कम पानी वाले इलाकों में खेती करने से सिंचाई में ही काफी पूंजी खर्च हो जाती है, लेकिन ऐसे इलाकों में बेल की खेती आसानी से हो जाती है और बढि़या मुनाफा भी मिलता है. बेल के पौधों और पेड़ों को काफी कम पानी की जरूरत होती है.
ऊसर, बंजर, कंकरीली, खादर और बीहड़ जमीन में इस की खेती की जा सकती है, पर बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए बेहतर होती है. इस के लिए 6-8 पीएच मान वाली जमीन सब से ज्यादा मुनासिब है. 7 डिगरी से 46 डिगरी सैल्सियस तापमान तक इस की खेती की जा सकती है.
बेल की उन्नत किस्म
बेल की उन्नत किस्मों में खास हैं, पंत शिवानी, पंत अपर्णा, पंत उर्वशी, पंत सुजाता, सीआईएसएचबी 1, सीआईएसएचबी 2 वगैरह, इन किस्मों के बेल में रेशे और बीज बहुत ही कम होते हैं. इन किस्मों के पेड़ों से प्रति पेड़ हर साल 40 से 60 किलोग्राम तक उपज पाई जाती है. बेल के पौधे मुख्य रूप से बीज से तैयार किए जाते हैं. मई और जून माह में इस की बोआई की जाती है.
पौधों को रोपना और खादपानी
बेल के पौधों को 6 से 8 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. रोपने से 20-25 दिन पहले गड्ढे कर के छोड़ देने चाहिए और उन में गोबर की सड़ी खाद डाल देनी चाहिए.
तैयार गड्ढों में जुलाईअगस्त माह में पौधों को रोपना होता है. हर पौधे में हर साल 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाश डालनी चाहिए. 10 साल पुराने पेड़ में 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस, 500 ग्राम पोटाश और 50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए.
ऊसर जमीन में जिंक की काफी कमी होती है, इसलिए उस में बाकी खाद के अलावा प्रति पेड़ 250 ग्राम जिंक सल्फेट डालनी जरूरी है. शुरुआती डेढ़ साल तक इस के पौधों को सिंचाई की जरूरत पड़ती है, पर बाद में मईजून के महीने में 20-30 दिनों के अंतराल पर 2 बार सिंचाई कर देने से पौधों के बढ़ने की रफ्तार तेज हो जाती है.
बेल के कलमी पेड़ 3 से 4 सालों में फल देने लगते हैं, जबकि बीजू पेड़ 7 से 8 सालों में फल देना शुरू करते हैं. अप्रैलमई महीनों में फल तोड़ने लायक हो जाते हैं. जब फलों का रंग गहरा हरा से बदल कर पीला हरा होने लगे तो उन की तोड़ाई 2 सैंटीमीटर डंठल के साथ करनी चाहिए. तोड़ते समय इस बात का खयाल रखना जरूरी है कि फल जमीन पर न गिरें. गिरने से उन का ऊपरी कठोर हिस्सा चटक सकता है, जिस से भंडारण के दौरान फल सड़ सकते हैं. 10-12 साल के पूरी तरह विकसित हो चुके पेड़ से हर साल 125 से 150 फल पाए जा सकते हैं.
फायदेमंद है बेल
बेल का दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. इस के फल ही नहीं जड़, छाल व पत्ते वगैरह कई रोगों के इलाज के लिए दवा के रूप में उपयोगी हैं. इसे श्रीफल भी कहा जाता है. बेल के गूदे में पाया जाने वाला मारमेलोसिन नाम का तत्त्व अजीर्ण, पेचिश, डायरिया और आंतों के अल्सर के लिए दवा का काम करता है. गरमी के मौसम में बेल का शरबत पीने से लू से बचाव होता है.
इनसानों के स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होने के बाद भी बेल की खेती सही तरीके से नहीं हो रही है. हर मौसम और मिट्टी में उपज के बाद भी बेल की नियमित खेती नहीं होने और किसानों की इस में दिलचस्पी नहीं होने की वजह से यह फल लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है.