भारत में शरद ऋतु में उगाई जाने वाली सब्जियों में पत्तागोभी का विशेष स्थान है, फिर भी इस की खेती विभिन्न ऋतुओं में लगभग पूरे वर्ष हमारे देश में की जाती है. पत्तागोभी में खनिज पदार्थ, विटामिन ए, विटामिन बी-1 और विटामिन सी की अधिक मात्रा पाई जाती है, जिस के कारण इस के बीज की मांग दिन दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.

पत्तागोभी का बीजोत्पादन केवल पर्वतीय क्षेत्रों 1,800 मीटर से 3,000 मीटर की ऊंचाई में ही सफलतापूर्वक लिया जा सकता है. शुद्ध व गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन के लिए तकनीकी जानकारी का होना आवश्यक है.

अच्छे व गुणवत्तायुक्त किस्मों के बीज उत्पादन के समय बीज की शुद्धता व गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ध्यान देना चाहिए, जिस से बीज के गुणों की क्षति को रोका जा सके. अब तक इस फसल के बीजोत्पादन में जम्मूकश्मीर राज्य अग्रणी रहा है.

जलवायु

पत्तागोभी की खेती मैदानी क्षेत्रों में शीतकाल में की जाती है. पत्तागोभी की फसल के लिए 15 से 20 डिगरी सैल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है, जो पर्वतीय क्षेत्र में अलगअलग ऊंचाई पर अलगअलग समय में होता है, जिस से वर्षभर पत्तागोभी की सब्जी मिलती रहती है.

पत्तागोभी के पौधों में फूल बनने के लिए कम से कम डेढ़ माह से 2 माह तक 5 से 10 डिगरी सैल्सियस तापमान का मिलना अतिआवश्यक है. अगर यह तापमान लंबी अवधि तक मिलता है, तो पौधे में जल्दी फूल बनते हैं. इस के विपरीत यदि वातावरण का तापमान अधिक हो जाता है, तो पौधा वानस्पतिक अवस्था में ही रह जाता है.

बीज उत्पादन के लिए पत्तागोभी की खेती जुलाईअगस्त माह में करनी चाहिए. पत्तागोभी बीजोत्पादन के लिए ऐसे स्थान को चुना जाना चाहिए, जहां जुलाई से मई माह तक समयसमय पर वर्षा होती हो और पौधों में फलियां बनते समय प्रर्याप्त धूप मिल सके.

चुने गए क्षेत्र ओले से बहुत कम प्रभावित होने चाहिए, जिस के लिए फसल को बचाने के लिए नायलौन के जालों की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए.

भूमि का प्रकार

पत्तागोभी की खेती के लिए भूमि में पर्याप्त मात्रा में जीवांश होना चाहिए. अच्छे जलधारण एवं जल निकास वाली भूमि पत्तागोभी के बीजोत्पादन के लिए सर्वोत्तम होती है. पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 होना चाहिए.

भूमि की तैयारी

पत्तागोभी से अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत में एक गहरी व एक हलकी जुताई करनी चाहिए. पत्तागोभी की खेती असिंचित दशा में मध्यम ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में ही सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है.

भूमि शोधन

पत्तागोभी का अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत की अच्छी तरह से तैयारी करने के बाद खेत को छोटीछोटी क्यारियों में विभाजित करते हैं. इस के बाद मिट्टी में लगने वाली फफूंदी रोगों की रोकथाम ट्राईकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक से भूमि शोधन करना चाहिए.

बीज उत्पादन तकनीक

पत्तागोभी एक परपरागण वाली फसल है, जिस में परागण मधुमक्खियों के द्वारा होता है. पत्तागोभी की अगेती एवं पछेती किस्मों का उत्पादन ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में किया जाता है.

पत्तागोभी का आनुवांशिक शुद्ध बीज प्राप्त करने के लिए पत्तागोभी व गोभी वर्गीय 2 किस्मों को और सरसों कुल की फसलों के मध्य 1,000 मीटर की दूरी पर रखना अनिवार्य होता है.

पत्तागोभी का बीज उत्पादन करने के लिए 2 मौसमों की आवश्यकता होती है. पहले मौसम में बंद का उत्पादन होता है और अगले मौसम में बीज का उत्पादन होगा, अत: पत्तागोभी का बीज उत्पादन 2 तरीकों से किया जाता है.

बंद से बीज बनाना : इस विधि में नवंबरदिसंबर माह में पूरी तरह से विकसित बंद उखाड़ कर पुन: 60×60 सैंटीमीटर की दूरी पर रोपित करते हैं. पत्तागोभी में बीज उत्पादन के समय फूल और बीज का सुगमता से उत्पादन के लिए 3 विधियों को अपनाया जाता है.

