देश के कई राज्यों में तालाबों की कमी नहीं है, जहां मछलीपालन बड़े आराम से किया जा सकता है. सरकार भी मछलीपालन में बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं लाती रहती है. इस लेख में पढ़े कि आप मछली उत्पादन से भारी मुनाफा कैसे कम सकते हैं –
छोटी मछलियां होती हैं जायकेदार
खाली पड़े तालाबों छोटी मछलियों का भरपूर उत्पादन किया जा सकता है. ये छोटी मछलियां बड़ी मछलियों की तुलना में काफी स्वादिष्ठ होती हैं, लिहाजा इनकी मांग भी खूब रहती है और दाम भी ज्यादा मिलता है. यह रोजगार और आय का अच्छा जरीया साबित हो सकता है.
मछली पालन में कैसा हो गोष्ठीमारा
मछली उत्पादन में कमी होने का एक बड़ा कारण यह है कि गांवों के मछली पकड़ने वाले लोग मछली पकड़ने के लिए एक ऐसे जाल का इस्तेमाल करते हैं, जिसे गोष्ठीमारा जाल कहा जाता है. इस प्रकार के जाल की यह खासीयत होती है कि 15 दिन की आयु वाली छोटी मछलियां भी इस से आसानी से पकड़ ली जाती हैं. ये छोटी मछलियां अमूमन मछली उत्पादन में एक प्रकार से मछली के बीज का काम करती हैं. यही छोटी मछलियां बड़ी होकर मछली व्यवसाय में काम आती हैं.
जब बीज वाली छोटी मछलियां ही नहीं रहेंगी, तो बड़ी मछलियों का उत्पादन कहां से होगा. लिहाजा मछली उत्पादन का कम होना लाजिम है. ब्रह्मपुत्र नदी के अलावा बड़े-बड़े बिलों में मछली पकड़ने के लिए गोष्ठीमारा जालों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है. लिहाजा, मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस प्रकार के जालों के इस्तेमाल पर फौरन रोक लगाना बहुत जरूरी है, ताकि बीज वाली छोटी मछलियां बची रहें.
बेकार पड़ी जमीन कमाई का जरिया
असम राज्य की बात करें तो वहां, कई हजार हेक्टेयर नीची जमीन है. यह धरती की सामान्य सतह से इतनी नीची है कि बड़े – बड़े गड्ढों के रूप में बदल गई है. यह नीची जमीन लगभग सालभर पानी से भरी रहती है. इसे असम में बिल (तालाब) के नाम से जाना जाता है. यह जमीन कृषि के लिए बेकार होती है. पानी से भरे इन बिलों को जरूरी सुधारकर के मछलीपालन के लायक बना सकते हैं. असम के शिक्षित बेरोजगारों को मछलीपालन के द्वारा एक अच्छा रोजगार मिल सकता है.
असम में इस समय लगभग 1 लाख हेक्टेयर ऐसे बिल (तालाब) हैं, लेकिन इन की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. ये बिल धीरे-धीरे पानी के साथ बहकर आने वाली रेत और मिट्टी से भरते जा रहे हैं. आमतौर पर इन बिलों को मछली के ठेकेदारों को सामयिक तौर पर ठेके पर दिया जाता है. लेकिन मछली के ठेकेदार इन बिलों में सही ढंग से मछली का उत्पादन नहीं करते हैं.
कैसे करें मछली पालन
ये बिल एक तरह से बेकार साबित हो रहे हैं. बड़े-बड़े बिलों के बीच-बीच में ऊंचे-ऊंचे किनारे बनाकर उन्हें छोटे आकार के फिशरी में बदल सकते हैं. इन फिशरी को शिक्षित बेरोजगारों को मछलीपालन के लिए दे सकते हैं. इससे बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा और राजस्व के रूप में सरकार को भी काफी आय होगी. हालांकि वर्तमान समय में असम में मछली का उत्पादन बहुत ही कम हो गया है, लेकिन मछली पकड़कर और मछली बेचकर जीवन चलाने वाले लोगों की तादाद काफी बढ़ गई है.

खाली तालाबों के विकास से बढ़ेगा मछलीपालन
असम राज्य में बिलों के अलावा कई हजार एकड़ जमीन में खाली पड़े (बड़े-बड़े कुदरती गड्ढे) और तालाब भी बने हुए हैं. राज्य में मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए इन खालों और तालाबों का विकास करना भी बेहद जरूरी है. इन तालाबों और खालों में वैज्ञानिक और उन्नत ढंग से मछलीपालन किया जा सकता है.
इस तरह से मछलीपालन किया जाए तो हर 5 या 6 महीने पर भारी मात्रा में मछलियां पैदा की जा सकती हैं. इससे एक ओर तो बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा और दूसरी ओर राज्य में लोगों को खाने के लिए पर्याप्त मछलियां मिलेंगी.
मछलीपालन लघु उद्योग
मछली उत्पादन के सहायक उद्योग के रूप में राज्य में मछली के बीजों के उत्पादन के केंद्र तो स्थापित किए ही जा सकते हैं. साथ ही साथ मछली के चारे का उद्योग भी चलाया जा सकता है. इससे भी बेरोजगारों लोगों के लिए आय का अच्छा साधन बन सकता है.
असम के कई जिलों में सैकड़ों हेक्टेयर ऐसी जमीन है, जिसे अंचल कहा जाता है. इन अंचलों में खेती बिलकुल ही नहीं हो सकती है, क्योंकि इन अंचलों की जमीन काफी नीची होती है. इन में हमेशा पानी जमा रहता है. यदि इनको विकसित करके मछलीपालन के लायक बनाया जाए, तो इन में मछली का उत्पादन भारी मात्रा में किया जा सकता है.
मछलीपालन के साथ करें बत्तखपालन
मछलीपालन के साथ-साथ तालाब व बिलों वगैरह में बत्तखपालन (Duck Farming) भी आसानी से किया जा सकता है. बत्तख का मल मछलियों के खाने के लिहाज से अच्छा होता है. लिहाजा, बत्तखपालन करने से मछलियों का चारा मुफ्त मिल जाएगा. इसके लिए मछलीपालकों को अलग से कुछ खर्च नहीं करना पड़ेगा.
उन्नत किस्म की बत्तख है लाभकारी
देशी या परंपरागत बत्तखपालन की तुलना में उन्नत किस्म की बतख के पालन के लिए असम की जलवायु काफी मुफीद है. उन्नत किस्म की बत्तखें अंडे भी ज्यादा देती हैं और उनके अंडे आकार में बडे़ होते हैं. यानी मछलीपालन के साथसाथ बत्तखपालन काफी फायदे का व्यवसाय साबित होगा.
मछलीपालन करने वाले तालाबों व बिलों में पानी की कमी नहीं होती. लिहाजा इनके किनारों पर सुअर, गाय, भैंस वगैरह का भी पालन किया जा सकता है. सुअर का मल भी मछलियों का एक अच्छा चारा होता है. इसके अलावा इन किनारों पर फल-फूल की खेती भी की जा सकती है. इस तरह से मछलीपालन के साथ-साथ अतिरिक्त आय भी होती रहेगी.





