Walnut : दांतों का दम दिखाने के लिए अकसर लोग अखरोट को दांतों से तोड़ते हैं, ऐसे में कभीकभी दांतों की सेहत खराब हो जाती है. मगर सही मानों में अखरोट (Walnut) सेहत के लिए लाजवाब होता है. जिन इलाकों में इस की खेती नहीं होती, वहां यह काफी महंगा मिलता है. पहाड़ी किसान अखरोट की बागबानी कर के भरपूर कमाई करते हैं.
अखरोट (Walnut) का उत्पादन जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सफलतापूर्वक होता है. अखरोट (Walnut) को सुखा कर ड्राईफूट के रूप में खाया जाता है. इस के अलावा अखरोट (Walnut) से तेल भी निकाला जाता है, जिसे खाने व मसाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
आहार मूल्य
अखरोट (Walnut) में वसा 64.50 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 11.00 ग्राम, खनिज पदार्थ 1.80 ग्राम, विटामिन ए 101.00 आईयू, नमी 4.50 ग्राम, प्रोटीन 15.60 ग्राम और विटामिन बी 450 मिलीग्राम होता है.
उन्नत किस्में
अखरोट की उन्नत किस्में ट्यूट्ले 31, गोविंद, वाटरलू, हेनसेन, लेक इंगलिश वगैरह हैं.
जमीन व जलवायु
अखरोट (Walnut) की खेती सभी प्रकार की जमीन में की जाती है, पर अच्छे उत्पादन के लिए जलनिकासी वाली 1.5 से 2.0 मीटर गहरी जीवांशवाली दोमट मिट्टी अच्छी होती है. अखरोट के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 तक होना चाहिए. अखरोट ठंडे इलाके का फल है. इस की बागबानी 1300 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक की जाती है.
पौध तैयार करना
अखरोट (Walnut) को बीज, स्टूल कलम, जीभी कलम, विदर कलम व चश्मा चढ़ा कर लगाते हैं. इस के लिए सूखी जमीन में रेजिया जाति के और गीली जमीन में नाइग्रा जाति के बीज मूलवृंत प्रयोग करने चाहिए. कलम लगाने के लिए फरवरीमार्च के महीने और चश्मा चढ़ाने के लिए जूनजुलाई के महीने मुनासिब रहते हैं.
पौध लगाना
अखरोट (Walnut) के पौधरोपण के लिए दिसंबर व जनवरी के महीने ठीक रहते हैं. पौध लगाने के लिए बारिश के मौसम में 60×60×60 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदे जाते हैं. पौधरोपण से पहले गोबर की खाद, लकड़ी की राख व हड्डी का चूरा मिट्टी के साथ मिला कर गड्ढों में भरा जाता है. गड्ढे से गड्ढे की दूरी 10 मीटर रखी जाती है.
सिंचाई
अखरोट (Walnut) की रोपाई के पहले 2 सालों में सिंचाई की बहुत ज्यादा जरूरत होती है. खेत में फूल आते समय व फल बढ़ते समय ठीकठाक नमी होनी चाहिए. सिंचाई की सुविधा होने पर समय पर सिंचाई करना जरूरी व बहुत फायदेमंद होता है. पौध रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई जरूर करनी चाहिए.
नियंत्रण व थाले बनाना
अखरोट (Walnut) के खेत को खरपतवारमुक्त रखना चाहिए. इस के लिए सिंचाई के बाद निराईगुड़ाई करनी चाहिए व पेड़ों के थाले बना देने चाहिए.
थाले छोटे पेड़ के तने से तकरीबन 30 से 45 सेंटीमीटर दूरी छोड़ कर गोल आकार के बनाए जाते हैं. बड़े पेड़ों में तने से थाले के बीच की दूरी ज्यादा रखते हैं. इन्हीं थालों में खाद व पानी दिया जाता है.
खाद व उर्वरक
अखरोट (Walnut) के पेड़ से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए 50 से 100 किलोग्राम गोबर की खाद डालना जरूरी है. साथ ही, 25 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस और 25 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ में देनी चाहिए. 25 सालों तक खादों की मात्रा हर साल बढ़ा कर देते हैं. अखरोट के पेड़ में फरवरी में गोबर की खाद डालते हैं. उर्वरकों का इस्तेमाल कलियां फूटने से पहले करना चाहिए.
सधाई व काटछांट
अखरोट के पेड़ों से फालतू, रोगी व कीटों के असर वाली शाखाओं को काट कर निकाल देना चाहिए. इस के अलावा पेड़ों से 3 साल पुराने मरे हुए दलपुटों को भी निकाल देना चाहिए.
फूल व फल आने का समय
अखरोट के पेड़ों पर अप्रैल महीने में फूल आते हैं और अगस्त महीने से अक्तूबर महीने के दौरान किस्म व जगह के मुताबिक फल पक कर तैयार होते हैं.
तोड़ाई व उपज
अखरोट (Walnut) के फलों की तोड़ाई फलों के पूरी तरह से पकने पर की जाती है.
जब फल के बाहर का गूदा फट जाए और फल पेड़ व गूदे से अलग हो कर गिरने लगे, उस अवस्था में फलों की तोड़ाई करनी चाहिए. आमतौर पर अखरोट के 1 पेड़ से 1 साल में तकरीबन 80 से 100 किलोग्राम तक फल प्राप्त होते हैं.
पैकिंग व बिक्री
अखरोट (Walnut) के फलों को तोड़ाई के बाद अच्छी तरह से सुखा कर बांस की टोकरियों, कपड़े के थैलों, बोरियों, लकड़ी या गत्ते की पेटियों में रखते हैं.
पैकिंग के लिए आमतौर पर 30×30×30 सेंटीमीटर आकार की पेटियों का इस्तेमाल किया जाता है. तोड़ाई के बाद चुने हुए फलों को टोकरियों या लकड़ी की पेटियों में रख कर बाहर भेजा जाता है.
नोट: अखरोट के अच्छे परागण व अच्छी पैदावार के लिए इस की 2 या इस से ज्यादा किस्मों को बाग में लगाना चाहिए.