू हो कर तीन वर्षों तक रागी के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य पर राज्यों द्वारा 6 छोटे दाने वाले मोटे अनाज या श्री अन्न की खरीद भी शुरू की गई. श्री अन्न की खरीद और खपत बढ़ाने के लिए सरकार ने श्री अन्न की वितरण अवधि को संशोधित किया है. श्री अन्न को एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य में पहुंचाने के लिए परिवहन को शामिल किया गया है. उन्नत सब्सिडी का प्रावधान, 2 फीसदी की दर से प्रशासनिक शुल्क और 6 छोटे दाने वाले मोटे अनाजों या श्री अन्न की खरीद की सुविधा के लिए दिशानिर्देशों में भी संशोधन किया गया है. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को न केवल अंतर्राष्ट्रीय श्री अन्न वर्ष-2023 के कारण, बल्कि फसलों के विविधीकरण और आहार पैटर्न में पोषण बढ़ाने के लिए भी श्री अन्न की खरीद पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी गई थी.

बैठक के दौरान टाट की बोरियों की आवश्यकता, निर्दिष्‍ट डिपो से उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्न पहुंचाने के लिए मार्ग अनुकूलन, खरीद केंद्रों में बुनियादी ढांचे में सुधार, गेहूं स्टाक सीमा पोर्टल की निगरानी आदि से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई.

बैठक में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के प्रधान सचिव/सचिव (खाद्य) या प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

बैठक में एफसीआई के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक और एफसीआई, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अन्य अधिकारी भी उपस्थित थे.