स्टंप विधि : इस विधि में बंद (सिर) को आधार के ठीक नीचे धारदार चाकू से काटा जाता है, जिस से तने को पत्तियों के बाहरी आवरण/घेरे के साथ रखा जाता है.

केंद्रीय कोर अक्षुण्ण विधि के साथ स्टंप : इस विधि में बंद (सिर) को ऊपर से नीचे की ओर चारों तरफ से लंबवत काटा जाता है, ताकि केंद्रीय कोर क्षतिग्रस्त न हो.

सिर अक्षुण्ण विधि : इस विधि में बंद (सिर) को ऊपर से 2 चीरे इस प्रकार से लगाए जाते हैं कि उस के सिर पर धन (+) या क्रौस का कट बन जाए.

बीज से बीज बनाना : इस विधि में बंदों को दूसरी क्यारी में स्थानांतरित नहीं किया जाता है, बल्कि प्रारंभ में ही 60×60 सैंटीमीटर की दूरी पर रोपित किया जाता है.

बीज स्रोत व उपचार

पत्तागोभी का सफल बीजोत्पादन करने के लिए सही स्रोत से ही आनुवांशिक शुद्धता का बीज प्राप्त करना चाहिए. जब तक किसी विश्वसनीय स्त्रोत से शुद्ध बीज नहीं लिया जाए, तब तक उस की शुद्धता बनाए रखना आसान नहीं है.

अच्छी अंकुरण क्षमता के साथ बीज कवकनाशी रसायनों से शोधित होना चाहिए. प्रजनक आधारीय बीज किसी सरकारी संस्था या कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त करना चाहिए.

बीज दर और नर्सरी प्रबंधन

पत्तागोभी की अच्छी पौध तैयार करने के लिए निम्न बिंदुओं का ध्यान रखना बहुत जरूरी है :

* पौधों को समुचित धूप मिल सके, इस के लिए पत्तागोभी की पौधशाला खुले स्थान पर बनानी चाहिए.

* प्रत्येक वर्ष पौधशाला तैयार करने के लिए नए स्थान का चुनाव करना चाहिए.

* केप्टान नामक रसायन के 0.3 फीसदी के घोल से 5 लिटर प्रति वर्गमीटर की दर से पौधशाला लगाने के लिए चुनी गई भूमि को उपचारित करना चाहिए.

* पत्तागोभी के बीज को पंक्तियों में 5 से 6 सैंटीमीटर की दूरी पर 1.0 से 1.5 सैंटीमीटर की गहराई में लगाते है.

* पौधशाला की क्यारियां एक मीटर से अधिक चौड़ी नहीं होनी चाहिए और क्यरियां जमीन से 10 से 15 सैंटीमीटर ऊंची होनी चाहिए.

* पत्तागोभी की पौधशाला के लिए एक नाली क्षेत्र में 10 से 12 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है और रोपाई करने के लिए 5 से 6 वर्गमीटर पौध क्षेत्र पर्याप्त होता है.

* पौधशाला में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करते रहना चाहिए.

* पौधशाला में तैयार की गई पौध 4 से 5 हफ्ते में रोपाई के योग्य हो जाती है.

पौध रोपण

पत्तागोभी का बीज उत्पादन के लिए पौध रोपण के लिए पौध से पौध की दूरी 60 सैंटीमीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सैंटीमीटर रखते हैं, जिस से अच्छा व गुणकारी शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके.

खाद व उर्वरक

पत्तागोभी को बीजोत्पादन के लिए 4 से 5 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद, 2.5 किलोग्राम डीएपी, 3.0 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश एक नाली क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है.

गोबर की खाद, डीएपी और पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की एक तिहाई मात्रा पौध रोपण से पहले अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें.

यूरिया की बाकी बच्ची मात्र रोपाई से 25 से 30 दिन बाद और शेष बचा हुआ भाग फूल की शाखाएं फूटते समय जमीन में मिला देनी चाहिए.

पलवार प्रयोग और मिट्टी चढ़ाना

प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सितंबर से दिसंबर माह और मार्च से जून माह तक अकसर भूमि में नमी का अभाव रहता है. इस अवधि में पौधों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है. अत: पत्तागोभी की बीजू फसल में नमी की कमी के दिनों में पौधों को चारों ओर 3 से 5 सैंटीमीटर मोटी पलवार की परत बिछा देनी चाहिए.

इस से कुछ समय तक भूमि की नमी संरक्षित की जा सकती है और बर्फ गिरने से पहले पलवार को हटा देना चाहिए. पत्तागोभी की बीजू फसल में सितंबरअक्तूबर माह व मार्च में मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है.

