लीची के फल अपने मनमोहक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के चलते भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया में अपना खास पहचान बनाए हुए हैं. लीची के सफल उत्पादन के लिए मुनासिब किस्मों का चयन बेहतर कृषि तकनीक, कीट बीमारी के रोकथाम व पौध संरक्षक के तरीकों को अपना कर किसान मुनाफा ले सकते हैं.

लीची के प्रमुख कीट

लीची फल बेधक व टहनी बेधक : इस कीट के लार्वा नई कोपलों की मुलायम टहनियों के भीतरी भाग को खाते हैं. नतीजतन, ग्रसित टहनियों में फूल व फलन ठीक से नहीं होता है. इस के प्रकोप से फल झड़ जाते हैं.

नियंत्रण : फल के लौंग आकार होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल कीटनाशक का छिड़काव 0.5-0.7 मिलीलिटर या नोवाल्यूरान 10 ईसी 1.5 मिलीलिटर नामक कीटनाशक का 2 छिड़काव 10-15 दिनों के फासले पर करें.

लीची की मकड़ी : इस कीट के नवजात और वयस्क दोनों ही नई कोपलों, पत्तियों, पुष्पक्रमों व फलों से लगातार रस चूसते हैं.

इस के लक्षण शुरू में निचली सतह पर धूसर रंग के मखमली सतह के रूप में बनते हैं. परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाती है.

नियंत्रण : जुलाई माह में क्लोरफेनापार 10 ईसी या प्रोपरगाइट 57 ईसी मकड़ीनाशक कैमिकल का 3 मिलीलिटर की दर से 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करना चाहिए.

लीची का बग : इस जाति के अर्भक व वयस्क दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं. ये मुलायम पत्तियों, टहनियों व फलों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं.

रोकथाम : मिली बग अगर पौधे पर चढ़ गए हों तो क्लोरोपाइरीफास या मिथाइल डेमेटान या इमिडाक्लोप्रिड या रोगोर 0.08 फीसदी का छिड़काव करें.

नीबू का काला एफिड : कीटों द्वारा कोशिका रस चूस लिए जाने के कारण पत्तियां, कलियां और फूल मुरझा जाते हैं. इस के साथसाथ यह कीट एक किस्म के विषाणुओं को भी फैलाता है.

रोकथाम : इस कीट की रोकथाम के लिए औक्सीडिमेटान मिथाइल या फिर डाईमिथोएट के 0.03 या इमिडाक्लोप्रिड 17 एसएल घोल का छिड़काव करें.

लीची के प्रमुख रोग

पत्ती मंजर और फल झुलसा : इस रोग की शुरुआत पत्तियों के आखिरी सिरे पर ऊतकों के सूखने से होती है. इस के रोग कारक मंजरों को झुलसा देते हैं, जिस से प्रभावित मंजरों में कोई फल नहीं लग पाते.

रोकथाम : इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए थायोफेनेट मिथाइल 75 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या डाईफेनोकोनाजोल 25 ईसी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या एजोक्सीस्ट्रोबिन 250 एससी 0.8 मिलीलिटर प्रति लिटर के घोल का छिड़काव करने से कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है.

श्याम वर्ण यानी एंथ्रेक्नोज : यह फलों के साथसाथ पत्तियों और टहनियों को भी प्रभावित कर सकते हैं. फलों के छिलकों पर छोटेछोटे 0.2-0.4 सैंटीमीटर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं.

रोग की अधिक तीव्रता की स्थिति में काले धब्बों का फैलाव फल के छिलकों पर आधे हिस्से तक हो सकता है.

रोकथाम : इस रोग की तीव्रता ज्यादा होने पर रोकथाम के लिए थायोफेनेट मिथाइल 75 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या डाईफेनोकोनाजोल 25 ईसी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर के घोल का छिड़काव करें.

म्लानि या उकटा रोग : यह रोग पत्तियों के हलके पीले होने के साथसाथ मुरझाने से शुरू होती है जो क्रमिक उत्तरोत्तर बढ़ती हुई 4-5 दिनों में पेड़ को पूरी तरह सुखा देती है. जड़ों और फ्लोएम ऊतकों पर कुछ भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में जाइलम ऊतकों में भी फैल जाते हैं. इस की वजह से पानी का बहाव रुक जाता है.

रोकथाम : हैक्साकोनाजोल 5 एससी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या कार्बंडाजिम 50 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर से पेड़ के सक्रिय जड़ क्षेत्र को भिगोएं.

फल विगलन : इस रोग के फैलने से छिलका मुलायम और फल सड़ने लगते हैं. प्रभावित फलों के छिलके भूरे से काले रंग के हो जाते हैं. सड़े हुए भाग पर फफूंद दिखने लगती है. फल फटने के बाद विगलन रोग जनकों के माइसिलियम फटे हुए भाग में पहुंच जाते हैं.

रोकथाम : फल तुड़ाई के 15-20 दिन पहले पेडों पर कार्बंडाजिम 50 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या थायोफेनेट मिथाइल 50 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या एजोक्सीस्ट्रोबिन 23 एससी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल का छिड़काव करें.

उपज : लीची से प्रति पेड़ औसतन 1.5 से 2.0 क्विंटल उपज मिल जाती है. एक हेक्टेयर में तकरीबन 150 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है.

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