रोगिंग व पृथक्करण

बीज की शुद्धता नियंत्रण के लिए रोगिंग करना नितांत आवश्यक है. यह कार्य बंद का आकार, रंग, उस का प्रकार एवं कुछ ऐसे गुण होते हैं, जिस के आधार पर किस्म को पहचान कर किया जा सकता है. जो पौधे किस्म के अनुरूप न हों और जो पौधे रोगी हों, उन्हें रोगिंग के दौरान खेत से निकाल देना चाहिए.

पत्तागोभी एक परसेचित फसल है. प्रमाणित बीज उत्पादक के लिए पत्तागोभी की 2 किस्मों या गोभीवर्गीय फसलों के खेतों के बीच की दूरी कम से कम 1.5 मीटर रखनी चाहिए.

कटाई (तुड़ाई)

पत्तागोभी की फलियां जब हलके हरे रंग की हो जाएं, तो उन्हें टहनियों से अलग कर लेना चाहिए.

बीज की मंड़ाई

पत्तागोभी की फलियों की कटी हुई टहनियों को 4 से 5 दिन तक ढेर में छायादार स्थान पर रखने के बाद फलियों को बोरी में भर कर उन्हें धूप में सुखाने के बाद मंड़ाई करते हैं.

बीज को सुखाना

पत्तागोभी के बीज में नमी को सुरक्षित स्तर तक लाने के लिए उन को अच्छी तरह साफ कर धूप में सुखाते हैं. जब तक बीज की नमी 7 से 8 फीसदी तक न आ जाए, इस के बाद बीज का श्रेणीकरण करते हैं, ताकि उच्च गुणवत्ता वाला बीज अलग किया जा सके.

उपज

असिंचित पर्वतीय क्षेत्रों में बीज फसल को नायलौन के जालों से मार्चअप्रैल माह में ढकने से औसतन 8 से 10 किलोग्राम बीज एक नाली क्षेत्र में उत्पादित हो जाता है.

मध्यम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में पत्तागोभी की बीजू फसल रोपाई से लगभग 320 से 330 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.

बोएं उन्नतशील किस्में

भारत में सफेद पत्तागोभी अधिक लोकप्रिय है. किसानों को अधिक उत्पादन लेने के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित, उन्नत और अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए.

अगेती किस्में (सितंबर माह) : अर्ली ड्रम हैड, प्राइड औफ इंडिया, चौबटिया अर्ली, गोल्डन एकड़, पूसा, मुक्ता, क्रांति, मित्रा (संकर) आदि प्रमुख किस्में हैं.

मध्य व पछेती किस्में (अक्तूबर माह) : अर्ली, क्विस्टो, पूसा ड्रम हैड, लेट लार्ज ड्रम हैड, श्री गणेश गोल, मिड सीजन मार्केट, कोपेनहेगेन मार्केट, लेट ड्रम हैड, ऐक्सप्रैस, हाईब्रिड 10 (संकर), सलैक्शन 8 आदि प्रमुख किस्में हैं.

पत्तागोभी का व्यावसायिक व सफल बीज उत्पादन की दृष्टि से गोल्डन एकड़ और ग्रीन ऐक्सप्रैस 2 प्रमुख किस्में हैं. इन दोनों प्रजातियों के बंद ठोस, गोल आकार के और स्वाद वाले होते हैं. बंद का औसत वजन 750 ग्राम से 1,000 ग्राम तक होता है.

प्रमुख कीट की रोकथाम

माहू

नियंत्रण : माहू कीट के नियंत्रण के लिए फूल आने से पहले मार्च माह में 15 मिलीलिटर रोगोर नामक रसायन 15 लिटर पानी में घोल कर छिड़कें.

गोभी की सूंड़ी

नियंत्रण : गोभी की सूंडी के नियंत्रण को इमिडाक्लोप्रिड नामक रसायन के 0.04 फीसदी घोल को छिड़क कर नष्ट किया जा सकता है.

कटुआ अथवा कटवर्म कीट

नियंत्रण : कटवर्म कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफास नामक रसायन के 0.2 फीसदी घोल को छिड़क कर नष्ट किया जा सकता है.

बीमारियों (रोगों) की रोकथाम

आर्द्र्र गलन : रोग नर्सरी अवस्था में लगता है. इस में पौधे गलने लगते हैं.

नियंत्रण : * रोग के नियंत्रण के लिए मिट्अी का केप्टान या फार्मलिन से रासायनिक उपचार करते हैं.

* क्यारियों में समुचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए.

* बीज घना नहीं बोना चाहिए.

* प्रतिवर्ष पौधशाला का स्थान बदलते रहें.

काला विगलन : इस रोग के बीजाणु बीज की सतह पर, उस के अंदर और पौधे के मलबे में पाए जाते हैं.

नियंत्रण : * रोग के नियंत्रण के लिए रोगरहित बीजों को लगाना चाहिए.

* लंबा फसलचक्र अपनाना चाहिए.

* बीज को गरम पानी से उपचार करना चाहिए.

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